आदरणीय साथिओ,
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मरने वाले के रिश्तेदारों को नौकरी मिलने के मामले में ऐसे किस्से अक्सर सुनने में आते हैं सही चित्रण है बधाई आदरणीय बरखा जी ,,, पर माँ के प्रति आप कुछ अधिक कठोर हो गई हैं ,
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास हुआ है आ० बरखा शुक्ला जी जिस हेतु हार्दिक बधाईI लेकिन उस सद्य विधवा नेहा की माँ का यह आचरण हकीकत से परे की चीज़ लगती हैI यह घटना सत्य हो सकती है किन्तु जैसा कि विद्वान् लोग कहते हैं कि लघुकथा में सत्य से ज्यादा यथार्थ का महत्त्व होता हैI प्रयासरत एवं अभ्यासरत रहें व सुधि साथिओं की सलाह का गंभीरता से संज्ञान लेंI
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