आदरणीय साथिओ,
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घर जमाई
जब आप कहते हैं कि उसने गलती की है तो उसको सजा जरूर मिलेगी । हम सब उस पर राजी हैं लेकिन आपको यह तो समझना चाहिए कि उसे माफी की भी तो जरूरत है। यदि उसे माफ कर दिया जाय और आगे के कार्यो पर ध्यान देकर उसे रास्ते पर लाया जाये तो हो सकता है कि वह सुधर जाय । इसलिए उसे आपको एक मौका अवश्य देना चाहिए। यह कहते हुए नंदनी के चेहरे पर पसीना आ गया था। सामने उसका पति गुस्से से लाल पीला हो रहा था। वह किसी भी तरह उसकी बात सुनने को राजी ही नहीं हो रहा था। उसने बार-बार कहा कि वह उसे घर से निकाल कर ही दम लेगा लेकिन नंदिनी ने उससे यह नहीं करने का आग्रह करते हुए यह चाहा कि वह उसे एक बार माफी देने लायक समझ जाय। नंदिनी का पति से कोई झगड़ा नहीं हो रहा था मगर वह एक दम आपे से बाहर जाकर बात को समझ रहा था। उनके एक पुत्र था जो विश्ववि़द्यालय में पढता था और उसे एक लड़की से प्रेम हो गया था। जिससे वह शादी ही नहीं करना चाहता था उसके घर जमाई बन कर रहना चाहता था। वह नंदिनी का एकलौता लड़का था। लेकिन वह प्रेम के कारण अपने मां-बाप को छोड़ कर अपने श्वसुर के घर में रहना चाहता था। लेकिन उसके पिता इस शादी के लिए ही राजी नहीं थे। उनका कहना था कि वह अपने करियर पर ध्यान न देकर आज ही अपने घरपरिवार की सोच रहा था जिससे आगे का रास्ता खराब हो रहा है। यदि वह अपने करियर पर ध्यान दे तो वह काफी नाम कर सकता है जिससे उनके मन को शांति मिल सकती है। उनका पुत्र चाहता था कि वह शादी कर ले और अपने करियर को भी संवार ले । इस को लेकर पिता पुत्र में कई बार बहस हो चुकी थी लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला था। अंत में उसक तर्को से नाराज पिता उसे अपने घर से निकालना चाह रहे थे । जिसे उसकी मां नंदिनी रोकने का प्रयास कर रही थी। मां को यह अच्छा नहीं लग रहा था कि उनका एकलौता पुत्र घर जमाई बन जाय। फिर भी शादी से उन्हंे कोई परहेज नहीं था। उसका करियर उनके लिए कोई विशेष मायने नहीं रख रहा था। उनके पास सुख के साजो सामान काफी थे। उनका पुत्र घर पर बैठ कर भी काफी आराम से गुजर कर सकता था। उन्होंने उसे समझाने की चेष्टा की । लेकिन वह मान ही नहीं रहा था। गनीमत थी कि कोई अनचाहे कदम उठाने से अभी परहेज कर रहा था। पिता का गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ था। आखिर तुम चाहते क्या हो ? नंदिनी ने अपने पुत्र से पुछा तो उसका जवाब था कि उसकी प्रेमिका केे पिता नहीं चाहते कि उसकी पुत्री का पति उसे लेकर दूसरी जगह रहे इसलिए वह चाहता है कि उसे उसकी ससुराल में रहने का मौका मिले। उसे वहां भी किसी चीज की कमी नहीं है। वे लोग भी काफी सम्पन्न है। वह अपनी प्रेमिका से काफी प्रेम करता है। इसलिए वह उससे शादी का इतना इच्छुक है। नंदिनी ने अपने पति से कहा कि एक बार उसके पुत्र की प्रेमिका के पिता से बात कर के देखा जाय कि आखिर उनकी क्या मजबूरी है जिससे वे इसे अपना घर जमाई बनाना चाहते हैं। काफी समझाने पर वे उनसे मुलाकात को राजी हो गये। नंदिनी के पति से उनसे कहा कि क्या कारण है कि वे अपनी पुत्री के पति को अपने यहां रखना चाहते हैं। तो इस पर उनका जवाब था कि वे अपने फैले कारोबार को देखने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को चाहते है जो उन्हें व उनकी पत्नी सहित पुत्री का भी ध्यान रखे। इस पर आपका पुत्र एक तो उससे टूट कर प्रेम करता है दूसरे हमारे मन को भी वह भाता है । हमने उससे यह आग्रह किया और वह राजी हो गया । अब आप के पास कोई दूसरा रास्ता हो तो हमें सुझाएं। उन्होंने कहा कि जब हम इसी शहर के बासिंदे हैं और मेरा एकलौता पुत्र है आपकी भी एकलौती पुत्री है तो शादी के बाद भी वह एक जगह आसानी से रह सकते है यदि हम सभी मिल कर एक साथ रहने की सोच ले। लड़की के पिता इस पर काफी देर सोचने के बाद राजी हो गये। नंदिनी के पति इसके बाद जब घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर आई शांति को देखकर नंदिनी ने अनुमान लगाया कि अब कुछ बात बन गई है। घर में आने के बाद वे नंदिनी से बोले कि तुम्हारे पुत्र की शादी उसकी लड़की से तय कर दी है। वे हमारे साथ ही रहेगी। यह सुनकर नंदिनी को आश्चर्य हुआ कि आखिर ये कैसे हुआ। क्योंकि वे तो घर जमाई के अलावा कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। उन्होंने बताया कि लड़की के पिता को समझाया कि शादी के बाद हम सभी एक साथ रहंेगे। इसलिए कोई समस्या नहीं है। उन्होंने अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा कि देखो आदमी नासमझी पर कितनी गलती कर बैठता है। यदि वे राजी नहीं होते और शादी हो जाती तो मेरा पुत्र तो हमेशा के लिए हमसे बि छु़ड़ जाता । इसे कहते है कि सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाये तो भूला नहीं कहा जाता।
मौलिक व अप्रकाशित ,
850 शब्दों से ज़्यादा की यह प्रस्तुति लघुकथा के लिहाज से बहुत बड़ी है आ. इन्द्र्विद्या वाचस्पति जी. साथ ही, पूरी कथा मात्र एक पैरे में वह भी बिना किसी संवाद के? इस रचना को एक बार पुनः देखने की आवश्यकता है. आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर.
ऐसी रचना पर क्या टिप्पणी की जाए आ० तिवारी जी? न कोई वाक्य विन्यास न शब्द संयोजन, न कोई कथा तत्व, न कोई संवाद, न कोई रोचकता, ऊपर से रचना शब्द सीमा को पार करके इतनी दूर जा रही है कि कुछ समझ ही नहीं आ रहा. पात्रों के मुख से भी कुछ कहलाया होता तब भी कुछ बात बन सकती थी. बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकार करें और इस रचना को लघुकथा बनाने का प्रयास करें.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 32 को अपनी सहभागिता से सफल बनाने हेतु सभी सुधि साथिओं का हार्दिक धन्यवाद.
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