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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-4 में स्वीकृत लघुकथाएँ

(1). श्री  मिथिलेश वामनकर जी
असल बुनियाद  (संशोधित लघुकथा )

ट्रॉफी लेकर, बेटा स्कूल से घर आया तो देखा पापा बेडरूम की अलमारी से नोटों की गड्डियाँ ब्रीफकेस में रख रहे थे.
“पापा मुझे स्पीच में फर्स्ट प्राइज मिली है.”
“वेरी गुड बेटा..... मेरे बेटे ने कैसे स्पीच दी?”
“पापा जैसा आपने बताया था बिलकुल वैसे ही ....हम्म्म..... हमेशा सत्य बोलना चाहिए. झूट बोलना पाप है. गांधीजी हमेशा सत्य बोलते थे. सत्य की हमेशा जीत होती है....और परोपकार..... परोपकार, मतलब दूसरों पर उपकार करना. परोपकार सबसे बड़ा धर्मं है. असहाय लोगो का सदैव सहयोग करना चाहिए. यही परोपकार है”
तभी कॉलबेल बजी और पत्नी ने आकर फुसफुसाया- “किशन भैया आये है. कह रहे है कि मीना अभी भी कोमा में है.”
सुनते ही ब्रीफकेस बंद किया और ड्राइंग रूम पहुँच गए. ट्रॉफी लिए बेटा भी ड्राइंग रूम के दरवाजे के आड़ में खड़ा रहा.
“किशन अभी तो मैं ऑफीस जा रहा हूँ जरुरी मीटिंग है. पूरे पैसो का इंतजाम होते ही तुम्हे फोन करता हूँ.  अस्पताल जाओ अभी तुम ... और हाँ ये कुछ पैसो का इंतजाम किया है.ये ले जाओ." और  ब्रीफकेस किशन को थमा दिया.
बेटे ने पल भर अपनी चमकती ट्रॉफी को देखा तो उसे लगा ये पापा के गाल है और उसने ट्रॉफी को चूम लिया.
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(2). श्री सौरभ पाण्डेय जी
बुनियाद (लघुकथा)
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सुधाकर गुप्ता का ज्वर आज तीसरे दिन भी तेज़ बना हुआ था. रोहिणी सिरहाने बैठी उनका सिर सहलाये जा रही थी. रिटायरमेण्ट के सात वर्ष हो गये. दोनों यों ही निभाये चले जा रहे हैं. तभी इस निर्वाक में लैण्डलाइन घनघना उठा.
"कैसी हो मम्मा ?" - राजेश था, उनका बेटा. तीन साल हो गये, राजेश हर पाँचवे-सातवें दिन ऑफिस से इसी तरह फोन घुमा देता है.
"ठीक हूँ बेटा.. कैसे हो तुम.. तुम सब ?"
"एकदम ठीक मम्मा.. यू नो.. रोहन लास्ट मण्डे से स्कूल जाने लगा है.. "
"बहुत अच्छा.. "
"मम्मा, अंशु को भी रिसेण्टली एक जॉब मिल गयी.. गुड ना ? घर में बैठी बोर होती थी. मेरे भी इधर सब ठीक है.. हाउ अबाउट डैड ?"
"वो भी ठीक हैं.. "
"वेर्रीऽऽ गुड.. लेकिन तुम्हारी आवाज़ क्यों नरम है ?.. बी हैप्पी.. यू आर माइ मॉम.. वी ऑल मिस यू मम्मा.."
"हाँ बेटे.. अपना ख़याल रखना.. "
"येस मम्मा.. लव यू.. टेक केयर.."
गुप्ताजी ने देखा, रोहिणी की आँखें पूरी तरह से डबडबायी हुई थीं.
"पगली.. इन घड़ियों की बुनियाद तो उसी दिन पड़ गयी थी, जब हम गाँव में अम्मा-बाबूजी को छोड़ यहाँ सेटल हो गये थे.. बाबूजी कितना..  "
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(3). सुश्री राजेश कुमारी जी
बुनियाद

“अब इस घर के उत्तराधिकारी को लाओ”  बुनियाद से पहले शिलान्यास पूजा में कलावा बाँधने के लिए पंडित जी ने कहा|

