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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-37 में स्वीकृत सभी लघुकथाएँ

(1). आ० मोहम्मद आरिफ़ जी 
उपाय
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ब्रह्म ज्योतिषी के आगे हाथ बढ़ाते हुए -" इन रेखाओं को देखकर बताइए आखिर ये क्या कहती है ? "
ब्रह्म ज्योतिषी ने जैसे ही उसके हाथों की रेखाओं को देखा तो उन्हें चक्कर आने लगे । कुछ देर संभलने के बाद बोले -" मैं पहली बार ऐसी रेखाओं को देखकर अभिभूत हूँ । बताने में संकोच हो रहा है ।"
" कैसा संकोच ? संकोच की कोई आवश्यकता नहीं है , खुलकर बताइए ।"
" सच सहन कर सकोगे ।"
" क्यों नहीं !"
" तो सुनो , सभी रेखाएँ भीषण संक्रमण-काल के दौर से गुजर रही है और संकट भी छाया है इन पर ।"
" कैसा संक्रमण-काल और कौन-सा संकट ?"
" पुरातन के प्रति झुकाव और आधुनिकता की अंधी दौड़ ,भयंकर परिवर्तन से डर और बेचैनी , मूल्यों और
नैतिकता का पतन । दुष्कर्म , बलात्कार , गंदी राजनीति ,आतंकवाद , नक्सलवाद , आर्थिक घोटालें इन सबकी काली छाया है ।"
" इन सबका उपाय ?"
ब्रह्म ज्योतिषी ने कतारबद्ध तस्वीरों की ओर इशारा दिया जिसमें गांधी , गौतम , कलाम , भगत , अशफ़ाक , विवेकानंद
आज़ाद कालजयी मौन रहकर भारत को उपाय सुझा रहे थे । ब्रह्म ज्योतिषी पलभर में अदृश्य हो गया ।
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(2). आ० तस्दीक अहमद खान जी 
दिलवाला
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मोहन बाबू सवेरे सवेरे चाय की चुस्की लेते हुए पत्नी राधा को अख़बार की हेडिंग पढ़ कर सुना रहे थे कि अमेरिका ,कुवैत ,ओमान,सऊदी अरब आदि देशों में कार्यरत भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है ।अचानक दरवाज़े पर घंटी बजती है ,वो अख़बार छोड़ कर जैसे ही दरवाज़ा खोलते हैं ,तो बेटे राजेश को देख के हैरत में पड़ जाते है और तुरन्त पूछते हैं ,"बिना किसी फ़ोन या सूचना के यकबयक कैसे आना हुआ ?"
राजेशजवाब में कहता है,"अमेरिका के हालात अच्छे नहीं हैं ,भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है "।
मोहनबाबू अंदर आते हुए फिर कहते हैं ,"बेटा यहां के हालात अच्छे होते तो तुम्हें नौकरी करने अमेरिका क्यूँ जाना पड़ता ,यहां नौकरी डिज़र्व को नहीं रिज़र्व को मिलती है "।
राजेश पिता जी को उदास देख कर फौरन कहने लगा ,"आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं ,वहां के अनुभव के आधार पर मुझे बैंगलोर में नौकरी मिल गई है ,अगले हफ्ते जॉइन करना है "।
यह सुनते ही मोहन बाबू की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे ,वो गले लगाते हुए कहने लगे ,"भारत का दिल बहुत बड़ा है ,यहां पता नहीं कितने विदेशी लोग बरसों से नौकरी कर रहे हैं लेकिन उन्हें भारत में कभी नौकरी से नहीं निकाला गया ,हैरत है विदेशों में भारतीयों को निकाला जा रहा है"।
राजेश फ़ौरन पिता जी के ख़ुशी के आँसू पोंछ कर कहने लगा ,"अपना भारत महान "।
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(3). आ० कनक हरलालका जी 
स्वतंत्रता दिवस
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भारत सुबह सुबह ही सफेद कपड़े पहने आनन्दित होकर घूम रहा था । उसे गर्व था अपने भारत नाम पर ,ऊपर से आज स्वतंत्रता दिवस था और उसका जन्मदिन भी । वह खूब मजे से आज के दिन को मनाना चाहता था ।
" पिताजी , आज मेरा जन्मदिन है न , चलिए आज कहीं बाहर चल कर मनाएंगे । आप मैं और मां पिकनिक चलते हैं ।"
" नहीं बेटा ,आज तो मंत्री जी का बहुत व्यस्त कार्यक्रम है ।
मुझे सारे दिन उनकी गाड़ी चलानी है । रविवार को जरूर चलेंगे ।"
" मां आप तो ले चलेंगी मुझे । बाहर न सही , मेरी पसंद का खाना जरूर बना कर खिलाएंगी न । " "अरे , तू मेरा राजा बेटा है , अभी तो जो घर में बना हुआ है ,खा ले ना ! आज मंत्री जी के घर में सब बड़े लोगों का जमावड़ा ,खाना पीना है । सारा दिन वहीं रहना पड़ेगा ।आज समय नहीं है । रविवार जरूर से ..."
"यार भारत ,यहां अकेले बैठा क्या कर रहा है ? "
" मां पिताजी मंत्री जी के यहां स्वतंत्रता दिवस मनाने गए है , मैं यहां मना रहा हूं ।"
" पर इस तरह कैसे ? "
" हां यार ,आज मैं कुछ भी न कर सकने ,या फिर कुछ भी कर सकने के लिए स्वतंत्र हूं ।
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(4). आ० महेंद्र कुमार जी 
अधूरे ख़्वाब

अंग्रेज़ सैनिकों की टुकड़ी इमारत में प्रवेश कर चुकी थी।
“न्याय की देवी वो द्रौपदी है जिसकी अस्मत कृष्ण ने ही लूट ली।’’ बूढ़े चित्रकार ने उस न्यायाधीश पर कूची फेरते हुए कहा जो एक औरत की साड़ी उतार रहा था। औरत की हालत अत्यन्त दयनीय थी। वह बेहद कमज़ोर हो चुकी थी। उसकी तलवार टूटी हुई तो तराज़ू का पलड़ा एक ओर झुका हुआ था। उसके पास काले कोट पहने हुए ढेर सारी आदमी खड़े थे जिनकी एक आँख पर काली पट्टी बंधी थी। वे सभी उस औरत को देख कर ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे।

बूढ़े चित्रकार के कमरे में चारों तरफ़ ऐसे ही चित्र बिखरे पड़े थे। यहाँ तक कि उसकी दीवारें भी तस्वीरों से रंगी हुई थीं। बूढ़ा चित्रकार उस दीवार की तरफ़ मुड़ा जहाँ एक बड़ा सा वृत्ताकार भवन बना हुआ था। उस भवन की छत पर सफ़ेद कपड़े पहने हुए आदमी बैठे थे जिनकी पीठ भवन की ओर थी तो मुँह बाहर की ओर। उन सभी के पास एक लोटा रखा था। “सारे पन्ने बदल दिये गए हैं। अब ये हमारी किताब नहीं है।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन लोटों में पुरानी किताब के फटे हुए पन्ने भरने लगा।

उस आलीशान भवन के बाहर सूट-बूट पहने हुए कुछ लोग खड़े थे जो उस भवन से निकलने वाले मल को आकर्षक डिब्बों में पैक कर रहे थे। “ये शुद्ध सोना है। सबकी ज़िन्दगी बदल देगा।” उन्होंने एक काग़ज़ पर लिखा और हवा में उछाल दिया। उनके गले में कैमरे लटके हुए थे जो सिर्फ़ एक ही रंग की तस्वीरें क़ैद करते थे।

इधर अंग्रेज़ सैनिक सीढ़ियों तक पहुँच चुके थे।

बूढ़े चित्रकार ने अपनी नज़रें चारों तरफ़ दौड़ायीं। हर कहीं रंगों की जद्दोजहद मौजूद थी। सबसे स्याह तस्वीर युवाओं की थी। औरतों के चित्र से तो रंग ही ग़ायब था। वह उस दीवार के पास जा कर खड़ा हो गया जहाँ बड़ी-बड़ी मशीनों के बीच ढेर सारे पुलिस वाले खड़े थे। “ये मशीनें जंगलों को ऐसे स्वर्ग में तब्दील करती हैं जहाँ आदमी नहीं सिर्फ़ देवता रहते हैं।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन मोटे लोगों के पैर के पास जो उन मशीनों के मालिक थे, नरमुण्ड बनाने लगा।

तभी दरवाज़ा टूटने की आवाज़ आयी। अंग्रेज़ सैनिक उस बूढ़े चित्रकार के सामने खड़े थे। अगले ही पल सैकड़ों गोलियाँ उसके सीने में समा गयीं। लेकिन बूढ़े चित्रकार में अभी भी कुछ जान बाकी थी। वह स्वतंत्रता सेनानियों की लाशों के बीच से रेंगता हुआ उस एकमात्र ख़ूबसूरत तस्वीर के पास पहुँचा जहाँ बाग़ में एक बच्चा खड़ा था। उस बच्चे के हाथ में तिरंगा झंडा था और वह अभी भी मुस्कुरा रहा था। वह बूढ़ा चित्रकार वही बच्चा था। इससे पहले कि बूढ़ा चित्रकार उस बच्चे के क़रीब पहुँचता एक अंग्रेज़ सैनिक ने आगे बढ़कर आख़िरी दो गोलियाँ उसकी आँखों में मार कर उसे हमेशा के लिए वहीं पर ख़ामोश कर दिया।

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(5).  आ० डॉ टी.आर सुकुल जी
भारत 

