आदरणीय साथिओ,
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वाह वाह, बहुत ही मार्केदार लघुकथा कही है आ० प्रतिभा पाण्डेय जीI हालाकि कथानक नया नहीं मगर प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय हुआ हैI हमारे आस पास ऐसे एन्थनियों की कमी नहीं है, उससे भी महत्वपूर्ण बात ये कि अमर और अकबर भी बेशुमार हैं जो पूरी जिंदगी गैर सरकारी नौकरी करते रहे और पेंशन के नाम पर शून्य हैंI मैं स्वयं निजी कम्पनी में नौकरी कर रहा हूँ, और अक्सर सोचता हूँ कि रिटायरमेंट के बाद मेर क्या होगाI इसलिए आपकी लघुकथा ने अन्दर तक छुआ हैI मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी।सीनियर सिटीज़नों के दुख दर्द से ओतप्रोत सुन्दर लघुकथा।
हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर जी I कुछ थ्रेड की गड़बड़ी हो गई है
कथा पर आपसे मिला अनुमोदन और उत्साहवर्धन लेखन को सार्थक कर देता है, हार्दिक आभार आदरणीय योगराज जी I आप सही कह रहे हैं ..ये कथाओं में अक्सर उठाया जाने वाला पुराना कथानाक है..पर दिमाग़ में जब से ये अमर अकबर एंथनी वाला ट्विस्ट आया, मै ,खुद को इस विषय पर लिखने से रोक नहीं सकी I वैसे आज के अकबर और अमर तो युवा होते, नौकरी लगते ही पेंशन प्लान्स में इन्वेस्ट कर देते हैं और एन्थनियों को पीछे छोड़ देते हैं I
बुजुर्गों की अपनी समस्याएं होती हैं | बुज़ुर्ग अपने को कितना बेबस पाते है खुद को और उनके लिए बच्चों का स्वार्थी व्यवहार कितना दुखदायी हो जाता है | बहुत ही अच्छा विषय चुना है आपने आदरणीया प्रतिभा दी | हार्दिक बधाई |
हार्दिक आभार आदरणीया कल्पना जी
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
उफ्फ्फ्फ़ अंतिम पंक्ति ने भावुक कर दिया सच तो ये है जिसके पास पैसा है वो भी परेशान जिसके पास नहीं वो भी परेशान बुजुर्गों की स्थिति सब जगह एक सी ही है इस दर्द को खूब उभारा है इस लघु कथा ने बहुत खूब ...हार्दिक बधाई प्रिय प्रतिभा जी
आपको कथा पसंद आई ,लिखना सफल हुआ ..हार्दिक आभार आदरणीया राजेश जी
बहुत बढ़िया, नवम्बर महीने में तो आवभगत होती ही है पेंशन पाने वाले बुजुर्गों की| बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए
कथा के मर्म पर आपसे अनुमोदन मिला ...हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी
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