आदरणीय साथिओ,
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बहुत बढ़िया रचना है प्रदत्त विषय पर, बस एक वाक़्य गैर जरुरी लगा, जिसे हटाया जा सकता है //खाना खाने के बाद बच्चे एक साइड में प्लेट रखने लगे।
"अरे! अरे!! ये क्या कर रहे हो? तुम्हारी इन झूठी प्लेटों को कौन धोयेगा? सभी अपनी-अपनी उठाओ और धोकर रखो।"- रामदेयी ने तिलमिलाते हुए कहा। सभी बच्चे अपनी-अपनी प्लेट उठाकर नल के पास ले जाकर धोने लगे//
की जगह सिर्फ इतना // खाना खाने के बाद बच्चे अपनी-अपनी प्लेट उठाकर नल के पास ले जाकर धोने लगे //| ये इसलिए लगा क्योंकि यह सब तो स्कूल में रोज की बात थी, हाँ उस मास्टर के लिए नयी बात जरूर थी|
बाकी वाक़्य विन्यास के बारे में आ योगराज जी ने इशारा कर ही दिया है| बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया रचना के लिए
तस्वीर का दूसरा रुख़ देखने के लिए तस्वीर से धूल का हटना आवश्यक है। कई बार हम स्वयं हटा देते हैं तो कई बार दूसरे आ कर। इस सकारात्मक सन्देश देती लघुकथा के लिए आपको ढेरों बधाई आदरणीय विनोद खनगवाल जी।
बढ़िया कथानक आ० योगराज जी की सलाह पर अम्ल कर लें . सादर .
बहुत ही बढ़ीया लघुकथा लिखी है आदरणीय विनोद भाई। एक दृश्य चित्र बना दिया आपने अपनी कथा के माध्यम से। /सर्दी में कई दिनों में धूप निकली थी बच्चे नए बर्तनों के चमके छत और दीवारों पर मार रहे थे।/ इस पंक्ित के माध्यम से बाल मन की सुलभ हरकत को बाखूबी पेश किया गया है। /इस स्कूल का हैडमास्टर भी हमारा है। गाँव का सरपंच भी हमारा है यहाँ तक इस इलाके का विधायक भी हमारा है। आपको जहाँ मेरी शिकायत करनी हो कर लीजिये।"/ यह पंक्ित सामाजिक (कु) व्यवस्था की पोल खोल रही है। आप सरीखे सशक्त हस्ताक्षर से जो उम्मीद रहती है आपकी लघुकथा उन पर खरी उतरती है। सादर शुभकामनाएं
आ.विनोद जी मै आपकी पहली रचना पढ रही हूँ.प्रदत्त विषय से न्याय करती प्रभावशाली रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको .बस मुझे कुछ विस्तृत सी लगी.
जी नहीं ऐसी लड़की बिलकुल नहीं मिलेगी आज के ज़माने में क्यूंकि लडकियाँ भी जागरूक हो गई हैं उनकी भी अपनी डीमांड हैं वो खूंटे से बंधने वाली गाय की कहानी अब खत्म हो चुकी है मेरे विचार से दादी को यही कहना चाहिए था अंत में की ठीक है बेटा तू कुँआरा ही रह ले
आपकी ये कहानी एक नई बहस का मुद्दा बन सकती है यही इसकी विशेषता है ..बहुत बहुत बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर आद० उस्मानी जी |
आपकी लघु कथा वाकई बहुत अच्छी लगी कहानी गलती से लिखा गया .
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