सभाकक्ष में श्रोताओं की उपस्थिति बता रही थी कि कथावाचक असाधारण ज्ञानी हैं। भारत के राम भक्तों के बीच यह अटूट विश्वास है कि जहाॅं कहीं भी रामकथा होती है वहाॅं हनुमानजी अवश्य ही पीछे की पंक्ति में कहीं बैठे कथा सुन रहे होते हैं । अशोक वाटिका का प्रसंग आने पर कथावाचक बोले,
‘‘ वाटिका में अशोक बृक्ष के नीचे सफेद साड़ी पहने हुए सीतामाता बैठी हैं, चारों ओर सफेद फूल खिले हैं, रावण अपनी हॅुकार भरते उन्हें धमका रहा है ... ’’
आगे वे कुछ कह पाते कि पीछे से एक सज्जन ने खड़े होकर विनम्रता पूर्वक कहा,
‘‘ नहीं पंडितजी ! सीतामाता सफेद नहीं , लाल साड़ी पहने हुए थीं और चारों ओर लाल ही फूल खिले थे।’’
‘‘ महानुभाव ! आप कौन हैं? ’’ मुस्कराते हुए कथावाचक ने पूछा।
‘‘ मैं ? अरे ! मैं हनुमान । मैंने ही सीतामाता की खोज, अशोक वाटिका में की थी’’
‘हनुमान’ नाम सुनकर सभी श्रोता उत्सुकता और आश्चर्य से पीछे की ओर देखने लगे।
कथावाचक ने मोर्चा सम्हाला ,
‘‘ ओ हो ! हनुमानजी , प्रणाम। लेकिन बताइए कि यह द्रश्य देखकर आपको क्रोध नहीं आया था?’’
‘‘ बिलकुल आया था, वो तो श्रीराम प्रभु की आज्ञा नहीं थी अन्यथा मैं वहीं पर रावण के सिर के टुकड़े टुकड़े कर देता।’’
‘‘ हाॅं ! ये बात थी न ! इसी क्रोध से आपके नेत्र लाल हो गए थे और सभी चीजें लाल लाल दिखाई देने लगीं थीं, समझे, बैठो ! अब आगे की कथा सुनो। ’’
हनुमानजी ने कुछ बोलना चाहा लेकिन श्रोताओं की ओर से जोरदार ध्वनि हो उठी,
‘‘ वाह ! वाह! अद्वितीय व्याख्या वाह !! वाह !! ’’
और, जिस मच्छर का रूप धरकर उन्होंने लंकापुरी में प्रवेश किया था वही कान के पास भन्भनाया,
‘‘ हनुमानजी ! देखा ! प्रत्यक्ष द्रष्टा को भी गलत सिद्ध कर दिया न ? यह राम का ‘भारत’ नहीं , कलियुगीन रावण का है! यहाॅं सीताओं का तो रोज अपहरण होता है पर उनकी खोज करने और अपहरणकर्ताओं को दंड देने वाला राम कहीं दिखाई नहीं देता!! ‘‘
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(6). आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी 
भारतवासियों की माँ 

‘यह वही लड़का है मॉम मैंने जिसे पसंद किया .ये है तो फारेनर पर बी एम सी (ब्रिटिश मॉडल कॉलेज ) में मेर सीनियर हैं ‘ – मिस कैरोलीन ने अपनी माँ से कहा –‘मॉम मेरे पापा भी तो फारेनर थे न.  पर वह तुम्हें यहाँ अकेला छोड़कर चले गए थे.’
‘हाँ कैरो, वह बात अब पुरानी हो चुकी है .’ मॉम ने लडके का भरपूर जायजा लेते हुए कहा, ’क्या तुम मेरी बेटी को पसंद करते हो ?’-
‘एस्स्स्स  ---‘ लड़के ने सकुचाते हुए कहा .
‘उससे शादी भी कर सकते हो ?’
‘माय फार्च्यून’
‘लेकिन तब तुम अपने देश लौट नहीं पाओगे. मेरी बेटी के साथ यही ब्रिटेन में रहना होगा. हमारे पास संपत्ति की कोई कमी नहीं है. प्लेंटी ऑफ़ फॉरच्यून्स आर हियर.’ मॉम ने अपनी शर्त रखी – ‘कैरी इज माय ओनली डाटर, आई कान्ट कोप विद हर सेपरेशन’
‘सॉरी मॉम, यह पॉसिबल नहीं है. मैं यहाँ पढने आया था. मेरी एजुकेशन पूरी हो चुकी है. मुझे वापस जाना होगा. मैं किसी भी सिचुएशन में अपना देश नहीं  छोड़ सकता.’
तुम्हे अपना देश प्यारा है या मेरी बेटी ?’
‘नो डाउट, आई लव कैरी पर माय कंट्री इज माय मदर ‘
मॉम के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे . उन्होंने चौंककर लड़के को ऐसे देखा मानो वह कोई अजूबा हो. उन्हें वर्षों पहले की कोई भूली-बिसरी घटना याद आ गयी . उन्होंने औचक एक सवाल किया- ‘आर यू इंडियन ?’- आवाज मानो किसी गहरे सुरंग से आयी हो .
‘नहीं,  मैं भारतीय हूँ. ‘-लडके ने जवाब दिया .
‘क्या तुम्हारा देश इंडिया नहीं  है ?‘
‘नहीं,  मेरा देश भारत है और वह मेरी माँ है- ‘भारत-माता’
‘भारत-माता -----ओह माय गॉड ---‘ मॉम को चक्कर आ गया . वह ‘धम’ से सोफे पर ढेर हो गयीं. लड़के ने उन्हें उठाकर बिठाया .
‘आर यू ओ. के. मॉम ’ – कैरी ने मॉम के मुख पर पानी के छींटे डालते हुए कहा.
‘हाँ मैं ठीक हूँ’ -  मॉम ने सामान्य होते हुए कहा –‘ यू आर लकी बेबी. तुम्हारे पिता भी इंडियन थे. वह मुझे इण्डिया ---- नहीं -- नहीं  भारत ले जाना चाहते थे. पर तब मैंने उनकीं बात नहीं  मानी. पर अब मैं तुम्हे वह गलती नहीं  करने दूंगी . हम भारत को इंडिया कहते हैं पर वह इंडिया नहीं  भारत है और वह भारतवासियों की माँ है .
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(7). आ० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी 

