आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आद0 राहिला जी सादर अभिवादन। बढिया लघुकथा का प्रयास, शेष गुणीजन कह चुके हैं। सादर बधाई लीजिये
थोड़ी सी उलझनों के बाद समझ में आई कथा लालच ने भतीजे को जो दिवास्वप्न दिखाए और कुल मिलाकर जब उनका सस्पेंस खुला तो आपके कथा कहने के ढंग पर वाह निकली ... बधाई प्रिय राहिला जी
कथा में शब्दों का दोहराव पाठक मन में गतिरोध पैदा करता है। डुकर की जगह ।वृद्ध या बुज़ुर्ग शब्द का प्रयोग ज़्यादा उचित होता ।आयोजन में आपका शिरकत करना सुखद अहसास है ।कथा के लिये बधाई प्रिय राहिला बहना ।
आदरणीया राहिला जी आदाब,
लघुकथा का कथ्य बेहद उलझा हुआ है । लगता जानबूझकर इसे उलझाया गया है एक श्रेष्ठ लघुकथा बनाने के चक्कर में । हम प्राय: ऐसी ग़लती करते हैं । यह भी भूल जाते हैं कि हम बरसों से लघुकथा पर हाथ आज़मा रहे हैं । इस बात को भूलकर ही ऐसी ग़लतियों को अंजाम देते हैं ।
गुणीजन भी इस ओर इशारा कर चुके हैं ।
बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु बधाई स्वीकार करें ।
चार पांच बार पढने पर भी अस्पष्ट सी कथा लगी | सादर |
यह रचना आयोजन से हटा दी गई है.
दिवास्वप्न (लघुकथा) [एक श्रद्धांजलि] :
"मेरा पति मुझे छोड़कर चला गया और तुमने अपने पति को छोड़ दिया! हम दोनों कितनी बदनसीब हैं!" पड़ोसन के मुंह से तीखी बात सुनकर काजल धक्क रह गई। आलीशान बंगले के दूसरे कमरे में गई, तो देखा कि मात्र दौलत और ऐशो-एशो- की लालच में काग़ज़ात पर दस्तखत कर तलाक़ दिये गये पति को उसकी नई पत्नि जाह्नवी नाश्ता लेकर हाज़िर थी और बड़े प्यार से उसे नाश्ता खिला रही थी। प्यार बांटते और बंटते देख काजल फिर धक्क रह गई। अगली बार ऐसे ही प्यार बांटते दृश्य में पति को टीका लगाती हुई जाह्नवी के गाल पर ज़ोरदार तमाचा जब काजल ने जड़ा, तो घर में हंगामा मच गया।
"तुमने एशो-आराम के बदले में अपने पति को छोड़ा! अब केवल जाह्नवी का ही उस पर हक़ है, समझीं!" परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य ने काजल को डांटते हुए कहा।
"दौलत तुम्हारा सपना था, जो जाह्नवी की वज़ह से पूरा हुआ उसकी दौलत पाकर! लेकिन सच्चा प्यार पाना अब तुम्हारा केवल एक दिवास्वप्न है, क्योंकि तुम मुझे खो चुकी हो!" पति ने तलाक़ के काग़ज़ात काजल के मुंह पर फेंकते हुए कहा। अपने आलीशान बंगले को निहारती काजल फिर धक्क सी रह गई।
(दिवंगत अदाकारा श्रीदेवी की फ़िल्म 'जुदाई' के कुछ दृश्यों से प्रेरित/आधारित विनम्र श्रद्धांजली सहित)
(मौलिक व अप्रकाशित)
क्यों ?
आदाब। कहना चाहता हूं कि जिस तरह टीवी चैनलों और अन्य आयोजनों में श्रद्धांजलि रूप में कलाकारों की फिल्मों के गीत या झलकें दिखाई जाती हैं, उसी तरह इस गोष्ठी में फिल्म आधारित , उसके कुछ दृश्यों से विषयांतर्गत संवाद लेते हुए कुछ जोड़ कर विषयांतर्गत रचना 'दिवास्वप्न' प्रेषित की थी, जिसमें एक संदेश भी था । मुझे लगा कि लघुकथा हुई है। हूबहू कुछ संवाद व पात्र नाम इरादतन ही लिए गए थे श्रद्धांजलि रचना बनाने के लिए। मौलिकता के सवाल के कारण यदि निरस्त की गई है, तो क्या अब मुझे विषयांतर्गत ही दूसरी मौलिक व अप्रकाशित रचना पोस्ट करने की अनुमति मिल सकती है? क्या उपरोक्त रचना ओबीओ के अपने ब्लोग पर पोस्ट कर सकता हूं? सादर।
दरअसल मैं स्कूल से अभी अभी लौटा हूं। रचना पर टिप्पणियां नहीं पढ़ सका।
इसका जवाब तो संचालक महोदय ही दे सकते हैं ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |