For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 183 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा मशहूर शायर स्वर्गीय कुँवर बेचैन साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।
तरही मिसरा है:
“जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना”
बह्र है फ़ायलातुन्, फ़ियलातुन्, फ़ियलातुन्, फ़यलुन् अर्थात् 2122 1122 1122 112 या 22
रदीफ़ है ‘’लिखना’’ और क़ाफ़िया है ‘’आनी’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं जवानी, पुरानी, सुहानी, अजानी, सयानी, मानी, दानी आदि
उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।


मूल ग़ज़ल:
दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना
जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना


कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना


आते जाते हुए मौसम से अलग रह के ज़रा
अब के ख़त में तो कोई बात पुरानी लिखना


कुछ भी लिखने का हुनर तुझ को अगर मिल जाए
इश्क़ को अश्कों के दरिया की रवानी लिखना


इस इशारे को वो समझा तो मगर मुद्दत बा'द
अपने हर ख़त में उसे रात-की-रानी लिखना

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 सितंबर दिन शनिवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितंबर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 सितंबर दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 1715

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

भूलता ही नहीं वो मेरी कहानी लिखना। 

मेरे हिस्से में कोई पीर पुरानी लिखना।

वो तो गाथा भी लिखें सिर्फ अहम लोगों की

अपने हाथों में है इत्यादि की बानी लिखना।

फिर गगन देख के बोली ये कृषक की आँखें

खेत के हिस्से में इस बार तो धानी लिखना।

मुझको मालूम है देहात बसा है मुझमें

आज प्राणी को इधर सीखा परानी लिखना।

हैसियत देख के इंसाफ यहां मिलता है

तुमने इंसाफ की देवी को भी कानी लिखना।

इन मकानों पे छतें खूब ख़ुदा ने लिख दी

सिर्फ भूला है तो फुटपाथ पे छानी लिखना।

यूँ वसीयत में तो बेटी को भुला देते हैं

किन्तु भूले नहीं बेटी को सयानी लिखना।

आज साहित्य से सत्ता की जुगलबंदी है

आज मुश्किल है किसी नाम को ज्ञानी लिखना।

लाभ जनतंत्र के जनता को बताऊं कैसे

'जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना।'

(मौलिक और अप्रकाशित)

आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, तरही मिसरे पर अति सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।उत्तम गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ! अच्छी ग़ज़ल से मुशाइरा आरंभ किया आपने। बहुत बधाई!

// यूँ वसीयत में तो बेटी को भुला देते हैं

किन्तु भूले नहीं बेटी को सयानी लिखना// उम्दा शेर !

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय मिथिलेश जी बधाई स्वीकारें

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर

स्वीकार करें! ग़ुस्ताख़ी मुआफ़ करें " आज मुश्किल है किसी नाम को ज्ञानी लिखना " इस मिसरे पर थोड़ा अटक रहा हूँ 

आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपके द्वारा इंगित मिसरे में निष्पक्ष लेखन के कमी की पीड़ा और जन सरोकारों से दूर होते लेखन पर व्यंग्य का प्रयास किया है। संभवतः इसे संप्रेषित करने में इस मिसरे में अभी गुंजाइश हो सकती है। इस पर मैं अवश्य प्रयास करूंगा। मेरे प्रयास को मान, समय और अमूल्य मार्गदर्शन देने के लिए हार्दिक आभार। सादर

यह ग़ज़ल विवशता के भाव से आरंभ होकर आशा, व्यंग्य, क्षोभ और अंत में गहन निराशा तक की यात्रा समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं यथा गरीबी, किसान की दुर्दशा, न्यायिक पक्षपात, लैंगिक असमानता, और लोकतंत्र की विफलता से होते हुए पूर्ण करती है।ग़ज़ल का भाव-पक्ष प्रबल है। अपनी बात रख रहा हूँ।

भूलता ही नहीं वो मेरी कहानी लिखना
मेरे हिस्से में कोई पीर पुरानी लिखना।

भाग्य को एक लेखक के रूप में लेकर नियति के प्रति एक गहरी निराशा और विवशता का भाव है इस शेर में।

वो तो गाथा भी लिखें सिर्फ अहम लोगों की
अपने हाथों में है इत्यादि की बानी लिखना।

इस शेर में "इत्यादि" शब्द का प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली है, जो एक तीखा व्यंग्य लिये इतिहासलेखन के पक्षपात के प्रति आक्रोश व्यक्त करता है।

फिर गगन देख के बोली ये कृषक की आँखें
खेत के हिस्से में इस बार तो धानी लिखना।

इस शेर में "गगन" को भाग्य या आशा तथा "धानी" को समृद्धि के प्रतीक के रूप में लेते हुए एक अव्यक्त पीड़ा है पूर्व में असफ़ल फ़सलों की। इस शेर में एक शब्द मोह देखा जा सकता है जिससे बचना चाहिये। इस शब्द मोह के कारण द्वितीय पंक्ति का भाव बहुत अच्छा होते हुए भी वाक्य रचना मोहक नहीं है। ‘रंग इस बार मेरे खेत का धानी लिखना’ या प्रथम पंक्ति के गगन से सीधा संबंध रखते हुए ‘पानीशब्द का प्रयोग किया जा सकता थाखेत के भाग्य में इस बार तू पानी लिखनाकहा जा सकता था।

 

मुझको मालूम है देहात बसा है मुझमें
आज प्राणी को इधर सीखा परानी लिखना।

अंदर कहीं गहरे तक मानस में बसे गांव की बात करते हुए "प्राणी" और "परानी" के बीच का अंतर आत्म-सजगता और साथ ही समाज द्वारा थोपी गई पहचान पर क्षोभ सामाजिक रूढ़िवादिता पर प्रहार है

हैसियत देख के इंसाफ यहां मिलता है
तुमने इंसाफ की देवी को भी कानी लिखना।

न्याय की देवी के अंधे होने की परंपरागत अवधारणा को तोड़कर हैसियत अनुसार पक्षपातपूर्ण न्याय मिलने के संदर्भ में अंधी नहीं बल्कि कानी कहना एक साहसिक कहन है जो व्यवस्था के प्रति गहरा कटु व्यंग्य है।

इन मकानों पे छतें खूब ख़ुदा ने लिख दी
सिर्फ भूला है तो फुटपाथ पे छानी लिखना।

फ़ूस की छत के मूल देहाती शब्द रूप ‘छानी’ का प्रयोग खूबसूरत रहा।

यूँ वसीयत में तो बेटी को भुला देते हैं
किन्तु भूले नहीं बेटी को सयानी लिखना।

यह शेर पितृसत्तात्मक समाज की उस विडंबना को उजागर करता है जहाँ बेटी पर ‘सयानी बिटिया’ का लेबल चिपका कर उससे उसके अधिकार बड़ी क्रूरता से छीन लेता है।

आज साहित्य से सत्ता की जुगलबंदी है
आज मुश्किल है किसी नाम को ज्ञानी लिखना।

सच्चे ज्ञान और निष्पक्ष लेखन के अभाव से उत्पन्न विक्षोभ और मौजूदा व्यवस्था से मोहभंग को खूबसूरती से उतारा गया है इस शेर में।

लाभ जनतंत्र के जनता को बताऊं कैसे
'जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना।'

सच्चा जनतंत्र स्थापित करने के लाभ मतदाताओं को समझ में न आने से उत्पन्न् निराशा से उत्पन्न् गिरह का शेर सशक्त रहा।

एक अच्छी ग़ज़ल से शुरुआत हुई तरही की। बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service