आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आज कल के युवाओं में सहनशीलता की कमी देखी जा रही है . अच्छे घरों के बच्चों में भी इस तरह की प्रवृत्ति मैंने देखा है . उनकी समय पर मांग पूरी नहीं होने पर चिडचिडापन के स्तर से आक्रामकता तक पहुँच रही है ,वे बेवजह ही हिंसक हो उठाते है ,हालांकि बाद में गलती मान लेते है लेकिन ये सही नहीं है . आभार आपका कथा को पसंद करने के लिए आदरणीय शहजाद जी
ओह्ह्ह कहानी अंत तक आते आते जबरदस्त मोड़ लेती है इस कहानी ने झकझोर दिया क्या ऐसी भी औलाद होती है इससे तो ना होती वही ठीक था |माँ ने सही मशविरा दिया लड़की को |
बहुत बहुत बधाई आ० कांता जी इस सुन्दर लघु कथा के लिए |
आपको कथा पसंद आई तो वाकई में मेरा लिखना सफल हुआ आदरणीया राजेश कुमारी जी . मैंने इस कथा में स्त्री का दुसरे स्त्री के प्रति संवेदनशीलता को , पुरुषों में हाथ उठाने की प्रवृत्ति के खिलाफ ,माँ से इतर मैंने यहाँ एक स्त्री को मुखरित होने को कथ्य देना चाहा है . आपकी कथा पर सहमती से ये कथ्य जीवंत हो उठा है क्योंकि आने वाले दिनों में हम आप ही है इस भूमिका में . आभार आपको ह्रदय से
कथा के मर्म के सुरंग तक पहुँचाने के लिए ह्रदय से आभार आपको आदरणीय सुनील जी . जैसे पाठक अच्छी रचना को तलाशता है ठीक उसी प्रकार रचना भी अपने मर्मग्य की राह निहारती रहती है . सादर . :)))))
लघुकथा बेहद बढ़िया है आ० कांता रॉय जी विषय भी लीक से हटकर है जिस हेतु बधाई प्रेषित हैI दो बातें बेहद खटकीं:
१. माँ द्वारा लिव-इन रिलेशन की बात कहना बेहद अजीब और अस्वाभिक लगा; इसे हटाया जा सकता है क्योंकि कुत्ते की पूँछ तो सीधी होने से रही, अगर लड़का शादी करके हाथ उठाने की आदत नहीं छोड़ेगा तो लिव-इन में उससे ऐसी आशा रखना भी गलत होगाI
२. लघुकथा प्रस्तुति में टेक्स्ट इतना बिखरा-बिखरा सा क्यों है? ज़रा ध्यान देंI आप सहित बहुत से साथी कौमा (") के बाद गैप क्यों देने से नहीं हट रहे हैं जोकि गलत हैI
सर जी ,माँ आज की पढ़ी-लिखी सुशिक्षित महिला है और वो स्त्री -विमर्श की पक्षधर है बेटे पर कंट्रोल नहीं है .पात्रा को उस अवस्था में देखना नहीं चाहती है इसलिए बंध कर उसके साथ रहने से मना कर रही है . मैं आज के सन्दर्भ में नारी का नारी के लिए संवेदनशील होने को संदर्भित करना चाहती थी .ऐसी स्थिति में कथा का रूप क्या हो ? कृपया आप मार्गदर्शन करें .
सर जी , मुझे अक्षर से चिपके हुए कोमा व अन्य विराम चिन्ह अच्छे नहीं लगते है . हम सब लिखते हुए अपनी नोटबुक में भी कहाँ ये सब करते है ? लिखते हुए शब्द खत्म हुए और एक निश्चित जगह पर विराम चिन्ह अंकित कर दिए .इतना सटा कर कॉपी या किताब में भी नहीं होता है .आप बुक-सेल्फ पर से किताब निकाल कर देख लीजिये . सदर __/\__/\__/\__ :)))))))
कथा में एकाएक आया मोड़ कथा की नवीनता है,लड़की को भविष्य की आशंका से पहले ही वाकिफ़ करना अच्छा लगा.जो व्यावहारिक ज़िंदगी में अमूमन नहीं होता.
आज की महिलाओं में चेतना जागी है ,अब वो सोचती है इन सब बातों के बारे में . मेरी कथा में मैंने हमारी जनरेशन को संदर्भित किया है . अब हम सब माँ से सास बन रहे है .ये हमारी बात है .ऐसा हम कहने वाले है अपनी होने वाली बहुओं से .अब सोचिये जरा फिर से .ये बदलाव है स्त्री जीवन में उसकी मुखरता के सन्दर्भ में .वो अपने लिए मुखर होगी और साथ में बहु बेटियों के लिए भी
अगर मुझे ये कहना सही लगा है और नारीशक्ति को माँ का ये फैसला सार्थक लगे तो समझ लीजिये आदरणीया आशा जी आने वाले दिनों में ये व्यवहारिक भी हो जाएगा . कथा पर उपस्थिति व सराहना के लिए ह्रदय से आभार आपको .
आपसे अक्षरशः सहमत हूँ आदरणीय सुनील जी . उचित मार्गदर्शन के लिए सदा आभारी रहूंगी .
ओह्ह !
कहानी का अंत ह्रदय को झकझोर गया ..ऐसी औलाद से बे-औलाद भला | लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाई कांता जी
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