(1). आ० मोहम्मद आरिफ़ जी
उपाय
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ब्रह्म ज्योतिषी के आगे हाथ बढ़ाते हुए -" इन रेखाओं को देखकर बताइए आखिर ये क्या कहती है ? "
ब्रह्म ज्योतिषी ने जैसे ही उसके हाथों की रेखाओं को देखा तो उन्हें चक्कर आने लगे । कुछ देर संभलने के बाद बोले -" मैं पहली बार ऐसी रेखाओं को देखकर अभिभूत हूँ । बताने में संकोच हो रहा है ।"
" कैसा संकोच ? संकोच की कोई आवश्यकता नहीं है , खुलकर बताइए ।"
" सच सहन कर सकोगे ।"
" क्यों नहीं !"
" तो सुनो , सभी रेखाएँ भीषण संक्रमण-काल के दौर से गुजर रही है और संकट भी छाया है इन पर ।"
" कैसा संक्रमण-काल और कौन-सा संकट ?"
" पुरातन के प्रति झुकाव और आधुनिकता की अंधी दौड़ ,भयंकर परिवर्तन से डर और बेचैनी , मूल्यों और
नैतिकता का पतन । दुष्कर्म , बलात्कार , गंदी राजनीति ,आतंकवाद , नक्सलवाद , आर्थिक घोटालें इन सबकी काली छाया है ।"
" इन सबका उपाय ?"
ब्रह्म ज्योतिषी ने कतारबद्ध तस्वीरों की ओर इशारा दिया जिसमें गांधी , गौतम , कलाम , भगत , अशफ़ाक , विवेकानंद
आज़ाद कालजयी मौन रहकर भारत को उपाय सुझा रहे थे । ब्रह्म ज्योतिषी पलभर में अदृश्य हो गया ।
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(2). आ० तस्दीक अहमद खान जी
दिलवाला
.
मोहन बाबू सवेरे सवेरे चाय की चुस्की लेते हुए पत्नी राधा को अख़बार की हेडिंग पढ़ कर सुना रहे थे कि अमेरिका ,कुवैत ,ओमान,सऊदी अरब आदि देशों में कार्यरत भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है ।अचानक दरवाज़े पर घंटी बजती है ,वो अख़बार छोड़ कर जैसे ही दरवाज़ा खोलते हैं ,तो बेटे राजेश को देख के हैरत में पड़ जाते है और तुरन्त पूछते हैं ,"बिना किसी फ़ोन या सूचना के यकबयक कैसे आना हुआ ?"
राजेशजवाब में कहता है,"अमेरिका के हालात अच्छे नहीं हैं ,भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है "।
मोहनबाबू अंदर आते हुए फिर कहते हैं ,"बेटा यहां के हालात अच्छे होते तो तुम्हें नौकरी करने अमेरिका क्यूँ जाना पड़ता ,यहां नौकरी डिज़र्व को नहीं रिज़र्व को मिलती है "।
राजेश पिता जी को उदास देख कर फौरन कहने लगा ,"आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं ,वहां के अनुभव के आधार पर मुझे बैंगलोर में नौकरी मिल गई है ,अगले हफ्ते जॉइन करना है "।
यह सुनते ही मोहन बाबू की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे ,वो गले लगाते हुए कहने लगे ,"भारत का दिल बहुत बड़ा है ,यहां पता नहीं कितने विदेशी लोग बरसों से नौकरी कर रहे हैं लेकिन उन्हें भारत में कभी नौकरी से नहीं निकाला गया ,हैरत है विदेशों में भारतीयों को निकाला जा रहा है"।
राजेश फ़ौरन पिता जी के ख़ुशी के आँसू पोंछ कर कहने लगा ,"अपना भारत महान "।
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(3). आ० कनक हरलालका जी
स्वतंत्रता दिवस
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भारत सुबह सुबह ही सफेद कपड़े पहने आनन्दित होकर घूम रहा था । उसे गर्व था अपने भारत नाम पर ,ऊपर से आज स्वतंत्रता दिवस था और उसका जन्मदिन भी । वह खूब मजे से आज के दिन को मनाना चाहता था ।
" पिताजी , आज मेरा जन्मदिन है न , चलिए आज कहीं बाहर चल कर मनाएंगे । आप मैं और मां पिकनिक चलते हैं ।"
" नहीं बेटा ,आज तो मंत्री जी का बहुत व्यस्त कार्यक्रम है ।
मुझे सारे दिन उनकी गाड़ी चलानी है । रविवार को जरूर चलेंगे ।"
" मां आप तो ले चलेंगी मुझे । बाहर न सही , मेरी पसंद का खाना जरूर बना कर खिलाएंगी न । " "अरे , तू मेरा राजा बेटा है , अभी तो जो घर में बना हुआ है ,खा ले ना ! आज मंत्री जी के घर में सब बड़े लोगों का जमावड़ा ,खाना पीना है । सारा दिन वहीं रहना पड़ेगा ।आज समय नहीं है । रविवार जरूर से ..."
"यार भारत ,यहां अकेले बैठा क्या कर रहा है ? "
" मां पिताजी मंत्री जी के यहां स्वतंत्रता दिवस मनाने गए है , मैं यहां मना रहा हूं ।"
" पर इस तरह कैसे ? "
" हां यार ,आज मैं कुछ भी न कर सकने ,या फिर कुछ भी कर सकने के लिए स्वतंत्र हूं ।
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(4). आ० महेंद्र कुमार जी
अधूरे ख़्वाब
अंग्रेज़ सैनिकों की टुकड़ी इमारत में प्रवेश कर चुकी थी।
“न्याय की देवी वो द्रौपदी है जिसकी अस्मत कृष्ण ने ही लूट ली।’’ बूढ़े चित्रकार ने उस न्यायाधीश पर कूची फेरते हुए कहा जो एक औरत की साड़ी उतार रहा था। औरत की हालत अत्यन्त दयनीय थी। वह बेहद कमज़ोर हो चुकी थी। उसकी तलवार टूटी हुई तो तराज़ू का पलड़ा एक ओर झुका हुआ था। उसके पास काले कोट पहने हुए ढेर सारी आदमी खड़े थे जिनकी एक आँख पर काली पट्टी बंधी थी। वे सभी उस औरत को देख कर ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे।
बूढ़े चित्रकार के कमरे में चारों तरफ़ ऐसे ही चित्र बिखरे पड़े थे। यहाँ तक कि उसकी दीवारें भी तस्वीरों से रंगी हुई थीं। बूढ़ा चित्रकार उस दीवार की तरफ़ मुड़ा जहाँ एक बड़ा सा वृत्ताकार भवन बना हुआ था। उस भवन की छत पर सफ़ेद कपड़े पहने हुए आदमी बैठे थे जिनकी पीठ भवन की ओर थी तो मुँह बाहर की ओर। उन सभी के पास एक लोटा रखा था। “सारे पन्ने बदल दिये गए हैं। अब ये हमारी किताब नहीं है।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन लोटों में पुरानी किताब के फटे हुए पन्ने भरने लगा।
उस आलीशान भवन के बाहर सूट-बूट पहने हुए कुछ लोग खड़े थे जो उस भवन से निकलने वाले मल को आकर्षक डिब्बों में पैक कर रहे थे। “ये शुद्ध सोना है। सबकी ज़िन्दगी बदल देगा।” उन्होंने एक काग़ज़ पर लिखा और हवा में उछाल दिया। उनके गले में कैमरे लटके हुए थे जो सिर्फ़ एक ही रंग की तस्वीरें क़ैद करते थे।
इधर अंग्रेज़ सैनिक सीढ़ियों तक पहुँच चुके थे।
बूढ़े चित्रकार ने अपनी नज़रें चारों तरफ़ दौड़ायीं। हर कहीं रंगों की जद्दोजहद मौजूद थी। सबसे स्याह तस्वीर युवाओं की थी। औरतों के चित्र से तो रंग ही ग़ायब था। वह उस दीवार के पास जा कर खड़ा हो गया जहाँ बड़ी-बड़ी मशीनों के बीच ढेर सारे पुलिस वाले खड़े थे। “ये मशीनें जंगलों को ऐसे स्वर्ग में तब्दील करती हैं जहाँ आदमी नहीं सिर्फ़ देवता रहते हैं।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन मोटे लोगों के पैर के पास जो उन मशीनों के मालिक थे, नरमुण्ड बनाने लगा।