सोज़-ए-वतन

नये शैक्षणिक-सत्रारंभ पर नौवीं कक्षा में सभी छात्रों से अभिवादन औपचारिकताएं पूरी होने के बाद सभी अपनी सीटों पर जब बैठ चुके, तो एक नये शिक्षक ने एक छात्र से उसका नाम आदि जानने के बाद कहा - "बड़ों या मां-बाप के नाम के पहले क्या लगाते हैं, यह भी नहीं मालूम? अच्छा, यह बताओ कि तुम इस विद्यालय में कब से पढ़ रहे हो?"
"नर्सरी से, सर!" छात्र ने कक्षा में नवीन प्रवेश प्राप्त छात्रों की ओर देख कर मुस्करा कर कहा।
"बहुत बढ़िया! तो यह बताओ कि विद्यालय में मुख्य द्वार से अंदर आते समय अपने देश का क्या-क्या दिखता है?" शिक्षक के इस सवाल पर सभी छात्र एक-दूसरे की ओर देखने लगे। 
कुछदेर सोचने के बाद उस छात्र ने कहा - " सर, जब अंदर घुसते हैं, तो बायीं तरफ़ गणेश जी की बहुत बड़ी मूर्ति दिखाई देती है और दायीं तरफ़ बाउंड्री वॉल पर फ्रीडम फाइटर्स के कार्टून!"
"ऐसा नहीं कहते! कहो कि बायीं तरफ़ श्री गणेश जी की बहुत बड़ी मूर्ति दिखाई देती है और दायीं तरफ़ बाउंड्री की दीवार पर स्वतंत्रता सेनानियों के रेखाचित्र!"
पूरी कक्षा शांत थी और वह छात्र भी अगले प्रश्न की प्रतीक्षा में चुप खड़ा हुआ था।
"फिर उसके बाद?" शिक्षक ने अगला सवाल दागा।
"फिर असेम्बली में तरह-तरह की प्रार्थनाएं होती हैं और कक्षा में जो पढ़ाया जाता है पढ़ाया जाता है, वह सब पढ़ते हैं!"
छात्र के इस उत्तर पर शिक्षक ने पूछा - "सिर्फ़ यह बता दो कि सभी विषयों में भारत के बारे में क्या-क्या पढ़ते हो?"
"जी. के.! ... और देश के बारे में या भारत के वैज्ञानिक और गणितज्ञ के बारे में थोड़ा बहुत, बाक़ी सब मॉडर्न और वेस्टर्न!"
"मेरा भारत महान" - कक्षा के अधिकतर छात्र एक साथ ज़ोर से बोल कर हंस पड़े! वह नयाशिक्षक सभी छात्रों की उद्दंडता से हैरत में पड़ गया।
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(8). आ० प्रतिभा पाण्डेय जी 
वो घर
 
कच्ची पक्की मुंडेरों से घिरे उस घर के अन्दर से शोर शराबा आता ही रहता था | कभी घर वालों के लड़ने भिड़ने और बहस का शोर तो कभी नाच गाने और उत्सव जैसा शोर | लड़ते गुत्थम गुत्था होते भाई, कभी कभी घर के बाहर भी आ जाते थे और लड़ते लड़ते मुंडेर के ऊपर भी गिर जाते थे | लगता था मुंडेर अब गिरी अब गिरी | बाहर लगा बूढा बरगद उन्हें देखकर कभी प्यार से मुस्कुराता तो कभी कुछ चिंतित दिखता |
आज बहस कुछ ज्यादा ही थी | लड़ते लड़ते दो भाई बाहर मुंडेर तक आ गए | तभी पड़ौस के घर वाला मुंडेर पर चढ़ गया और लड़ाई  का मज़ा लेने लगा | उनपर कंकर पत्थर फेंकता उनमे से एक लंबे वाले  को उकसाने भी लगा |
“ क्यों बे! फिर झाँका झाँकी कर रहा है | आँखें फोड़ देंगे | लाना भाई वो डंडा, आज हिसाब हो ही जाय इसका |” लंबा वाला जोर से चीखा |
“ इतना मारेंगे कि तेरा अता पता नहीं मिलेगा |” दूसरा वाला डंडा हिलाता चीखा |
“ क्या हुआ ? क्या हुआ ?” घर के अन्दर से आवाजें  आने लगीं |
“ अरे ये पड़ौस वाला फिर चढ़ गया मुंडेर पर |” दोनों चीखे |
“ हम भी आ रहे हैं|” घर के अन्दर से डंडे लिए दूसरे भाई भी बाहर आने लगे |
पड़ौसी घबराकर धड़ाम से नीचे गिर पड़ा | दूसरी तरफ से उसके दर्द से कराहने की आवाजें आने लगीं |
भाईयों को गले में हाथ डाले हँसते हुए अन्दर जाता देख, बरगद की  डाल पर बैठा एक परिंदा  खुद को रोक नहीं सका |
“दादा आप ही बताओ ये क्या है | आप तो बरसों से देख रहे हो |  इतना लड़ते भी हैं और अपने घर और एक दूसरे पर जान भी छिड़कते हैं |” परिंदे की आवाज़ में उलझन थी |
“ बस देखते रह | समझने की कोशिश छोड़ दे बेटा|” बरगद अब जोर से खिलखिला रहा था |
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(9). आ० मोहन बेगोवाल जी 
इक भारत ये भी।
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दफ़तर से निकल गाड़ी के पास आ कर चाबी निकाल बटन दबा कर दरवाजा खोलने लगा।
“मैं यहाँ पढ़ सकता हूँ” । मेरे सामने इक सात आठ साल उम्र के बच्चे ने आ कर सवाल किया ।
कुछ देर के लिए मुझे पता ही न चला कि मैं क्या जवाब दूँ, उस के सवाल का।
कुछ समय के बाद खुद को सँभालते हुए कहा “ ये कालेज बड़े बच्चों के लिए है,यहाँ बड़े बच्चे पढ़ते हैं”
“मैं यहाँ ए. बी. सी क्यूँ नहीं पढ़ सकता”,उसने फिर पुछा।
मगर मेरा ज़वाब पहले वाला ही था,ये बड़ो कि लिए है, मगर मैं चुप रहा।
“मैं भी पढ़ना चाहता हूँ,कहाँ पढ़ सकता हूँ।“
“किसी भी स्कूल में दाखिल हो कर पढ़ सकते हो तुम, मैंने कहा।
“आप कहाँ रहते हो”।
बच्चे ने कंसटरकसन के चल रहे काम की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
मैं उस के बारे और जानने की कोशिश करने लगा,मगर वह सवाल अभी भी मेरे कानों को लगा सुनाई दे रहा है, क्या मैं यहाँ पढ़ सकता हूँ ।
और मेरे मन में सवाल कि कहाँ पढ़ सकता है।
मैंने कार का दरवाजा खोला और दुसरी तरफ़ का वह खोल अंदर बैठ गया,और मैंने कार सटार्ट कर दी,वह मेरी तरफ देखने लगा।
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(10). आ० सुनील वर्मा जी 
तरक़श

'इंडियन हैंडीक्राफ्ट' नाम से हस्तशिल्प द्वारा बने सामान की दुकान थी महेश की। लिहाज़ा ग्राहक के रूप में अधिकतर विदेशी पर्यटक ही आते थे। लागत मूल्य में कितना अतिरिक्त मूल्य जोड़ना है, यह वह अक्सर अपने ग्राहक का चेहरा देखकर ही तय करता था।
अाज भी दुकान में फ्रांसीसी पर्यटकों का एक समूह आया हुआ था। फ्रेंच तो नही आती थी मगर बॉडी लैंग्वेज पढ़कर वह अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में उनसे संवाद कर रहा था। ग्राहक बड़ा था मतलब मुनाफा भी बड़ा होना था। इस परिस्थिति में ग्राहक को रोकने के लिए उसने अपना पहला तीर चलाया। परिणाम में एक लड़का ग्राहकों के लिए मंहगें पेय पदार्थ लेकर उपस्थित हुआ। अब तक उसकी व्यवहार कुशलता से पर्यटक भी प्रभावित हो चुके थे।
दूसरे तीर के रूप में उसने दुकान में लगी 'अतिथी देवों भव:' लिखी हुई एक तख्ती की ओर ईशारा किया साथ ही उसका अनुवाद भी किया "यू आर माई गेस्ट एंड गेस्ट इज लाईक गॉड।"
उसका वाक्य ख़तम हुआ ही था कि एक नेपाली पर्यटक भी दुकान में घुसा। वहाँ रखे सामान में से एक दो सामान को उलट पलट कर देखने के बाद उसने महेश से कुछ और दिखाने का आग्रह किया।
उसके आने से बड़े ग्राहको का ध्यान भंग होता देख महेश का लहज़ा बदला। चेहरे पर गुस्से के भाव उभरे और उसने दुकान में खड़े सहायक से कहा 'अबे, इसे उधर संभाल ले न..।'
वापस अपने पुराने ग्राहकों की तरफ पलटकर उसने चेहरे पर पहले वाली मुस्कान रखी और उनकी पसंद पूछी।
पर्यटकों ने संभवतः बदली ज़ुबान के बाद उसका चेहरा पढ़ लिया। प्रत्युत्तर में उनमें से एक ने उसे सामने रखा सामान दिखाने का ईशारा किया और अपने साथी की तरफ घूमते हुए फ्रेंच में कहा "जे पेंसे क्यूसे तीप न्येस तरम्प (मुझे लगता है यह आदमी हमें बेवकूफ बना रहा है।)"
बिजली की गति से उसने इच्छित सामान निकालकर उनके सामने मेज पर रख दिया मगर इस उपक्रम में वहाँ लगी वह तख्ती नीचे गिर गयी। जिसे नजरंदाज करते हुए महेश ने अभी अभी पर्यटकों की कही बात को सामान की तारीफ समझकर उनसे कहा 'येस सर येस सर..यू आर राईट।"
नीचे औंधी पड़ी तख्ती जिसे असल में रोना था, महेश का जवाब सुनकर अब हँस रही थी।
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(11). आ० मनन कुमार सिंह जी 
सीमाएँ
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विदेशी आक्रांता जा चुके थे।अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता हुआ क्षत-विक्षत वह एक पात विहीन वट वृक्ष के नीचे पड़ा हुआ था। अपने लोग तसल्ली का मलहम लगाते,चले जाते।कुछ राजनेता आये।अपनी अपनी डींगों के पहाड़ खड़े कर गये।किसी ने कहा ,'अरे हमने ही तो इसे बचाया है,नहीं तो फिरंगी इसे तहस-नहस कर गये होते।' फिर कोई अपनी हाँकता कि हमी ने तो गोरों को सात समंदर पर का रास्ता दिखाया।पीठें ठोकी जा रही थीं।आत्म-वंदना आत्म-प्रवंचना का रूप ले चुकी थी।शर-ग्रथित शरीर पर लोग लकीरे खींच रहे थे,अपने -अपने इलाके तय कर रहे थे।बलिदानियों की आत्मा इन्हें धिक्कार रही थी। स्वातंत्र्य संग्राम के बचे सिपाही व्यथित थे।वे चुपचाप इन स्वार्थी और लोलुप लोगों के दुराग्रह पर पश्चाताप के आँसू बहा रहे थे।बँटवारे में बचा आधा शरीर कंपकपा रहा था।
तभी अदबकारों का झुंड तमाशबीनों की भाँति आ गया।वक्तव्य उछले।अक्षर और हर्फ़ में द्वंद्व छिड़ गया।उनकी भी सीमाएँ तय होने लगीं।शब्दों के छींटे अर्द्ध तकसीम शरीर पर पड़ने लगे।कोई कहता-- दिलासा के सब कायल हैं।कोई कहता--इच्छा सबकी होती है।किसीने हर्फ़ और वर्ण में मेल करने की बात की।भाषा के ठेकेदार भड़क गए।भाषा भाषा होती है।उससे खिलवाड़ न हो,ऐसा उनका मत था।हर शब्द की अपनी भाषा है और हर भाषा के अपने शब्द हैं,वे इसके पक्षधर थे।हाँ, आंग्ल भाषा के शब्द उपयोग में आ जायें तो कोई एतराज नहीं।घायल अर्द्ध वदन पर शब्दों के तीर घाव किये जा रहे थे।तभी एक समष्टिमूलक अदीब उधर से गुजरे।माजरा उनकी समझ में आ गया।उन्हीने कहा--
-दिलासा जो न करा दे।
-मतलब?' एक अन्य अदीब चिल्लाया।
-यानि कि खुद को ऊपर बताने की इच्छा।
-फिर उर्दू-फ़ारसी और हिंदी के शब्दों का घालमेल?
--शब्द अभिव्यक्ति के माध्यम हैं,चाहे जिस भाषा के हों।भेदभाव नहीं होना चाहिए।
-बेढ़ब की बातें हैं ये सब।भाषा और शब्दों का अनुशासन कायम रहना चाहिए,'पहले से विद्यमान लेखक मंडली ने आलाप किया।
-ओह..हहह,'एक हृदयविदारक चीख सुनाई पड़ी।
-कौन, आप कौन?' वृक्ष की जड़ के पास पड़े रक्तरंजित पाँव विहीन आधे वदन से अदीब ने पूछा।
-भारत।भारत हूँ मैं।कभी आर्यावर्त था मैं।
अदीब चौंक गया।उसने नमन के शब्द कहे जिसमें वर्ण और हर्फ़ मिले जुले थे।
लेखक मंडली ठिठोली करने लगी।
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(12). आ० डॉ विजय शंकर जी 
जहाज हम बनायेंगे

पता नहीं कौन से नेता जी थे , टी वी पर उनका इंटरव्यु आ रहा था। वे अपनी बड़ी महान योजनाएं बता रहे थे कि अब जल्दी ही वे अपने चुनाव क्षेत्र को मुम्बई बना देंगे , अपने जिले को पेरिस बना देंगें , प्रांत को सबसे अच्छा प्रांत बना देंगे और देश को सारी दुनिया में सबसे बड़ा देश बना देंगें।
प्रस्तुत बात-चीत से पता चला कि वे किसी रिक्त सीट पर एसेम्बली का चुनाव जीत कर आये थे। इंटरव्यु समाप्त होते ही उसने चैनल बदला , अगले चैनल पर टिंकू तस्लानिया और राकेश बेदी , जो कि सीरियल में जीजा-साले का रोल कर रहे थे , का कॉमेडी सीरियल आ रहा था। इसमें वे दोनों बड़े-बड़े बिजनेस प्लान बनाते हैं और पर्याप्त अनुभव के अभाव में अंत में विफल हो जाते हैं।
चल रहे सीरियल में दिखाया जा रहा था कि जीजा-साले ने किसी तिकड़म से पानी के जहाज बनाने और उसे पेंट करने का ठेका प्राप्त कर लिया था और घर आ कर दोनों खुशी से नाच रहे थे और गा रहे थे , “ जहाज हम बनायेंगे , जहाज हम रंगेंगे , जहाज हम , बनायेंगे जहाज हम रंगेंगे “. 
उसने मुस्कुरा कर फिर चैनेल बदल दिया।
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(13). आ० निलेश नूर जी 
भारतवर्ष 
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5000 साल बाद  कुरु सभा फिर अट्टाहस कर रही थी, द्रौपदी निर्वस्त्र थी, पान्डु पुत्र सर झुकाए बैठे थे.......
धृतराष्ट्र तब भी अन्धे थे... अब भी अन्धे ही लग रहे थे.  
चेहरे पर पीड़ा और मार के निशान लिए भारत माता सिसक रही थी... 
सत्ताधारी दल के नेता पर बलात्कार के आरोप थे और कोर्ट में ज़मानत याचिका पर सुनवाई होने जा  रही थी.. नेता जी को ज़मानत मिलते ही सारा परिसर भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के गगनभेदी नारों से गूँज उठा.
नारे बन कर प्रासंगिकता खो  चुके शब्द अपनी अस्मिता बचाने के लिए पीडिता के फटे दामन से पनाह माँगते लग रहे थे.. 
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(14). आ० तेजवीर  सिंह जी 
मेरा  देश 

स्वर्ग के विशिष्ट  कक्ष में बापू बेचैनी से चहल कदमी कर रहे थे। नेहरू और पटेल दौड़ते हुए पहुँचे।
"क्या हुआ बापू, आपका स्वास्थ्य तो ठीक है"?
"मुझे कुछ नहीं हुआ, मुझे  मेरे प्यारे देश भारत की चिंता है? अभी कुछ लोग भारत से आये थे, उन्होंने मुझे वहाँ की दुर्दशा के बारे में बताया था”।
"बापू, क्या होगया है आपको? यहाँ स्वर्ग में भी । अब तो भूल जाओ, उस अतीत को। शाँति से जिओ और  जीने दो"।
"तुम्हारी इसी सोच  की वज़ह से आज भारत की यह दुर्दशा हो रही है"?
"बापू, कृपया करके अपनी नीतियों की असफ़लता का जिम्मेदार हमें मत बनाइये"?
"तुम दोनों के  जिद्दीपन के कारण देश का विभाजन हुआ। ज़िन्ना को पी० एम० बन जाने देते, तो ना देश का विभाजन होता और ना आज ये समस्यायें होतीं"?
"बापू, जो होगया उसे भूल जाओ। अब कुछ नहीं हो सकता है? बापू जिस देश का जन्म ही विभाजन और झगड़ों से हुआ हो वहाँ शाँति और खुशहाली कैसे आयेगी"।
"मेरे हृदय में अब भी एक आशा की किरण प्रज्वलित हो रही है"?
"तो फिर कह दीजिये। विचार करते हैं"।
"मेरी रॉय है कि हम तीनों को पुनः भारत चलना चाहिये। और लोगों को नये सिरे से जागरूक और संगठित करना चाहिये"।
"बापू, आप किस मुगालते में जी रहे हो।अब जो मौज़ूदा भारत है, वह आपके सपनों वाला भारत नहीं है”|
“लेकिन एक प्रयास करने में तो कोई बुराई नहीं है”|
 "यह विचार अविलंब मस्तिष्क से निकाल दीजिये| यह एक आत्मघाती कदम होगा। आवाम के मन में  ज़हर भरा जा चुका है हमारे खिलाफ़"।
"मुझे पता था, तुम लोगों से नहीं होगा"? बापू अपनी लाठी उठाकर भारत की ओर चल पड़े।
--------------------------
(15). आ० कल्पना भट्ट ('रौनक़') जी 

भारत एक खोज

क्लास में सोनू अपनी किताब में बहुत देर से कुछ ढूँढ रहा था, और मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा था| उसके साथ बैठा उसका सहपाठी का ध्यान उसपर पड़ा, सोनू का ध्यान क्लास में पढ़ाये जा रहे विषय से अलग इतिहास की किताब में था, उसके सामने भारत का नक्शा था, उसको बड़बड़ाता देख उसके सहपाठी ने जिज्ञासावश पूछा," सोनू! ये तुम क्या कर रहे हो? मैडम की नज़र भी तुमपर है पर एक तुम हो की.." उसकी बात ख़तम भी न हुई थी कि उन्होंने अपनी टीचर को अपने समीप पाया, जो गुस्से से लाल पीली हो रही थीं, उन्होंने कहा," सोनू! व्हाट आर यू अपटू एंड व्हाट इस थिस? आई ऍम टीचिंग यू इंग्लिश एंड लुक एट योरसेल्फ यू हैव ओपेन्ड योर हिस्ट्री बुक| हाउ डेर यू ...|" 
"ओह! सॉरी मैडम| मैडम! क्या सच में अपना देश भारत ही है?"
"यह कैसा प्रश्न है सोनू? हाँ! भारत ही अपना देश है| पर यह सवाल तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो ? और मैं तो तुमको हिस्ट्री पढ़ाती भी नहीं|" 
"वो .. मैडम मेरे दादाजी ने मुझसे कहा कि आज तुम लोग आज़ाद हो,हमारे ज़माने में स्कूल जाना मुश्किल होता था| आज़ादी की लड़ाई के लिए हर बच्चा अपने वतन पर मर मिटने को तैयार रहता था, अंग्रेजो के जुल्म बढ़ते जा रहे थे पर भारत के लोगों में क्रांति का बीज अब अपनी ज़मीन चाहता था, और उसके लिए हर आयु के लोग तैयार थे|"
"तुम्हारे दादाजी ठीक कहते हैं सोनू| पर इस इंडिया में मैप में तुम क्या तलाश रहे हो?"
"मैं उस भारत और भारत के लोगों को इस मैप में तलाश रहा हूँ, मुझे मिल जायेंगे न आज भी ऐसे भारत वासी|"
मैडम निरुत्तर ....

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ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - ३७ के सफल संचालन, शानदार संपादन एवम त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।

सर जी , मेरी लघु कथा को संकलन का हिस्सा बनाने के लिए , आप जी का बहुत धन्यवाद

मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्टी अंक--37 की कामयाब निज़ामत और त्वरित संकलन के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,लघुकथा गोष्ठी अंक-37 के त्वरित संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।

बेहतरीन समसामयिक और महत्त्वपूर्ण विषय पर लघुकथा प्रेमियों और रचनाकारों को मन की बात सम्प्रेषित करने का अवसर प्रदान करने के लिए और शानदार संकलन में सभी सम्मानित रचनाकारों के साथ मेरी रचना को 7 वें स्थान पर स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार।

शीर्षक में अर्थ संबंधी एक टिप्पणी आईं थी। मेरा आशय सोज़ = दुख/मातम,... से था। नेट अर्थ के बतौर। यदि त्रुटिपूर्ण हो, तो मार्गदर्शन निवेदित।

रचना में किनारे से गिनने पर सत्रहवीं पंक्ति में यह शब्द समूह दो बार टंकित हो गया है। कृपया सही कर दीजियेगा -// पढ़ाया जाता है //

इसी तरह दसवीं और अंतिम पंक्ति के पहले वाले शब्दों में स्पेसिंग नहीं हो सकी है। कृपया इन दोनों जगहों पर दो शब्दों के बीच एक स्पेस दे दीजिए। धन्यवाद।

