आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय सतविंदर जी भाई, कहीं मुझे किसी ने बताया था कि वास्तविक लघुकथा तो इसी तरह की हुआ करती थीं/हैं, जैसी यह है और जैसी बतौर उदाहरण घिसे-पिटे कथानकों से बिल्कुल भिन्न इस बार की गोष्ठी में वरिष्ठ लघुकथाकारगण ने प्रस्तुत की हैं इतिहास को या ऐतिहासिक पात्रों को वर्तमान से जोड़ते हुए बेहतरीन विचारोत्तेजक गंभीर संदेशवाहक लघुकथाएं। मार्गदर्शन निवेदित।
मार्गदर्शन हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आदरणीय सतविन्द्र जी, एक विधा के रूप में लघुकथा को लेकर मेरी जो भी थोड़ी-बहुत समझ है वो इसी मंच की देन है. आपकी ही तरह मैं भी इसे अभी समझने की कोशिश मात्र ही कर रहा हूँ. इसलिए इस पर बहुत कुछ तो नहीं कह पाऊँगा. फिर भी, मेरी अल्प समझ के अनुसार, यह गद्य रचना लघुकथा की श्रेणी में ही आएगी. शेष गुणीजनों की प्रतिक्रियाओं की मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी. रचना आपको पसन्द आयी इस हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.
आगे बढ़ने के लिए पिछले कल से आगे और अलग होना होगा नहीं तो मानव विकास रुक जाएगा और हम धीरे धीरे आदिम युग में पहुँच जायेंगे.... , इस मर्म पर केन्द्रित बहुत सारगर्भित लघुकथा हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र जी
रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. प्रतिभा मैम. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
बहुत बढ़िया रचना कही है भाई महेंद्र कुमार जी, अंत और भी अच्छा| इतिहास को कितना खंगाल सकते हैं - उसका भी एक और इतिहास है| हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय चन्द्रेश कुमार छ्तलानी जी. हार्दिक आभार. सादर.
धर्मयुद्ध – लघुकथा -
भीष्म पितामह रणभूमि में शर शैया पर पड़े थे। युद्ध लगभग अपने अंतिम दौर में था। कौरवों के अधिकांश योद्धा मारे जा चुके थे। युद्ध का परिणाम अब लगभग पूर्ण रूप से पांडवों के पक्ष में जा चुका था। श्रीकृष्ण और अर्जुन नित्य की तरह युद्ध के बाद भीष्म पितामह की कुशलक्षेम जानने रणभूमि में आये थे ।
"प्रणाम पितामह"।
"आयुष्मान भव माधव"।
"आपकी कोई अभिलाषा"?
"आप तो सर्व ज्ञाता हैं, माधव। मेरे लिये युद्ध एक कर्तव्य मात्र था। शारीरिक रूप से मैं कौरवों के साथ था अवश्य, मगर मानसिक रूप से मैं भी पांडवों के ही साथ था"।
"यह बात तो दुर्योधन भी जानता था, तभी तो आपके होते हुए भी इतने बड़े धर्म युद्ध में कर्ण को सेनापति बनाया था"।
"माधव, मेरे विचार से यह केवल नाम का ही धर्म युद्ध था, जबकि अधर्म का खेल दोनों पक्षों द्वारा भरपूर खेला गया था"।
"परंतु मुझे लगता है कि कौरवों ने शुरू से अंत तक केवल अधर्म का ही सहारा लिया था"।
"माधव, आपके दृष्टिकोण से इस युद्ध में सबसे विवादास्पद मृत्यु किस योद्धा की हुयी"?
"अभिमन्यु की"।
"तो क्या कर्ण, जयद्रथ एवम द्रोणाचार्य की मृत्यु युद्ध की नीति के अनुसार उचित थीं"?
"आपने प्रश्न किया था सबसे विवादित। इसलिये इस आंकलन अनुसार अभिमन्यु का नाम ही सर्वोपरि आता है"।
"आपके इस आंकलन के बिंदु क्या थे"?
"अभिमन्यु अल्पायु था। वह निहत्था हो गया था। उस पर एक साथ सात महारथियों ने हमला किया था। सबसे अहम बात उसके पीठ पीछे से हमला किया गया था"।
"माधव, इस बात से आप भी सहमत होंगे कि यदि आप युद्ध में स्वेच्छा से उतरते हो तो उम्र का सवाल किसलिये। दूसरी बात जब अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने का पूर्ण ज्ञान नहीं था तो उसे युद्ध में प्रवेश नहीं करना था, क्योंकि चक्रव्यूह की सुरक्षा का दायित्व सात महारथियों पर ही होता है| तीसरी और अंतिम बात युद्ध और प्रेम में सब कुछ उचित है।वैसे माधव, मेरी राय में, अभिमन्यु की मृत्यु के लिये , उसकी माँ सुभद्रा ही अधिक दोषी प्रतीत होती है"।
"गंगापुत्र, आपका आशय क्या है "?
"माधव, जब अर्जुन चक्रव्यूह रचना और भेदन का अत्यंत महत्वपूर्ण वृतांत अपनी पत्नी को सुना रहा था, उस समय वह बीच में सो नहीं गयी होती तो इस धर्म युद्ध का इतिहास कुछ और ही होता"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,
पौराणिक पात्रों को आधार बनाकर बेहतरीन और विषयपरक लघुकथा कहने का प्रयास किया । ख़ासतौर से अभिमन्यु की मृत्यु के कारण को तलाशने का चिंतन काबिले तारीफ है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदना जानता था,निकलना जानता होता तो इतिहास कुछ हटकर ही होता ।उम्दा कथा के लिये बधाई आद०तेजवीर सिंह जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय Nita Kasar जी।
हार्दिक आभार आदरणीय Mohammed Arif जी।
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