तभी दरवाज़ा टूटने की आवाज़ आयी। अंग्रेज़ सैनिक उस बूढ़े चित्रकार के सामने खड़े थे। अगले ही पल सैकड़ों गोलियाँ उसके सीने में समा गयीं। लेकिन बूढ़े चित्रकार में अभी भी कुछ जान बाकी थी। वह स्वतंत्रता सेनानियों की लाशों के बीच से रेंगता हुआ उस एकमात्र ख़ूबसूरत तस्वीर के पास पहुँचा जहाँ बाग़ में एक बच्चा खड़ा था। उस बच्चे के हाथ में तिरंगा झंडा था और वह अभी भी मुस्कुरा रहा था। वह बूढ़ा चित्रकार वही बच्चा था। इससे पहले कि बूढ़ा चित्रकार उस बच्चे के क़रीब पहुँचता एक अंग्रेज़ सैनिक ने आगे बढ़कर आख़िरी दो गोलियाँ उसकी आँखों में मार कर उसे हमेशा के लिए वहीं पर ख़ामोश कर दिया।
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(5). आ० डॉ टी.आर सुकुल जी
भारत
सभाकक्ष में श्रोताओं की उपस्थिति बता रही थी कि कथावाचक असाधारण ज्ञानी हैं। भारत के राम भक्तों के बीच यह अटूट विश्वास है कि जहाॅं कहीं भी रामकथा होती है वहाॅं हनुमानजी अवश्य ही पीछे की पंक्ति में कहीं बैठे कथा सुन रहे होते हैं । अशोक वाटिका का प्रसंग आने पर कथावाचक बोले,
‘‘ वाटिका में अशोक बृक्ष के नीचे सफेद साड़ी पहने हुए सीतामाता बैठी हैं, चारों ओर सफेद फूल खिले हैं, रावण अपनी हॅुकार भरते उन्हें धमका रहा है ... ’’
आगे वे कुछ कह पाते कि पीछे से एक सज्जन ने खड़े होकर विनम्रता पूर्वक कहा,
‘‘ नहीं पंडितजी ! सीतामाता सफेद नहीं , लाल साड़ी पहने हुए थीं और चारों ओर लाल ही फूल खिले थे।’’
‘‘ महानुभाव ! आप कौन हैं? ’’ मुस्कराते हुए कथावाचक ने पूछा।
‘‘ मैं ? अरे ! मैं हनुमान । मैंने ही सीतामाता की खोज, अशोक वाटिका में की थी’’
‘हनुमान’ नाम सुनकर सभी श्रोता उत्सुकता और आश्चर्य से पीछे की ओर देखने लगे।
कथावाचक ने मोर्चा सम्हाला ,
‘‘ ओ हो ! हनुमानजी , प्रणाम। लेकिन बताइए कि यह द्रश्य देखकर आपको क्रोध नहीं आया था?’’
‘‘ बिलकुल आया था, वो तो श्रीराम प्रभु की आज्ञा नहीं थी अन्यथा मैं वहीं पर रावण के सिर के टुकड़े टुकड़े कर देता।’’
‘‘ हाॅं ! ये बात थी न ! इसी क्रोध से आपके नेत्र लाल हो गए थे और सभी चीजें लाल लाल दिखाई देने लगीं थीं, समझे, बैठो ! अब आगे की कथा सुनो। ’’
हनुमानजी ने कुछ बोलना चाहा लेकिन श्रोताओं की ओर से जोरदार ध्वनि हो उठी,
‘‘ वाह ! वाह! अद्वितीय व्याख्या वाह !! वाह !! ’’
और, जिस मच्छर का रूप धरकर उन्होंने लंकापुरी में प्रवेश किया था वही कान के पास भन्भनाया,
‘‘ हनुमानजी ! देखा ! प्रत्यक्ष द्रष्टा को भी गलत सिद्ध कर दिया न ? यह राम का ‘भारत’ नहीं , कलियुगीन रावण का है! यहाॅं सीताओं का तो रोज अपहरण होता है पर उनकी खोज करने और अपहरणकर्ताओं को दंड देने वाला राम कहीं दिखाई नहीं देता!! ‘‘
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(6). आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
भारतवासियों की माँ
‘यह वही लड़का है मॉम मैंने जिसे पसंद किया .ये है तो फारेनर पर बी एम सी (ब्रिटिश मॉडल कॉलेज ) में मेर सीनियर हैं ‘ – मिस कैरोलीन ने अपनी माँ से कहा –‘मॉम मेरे पापा भी तो फारेनर थे न. पर वह तुम्हें यहाँ अकेला छोड़कर चले गए थे.’
‘हाँ कैरो, वह बात अब पुरानी हो चुकी है .’ मॉम ने लडके का भरपूर जायजा लेते हुए कहा, ’क्या तुम मेरी बेटी को पसंद करते हो ?’-
‘एस्स्स्स ---‘ लड़के ने सकुचाते हुए कहा .
‘उससे शादी भी कर सकते हो ?’
‘माय फार्च्यून’
‘लेकिन तब तुम अपने देश लौट नहीं पाओगे. मेरी बेटी के साथ यही ब्रिटेन में रहना होगा. हमारे पास संपत्ति की कोई कमी नहीं है. प्लेंटी ऑफ़ फॉरच्यून्स आर हियर.’ मॉम ने अपनी शर्त रखी – ‘कैरी इज माय ओनली डाटर, आई कान्ट कोप विद हर सेपरेशन’
‘सॉरी मॉम, यह पॉसिबल नहीं है. मैं यहाँ पढने आया था. मेरी एजुकेशन पूरी हो चुकी है. मुझे वापस जाना होगा. मैं किसी भी सिचुएशन में अपना देश नहीं छोड़ सकता.’
तुम्हे अपना देश प्यारा है या मेरी बेटी ?’
‘नो डाउट, आई लव कैरी पर माय कंट्री इज माय मदर ‘
मॉम के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे . उन्होंने चौंककर लड़के को ऐसे देखा मानो वह कोई अजूबा हो. उन्हें वर्षों पहले की कोई भूली-बिसरी घटना याद आ गयी . उन्होंने औचक एक सवाल किया- ‘आर यू इंडियन ?’- आवाज मानो किसी गहरे सुरंग से आयी हो .
‘नहीं, मैं भारतीय हूँ. ‘-लडके ने जवाब दिया .
‘क्या तुम्हारा देश इंडिया नहीं है ?‘
‘नहीं, मेरा देश भारत है और वह मेरी माँ है- ‘भारत-माता’
‘भारत-माता -----ओह माय गॉड ---‘ मॉम को चक्कर आ गया . वह ‘धम’ से सोफे पर ढेर हो गयीं. लड़के ने उन्हें उठाकर बिठाया .
‘आर यू ओ. के. मॉम ’ – कैरी ने मॉम के मुख पर पानी के छींटे डालते हुए कहा.
‘हाँ मैं ठीक हूँ’ - मॉम ने सामान्य होते हुए कहा –‘ यू आर लकी बेबी. तुम्हारे पिता भी इंडियन थे. वह मुझे इण्डिया ---- नहीं -- नहीं भारत ले जाना चाहते थे. पर तब मैंने उनकीं बात नहीं मानी. पर अब मैं तुम्हे वह गलती नहीं करने दूंगी . हम भारत को इंडिया कहते हैं पर वह इंडिया नहीं भारत है और वह भारतवासियों की माँ है .
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(7). आ० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी
भारत एक खोज
क्लास में सोनू अपनी किताब में बहुत देर से कुछ ढूँढ रहा था, और मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा था| उसके साथ बैठा उसका सहपाठी का ध्यान उसपर पड़ा, सोनू का ध्यान क्लास में पढ़ाये जा रहे विषय से अलग इतिहास की किताब में था, उसके सामने भारत का नक्शा था, उसको बड़बड़ाता देख उसके सहपाठी ने जिज्ञासावश पूछा," सोनू! ये तुम क्या कर रहे हो? मैडम की नज़र भी तुमपर है पर एक तुम हो की.." उसकी बात ख़तम भी न हुई थी कि उन्होंने अपनी टीचर को अपने समीप पाया, जो गुस्से से लाल पीली हो रही थीं, उन्होंने कहा," सोनू! व्हाट आर यू अपटू एंड व्हाट इस थिस? आई ऍम टीचिंग यू इंग्लिश एंड लुक एट योरसेल्फ यू हैव ओपेन्ड योर हिस्ट्री बुक| हाउ डेर यू ...|"
"ओह! सॉरी मैडम| मैडम! क्या सच में अपना देश भारत ही है?"
"यह कैसा प्रश्न है सोनू? हाँ! भारत ही अपना देश है| पर यह सवाल तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो ? और मैं तो तुमको हिस्ट्री पढ़ाती भी नहीं|"
"वो .. मैडम मेरे दादाजी ने मुझसे कहा कि आज तुम लोग आज़ाद हो,हमारे ज़माने में स्कूल जाना मुश्किल होता था| आज़ादी की लड़ाई के लिए हर बच्चा अपने वतन पर मर मिटने को तैयार रहता था, अंग्रेजो के जुल्म बढ़ते जा रहे थे पर भारत के लोगों में क्रांति का बीज अब अपनी ज़मीन चाहता था, और उसके लिए हर आयु के लोग तैयार थे|"
"तुम्हारे दादाजी ठीक कहते हैं सोनू| पर इस इंडिया में मैप में तुम क्या तलाश रहे हो?"
"मैं उस भारत और भारत के लोगों को इस मैप में तलाश रहा हूँ, मुझे मिल जायेंगे न आज भी ऐसे भारत वासी|"
मैडम निरुत्तर ....
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ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - ३७ के सफल संचालन, शानदार संपादन एवम त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।
सर जी , मेरी लघु कथा को संकलन का हिस्सा बनाने के लिए , आप जी का बहुत धन्यवाद
मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्टी अंक--37 की कामयाब निज़ामत और त्वरित संकलन के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,लघुकथा गोष्ठी अंक-37 के त्वरित संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।
बेहतरीन समसामयिक और महत्त्वपूर्ण विषय पर लघुकथा प्रेमियों और रचनाकारों को मन की बात सम्प्रेषित करने का अवसर प्रदान करने के लिए और शानदार संकलन में सभी सम्मानित रचनाकारों के साथ मेरी रचना को 7 वें स्थान पर स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार।
शीर्षक में अर्थ संबंधी एक टिप्पणी आईं थी। मेरा आशय सोज़ = दुख/मातम,... से था। नेट अर्थ के बतौर। यदि त्रुटिपूर्ण हो, तो मार्गदर्शन निवेदित।
रचना में किनारे से गिनने पर सत्रहवीं पंक्ति में यह शब्द समूह दो बार टंकित हो गया है। कृपया सही कर दीजियेगा -// पढ़ाया जाता है //
इसी तरह दसवीं और अंतिम पंक्ति के पहले वाले शब्दों में स्पेसिंग नहीं हो सकी है। कृपया इन दोनों जगहों पर दो शब्दों के बीच एक स्पेस दे दीजिए। धन्यवाद।
समयाभाव के कारण इस बार न तो मैं साथी रचनाकारों की लघुकथाओं पर टिप्पणी कर पाया और न ही अपनी लघुकथा पर आयी टिप्पणियों का प्रत्युत्तर. इस हेतु मैं सभी से क्षमाप्रार्थी हूँ. मेरी लघुकथा को लेकर एक आम राय यह रही कि यह अस्पष्ट है. इसलिए इसे मैंने संशोधित कर थोड़ा और स्पष्ट करने की कोशिश की है. आदरणीय योगराज सर से सादर निवेदन है कि क्रमांक 4 पर संकलित लघुकथा को इस संशोधित लघुकथा से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें. सभी सुधि साथियों और आदरणीय मंच संचालक महोदय को एक और सफल लघुकथा गोष्ठी की हार्दिक बधाई. बहुत-बहुत धन्यवाद.
अधूरे ख़्वाब
अंग्रेज़ सैनिकों की टुकड़ी इमारत में प्रवेश कर चुकी थी।
“न्याय की देवी वो द्रौपदी है जिसकी अस्मत कृष्ण ने ही लूट ली।’’ बूढ़े चित्रकार ने उस न्यायाधीश पर कूची फेरते हुए कहा जो एक औरत की साड़ी उतार रहा था। औरत की हालत अत्यन्त दयनीय थी। वह बेहद कमज़ोर हो चुकी थी। उसकी तलवार टूटी हुई थी तो तराज़ू का पलड़ा एक ओर झुका हुआ। उसके पास काले कोट पहने हुए ढेर सारी आदमी खड़े थे जिनकी एक आँख पर काली पट्टी बंधी थी। वेे सभी उस औरत को निर्वस्त्र होते देख ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे।
बूढ़े चित्रकार के कमरे में चारों तरफ़ ऐसे ही चित्र बिखरे पड़े थे। यहाँ तक कि उसकी दीवारें भी तस्वीरों से रंगी हुई थीं। बूढ़ा चित्रकार उस दीवार की तरफ़ मुड़ा जहाँ पर वृत्ताकार भवन की तस्वीर बनी हुई थी। भवन की छत पर सफ़ेद कपड़े पहने हुए ढेर सारे आदमी बैठे थे जिनकी पीठ भवन की ओर थी तो मुँह बाहर की ओर। शौच की मुद्रा में बैठे हुए उन सभी लोगों के सामने एक लोटा रखा था। “सारे पन्ने बदल दिये गए हैं। अब ये किताब जादुई हो गयी है।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन नेताओं के लोटों में संविधान के फटे हुए पन्ने भरने लगा।
उस आलीशान भवन के बाहर एक टूटे हुए खम्भे के समीप सूट-बूट पहने हुए कुछ लोग खड़े थे जो उस भवन से निकलने वाले मल को आकर्षक डिब्बों में पैक कर रहे थे। “ये शुद्ध सोना है। जनता की ज़िन्दगी बदल देगा।” उन्होंने एक काग़ज़ पर लिखा और हवा में उछाल दिया। इसके बाद उन लोगों ने अपने गले में लटके हुए कैमरों से जो सिर्फ़ एक ही रंग की तस्वीरें क़ैद करते थे, सामने वाले उजाड़ बाग़ की तस्वीरें लीं। तस्वीरें लेते ही उजाड़ बाग़ हरा-भरा हो गया।
इधर अंग्रेज़ सैनिक सीढ़ियों तक पहुँच चुके थे।
बूढ़े चित्रकार ने अपनी नज़रें चारों तरफ़ दौड़ायीं। हर कहीं रंगों की जद्दोजहद मौजूद थी। सबसे स्याह तस्वीर युवाओं की थी। औरतों के चित्र से तो रंग ही गायब था। वह उस दीवार के पास जा कर खड़ा हो गया जहाँ बड़ी-बड़ी मशीनें विकास उगल रही थीं। उन मशीनों को पुलिस और सेना वाले मिलकर खींच रहे थे। “ये मशीनें जल, जंगल और जमीन को एक ऐसे स्वर्ग में तब्दील करती हैं जहाँ आदमी नहीं सिर्फ़ देवता रहते हैं।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन मोटे लोगों के पैरों के पास जो उन मशीनों के मालिक थे, नरमुण्ड बनाने लगा।
तभी दरवाजा टूटने की आवाज़ आयी। अंग्रेज़ सैनिक उस बूढ़े चित्रकार के सामने खड़े थे। ‘‘ये रहा देशद्रोही!’’ सेनानायक के कहते ही सैकड़ों गोलियाँ उस बूढ़े के सीने में समा गयीं। लेकिन अभी भी उसमें कुछ जान बाकी थी। अपने स्वतंत्रता सेनानी साथियों की लाशों के चित्र के बीच से रेंगता हुआ वह उस एकमात्र ख़ूबसूरत चित्र के पास पहुँचा जहाँ उगते हुए सूर्य के बीच एक नवयुवक खड़ा था। वह नवयुवक वही बूढ़ा चित्रकार था। उस की आँखों में सुनहरे ख़्वाब थे तो हाथों में देश का झंडा और वह अभी भी मुस्कुरा रहा था। इससे पहले कि वह बूढ़ा चित्रकार रेंग कर उस तस्वीर के क़रीब पहुँचता एक अंग्रेज सैनिक ने आगे बढ़कर दो गोलियाँ उसकी आँखों में मार कर उसे हमेशा के लिए वहीं पर ख़ामोश कर दिया।
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