आदरणीय साथिओ,
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वर्तमान स्वरूप में यह रचना मात्र कथानक का ही रूप ले पाई है, जो लघुकथा कम और किसी घटना का ब्यौरा अधिक लग रही है आदरणीय तिवारी जीI इस पर अभी काफी परिश्रम की आवश्यकता हैI पूरे विवरण की जगह इसमें कथोपकथन एवं कल्पनाशीलता का पुट डालकर रचना को अच्छी लघुकथा में परिवर्तित किया जा सकता हैI बहरहाल, आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करेंI
अच्छे कथानक की संभावना अंत में लडखडा गयी . अतिशयोक्ति भी खटकती है .
आप में एक उम्दा कथाकार के दर्शन देख रहा हूँ. प्रयास करते रहे.
आ. इंद्रविद्या वाचस्पति जी, आपने प्रदत्त विषय को शाब्दिक अर्थ में ले लिया है. हालाँकि ऐसा नहीं है कि ऐसा नहीं किया जा सकता पर उस पर आपने जो कथानक बुना है वह बहुत प्रभावित नहीं करता. एक व्यक्ति द्वारा भंवर से गायों को निकाल लाने में अतिश्योक्ति अधिक है. साथ ही, आपने कोई संवाद भी नहीं रखा. बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. भविष्य के लिए शुभकामनाएँ. सादर.
कथानक बहुत अच्छा है प्रदत्त विषयानुरूप भी है बाकी आद० योगराज जी की बात गौर करने लायक है |आपको बहुत बहुत बधाई
एक लेख जैसी प्रतीत हो रही है यह रचना, सहभागिता के लिए शुभकामनायें
" भँवर - अलगाववाद का"
भारी भीड़ वहाँ सिर झुकाए ग़मगीन खड़ी थी । जनाजा सामने रखा था और उसके लिए अंतिम नमाज़ पढ़ी जारही थी। मातमी माहौल में अनकहे सवाल तैर रहे थे। प्रशासन द्वारा आतंकी हिंसा के शिकार के लिए राहत राशि स्वीकृत कर दी गई थी। परंतु वहाँ की आवाम के चेहरे स्याह और खौफ़जदा थे। उनके मन में अपने सुरक्षित, खुशहाल जीवन और भविष्य के लिए संदेहों के भँवर गहरा रहे थे।
टीवी पर नेताओं की नित नई बयानबाजी और अलगाववादी नेताओं के आरोपों के बीच एक और शख़्स का जनाजा सुपुर्दे ख़ाक हुआ , वही जो भारत की धर्म निरपेक्ष संस्कृति का पुरजोर पैरोकार था , उसकी बेवा चीख-चीखकर विलाप कर रही थी:
"हम भारतीय हैं......हम भारतीय हैं....."
उसके नाम में 'मोहम्मद ' और 'पंड़ित ' दोनों शब्द शामिल थे....!
(काश्मीर में शहीद ड़ीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को श्रृद्धांजली स्वरूप )
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास किया है, लेकिन यह प्रदत्त विषय को कैसे संतुष्ट कर रही है आ० अर्पणा शर्मा जी?
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