आदरणीय साथिओ,
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आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. आदाब. लघुकथा आयोजन के आगाज के लिए ढेरो बधाईयाँ. सामयिक विषय को आपने कम शब्दों मे बखूबी उतार दिया है, लेकिन आत्महत्या से मुक्ति कुछ समझ नहीं आ रही.
'भंवर' विषय को परिभाषित करने का बढ़ीया प्रयास किया है आदरणीय आरिफ साहिब । परन्तु यह एक घटना मात्र ही है, इस घटना को अभी लघुकथा में पूरी तरह ढाला नहीं गया है । इस लघुकथा का नाकारात्मक संदेश भी कुछ सार्थक संदेश नहीं दे रहा। बहरहाल आयोजन का श्रीगणेश करने हेतु शुभकामनाएं ।
तमगा
सुदूर गांवों से शिक्षा का महत्व समझा कर लायी गयीं आदिवासी बालिकाओं का छात्रावास जिसका आज औचक निरीक्षण था । राजधानी से तीन बड़े अधिकारी आए थें । पहली से पांचवी तक के छात्रावास मे मौजूद सभी बच्चियां बड़े से हॉल मे आ कर नीचे बिछी चटाई पर बैठ गयीं । औचक निरीक्षण का पता वार्डन को था तभी लड़कियों के पहनावा साफ और कंघी चोटी बनी थी ।
तीनों अधिकारी कुर्सी पर बैठते हुए बोलें:
"वाह ! गोमती बाई , इस बार तो लड़कियां साफ सुथरी दिख रही हैं । "
"जी हजूर , सब आपकी कृपा है ...आप तो सर्वश्रेस्ठ का तमगा दिलवा दो हमें बस ।" पान से रंगे पीले काले दांत बाहर आ गये वार्डन के ।
"दिलवा देंगे पर पहले विशेष प्रशिक्षण तो दे दें ।" कह कर एक अधिकारी ने आँख दबाई तो सभी ने दांत निपोर दिये ।
वार्डन ने एक लड़की को हड़काया:
"ऐ मंगली , चल सामने आ ...साहब जो पूछें जबाब दे ।"
अधिकारी ने मंगली का मुआयना करते हुए पूछा
"तुम जानती हो गुड टच बैड टच ? "
मंगली ने नहीं मे सर हिलाया तो उन्होंने वार्डन को देखा । वो बत्तिसी दिखाती बोली:
"अब ये तो आप हीं बेहतर सिखाते हो न हजूर और इसी के पीछे तो सरकार आप सब पे इत्ता खरच रही ...."
" तू तो घाघ हो गयी है अब ...तेरा प्रमोशन तय है ।" कहते हुए अधिकारी के हाथ गुड टच बैड टच सिखाने के बहाने मंगली के शरीर पर हरकत करने लगे। मंगली की झिझक देख सभी की सम्मिलित हँसी और भद्दे इशारे भी शुरू हो गयें । बच्चियां क्रमशः बदलती जा रहीं थीं पर शिक्षा एक जैसी ही चल रही थी ।
तभी दरवाजे के पीछे एक चेहरा देख तीनों ने सवालिया नजर से वार्डन को देखा जिसका चेहरा अचानक हीं पीला पड़ गया था । उसे इशारे से पास बुला कर एक अधिकारी ने ज्यों ही वही सवाल पूछना चाहा कि वार्डन घिघियाई:
"ये मेरी बेटी है साहब जी , इसको रहने दो ।"
" ओह ! पर शिक्षा पर तो सभी का हक है, तेरी बेटी का भी। आखिर सरकार इतना खर्चा कर रही ... प्रमोशन की चिंता मत कर । "
एक गंदा इशारा उछाल कर तीनों ठहाके लगाने लगे। । आगे के शब्द वार्डन के कान तक नहीं पहुंचे , आँखों मे अंधेरा छा गया...
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मौलिक एवं अप्रकाशित
जब खुद पर पड़ी तब समझ आया, बहुत तीखी रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
अच्छी लघुकथा हुई है, अफसरशाही का बेहतरीन नमूना आपकी लघुकथा में देखने को मिली, बधाई इस प्रस्तुति पर.
प्रदत्त विषय को परिभाषित करने हेतु क्या ही गज़ब विषय चुना है अपराजिता जी, वाह! न केवल विषय ही उत्तम है बल्कि कथानक की ट्रीटमेंट भी कुशलता से की हैI लेकिन मैं भाई उस्मानी जी की बात से इत्तेफाक करता हूँ कि कक्षा का उल्लेख यदि न किया जाता तो बेहतर होताI यह रचना मामूली से सम्पादन और काट-छील के बाद और भी चमक उठेगीI खासकर पहले पैरे की तरफ ध्यान दें:
//सुदूर गांवों से शिक्षा का महत्व समझा कर लायी गयीं आदिवासी बालिकाओं का छात्रावास जिसका आज औचक निरीक्षण था । राजधानी से तीन बड़े अधिकारी आए थें । पहली से पांचवी तक के छात्रावास मे मौजूद सभी बच्चियां बड़े से हॉल मे आ कर नीचे बिछी चटाई पर बैठ गयीं । औचक निरीक्षण का पता वार्डन को था तभी लड़कियों के पहनावा साफ और कंघी चोटी बनी थी ।//
1. //सुदूर गांवों से शिक्षा का महत्व समझा कर लायी गयीं आदिवासी बालिकाओं का छात्रावास जिसका आज औचक निरीक्षण था।//
आदिवासी बालिकाओं के छात्रावास का आज औचक निरीक्षण था। (आदिवासी बच्चियाँ कैसे और कहाँ से आईं थीं, इसका उल्लेख गैर ज़रूरी है)
2. पहली से पांचवी तक के छात्रावास मे मौजूद सभी बच्चियां बड़े से हॉल मे आ कर नीचे बिछी चटाई पर बैठ गयीं ।
सभी बच्चियां बड़े से हॉल मे बिछी चटाई पर बैठ हुई थीं। (कक्षा का उल्लेख अनावश्यक है, और चटाई तो नीचे ही बिछती है, सो बताने की क्या आवश्यकता?)
बहरहाल, इस उत्तम लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित हैI
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