आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही अच्छा सन्देश देती हुई रचना कही है आदरणीय भाई सतविन्द्र कुमार जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
'चश्मे और लकीरें' (लघुकथा) :
इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है या जानबूझकर उसे दोहराया जा रहा है। इतिहास बदल रहा है या जानबूझकर उसे बदला जा रहा है। ऐसे ही मुद्दों पर चर्चा करते हुए एक बुद्धिजीवी ने कहा - "किसी इतिहासकार ने सही कहा है कि पिछले पचास साल में इतिहास भारी बदलावों से गुज़रा है, जिसका अंदाज़ा औसत और सामान्य लोगों को शायद बिल्कुल ही नहीं है! उनकी इतिहास की अवधारणा बीसवीं सदी से पहले की ही बनी हुई है!"
इस पर दूसरे साथी ने कहा - "दरअसल इतिहास की पुस्तकें पढ़-पढ़कर लोगों ने इतिहास को उन्हीं इतिहासकारों के चश्मे से देखा है! उनकी नज़र कितनी सही थी, इस बात पर भी उन्हीं के साथी इतिहासकार भी सवाल उठाते रहे हैं!"
"सवाल उठाया जाना कोई बुरी बात है क्या? आपको अगर वह चश्मा पसंद नहीं आ रहा तो आप दूसरा लगा लीजिए!" तीसरे बुद्धिजीवी ने तपाक से कहा।
"मामला पैचीदा है भैया! इतिहास तो दोनों ही सूरतों में बनेगा ना! मैं तो कहता हूं कि जो इतिहास है, वह तो इतिहास ही रहेगा ना! उसे आप बदल कैसे सकते हैं? हां, चश्मे बदलने के बजाय आप नया ऐसा कुछ करें जो इतिहास बन जाए!"
"यही तो किया जा रहा है भाई, लेकिन हर बार एक नई बड़ी लकीर खींच कर!"
"सार्थक या निरर्थक; हास्यास्पद या विवादास्पद?" पहले बुद्धिजीवी ने चुटकी लेते हुए साथियों से कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
एकदम सामयिकता का पुट लिए बहस-मुबाहिसा के माध्यम से इतिहास की चिंता को रेखांकित करती लघुकथा है । आज इतिहास को लेकर क्या कुछ नहीं हो रहा है जग जाहिर है । संवाद भी बेहतरीन । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आपकी हौसला अफ़ज़ाई मुझे अच्छा लिखने को प्रेरित करती रही है। इस रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब।
जबरदस्त पञ्च पंक्ति --- हां, चश्मे बदलने के बजाय आप नया ऐसा कुछ करें जो इतिहास बन जाए!" बहुत सुंदर बधाई
बहुत ही सुंदर लघुकथा कही है भाई उस्मानी जी.
//चश्मे बदलने के बजाय आप नया ऐसा कुछ करें जो इतिहास बन जाए!//
बहुत ही ज़बरदस्त बात कही है.
इस अर्थगर्भित प्रस्तुति हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.
आपकी टिप्पणी पढ़ कर मेरे संशय दूर हुए। रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब।
जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब , प्रदत्त विषय पर कामयाब लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
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