आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत मर्मस्पर्शी रचना कुछ लोगों की ,धार्मिक कट्टरता बदनुमा दाग है हमारे देश पर ,पर यहीं पर अंसारी जैसे लोग भी हैं . हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय विनय कुमार जी .
मोहतरम विनय कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती तथा समाज को आईना दिखाती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
सशक्त पंच लाइन से सजी बेहतरीन रचना . बधाई !!
आदरणीय विनय भाई जी ! प्रस्तुत लघुकथा का कथानक व इसका प्रस्तुतिकरण सराहनीय है। सांप्रदायिक सद्भाव के बिना आदर्श समाज की कल्पना संभव नहीं है । सदभाव जैसी संवेदनाएं हैं तो सहयोग, सौहार्द सब होगा। पर अब धार्मिक उन्मादियों की वजह से ये भावनाएं व संदवेदनाएं रसातल की ओर जा रही है। खैर ! प्रस्तुत लघुकथा प्रदत्त विषय से न्याय कर रही है इसमें कुछ संशय है। लघुकथा में कसावट की आवश्यकता अभी भी है। सादर
आदरणीय विनय कुमार जी मर्मस्पर्शी रचना हार्दिक बधाई आपको.
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी!बहुत मार्मिक और हृदय स्पर्शी लघुकथा! आज़ादी के इतने सालों बाद भी यह जाति वाद का दंश खत्म होने का नाम नहीं ले रहा! ऊपर से नेता लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं!पुनः बधाई!
आदरनीय विनय कुमार जी हर बार की तरह इस बार भी आप की लघुकथा शानदार है . बधाई .
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