आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीया संगीता गांधी जी ।
वाकई बढ़िया दिव्यस्वप्न हैं. बधाई.
बहुत-बहुत आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,पत्र शैली में अच्छी लघुकथा लिखी आपने,विषय से पूर्ण न्याय करती इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। प्रदत्त विषयानुकूल पत्र शैली में बेहतरीन लघुकथा पढ़ने को मिली। बहुत बहुत बधाई आपको इस प्रस्तुति पर। सादर
रचना के अनुमोदन और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।
बढ़िया रचना लिखी है आपने विषय पर, कुछ जगह सुधार कर लीजिये //जिस दरिंदे// की जगह //जब से दरिंदे// सही होगा. बहुत बहुत बधाई आ मोहम्मद आरिफ साहब
रचना के अनुमोदन और सार्थक टिप्पणी देने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय विनय कुमार जी ।
आ० मोहम्मद आरिफ साहिब, पत्र शैली में आपकी परफेक्ट लघुकथा पढ़कर आनंद आ गया, सबसे पहले तो इस हेतु हार्दिक बधाई लें. स्वतंत्र रूप में यह एक उत्तम लघुकथा है. दरअसल प्रथम दृश्या यह रचना प्रदत्त विषय पर आधारित नहीं लगती. लेकिन सूक्ष्मता से यदि देखा जाये तो इस रचना में 1 नहीं २-२ दिवास्वप्नो की बात हुई है. एक वह जो सुरभि ने अपने माँ-बाप को दिखाए थे यां उन्होंने सुरभि के करिअर को लेकर खुद देखे होंगे. दूसरा दिवास्वप्न सुरभि का संन्यास लेकर संयमित जीवन जीने की अभिलाषा भी हो सकता है. बहरहाल रचना प्रदत्त विषय से न्याय कर रही है, जिस हेतु आपको दूसरी बार बधाई.
किन्तु, अंत में देखने वाली बात यह है कि इस लघुकथा से संदेश क्या जा रहा है? क्योंकि बतौर लेखक हमारी जिम्मेवारी बन जाती है कि हम समाज को एक सही दिशा दिखाने का प्रयत्न करें. प्रस्तुत लघुकथा के अंत में सुरभि का सन्यास की तरफ बढ़ना दरअसल पलायनवाद का सन्देश दे रहा है जो मेरी समझ के अनुसार सही नहीं है. एमबीबीएस कर रही किसी आज के समय की पढ़ी लिखी लड़की को जुझारू प्रवृत्ति का नहीं होना चाहिए था?
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आदाब,
सबसे पहले लघुकथा पर अपनी अमूल्य और निरपेक्ष टिप्पणी देने का बहुत-बहुत आभार । निश्चित रूप से आपकी यह कहना इसमें पलायनवादी क़दम उठाना उचित नहीं है । ठीक है मैं भी मानता हूँ लेकिन कभी-कभी अंदर की बेचैनी भी पश्चाताप वाला आग्रह करती है । यही बात मैं कहने की कोशिश कर रहा हूँ ।
बाक़ी आपकी इस्लाह सर आँखों पर ।
सपने आख़िर दिवास्वप्न साबित हो कर रह गये। बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब। कुछ पंक्तियों को ऊपर-नीचे कर या संपादित कर प्रदत्त विषय को बेहतरीन ढंग से उभारा जा सकता है मेरे विचार से।
आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी की समालोचना से भी हमें बढ़िया मार्गदर्शन मिल रहा है।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |