आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
वो घर
कच्ची पक्की मुंडेरों से घिरे उस घर के अन्दर से शोर शराबा आता ही रहता था | कभी घर वालों के लड़ने भिड़ने और बहस का शोर तो कभी नाच गाने और उत्सव जैसा शोर | लड़ते गुत्थम गुत्था होते भाई, कभी कभी घर के बाहर भी आ जाते थे और लड़ते लड़ते मुंडेर के ऊपर भी गिर जाते थे | लगता था मुंडेर अब गिरी अब गिरी | बाहर लगा बूढा बरगद उन्हें देखकर कभी प्यार से मुस्कुराता तो कभी कुछ चिंतित दिखता |
आज बहस कुछ ज्यादा ही थी | लड़ते लड़ते दो भाई बाहर मुंडेर तक आ गए | तभी पड़ौस के घर वाला मुंडेर पर चढ़ गया और लड़ाई का मज़ा लेने लगा | उनपर कंकर पत्थर फेंकता उनमे से एक लंबे वाले को उकसाने भी लगा |
“ क्यों बे! फिर झाँका झाँकी कर रहा है | आँखें फोड़ देंगे | लाना भाई वो डंडा, आज हिसाब हो ही जाय इसका |” लंबा वाला जोर से चीखा |
“ इतना मारेंगे कि तेरा अता पता नहीं मिलेगा |” दूसरा वाला डंडा हिलाता चीखा |
“ क्या हुआ ? क्या हुआ ?” घर के अन्दर से आवाजें आने लगीं |
“ अरे ये पड़ौस वाला फिर चढ़ गया मुंडेर पर |” दोनों चीखे |
“ हम भी आ रहे हैं|” घर के अन्दर से डंडे लिए दूसरे भाई भी बाहर आने लगे |
पड़ौसी घबराकर धड़ाम से नीचे गिर पड़ा | दूसरी तरफ से उसके दर्द से कराहने की आवाजें आने लगीं |
भाईयों को गले में हाथ डाले हँसते हुए अन्दर जाता देख, बरगद की डाल पर बैठा एक परिंदा खुद को रोक नहीं सका |
“दादा आप ही बताओ ये क्या है | आप तो बरसों से देख रहे हो | इतना लड़ते भी हैं और अपने घर और एक दूसरे पर जान भी छिड़कते हैं |” परिंदे की आवाज़ में उलझन थी |
“ बस देखते रह | समझने की कोशिश छोड़ दे बेटा|” बरगद अब जोर से खिलखिला रहा था |
मौलिक व् अप्रकाशित
आप हमसे कहना क्या चाहती हैं? सारे भारतीय समाज में भी ऐसा ही तो हो रहा है, यही न! दंगे-फ़साद चाहे अफ़वाहों के कारण हों या किसी ग़लतफ़हमी के कारण या फिर हो प्रायोजित; काफी नुकसान उठाने के बाद सभी गंगा-जमुनी संस्कृति में ही घुल-मिल कर एक हो जाते हैं हम विषयांतर्गत बेहतरीन समसामयिक उम्दा सकारात्मक प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी
वाह.।प्रतीकों के माध्यम से आपसी उलझनों एंव फिर संकटकालीन एकता की बेहतरीन अभिव्यजना ।
हार्दिक आभार आदरणीया कनक जी
यही तो भारत की ताक़त है, आपस में भले ही लड़ते रहें लेकिन मुसीबत के समय सब मिलकर शत्रु के सामने डट जाते हैं. भारत की परिभाषा इससे बेहतर और क्या होगी. इस उत्कृष्ट लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज जी
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,प्रदत्त विषय से न्याय करती बहतरीन लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी
आपस में चाहे जितना मनमुटाव हो लेकिन दूसरों के सामने एक ही रहना है, यही सच्चाई है हमारे समाज की. प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई आपको आ
हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी
अंदर के अलावे बाहर को भी ध्वनित करती लघुकथा। आज हर देश दूसरे देश को नीचे दिखाने और उसे दबाने के लिए उसके पास पड़ोस को भड़का रहा है। एक देश में दूसरे के जासूस सक्रिय हैं। अपनी तरक्की के बदले दूसरे की अवनति सबको भा रही है। भारत उसका भुक्त भोगी है। आपको बधाई, आदरणीया।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |