आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार. लघुकथा का अंत भी यदि पात्रों के कथोपकथन से हो और लघुकथाकार कुछ कहता हुआ न दिखाई दे तो यह एक उत्कृष्ट लघुकथा बन जाएगी. जैसा कि आदरणीय योगराज सर ने भी मार्गदर्शन किया है. सादर
मतदान जैसे महत्वपूर्ण कर्तव्य का आधार स्वविवेक ही होना चाहिए। बधाई आदरणीय !
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी आप ने गाँव की स्थिति का बहुत सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है. गांवों में अकसर ऐसा ही होता है. आप की लघुकथा इसी का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है. बधाई आप को.
रचना प्रदत्त विषय को परिभाषित कर रही है और इसने निहित सन्देश भी सार्थक है, किन्तु कथा का अंत बेहद कमज़ोर हैI क्योंकि बाबू जी की भावनायों को लेखक ने स्वय कह डाला, यदि यह सब उनसे कहलवाया जाता तो रचना प्रभावशाली बन सकती थीI बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करेंI
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