आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया जानकी वाही जी आदाब,
बेहतरीन , लाजवाब और विषयानुकूल लघुकथा । शैली या प्रस्तुतिकरण भी उम्दा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
तहेदिल से शुक्रिया आ.मोहम्मद आरिफ़ खान साहब।
बहुत ही सुंदर और एक ताज़गी लिए हुए सार्थक सन्देश देती ह उई लघुकथा कही है जानकी वही जी. कथ्य और शिल्प की दृष्टि से भी एक दम सधी और कसी हुई. जिस हेतु आपको ढेरों ढेर बधाई.
हार्दिक आभार आ.सर जी, आपकी एक सकारात्मक प्रतिक्रिया बहुत मार्गदर्शन तो करती ही है साथ में प्रेरित भी करती है औऱ बेहतर सोचने ,आसपास देखने और लिखने के लिए।ओबीओ में यूहीं कोई भी कथा पोस्ट करने की हिम्मत नहीं होती ।लगता है यहाँ बेहतर ही देना है।सादर।
अच्छी लघुकथा है आदरणीया जानकी वाही जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. बड़े शहर में पली-बढ़ी होने के कारण थोड़ी भी परेशानी उसके लिए विश्वव्यापी समस्या बन जाती थी।
2. गाँव की मिट्टी में लोटने वाले बच्चों
सादर.
तहेदिल से शुक्रिया आ.महेंद्र जी, आपने बारीक़ नज़र से परखा कथा को।इससे मनोबल तो बढ़ा ही साथ मे बारीक़ नज़र का महत्व भी समझ आया।धन्यवाद।
मोहतरमा जानकी वाही जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आ.समर कबीर साहब जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी।बेहतरीन लघुकथा।नये विषय के साथ सुंदर न्याय करती प्रस्तुति।
हार्दिक आभार आ.तेज वीर सिंह जी, आपकी सार्थक टिप्पणी मनोबल बढ़ाने वाली है।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय जानकी जी ,बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए ,सादर
हार्दिक आभार बरखा जी
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