दादी ने उचक कर आठ महीने के पोते को बहु की गोदी से लगभग छीनते हुए पंडित जी के सामने कर दिया| पंडित जी  मन्त्र पढ़ते हुए बच्चे के हाथ में कलावा बाँध रहे थे इस बात से बेखबर कि दादी के पास बैठी छः वर्षीय चारू के दिल में कोई नई बुनियाद रक्खी जा रही थी|
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(4). श्री रवि प्रभाकर जी
पिघलती बुनियाद
‘सुबह से दोपहर होने को आ गई पर अभी तक कोई सवारी नहीं मिली, कहीं ‘आज भी’ भूखे पेट ही न सोना पड़े’ रिक्शा स्टैंड पर सवारी के इंतजार में निराश बैठे बुर्जुग रिक्शेवाले ने अपने साथी रिक्शेवाले से कहा
अरे चचा ! सूरज तो देखो कैसी आग बरसा रहा है, कौन निकलेगा भला घर से इस भरी दुपहरिया में... लगता है भगवान ने तुम्हारी सुन ली चचा ! देखो लगता है सवारी आ रही है ...।’ पसीने से तरबतर एक आदमी को तेज़ी से रिक्शे की ओर आते देख वो बोला
‘कहिए साॅब, कहाँ चलेंगे?’ बड़े उत्साह से रिक्शा की सीट पर कपड़ा मारते हुए बुर्जुग रिक्शेवाले ने पूछा
‘माॅडल टाऊन में जो मशहूर हार्ट स्पैशलिस्ट हैं ना उन्ही के क्लीनिक जाना है...।’
‘नहीं साॅब ! मैं उस तरफ नहीं जाउंगा । अरे तू ले जा साॅब को माॅडल टाऊन ।’ बुझे स्वर में उसने साथी रिक्शेवाले से कहा दूसरा रिक्शेवाला उसे बैठा चल पड़ा।
‘उस बूढ़े ने चलने से मना क्यों कर दिया भला ?’ सवारी ने रिक्शेवाले से पूछा
‘वो जो डाॅक्टर हैं ना... वो उसका बेटा है.. इसलिए...।
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(5). सुश्री नेहा अग्रवाल जी
"दीमक"
एक माँ अपने दस साल के बच्चे के शव को गोद में लिए जारो कतार रो रही थी।और पूछ रही थी सब से कि
"आखिर क्या गुनाह किया था। मेरे बेटे ने जो अपने ही मुल्क में इस बेरहमी से मार दिया गया इसे "
तभी वहाँ उपस्थित एक बुजुर्ग उदासी से बोले ।
नफरत की बुनियाद पर प्यार के महल नहीं बन सकते ना ,जब बुनियाद में ही दीमक लगा है तो घर को तो धराशायी होना ही था ना"।
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(6). सुश्री कांता रॉय जी
वर्चस्व की बुनियाद

    "मुझसे से शादी करना  चाहता  है रे तू ... ? " - सिर से जलावन का गठ्ठर उतारते हुए निरमलिया आज पूछ ही बैठी मोहना से ।
    "हाँ , तु मेरे  मन को पसंद है । जो कहेगी मै सब करूँगा तेरे लिए ....। " -- मैली सी धोती से पसीना पोंछते हुए झेंप कर मोहना का मुंह शर्म से लाल हो उठा था ।
    उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि निरमलिया सच में मान जायेगी ।
    "मुझे  तीन चीज़ तु दे सके जिंदगी भर के लिए   तो मै शादी करूंगी तुझसे । "
    "क्या ..क्या ...?"
    "गैस चुल्हा , मोबाइल और गर्भनिरोधक । "
    "ये सब क्या कह रही है रे निरमलिया ? "
    "देख रे मोहना , मुझे चुल्हे में स्वंय को नहीं झोंकना सुबह से शाम तक, इसलिए गैस चुल्हा चाहिए .... मुझे सबसे बात करने को मोबाइल चाहिए और मुझे बच्चे जनने की मशीन नहीं बनना.... इसके लिए गर्भनिरोधक चाहिए । "
    "बस इत्ती सी बात ..... देख मैने आज ही अरहर बेची है पच्चीस हजार की ... !
    निरमलिया अपने आने वाले दाम्पत्य में अधिपत्य के वर्चस्व की बुनियाद डाल चुकी थी ।
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(7). श्री मदनलाल श्रीमाली जी
बुनियाद (संशोधित)

सारा घर चिंतित था। नेहा कल कॉलेज से आई ही नही। माँ का रो रो कर बुरा हाल था। जहाँ-जहाँ तलाश की एक ही जवाब ..."नहीं देखा उसे"।
"और पढ़ाओ उसे..कलेक्टर बनाओ .. अब बिरादरी में क्या जवाब दोगे..अरे बिरादरी की छोडो..पड़ोसियों को और रिश्तेदारों को भी मुँह दिखाने के काबिल नही रहे हम।"
"नेहा की माँ धीरज रखो।सब ठीक होगा। सब जगह तलाश जारी है।"
फोन की घंटी बजते ही शुक्लाजी ने लपक कर फोन उठाया।
"पापा"
"तुम कहाँ हो नेहा?"
"पापा मैंने कोर्ट मैरिज कर ली है..लड़का इंजीनियर है पर हिन्दू नहीं है। मैं जहाँ भी हूँ कुशल हूँ। मम्मी का ख्याल रखना। हम दोनों जल्द ही आयेंगे, आप सब का आशीर्वाद लेने"।
पापा कुछ बोलें उसके पहले फोन की लाइन कट चुकी थी..परिवार की बुनियाद हिल चुकी थी।

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(8). सुश्री नीता कसार जी
बुनियाद
    सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था।पूरन और गंगा के बेटे मोहन को चिकित्सा शिक्षा में गोल्ड मेडल सम्मान महमहिम राज्यपाल के हाथों मिलने वाला था ।
    मोहन बचपन से ही प्रतिभा का धनी रहा। पूरन को सब कहते मोहन तुम्हारा नाम रोशन करेगा देख लेना।
    प्रतिभा माहौल नहीं अवसर देखती है। मध्यमवर्गीय परिवार ने बच्चे की राह में आने वाले सारे अवरोध हटाने का प्रण लिया।
    बेटा अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके , माता, पिता ने अभाव झेलकर, पढ़ाई के बीच आने वाली मुश्किलें आसान कर दी ।
    उन्होंने बड़ी प्रतिबद्धता के साथ बेटे के व अपने अरमानों की गहरी खुदाई कर, सुसंस्कारों का लोहे का ढाँचा बनाया, एकाग्रता का पानी, सांम्जस्य की ईंटें, तल्लीनता की सीमेंट, पर्याप्त सुविधाओं की रेत , उस पर मोहन की मेहनत की गिट्टी का परिणाम आज सबके सामने था ।
    आज माता, पिता ही नहीं बेटा भी भावविहल हो रहे थे।
    मंच पर मोहन कुमार की शान में क़सीदे पढ़े जा रहे थे, दूसरी ओर माता, पिता की आँखों से ख़ुशियाँ छलकी जा रही थी ।
    आज माता,पिता को परवरिश की बुनियाद पर गर्व महसूस हो रहा था,सफल बेटे को मज़बूत इमारत के रूप में पाकर।
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(9). श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
    लघुकथा – बुनियादी संस्कार

“पासपोर्ट की जाँच करवाने गया है. थोड़ी देर में अमेरिका रवाना हो जाएंगे. मगर यूं तक नहीं कहा है कि मैंने अपने हिस्से का मकान बेच दिया है.” पत्नी ने देवर पर चिढ़ते हुए कहा.
“अरे तू जाने दे. उस के हिस्से का मकान ही तो बचा था. हमारे हिस्से का मकान तो हम पहले ही बेच चुके है.”
“वह मकान पिताजी के केंसर के इलाज के लिए बेचा था. वे उस के भी पिताजी है.”
“तो क्या हुआ ?”
“लोग सही कहते है, विदेशों में जा कर लोग अपने मातापिता और अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं .”
“हो सकता है. तेरी बात सही हो. या उस की कोई मजबूरी रही हो. देख. वो आ रहा है. चुप हो जा.”
उस ने आते ही दोनों के चरण स्पर्श किए और कागज का टुकड़ा पकड़ाते हुए कहा-.
“मैं जा रहा हूँ. आप मुझे याद करते रहिएगा और मैं आप को. और हाँ. आप यहाँ आनंद से रहिएगा और मैं वहां .ये दलाल का नाम पता और नम्बर है , उसका फोन आयेगा तो दस्तखत के लिए चल दीजियेगा . फिर वो मकान की रजिस्ट्री खुद पहुँचा  देगा. ” 
उसे जाते हुए देखकर पत्नी ने पति से कहा  - "मकान दिखाते समय इसने दलाल से कहा था कि मकान की रजिस्ट्री कर के मकान मालिक को दे देना

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(10). सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी
बुनियाद

    रात को अचानक मुनव्वर चाचा का फोन आया
    "बेटा ,कुछ गुंडे इन दिनों परेशान कर रहे हैं Iकहते हैं मकान उन्हें बेच दूं ,और मैं दूसरे मौहल्ले में चला जाऊं ,नहीं तो गैरकानूनी  हथियार रखने के जुर्म में फंसा  देंगे और ......."उनकी आवाज़ भर्रा गई थी
    "हाँ,चाचा देखो... "  कट गया फोन
    मुन्नवर चाचा उसके पिता के जिगरी दोस्त थे I ऐसी दोस्ती जिसमे मजहब का कोई दखल नहीं था I उसे  लगा ,दीवार में लगी पिता की तस्वीर उसे गहरी आँखों से देख रही है और कह रही है  'बेटा मेरी बात याद है ना ? जिसके चरित्र की नींव में ईमानदारी और सच्चाई की पुख्ता ईंटें लगी होती हैं वो निर्भय होता है ,जा खड़ा हो जा अपने चाचा के साथ '
वो चाचा को फोन लगाने लगा
"चाचा आप बिल्कुल ना  डरें, मै बस पहुँच रहा हूँ "
    पिताजी की आँखें अब आशवस्त दिख रही थीं
    "पापा  ,आप क्यों इन लोगों के पचड़े में पड़ रहे हैं ? माहौल वैसे ही ठीक नहीं है आजकल " बेटा पीछे खड़ा था. 
   तेज़ी से निकलते हुए वो बुदबुदाया " इसकी परवरिश में कहाँ कमी रह गई "?
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(11). श्री सुधीर द्विवेदी जी
 साँसों का समर्पण --

    कार्डियोग्राम की स्क्रीन में दिख रही रेखा धीरे –धीरे सपाट होती जा रही थी|” पेशेन्ट आखिर रिस्पोंस क्यों नहीं कर रहा ?” परेशान डॉक्टर आपस में बात करने लगे |

    “ पापा ओ पापा ....”  बेटे की पुकार सुन मिश्रा जी ने धीरे से आँखे खोली | पूरा जोर लगाने पर भी मिश्रा जी के कांपते होठों से यही शब्द अंतिम बार निकल पाए थे |
    “तेरा भविष्य बन जाएगा बेटा.. , सिर्फ दो सप्ताह ही तो बचे है मेरे रिटायरमेंट को"
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(12). श्री मनन कुमार सिंह जी
शादी(लघु कथा)
-क्यों,हम एक-दूसरे को चाहते हैं न?
-इसमें कोई शक लगता है तुझे? रूपा बोली।
-तो फिर हम शादी क्यों नहीं कर सकते अपने हिसाब से?हम बालिग हैं।
-इसीलिए न,क्योंकि हम जिम्मेवार लोग हैं,हमें अपने घरवालों को समझाना होगा।
-पर मेरे बाबूजी तो पैसे की ही बात करते हैं,किसीकी सुनते कहाँ?कोर्ट मैरेज ही एकमात्र उपाय लगता है।
-सुमित,धैर्य रखकर प्रयास करना होगा,स्थिति बदलेगी।और वैसे भी हमा रे यहाँ शादी घरवालों की सहमति से ही होती है।हाँ,लड़के-लड़की की पसंद का पूरा खयाल रखा जाता है।मेरी समझ में आज के ज़माने में यह एक आदर्श स्थिति है।
-तुम्हारे विचारों की कदर करता हूँ मैं',सुमित बोला।बाहें गले में झूल गयीं।
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(13). सुश्री ज्योत्सना कपिल जी
(बुनियाद)

    सुबह से बड़े बेटे की विपन्नता और उस छोटे बेटे के ऐश्वर्य का बखान जारी था जो चार माह उन्हें अपने पास रखकर खोटे सिक्के सा यहाँ पटक गया था। दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करके परिवार पालने वाले पिता के लिए अपशब्द सुनना उसे गवारा न हुआ।वह दादी को कोई कड़वा जवाब देने ही वाला था की माँ ने रोक दिया
    " नहीं बेटा-बेवजह उलझने की ज़रूरत नही-वो बड़ी हैं-अगर जवाब देना ही है तो कुछ बनकर दिखा-कहते हैं न की समरथ को नहीं दोष गुसाईं "
    सारे क्लेश भूलकर वह अध्ययन में डूब गया।भविष्य की बुनियाद रखी जा चुकी थी।
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(14).nश्री चंद्रेश कुमार छतलानी 
    "बुनियादी कमाई"

    जवानी में बिछड़े दो दोस्त बुढ़ापे में एक खेल के मैदान में मिले| गले मिलते हुए सीढ़ियों पर फिसल गये|
    वहीँ बैठे-बैठे एक ने पूछा, "तूने कितना धन कमाया है?"
    "ज्यादा नहीं बस गुजारा हो जाता है|"
    "इसका मतलब जिंदगी ईमानदारी में गुजार दी| कमाने के लिये कहीं न कहीं बेईमानी की बुनियाद रखनी भी ज़रूरी होती है" पहला हँसते हुए बोला|
    दोनों खड़े हुए लेकिन गिरने के कारण लंगड़ाये, यह देख पहले के सचिव ने उसे एक सोने की छड़ी थमा दी और दूसरे का बेटा उसको अपने कंधे का सहारा दे कर ले चला|
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(15). सुश्री अर्चना त्रिपाठी जी 
    " घुन भरी बुनियाद "

    "समधी जी ,कैंसर से पीड़ित मेरी सास का स्वास्थ दिन-ब-दिन गिरता जा रहा हैं कभी भी कुछ भी हो सकता हैं अतः बहू की बिदाई इस बार सम्भव नहीं हैं "शांति ने कहा
    बिदाई की ना सुनते बहु बिफरते हुए "ये लोग कुछ भी कहे मुझे तो जाना ही हैं,चाहे कुछ भी हो"
    बहू को समझाने का जितना प्रयास किया जा रहा था उतना ही वह बेसब्र हो रही थी और आवेश में पिता से कह उठी "आप वापस जाइए,मैं इन लोगो की जो गत बनाउंगी की ये मुझे रोकना टोकना भूल जाएंगे।"
    अपमानित शांति ने परिवार की खुशहाली को ध्यान रखते हुए कहा "समधी जी ,ले जाइये अपनी बेटी।मेरे परिवार की बुनियाद में तो घुन लग ही चूका हैं।"
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(16). श्री जवाहर लाल सिंह जी
    लघुकथा : बुनियाद

