For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-39 (विषय: समीकरण")

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-39 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गत तीन वर्ष में गोष्ठी के पिछले 38 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव में हर्ष का विषय हैI पिछले कुछ आयोजनों में हमारे वरिष्ठ साथिओं की लगातार अनुपस्थिति हालाकि पीड़ादायक रही है. फिर भी हमारे लघुकथाकार अनवरत उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं. और बहुत से साथी उन पर सार्थक चर्चा भी कर रहे हैं जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन भी हो रहा है. बहरहाल, इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-39
विषय: "विषय: समीकरण" 
अवधि : 29-06-2018  से 30-06-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9705

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब विनय कुमार जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती कम शब्दों में उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

वाह वाह वाह! प्रदत्त विषय को कितनी सरलता और सटीकता से यथार्थवादी अभिव्यक्ति में ढाला है भाई विनय कुमार सिंह जी. बिना अधिक शब्द खर्च किए कही गई यह लघुकथा पढ़कर आनंद आ गया. रोज़मर्रा की एक साधारण घटना को जिस सुन्दरता से शब्दांकित किया है उसके लिए आपको ढेरों ढेर बधाई. 

बहुत उम्दा। कितने सटीक शब्दो मे विषय को साकार किया है आपने भाई विनय कुमार जी। इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये भाई जी। सादर।

आदरनीय विनय जी,आज का  सिस्टम में ऐसा देखने को मिलता है।

राजनीति के सभी समीकरणों का अन्तिम लक्ष्य येन केन प्रकारेण कुर्सी प्राप्त करना है। इस विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीय विनय कुमार जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर। 

बहुत ही कम शब्दों में बेहतरीन और सटीक लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय कुमार जी ।

'रिश्तों के समीकरण'
"लगता है बुरा समय बीत गया।" घर की चौखट पर बैठी मां बुदबुदा उठी।
एक लेनदेन के चलते जिनकी शिकायत पर उसे ससपेंड किया गया था, वही 'बड़े साहब' अपनी शिकायत वापिस लेने और नौकरी बहाल करवाने के 'आश्वासन पत्र' के साथ सामने बैठे थे। ये अलग बात थी कि 'ऊपर की इन्कम' के मकड़जाल से उसका परिचय करवाने वाले भी वही थे।
घर में खुसर-फुसर शुरू हो गयी थी। भाई-भाभी के कान दरवाजे पर लगे थे और पति से नाराज मायके में बैठी बहन कमरे के बाहर से अपनी नजरें इधर ही गड़ाये बैठी थी। बड़े साहब चाय पीने के साथ उसके चेहरे पर नजरें टिकाये हुये थे और वह, अपने ही ख्यालों में गुम बीतें समय की कड़ियाँ जोड रहा था।
भरा पूरा घर था, कहीं कोई कमी नहीं थी लेकिन पिता की असमायिक मृत्यु के बाद परिवारिक सदस्यों की अपने प्रति घटती दिलचस्पी से वह अक्सर विचलित हो जाता था लेकिन जल्दी ही नौकरी मिलने के बाद सब ठीक हो गया था। नौकरी में बड़े साहब के साथ बने ऊपरी कमाई के समीकरण ने जल्दी ही परिवार में भी सभी के साथ अच्छे समीकरण बना दिये थे लेकिन एक 'संस्पेंशन ऑर्डर' ने उसके सारे प्रयत्नों को धराशाई कर दिया था।
"......अरे भाई, अब मेरी इन्कम तेरे जैसी नहीं है कि तेरा बोझ उठा सकूँ।"
"......छोटे! गलत काम गलत ही होता है, पहले सोचना चाहिए था न।"
".......देवर जी, हम अपना खर्चा तो चला ही लेंगें जैसे तैसे। और फिर हमने तो नहीं कहा था कि ऐसे कमाओ।"
"...... भैया, मैं कब कह रही हूँ रिश्ते पैसों से बड़े होते है लेकिन कभी कभी......।"

"क्या हुआ बेटा, कहाँ खो गया?" माँ के शब्दों से वह वर्तमान में आ खड़ा हुआ। "बड़े साहब कब से बैठे हुए हैं?" माँ चौखट से उठकर सामने आ खड़ी हुई थी।
"अरे, कहीं नहीं माँ! बस कुछ रिश्तों के समीकरण बिगड़ गए थे, उन्हीं को सुधारने के बारे में सोच रहा हूँ।" कहते हुए वह मुस्करा दिया। और अगले ही क्षण वह 'आश्वासन पत्र' को खेद सहित बड़े साहब को थमाते हुए चौखट का रास्ता दिखा चुका था।
'मौलिक, अप्रसारित व अप्रकाशित'

आदरनीय वरिंदर जी,बहुत सुंदर लधुकथा के लिए बधाई हो।

रचना पर प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय मोहन भाई जी। सादर

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी.

हार्दिक आभार बबिता गुप्ता जी। शुक्रिया। 

जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी आदाब,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
43 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
49 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service