आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आ जानकी वाही जी
आ० विनय जी . यह आडम्बर बहुत प्रचलित है . आदमी है तो अंधी राहों का मुसाफिर पर वह समझता है वह उजले पथ पर चल रहा है . बहुत प्रेरक और शिक्षाप्रद कथा .
बहुत बहुत आभार आ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी इस उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए
बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद भाई इस उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए
बहुत बहुत आभार आ शशि बंसल जी इस उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए
अहा ! बहुत ही बढिया कथा हुई है आदरणीय विनय सर | इसी मंदिर के सामने मेरी माँ को किसी ने तब खाना खिलाया था, जब वो बेहद भूखी थीं"| बहुत सुंदर | हार्दिक बधाई सर |
बहुत बहुत आभार आ कल्पना भट्ट जी इस उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए
आदरणीय विनय जी, बहुत बढ़िया संदेशप्रद और प्रभावशाली लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
बहुत सुंदर लघुकथा आदरणीय विजय कुमार जी. बधाई आप को इस शानदार लघुकथा के लिए.
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