    गांधी मैदान के एक किनारे तीन नशेरी एक पेड़ की नीचे जहाँ कम रोशनी थी, बैठे शराब पी रहे थे. बीच बीच में मुर्गे की टांग भी खींच रहे थे.
    एक ने कहा- मजा आ गया यार ...कहाँ से लाया ये खालिश माल(दारू)
    दूसरा- साला! इस शहर से बाहर निकलेगा तब न, तुमको मालूम होगा, कहाँ क्या मिलता है? मेरे मामा ने लाया है! खालिश विलायती है.
    तीसरा मुर्गे की टांग खींचते हुए- पर ये मुर्गा भी कम स्वादिष्ट नहीं है. ये एक दम देशी है, साला!
    पहला – साले, सारे मुर्गे तू ही मत निगल जाना अभी थोड़ा-थोड़ा शरूर आने लगा है.
    तीसरा- जैसे ये मुर्गा तेरे बाप का है, हरामखोर कहीं का
    पहला- देख बे साले, बाप मर मत जा, मैं भी तेरे खानदान को अच्छी तरह जानता हूँ. तू हरामी! तेरा बाप हरामी! तेरी ... और अब हाथा–पाई की बारी थी. हाथा-पाई के बाद पिस्तौल से गोली भी छूट ही गयी.
    तीनों भाग कर अपने-अपने मुहल्ले में गए और लोगों को जगाया ... गाँधी मैदान के बगल में ही हनुमान जी का मंदिर! मंदिर की पवित्रता भंग हो गयी ... पूरे शहर में यह घटना आग की तरह फ़ैल गयी...लाठी, भाले, तलवारें सब निकल गयी....आग-जनी फिर कर्फ्यू ...
    "तीन शराबियों ने मिलकर शहर के 'सर्व-धर्म-समभाव की बुनियाद' को ही हिलाकर रख दिया" – एक बुजुर्ग की टिप्पणी 
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(17). सुश्री बबिता चौबे शक्ति जी
बुनियाद


    एक बोन्साई आम जिसे देखने बड़ी भीड़ थी ।फलदार था ,छोटा पर बड़ा सा दिख रहा था ।
    एक व्यक्ति ने पूछा "भाई कीमत क्या है।"
    "1200रु है सर ले लीजिये।"
    "क्या ...?खासियत है इसकी, जो इतना महंगा है।"
    "सर जी.... ये गमले में लगा है ,और फल भी दे रहा है।यही तो सबसे बड़ी खासियत है।"
    "और .....कुछ नही ....?"
    "नही ..सर ...और ये आपके घर में किसी भी एक कोने में रख सकते है।जगह की भी चिंता नही ।"
    "ओह ..!!बस कीमत इस पेड़ की ही बताई है तुमने .....पर जिस पेड़ को इतना मूल्यवान बना रही है इसकी मिटटी ... जिससे इसकी बुनियाद है..... उसकी कीमत क्यों न बताई ......।
    मुझे तू ये बता इस मिटटी की कीमत क्या ....??मुझे पेड़ नही मिटटी चाहिए..... ।जिसमे में चरित्र के बीज डालूँगा जो बौने हो फर फलकर समाज और मेरे घर को महकाएं।"
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(18). श्री तेजवीर सिंह जी
    अंगूठा छाप (बुनियाद) –

    दीनू अपने नौ साल के बेटे को घसीटते हुए और पीटते हुए स्कूल ले जा रहा था!
    स्कूल के मुख्य द्वार पर खडे हैड मास्टर जी ने दीनू को टोकते हुए कहा,"क्या हुआ दीनू, इसे क्यों पीट रहे हो"!
    "क्या बताऊं गुरूजी, ये ससुरा स्कूल के नाम से ऐसा बिदकता है जैसे बकरा कट्टीखाने के नाम से"!
    "अच्छा एक बात बताओ दीनू,तुम्हारे परिवार में कौन कौन पढा लिखा है"!
    "सब अंगूठाछाप हैं ,गुरूजी"!
    "और जिस जगह तुम रहते हो, उस मोहल्ले में कितने लोग पढे लिखे हैं"!
    "वहां भी सभी लगभग अनपढ ही हैं"!
    "अब तुम ही सोचो, इस छोटे से बच्चे का क्या कसूर है!तुम्हारे परिवार की तो शिक्षा की बुनियाद ही कमज़ोर है, मैं तो कहता हूं कि कमज़ोर क्या, बुनियाद रखी ही नहीं गयी"!
    "तो क्या गुरूजी,यह ऐसे ही अंगूठाछाप रहेगा"!
    "नहीं दीनू,तुम अपने आपको मज़बूत करो तो इसकी शिक्षा की बुनियाद मज़बूत करने की जिम्मेवारी मैं ले सकता हूं"!
    "मुझे क्या करना होगा,गुरूजी"!
    "इस बालक को यहीं छात्रावास में छोडना होगा"!
    "उसका खर्चा तो बहुत आयेगा"!
    "तुम उसकी चिंता मत करो, सब सरकार देगी,तुम केवल एक कागज(फ़ार्म) पर अपना अंगूठा लगा देना ताकि तुम्हारा बेटा आगे चल कर हस्ताक्षर करने लायक बन सके"!
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(19). श्री प्रवीण झा जी 
बुनियाद

