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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 177 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'निदा फ़ाज़ली' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी'

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212

बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम

रदीफ़ --आदमी

क़ाफ़िया:-(आर की तुक)
बहार,इन्तिज़ार,एतिबार,इख़्तियार, बे-क़रार आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 29 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आ. संजय जी,

ग़ज़ल शायद बहुत जल्दबाज़ी में कही गयी है ... मिसरों में और गुंजाइश है ..तसल्ली से देखेंगे तो और अधिक निखार आएगा.
साथ ही अन्य रचनाकार भी आपकी टिप्पणी के आकांक्षी हैं. इस अपर भी विचार करें.
सादर  

आदरणीय संजय जी अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें।

बाक़ी सब चर्चा हो ही गई  है। गुनीजनों ने  बहुत बारीकी से सब कह दिया है। विचार करें

पुनः बधाई

आदरणीय संजय जी  नमस्कार 

बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए 

गुणीजनों की टिपणियों से बहुत कुछ समझने  सीखने को मिलता है 

सादर 

जब महब्बत में हो बे क़रार आदमी
तोड़ देता है सारे हिसार आदमी

अपना खोता है जब एतिबार आदमी
दूसरों पर करे इंहिसार आदमी

मुल्क में इतनी ग़ुरबत है देखो ज़रा
एक रोटी के पीछे हैं चार आदमी

आइने से भी आँखें मिलाता नहीं
ख़ुद से होता है जब शर्मसार आदमी

सब्ज़ बाग़ उसको शैताँ दिखाता है जब
भूल जाता है अपना शिआर आदमी

जीते जी तो 'समर' तुझको पूछा नहीं
तेरी मय्यत में हैं बे शुमार आदमी

बात सच्ची 'निदा' ने कही दोस्तो
'हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी'

'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम Samar kabeer साहिब चरणस्पर्श।

एक अर्सा हो गया था कोई अच्छी ग़ज़ल पढ़े हुए।

आपकी ग़ज़ल पढ़कर मन प्रफुल्लित हुआ।

बिहतरीन, लाजवाब, हर शब्द छोटा जान पड़ता है।

इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई स्वीकार करें गुरु देव 🌺 

जनाब euphonic amit जी आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत शुक्रिय: ।

आदरणीय कबीर सरजी नमस्कार

काफ़ी वक़्त के बाद आपकी ग़ज़ल आज पढ़ने को मिली

आनंद आ गया ,बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ,बधाई स्वीकार कीजिये

सादर

मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत शुक्रिय: ।

मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल से रू-शनास कराया आपने, जिसके लिए भरपूर दाद और शुक्रिया क़ुबूल फ़रमाएं। सादर।

जनाब अमीरुद्दीन जी आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत शुक्रिय: ।

आदरणीय समर सर,

बड़े अंतराल के बाद आपको मंच पर ग़ज़ल पेश करता देख कर प्रसन्नता हो रही है.  

हमेशा की तरह आपकी यह ग़ज़ल भी यह ग़ज़ल मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं—प्यार, कमज़ोरी, गरीबी, आत्म-चिंतन, प्रलोभन, सामाजिक दिखावा और मानव स्वभाव की क्रूरता—को बहुत ही संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है। हर शेर अपने आप में एक स्वतंत्र विचार लिए हुए है, फिर भी सभी एक केंद्रीय थीम—इंसान की जटिल प्रकृति—के इर्द-गिर्द घूमते हैं। भाषा सरल लेकिन गहरी है। यह रचना पाठक को सोचने और आत्म-मंथन करने के लिए मजबूर करती है।

ग़ज़ल के लिए बहुत  बधाई 

सादर 

जनाब निलेश जी, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत शुक्रिय: ।

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