समयाभाव के कारण इस बार न तो मैं साथी रचनाकारों की लघुकथाओं पर टिप्पणी कर पाया और न ही अपनी लघुकथा पर आयी टिप्पणियों का प्रत्युत्तर. इस हेतु मैं सभी से क्षमाप्रार्थी हूँ. मेरी लघुकथा को लेकर एक आम राय यह रही कि यह अस्पष्ट है. इसलिए इसे मैंने संशोधित कर थोड़ा और स्पष्ट करने की कोशिश की है. आदरणीय योगराज सर से सादर निवेदन है कि क्रमांक 4 पर संकलित लघुकथा को इस संशोधित लघुकथा से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें. सभी सुधि साथियों और आदरणीय मंच संचालक महोदय को एक और सफल लघुकथा गोष्ठी की हार्दिक बधाई. बहुत-बहुत धन्यवाद.

अधूरे ख़्वाब

अंग्रेज़ सैनिकों की टुकड़ी इमारत में प्रवेश कर चुकी थी।

“न्याय की देवी वो द्रौपदी है जिसकी अस्मत कृष्ण ने ही लूट ली।’’ बूढ़े चित्रकार ने उस न्यायाधीश पर कूची फेरते हुए कहा जो एक औरत की साड़ी उतार रहा था। औरत की हालत अत्यन्त दयनीय थी। वह बेहद कमज़ोर हो चुकी थी। उसकी तलवार टूटी हुई थी तो तराज़ू का पलड़ा एक ओर झुका हुआ। उसके पास काले कोट पहने हुए ढेर सारी आदमी खड़े थे जिनकी एक आँख पर काली पट्टी बंधी थी। वेे सभी उस औरत को निर्वस्त्र होते देख ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे।

बूढ़े चित्रकार के कमरे में चारों तरफ़ ऐसे ही चित्र बिखरे पड़े थे। यहाँ तक कि उसकी दीवारें भी तस्वीरों से रंगी हुई थीं। बूढ़ा चित्रकार उस दीवार की तरफ़ मुड़ा जहाँ पर वृत्ताकार भवन की तस्वीर बनी हुई थी। भवन की छत पर सफ़ेद कपड़े पहने हुए ढेर सारे आदमी बैठे थे जिनकी पीठ भवन की ओर थी तो मुँह बाहर की ओर। शौच की मुद्रा में बैठे हुए उन सभी लोगों के सामने एक लोटा रखा था। “सारे पन्ने बदल दिये गए हैं। अब ये किताब जादुई हो गयी है।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन नेताओं के लोटों में संविधान के फटे हुए पन्ने भरने लगा।

उस आलीशान भवन के बाहर एक टूटे हुए खम्भे के समीप सूट-बूट पहने हुए कुछ लोग खड़े थे जो उस भवन से निकलने वाले मल को आकर्षक डिब्बों में पैक कर रहे थे। “ये शुद्ध सोना है। जनता की ज़िन्दगी बदल देगा।” उन्होंने एक काग़ज़ पर लिखा और हवा में उछाल दिया। इसके बाद उन लोगों ने अपने गले में लटके हुए कैमरों से जो सिर्फ़ एक ही रंग की तस्वीरें क़ैद करते थे, सामने वाले उजाड़ बाग़ की तस्वीरें लीं। तस्वीरें लेते ही उजाड़ बाग़ हरा-भरा हो गया।

इधर अंग्रेज़ सैनिक सीढ़ियों तक पहुँच चुके थे।

बूढ़े चित्रकार ने अपनी नज़रें चारों तरफ़ दौड़ायीं। हर कहीं रंगों की जद्दोजहद मौजूद थी। सबसे स्याह तस्वीर युवाओं की थी। औरतों के चित्र से तो रंग ही गायब था। वह उस दीवार के पास जा कर खड़ा हो गया जहाँ बड़ी-बड़ी मशीनें विकास उगल रही थीं। उन मशीनों को पुलिस और सेना वाले मिलकर खींच रहे थे। “ये मशीनें जल, जंगल और जमीन को एक ऐसे स्वर्ग में तब्दील करती हैं जहाँ आदमी नहीं सिर्फ़ देवता रहते हैं।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन मोटे लोगों के पैरों के पास जो उन मशीनों के मालिक थे, नरमुण्ड बनाने लगा।

तभी दरवाजा टूटने की आवाज़ आयी। अंग्रेज़ सैनिक उस बूढ़े चित्रकार के सामने खड़े थे। ‘‘ये रहा देशद्रोही!’’ सेनानायक के कहते ही सैकड़ों गोलियाँ उस बूढ़े के सीने में समा गयीं। लेकिन अभी भी उसमें कुछ जान बाकी थी। अपने स्वतंत्रता सेनानी साथियों की लाशों के चित्र के बीच से रेंगता हुआ वह उस एकमात्र ख़ूबसूरत चित्र के पास पहुँचा जहाँ उगते हुए सूर्य के बीच एक नवयुवक खड़ा था। वह नवयुवक वही बूढ़ा चित्रकार था। उस की आँखों में सुनहरे ख़्वाब थे तो हाथों में देश का झंडा और वह अभी भी मुस्कुरा रहा था। इससे पहले कि वह बूढ़ा चित्रकार रेंग कर उस तस्वीर के क़रीब पहुँचता एक अंग्रेज सैनिक ने आगे बढ़कर दो गोलियाँ उसकी आँखों में मार कर उसे हमेशा के लिए वहीं पर ख़ामोश कर दिया।

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