"एक आखिरी सवाल, साधन का अभाव होते हुए भी आप इतने सफल हुए जीवन में । कोई एक वजह बता सकते हैं ? "
"मेरी बुनियाद मजबूत थी "
"समझा नहीं ?"
"मेरी माँ, एक मजबूत महिला थी। "
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(20). डॉ नीरज शर्मा जी
“बहू! तुमने अच्छी तरह सोच समझ कर निर्णय लिया है न, शानू को अपने घर में रखने का?” -मीरा ने अपनी नई नवेली बहू से पूछा।
    “जी मांजी ! ताऊजी की अचानक मौत के बाद उनके परिवार को सहारे की ज़रूरत है। अपनी थोड़ी सी तनख्वाह में वो अपने भाई की पढ़ाई व घर का खर्च कैसे उठाएगा? वो और हम एक ही शहर में रहते हैं ,तो वह पी जी छोड़कर हमारे साथ ही रह लेगा। इस तरह उसका रहने, खाने का खर्च भी बच जाएगा व उस पैसे से वह अपने परिवार की मदद कर पाएगा।”
    “देख लो बहू! बदले मे कोई वाहवाही या तारीफ नहीं मिलेगी तुम्हें।”
    “जानती हूं मां जी! अहसान या तारीफ की बात तो मेरे ज़हन में भी नहीं आई। वो हमारे अपने हैं, उनका खयाल रखना हमारा फर्ज़ है। इस समय दोनों भाई गहरे सदमे में हैं व उन्हें प्यार व अपनेपन से संभालने की ज़रूरत है। आपने देखा न! रिश्तेदार आए और मदद की जगह नसीहतें देकर चले गए ।”
    “एक बार फिर सोच लो , अपने निर्णय पर कभी अफसोस न हो तुम्हें।”
    “कभी नहीं होगा अफसोस। जिस तरह आपसी प्यार, विश्वास, एकता, सहयोग व साहचर्य की बुनियाद पर आपने आज तक अपने रिश्तों को संभाल कर रखा है, उस बुनियाद को मैं और भी मजबूत करना चाहती हूं”- बहू ने दृढ़ता से कहा।
    मीरा ने आगे कुछ न कहते हुए बस प्यार से बहू का माथा चूम लिया।
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(21). सुश्री श्रद्धा थवाईत जी
वर्ग व्यवस्था
    मम्मी! पापा! आपको पता है, अपने ड्राइवर का बेटा बहुत जोरदार शॉट लगाता है, बॉल सीधे बाउंड्री पार.
    “बेटा! कितनी बार तुम्हें मना किया है कि उस ओर के क्वार्टर के बच्चों के साथ मत खेला करो. वे चपरासियों, ड्राइवरों के बच्चे हैं. हमारी ऑफिसर्स कॉलोनी के बच्चों के साथ क्यों नहीं खेलते तुम?”
    “मेघा! ये क्या कह रही हैं आप? आप तो जात-पांत, भेदभाव नहीं मानती हैं ना.”
    “मैं जात-पांत कभी भी नहीं मानती हूँ नीरज!” आधुनिक सोच की मेघा ने तत्काल विरोध किया.
    “पर मेघा! यह भी इंसानों के बीच भेदभाव ही तो है”
    “लेकिन उन बच्चों के साथ ये बुरी बातें ही सीखेगा इसलिए”
    “वे गरीब हैं इसलिए बुरे हैं?” कल जात-पांत के पत्थरों की बुनियाद पर हमारा विघटित समाज खड़ा था. बच्चों में ऐसा बीज बो के आज हम वर्गों के कॉन्क्रीट कॉलम बना रहे हैं.”
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(22). श्री लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
    आधार (संशोधित लघु कथा )

