आदरणीय साथिओ,
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जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक अहमद जी प्रद्दत विषय पर रचना बहुत सुन्दर बनी है, लेकिन कालखंड की समस्या ( और एक जगह नहीं, कई जगह) इसे लघुकथा के स्वरूप से अलग कर देती है....
सुरेश के घर लौटने पर उसके पिता द्वारा पत्र देने से प्रारम्भ करने और फिर सुरेश द्वारा बीते दिन का घटनाक्रम उसकी सोच में दिखाकर रचना को प्रस्तुत किया जाता तो रचना 'कालखंड' से सहज ही मुक्त हो जाती. बरहाल हार्दिक बधाई स्वीकार करे भाई जी ..
जनाब वीरेंद्र साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और मशवरे का बहुत बहुत शुक्रिया।
इस में तो बहुत सारे दृश्य उभर कर आ रहे हैं! यह लघुकथा तो नहीं हुई है आदरणीय | सादर|
मुहतर्मा कल्पना साहिबा ,लघुकथा में आपकी शिरकत का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय मंच संचालक महोदय और वरिष्ठजन ने सब कुछ कह दिया और मार्गदर्शन भी हम सभी को दे दिया है। इस कोशिश के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब। लघुकथा में ऐसी बातें बहुत ही चतुराई से कालखंडों से बचा जाता है। वरिष्ठजन की ऐसी कुछ उत्कृष्ट लघुकथाएं पढ़ कर आप स्वयं समझ जाएंगे।
जनाब शेख शहज़ाद साहिब ,आपकी शिरकत और मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक अहमद जी इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
जनाब सत्यनारायण साहिब ,लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
अच्छी लघु कथा लिखी है मोहतरम जनाब तस्दीक साहब हार्दिक बधाई जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए अच्चा सार्थक सन्देश दे रही है लघु कथा
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,प्रदत्त विषय पर लघुकथा का प्रयास अच्छा है,शेष गुणीजन कह चुके,उनकी बातों का संज्ञान लें,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
प्रदत्त विषय पर प्रभावशाली रचना हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक जी
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