आदरणीय साथिओ,
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दुर्भाग्य से धर्म ही की तरह भाषा को भी बाँटने वाले एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है जबकि इन दोनों का ही मूल उद्देश्य ऐसा नहीं है. "जय हिन्द" कहने वाले भारत जैसे देश के लिए भाषाई कठमुल्लापन घातक है. आपकी यह लघुकथा बहुत पसंद आई जिस हेतु आपको हार्दिक बधाई.
आदरणीय योगराज जी,नमन एवं शुक्रिया।जैसा कि आपने कहा,यह बिलकुल सच है कि अन्य घातक बीमारियों से ज्यादा घातक है भाषाई भेदभाव की बीमारी।भाषा चाहे जो भी हो ,वह अभिव्यक्ति का माध्यम है,मैं तो इतना ही जानता हूँ।और एक भाषा की रवानी यदि किसी अन्य भाषा को अता हो,तो औरों का क्या जाता है,यह पता नहीं चलता है।फ़िलहाल आपकी स्वीकार्यता पाकर लघुकथा धन्य हुई।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब समर जी आदाब,शुक्रिया।
प्रदत्त विषय पर बढ़िया प्रस्तुति, रचना का मूल तो स्पष्ट है लेकिन प्रस्तुतीकरण थोड़ी क्लिष्ट हो गयी है जो आसान होने पर शायद ज्यादा ग्राह्य होती. बहुत बहुत बधाई आपको आ
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।बहुत अच्छी लघुकथा।
आपका आभारी हूँ आदरणीय।
आपका आभारी हूँ आदरणीय।
शुक्रिया आपका आदरणीय विनय कुमार जी।
जनाब मनन साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
शुक्रिया जनाब तसदीक जी।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी , विषय संगत प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई , सादर।
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