    तुम अकेले ही आये हो, बहु को नहीं लाये ? “वह बच्चे को स्कूल छोड़ने व लाने तथा स्कूल में दिया गया होमवर्क कराने में व्यस्त रहती है और अभी स्कूल की छुटियाँ भी नहीं है” केलिफोर्नियाँ से आये चचेरे भाई समीर ने जवाब देते हुए पूछा -
    “ये बेबी कौन सी कक्षा में पढ़ रही है ?और भाभी कहाँ है ?” मैंने समीर को मैंने बताया कि तुम्हारी भाभी एक किटी पार्टी में गई है | घर में ट्यूटर लगाने के बाद भी बेबी कोमल नवीं कक्षा में फेल हो गई | पढ़ाई में बिलकुल मन न होने से अब पढ़ाई छुडा दी | अब माँ के साथ घर के काम में हाथ बटा घरका काम सीख लेगी तो बाद में ससुराल से ओलमा तो नहीं आयेगा |
    ये तो ठीक है समीर बोला, - पर आजकल अच्छे घर में विवाह के लिए लड़की का पढ़ा लिखा होना बहुत जरुरी है | माँ पढ़ी लिखी होती है तो बच्चे की अच्छी परवरिश कर पाती है और उनकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे पाती है | माँ-बाप समय निकाल जब तक बच्चों में पढ़ाई का माहौल नहीं बनाते, तब तक बहुत कम घरों में बच्चे पढ़ पाते है | माँ की समझ और उसकी पढ़ाई ही बच्चे के विकास का ठोस और बेसिक आधार होता है |
    समीर जाते जाते बोला –“भाई,आजकल अधिक मकान बनाने के बजाय पक्की नीव पर कुटियाँ बनाने का समय आ गया ताकि भूकम्प के झटके झेल सके |” तभी पत्नी को किटी पार्टी से लौटी और मैं अपनी जिन्दगी के पिछले पन्नों को पलटता हुआ सोच में डूब गया |
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(23). श्री सुशील सरना जी
    राहुल आज बहुत खुश था। आज उसका प्रमोशन जो हुआ था। इस अवसर पर अपने पत्नी को गिफ्ट देने के लिए उसने एक साड़ी खरीदी। घर पर पहुंचते ही उसने अपनी पत्नी को आवाज़ दी ''वाणी ,वाणी .... अरे कहाँ हो भाग्यवान ,जल्दी आओ। ''
    ''क्या हुआ आज बहुत खुश नज़र आ रहे हो। ''
    ''खुश क्यों न होऊं , आज मैं अधिकारी जो बन गया हूँ। देखो मैं आज तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ ?''वाणी को उसने साड़ी का पैकेट दिया तो वाणी बहुत खुश हुई।
    ''अरे वाह , ये तो बहुत सुंदर है। थैंक यू माई डियर। ''
    इतने में अंदर से माँ की आवाज़ आयी ''राहुल बेटा,क्या हुआ। ये वाणी और तेरे बीच में क्या शोर हो रहा है। ''
    ''कुछ नहीं माँ। आज मेरा प्रमोशन हुआ है न इसलिए वाणी के लिए साड़ी गिफ्ट लाया हूँ। '' राहुल ने माँ के पास आकर साड़ी दिखाते हुए कहा।
    राहुल ने पलंग पर बैठी अपनी माँ के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। राहुल जैसे ही अपनी कमरे की तरफ जाने को मुड़ा उसे अपनी माँ की पीठ की तरफ का पुराना सा घिसा हुआ ब्लाऊज लगभग आधा फटा हुआ नज़र आया। वो चुपचाप अपनी आँखें झुका कर अपने कमरे में चल दिया .... और माँ गीली आँखों से गुमसुम सी उसे हाथ में साड़ी ले जाते हुए देखती रही।
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(24). श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
    बुनियाद

    ऊँची इमारतों की मरम्मत एवं पुनर्निर्माण की कक्षा में प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार बता रहे थे कि हर इमारत का एक जीवनकाल होता है। पुरानी और जर्जर इमारतों को समय पर गिरा कर उनकी जगह पर नई इमारतें खड़ी कर देनी चाहिए। अगर ऐसा न किया जाय तो पुरानी इमारतों के कमजोर हिस्से जब तब गिरकर उसमें रहने वाले लोगों की जान लेते रहते हैं। ऐसी इमारतों को गिराने का सबसे सुरक्षित, सरल और सबसे कम समय लेने वाला तरीका है कि उसकी बुनियाद से जुड़े खम्भों को विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया जाय।
    प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार प्रौद्योगिकी के अलावा दर्शन में भी रुचि रखते थे और छात्रों से मित्रवत व्यवहार करते थे। जब उन्होंने छात्रों से प्रश्न पूछने के लिए कहा तो एक छात्र ने उठकर थोड़ा मुस्कुराते हुए प्रश्न पूछा, “सर, जाति की ऊँची इमारत भी तो बहुत पुरानी हो चुकी है। अब ये केवल यदा कदा गिरकर लोगों की जान ही लेती है। इसे कैसे गिराया जाय।”
    प्रोफ़ेसर हँसे और बोले, “इसे गिराने के प्रयास तो सैकड़ों वर्षों से होते रहे हैं मगर इसके खम्भे धर्म की बुनियाद पर खड़े हैं जिसमें विस्फोट सहने की अद्भुत क्षमता है। परमाणु बम का प्रयोग हम कर नहीं सकते क्योंकि वो एक पल में इतना विनाश कर देगा जितना जाति हजारों वर्षों में नहीं कर पाएगी।”
    छात्र बोला, “तो सर क्या ये इमारत यूँ ही मासूमों की जान लेती रहेगी। इसे गिराने का कहीं कोई उपाय नहीं है।”
    प्रोफ़ेसर बोले, “हम तो सदियों से विस्फोटक लगा लगा कर हार गए। अब तो एकमात्र उपाय मुझे तुम जैसे नौजवानों में ही नज़र आता है। भले ही इस इमारत की बुनियाद को विस्फोटक लगाकर उड़ाया नहीं जा सकता मगर इसे प्रेम-रसायन से गलाया जा सकता है।”
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(25). सुश्री रीता गुप्ता जी
    संस्कारों की बुनियाद

