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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-23 (विषय: धारा के विपरीत)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के 23 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-23
विषय : "धारा के विपरीत"
अवधि : 27-02-2017 से 28-02-2017 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
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4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
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6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
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8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

अच्छी लघु कथा ! राहिला जी 

  आदरणीया राहिला जी, बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई कुबूल करें 

बहुत बढ़िया और प्रभावी रचना लिखी है आपने विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको

वाह्ह्ह्!आदरणीया राहिला जी इस उम्दा कथा के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद!

  राहिला जी एक बार फिर आपके , अपने अंदाज़ में विषय को सार्थक करती रचना। 
"बिटिया !ऐसा है ...,कि जब कोई पक्के इरादे वाला कुछ ठान लेता है ना तो शक़ की गुंजाईश नहीं रहती।"
बहुत खूब , बधाई। 

‘नायक’

 

वो दोनों ठग आज फिर से इस नगर में आ गए थे I ये वो ही ठग जुलाहे  थे जिन्होंने पच्चीस छब्बीस वर्ष पहले इस नगर के राजा को ये कहकर ठगा था कि वो उसके लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत पोशाक तैयार कर रहे हैं Iऐसी पोशाक जो सिर्फ सच्चे लोगों को ही दिखेगी I हवा में झूठ मूठ की पोशाक बनाने का नाटक करते हुए वो  राजा से मुद्राएँ ऐंठते रहे थे I और फिर एक दिन सड़कों पर अदृश्य पोशाक पहने भोंदू राजा की सवारी निकली I भीड़ जुट गई I अपने अन्दर के झूठ से डरा हुआ हर एक आदमी राजा की जय जयकार और पोशाक की तारीफ़ कर रहा था I तभी भीड़ में से एक बच्चा चिल्ला पडा था  कि राजा तो नंगा है I भीड़ का फायदा उठा कर ये दोनों वहां से भाग गए थे I

इन दोनों ने अब ठगी छोड़ दी थी I उस बच्चे से मिलने की इच्छा इन्हें यहाँ ले आई थी I

“ अब तो वो साहसी बच्चा अच्छा ख़ासा युवा हो गया होगा “I   एक ठग बोला I

“हाँ i  कैसे बिना डरे चिल्ल्या था वो उस दिन कि राजा तो ..” I

उस दिन की याद कर दोनों हँसने लगे I

“ लगता है नगर में नए हो ,तभी यूँ  हँस रहे हो “I एक भिखारी सा दिखने वाला बूढा  पास आ गया I

“क्यों हँसना मना है क्या यहाँ “?

“ बदहाली में कोई हँस सकता है क्या “?

बूढ़े की बात सुन दोनों ने अपने आस पास देखा I  सब फटेहाल गरीब  दिख रहे थे I टूटे फूटे मकान ,जर्जर सड़कें I गरीबी बदहाली बिखरी पड़ी थी I

“ इस नगर के उस मशहूर किस्से को याद कर हँस रहे थे जब एक बच्चे ने राजा की अदृश्य पोशाक  की पोल खोल दी थी” I

“आज भी तो सब कुछ अदृश्य है “I बूढा अपने आप से बोल रहा था I

“ मतलब “?

“ राजा के अनुसार राज्य में खूब  खुशहाली है I, पर फिर हमें क्यों नहीं दिखती? और हाँ i तब तो दो ही ठग थे ,पर आज तो ..”I बूढा चुप हो गया I

“ देख लेना एक दिन फिर से कोई नायक निकल कर आ जाएगा भीड़ से राजा का सच बताने “I ठगों ने बूढ़े के कंधे पर हाथ रख दिया I

तभी घोड़े दौडाते सैनिक सडक पर आकर लोगों को मार्ग के इधर उधर खदेड़ने लगे I  राजा की भव्य सवारी आ रही थी I  एक दूसरे पर गिरते पड़ते फटेहाल लोग राजा की जयजयकार कर रहे थेI

“ राजा के रथ के पीछे वाले रथ में कौन है जानते हो “? बूढा दोनों के कान में फुसफुसाया I

“कौन “?

“ राजा का मंत्री,  ठगों का सरगना  तुम्हारा वो नायक, वो साहसी बच्चा “I बूढा अब जोर जोर से हँस रहा थाI 

मौलिक व् अप्रकाशित  

आदरणीया प्रतिभा पांडे जी आदाब,क्या ख़ूब कथानक गढ़ा है, बेहतरीन और जिज्ञासा का संचार करती लघुकथा । बधाई स्वीकार करें ।

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी 

बहुत अच्छा ताना बाना बुना आपने आदरनीया दीदी!खूब बधाई। सादर

हार्दिक आभार प्रिय राहिला जी 

पिछले कुछ आयोजनों में आपकी सटीक बेबाक टिप्पणियों को मै मिस  कर रही थी I लोककथा की जमीन पर आज के सन्दर्भ की कथा कहने का प्रयास किया है . आपका कहना सही है ,शुरू का कुछ विवरण जरूरत से ज्यादा लंबा हो गया है I  अंत में नायक के प्रवाह के साथ बह जाने का इंगित आज के समय के  उन नायकों की तरफ ही है जो पहले धारा से अलग चलने का दम भरते है पर धीरे धीरे उसी धारा में बहने लगते है ...कथा पर समय देने के लिए आभार आदरणीय सुनील जी 

आदरणीया प्रतिभा जी आज पहली बार इस बार लघु कथा के आयोजन में शामिल हुआ हूँ और आपकी पहली लघु कथा पढ़ने का अवसर मिला।एक ही प्रवाह में पढ़ गया कमाल का लिखती है आप इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर

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