आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय चन्द्रशेखर जी, ये बात तो अलग है कि तीसरी पीढी़ का क्या रोल है. लेकिन कोई जब अपने मूल से हटेगा तो उसके नष्ट होने की सम्भावना ज्यादा होती है. सादर.
आदरणीया अर्चना जी. कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. सादर.
आदरणीय विजय जी, कथा पर आने और अपने विचार देने के लिये आभार. सादर.
यह लघु कथा पढ़कर बिलकुल ऐसा लगा जैसे मेरे ही शब्द हों १९ ८० ,८२ में मुंबई कोलाबा में एक जूस की दुकान हुआ करती थी जो बहुत फेमस थी हम अक्सर वहाँ जाया करते थे अब पिछले दिनों उसी दुकान पर गये दुकान वही की वहीं छोटी सी सामने उस आदमी के फोटो पर बड़ी सी माला | फिर उसके लड़के ने जूस बनाकर दिया घर आकर हमारे दोनों के मुँह से वही बात निकली की वो पहले वाली बात नहीं इस लड़के का पापा क्या जूस बनाता था | सच कहा हुनर की विरासत संभालना भी हर किसी की बात नहीं |
बहुत बहुत बधाई शुभ्रांशु भैया इस सुदर लघु कथा के लिए |
आदरणीया राजेश कुमारी जी, ये एक लेखक के लिये बडॆ़ गर्व की बात होती है जब कोई पाठक ये कहता है कि ये उसके शब्द जैसे लग रहे हैं. कथा का अपनापन उसे उच्च बनाता है. और आपने उसे अपना बना लिया. आपने मेरा मान बढा़या है. बहुत बहुत आभार. जिस जूस की दुकान की बात आप कर रही हैं वहां जाने का मौका मुझे भी मिला है. लेकिन ८०-८२ में जाने का सौभाग्य मुझे नहीं मिला.
वैसे इस रचना को आप सच्ची घटना भी कह सकती हैं जो गर्मियों में मेरे साथ घटित हुई थी. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय शुभ्रांशु जी । बेहतरीन लघुकथा।वक्त के साथ हर व्यापार के तौर तरीके बदल गये हैं।
आदरणीय समर कबीर जी, कम लिखने के आरोप का मैं दोषी हूँ, क्षमा चाहता हूँ, इस दोष में नेट भी जिम्मेदार है. मानसून ने ब्राड बैण्ड की बैण्ड बजा रखी है. इस आयोजन में भि कल और आज कई बार ERROR 500 का पेज आया, अभी किसी तरह केवल अपनी कथा पर आये लोगों का आभार कर रहा हूँ. पता नहीं नेट कब बैठ जाये.
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. सादर.
आदरणीया सीमा जी, कथा के मूल को समझ कर इंगित करने के लिये आभार. रचनाकार की बात जब पाठ कह देता है तो रचनाकार तृप्त हो जाता है और रचना सफ़ल हो जाती है. सादर.
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