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मोहतरमा बबिता साहिबा ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
सैनिक कभी भी पलायन नहीं करते, बहुत खूब| प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया रचना, बधाई आपको
क्या यह रचना अप्रकाशित नही है बबिता जी?
पलायन (लघु कथा)
विधुर चाचा की पालिता थी वह . उसे याद नहीं चाचा ने उसे कबसे पाला था . अब वह सत्रह वर्ष की हो गयी है. इधर कुछ दिनों से उसे चाचा के रंग ढंग अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं . रात को शराब पीकर आता है और देर देर तक उसे घूरता है .कभी गाल सहलाता है . कभी शरीर पर हाथ फेरता है . वह सहम कर रह जाती है . एक दिन उसने दिल कड़ा कर कहा था - चाचू शहर जाकर कुछ काम करो . यहाँ की मजदूरी से अब पेट पालना मुश्किल हो रहा है और अब मेरी फ़िक्र मत करो , बड़ी हो गयी हूँ अकेले रह लूंगी . पर चाचू को अच्छा नहीं लगा था . वह बोला - तुझे अकेला छोड़ दूं तो दुनिया हँसेगी मुझ पर . फिर मैंने अपने बापू को बचन दिया था कि अपने जीते जी घर की देहरी नहीं छोडूंगा . वह इसी उधेड़बुन में थी कि उस रात चाचू फिर शराब पीकर आया और नशे की झोंक में या फिर जान बूझ कर उसके ऊपर भहराकर गिरा . उठने के प्रयास में उसने भतीजी के शरीर को कस कर दबाया . उसकी आँखों में आंसू आ गये .
‘चाचू, तुमारी नीयत में शैतान है’- वह बिफर पड़ी .
‘वाह मेरी-- बिल्ली ---मुझी से ---म्याऊँ ? चाचू ने अटक-अटक कर कहा .
नशा शायद कुछ ज्यादा था . कुछ ही देर में वह खर्राटे भरने लगा .पर भतीजी की आँखों में ज्वाला भरी हुयी थी , उसे नींद कहाँ ?. धीरे-धीरे मन को स्थिर कर उसने एक संकल्प लिया . अपने जमा किये हुए कुछ पैसे उसने अपनी ओढनी में बांधे . एक उचटती निगाह चाचू पर डाली और आगे बढ़कर धीरे से दरवाजे की सांकल खोली . बाहर निकल कर खुली हवा में उसने उन्मुक्त पक्षी की तरह स्वतंत्रता की सांस ली और अनिश्चित पथ पर एक जीवंत आशा लेकर बढ़ गयी . अचानक ही उसे लगा कोई पीछे से आ रहा है, उसने पलट कर देखा . चाचू लड़खड़ाते क़दमों से उसकी और बढ़ रहा था . उसने अपनी गति तेज कर ली . जवान तो थी ही .हिरनी की भांति कुलांचे भरती शीघ्र वह दृष्टि से ओझल हो गयी .
चाचू निराश होकर वापस लौट आया . ‘आजकल की छोकरियाँ’ - वह बुदबुदाया , देहरी पर आकर वह अचानक ठिठक गया . कुछ देर तक निर्निमेष दरवाजे को देखता रहा . फिर उसने कुंडी चढ़ाकर बाहर से ताला लगाया और भारी क़दमों से शहर की राह पर चल पड़ा .
(मौलिक /अप्रकाशित )
मोहतरमा जनाब गोपाल नारायण साहिब ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर लेकिन बाछी ने तो अपने को बचाने के लिए नै राह चुनी जो ठीक ही थी| बधाई आपको इस रचना के लिए
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