आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी! प्रदत्त शीर्षक को पूर्ण रूप से दर्शाती रचना!बहुत प्रेरणाप्रद प्रस्तुति!यह ऐसे लोगों के लिये एक उदाहरण है जो कि प्रेम में असफ़ल होते ही निराशा में डूब कर शेष जीवन भी नष्ट कर लेते हैं!
मोहतरमा जानकी वाही साहिबा , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बहुत ही अच्छे विषय को लेकर कही गयी इस रचना हेतु सादर बधाई प्रेषित है, आदरणीया जानकी जी| //प्रेम का मरण इति नहीं होता//, यह वाक्य भी बहुत गहरा संदेश दे रहा है| आदरणीय योगराज जी सर के सुझावों पर ध्यान देकर रचना में सुधार करें तो निःसंदेह उत्कृष्ट हो जायेगी|
इस उम्दा लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया जानकी जी, सादर!
प्रायश्चित
" अरे देखो तो जरा कितना बेशरम है इतना बडा नेता बना फिरता था और इस उम्र में ये ! "
" जरा तो लाज शर्म करता अरे पत्नि को मरे दो ही साल हुए हैं और बच्चे भी जवान है फिर भी.. ये ! "
" और नही तो क्या पोता पोती को खिलाने की उम्र और इतनी नादानी! "
" कम से कम लडकी की उम्र का भी ध्यान नही रखा ! "
" अरे ये तो गुनाह नही पाप है पाप प्रायश्चित करना पडेगा प्रायश्चित देखना! "
और एक दिन सच में नेताजी ने प्रायश्चित कर लिया .. कन्या से विधिवत् विवाह करके..... अब सब कुछ ठीक था !
मौलिक व् अप्रकाशित
प्रिय बबीता जी ,लघु कथा के माध्यम से बहुत बढ़िया कटाक्ष किया है आज के राजनेताओं पर :-))))))
एक ऐसी उम्र में जिसमे मुँह में दांत नहीं पेट में आंत नहीं जवान लड़की से इश्क़ फर्माओं दुनिया बात बनाने लगे तो प्रायश्चित करने के लिए विवाह रचा लो बढिया प्रायश्चित हुआ
बहुत बहुत बधाई आपको |
अच्छी लघुकथा है आ० बबिता चौबे जी, बधाई प्रेषित हैI
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