आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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नामर्द--
रोज की ही तरह आज भी रग्घू खूब पी कर आया था और आते ही खटिया पर पसर गया| रधिया को नफरत थी इस शराब से लेकिन बहुत कोशिश के बाद भी इसे छुड़ा नहीं पायी थी रग्घू से| पिछले दस साल से इसी सब से गुजर रही थी वो, अक्सर पिट भी जाती थी लेकिन कहाँ जाए, इसलिए सब बर्दास्त कर जाती थी| अभी तक कोई बाल बच्चा भी नहीं हुआ था और अब उसके लिए भी पास पड़ोस से ताने सुनने पड़ते थे| आज भी किसी पड़ोसन ने उसे बाँझ कह दिया था और उसका मन बेहद दुखी था|
"कहाँ मर गयी, कुछ खाने को भी देगी", खटिया पर लेटे लेटे ही रग्घू चिल्लाया|
वो अपने विचारों से बाहर निकली और थाली में खाना निकाल कर रग्घू के पास आई|
"मुंह हाथ तो धो लेते कम से कम खाने के पहले", कहते हुए उसने थाली को खटिया पर पटक दिया| रग्घू को उसका बोलना और इस तरह थाली पटकना, दोनों खटक गया|
"बहुत बोलने लगी है, थाली पटकेगी तू", रग्घू एकदम से गुस्से से उबल गया और खटिया से उतर कर उसको एक हाथ कसके मारा| रधिया दीवाल के पास जाकर गिरी, पीछे पीछे रग्घू आ गया और उसे और पीटने लगा| थोड़ी देर के बाद रग्घू उठा और खटिया पर बैठते हुए चिल्लाया "आगे से कुछ ऐसा किया तो तोड़ के रख दूंगा, मर्द हूँ तेरा"|
रधिया कराहते हुए उठी, उसकी ऑंखें गुस्से में जल रही थीं| उसने खड़े खड़े रग्घू की ओर थूक दिया और चिल्लाकर बोली "मर्द कहता है अपने आप को, तू मर्द नहीं है, तू नामर्द है"|
मौलिक एवम अप्रकाशित
मर्द होना ऐसा लगा जैसे लगा जैसे इंद्र का सिंहासन मिल गया है ,लेकिन रधिया का ये आक्रोश क्या सफल होगा ? मुझे तो लगता है कि वह हर रोज इसी तरह आक्रोशित होती रहेगी और अपने आस-पास के हवा को आक्रोशित करती भी रहेगी . समाधान को व्याकुल इस लघुकथा में जीवन की विभत्सता देखने को मिली है . बहुत -बहुत बधाई आपको आदरणीय विनय सर जी इस सार्थक लघुकथा के लिए .
बहुत बहुत आभार आपका
आदरनीय विजय कुमार सिंह जी आप ने बहुत ही शानदार तरह से आक्रोश को अभिव्यक्त किया है. बधाई.इस उम्दा प्रस्तुति के लिए.
बहुत बहुत आभार आपका
जो आक्रोश बरसों से रधिया के मन में था उसे आज शब्द मिल गए लेकिन सिर्फ शब्दों से तो कोई समाधान नहीं निकल सकता।
विरोध करना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है कभी कभी, फिर तो रास्ते भी खुल जाते हैं| आभार आपका
जी बदलाव की पहली सीधी भी हो सकती है सादर
वाह वाह वाह !!! क्या ही कमाल पंच-लाइन है भाई विनय कुमार सिंह जीI प्रदत्त विषय को इस गज़ब तरीके से कलमबंद किया है कि आनंद ही आ गयाI ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करेंI
बहुत बहुत आभार आपका आ योगराज सर, आपको पसंद आई, संतुष्टि मिल गयी
उम्दा कथा हुई है आदरणीय विनय सर | बधाई स्वीकारें |
बहुत बहुत आभार आपका
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