    “साले कमीने कुत्तें .....”

    अपने चार वर्षीय पुत्र अंकुर के मुख से ये सुन डॉक्टर मनीष और डॉक्टर महिमा सन्न से रह गए .
    अपनी सारी पढाई-लिखाई और संस्कारों की उन्हें धज्जी उड़ते दिख रही थी .दोनों के आँखों से नींद उड़ गयी कि अतिव्यस्तता का खामियाजा यूं भुगतना होगा.
    दुसरे दिन जब दोनों अस्पताल से वापस आये तो देखा, माँ –बाबूजी आयें हुए हैं और नन्हा अंकुर दादी की गोद में बैठ कोई कविता याद कर रहा है
    “कुछ दिनों से जब भी अंकुर से फोन पर बातें होती वह अजीब अजीब शब्द बोलता,हम समझ गएँ कि नौकरों की सोहबत हमारे परिवार की बुनियाद कमजोर कर रही है “,बाबूजी ने कहा .
    “अब हम दोनों की जिम्मेदारी है अंकुर “
    महिमा और मनीष दौड़ कर माँ बाबूजी से लिपट गएँ .
    सोते वक़्त दादी संग अंकुर की आवाजें आ रहीं थी ,” नन्हा  मुन्ना राही हूँ ......”.
    अपने जीवन की नींव मजबूत करने वालों के हाथों में अपने भविष्य की मजबूत बुनियाद बनती देख मनीष अब निश्चिन्त था .
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(26). श्री मोहन बेगोवाल जी
     
    रामू के  सुबह आते ही साहिब ने पूछा "कल क्यों नहीं आया ?"
    रामू ने कहा,”घर वाली का आपरेशन करवाना था" ।
    “मगर तुम तो उस दिन  कह रहे थे,दो बेटियाँ हैं,और  आप की  छोटी बिटिया अभी छे  महीने की है, ठहर जाना था ”, साहिब ने रामू से कहा
    “ तो  भगवान की फिर मेहर हो जानी थी” रामू  ने धीरे से खुद को  कहा.
    फिर साहिब ने पूछा, बता तेरी घर वाली कैसे मान गई, चाहती नहीं थी कि उसकी गोद में भी बेटा खेले
    नहीं जब  मैंने कहा, “हमारे साहिब की भी दो बेटियाँ हैं,
    तब मेरी घर वाली ने कहा “हम भी ये दो बेटियाँ ही  रखेंगे,और अच्छा  पालन पोषण करके पढ़ाए लिखायंगे, अपनी कमाई जितनी है ये ही पल जाएँ तो.......।

    अगले ही पल रामू ने कहा,साहिब जी, अगले महीने गाँव जा रहें हैं, छुटियाँ चाहिए, इन बेटियों के मुंडन कराने है"
    "पर अभी तो रामू तुम कह रहे थे, तेरी घर वाली ने ये फैसला इस लिया कि साहिब की दो बेटियां हैं तो हम भी दो बेटियां रखेंगे।
    “क्या तुम ने घर वाली को ये नहीं बताया कि साहिब तो ऐसे रीति रिवाज़ को भी नहीं मानते, जिस में गरीब का घर लुट के बजार ले जाए ” ।
    हाँ, मगर हम लोगों को तो ये करना पड़ता है”, रामू ने सिर झुकाते हुए कहा ।
    साहिब जी, मेरी घर वाली कह रही थी “बातें तो मुझे सुननी होगी, आप को कोई कुछ थोडा कहेगा, इसी इंतजार में तो सभी बहनें,  नाई और गाँव के लोग रहते हैं, कुछ को खाने को मिलेगा और कुछ के हाथ में नगदी व् कपड़े आएंगे “ रामू ने साहिब की तरफ देखते हुए कहा।
     “अगर बेटियों के मुंडन नहीं कराएँगे तो हमारे गाँव में तो भूचाल आ जायेगा” साहिब जी, ऐसा करने में  बीस हजार का खर्चा भी तो आयेगा, पर ये तो......". रामू बोला  ।
     साहिब के ये शब्द भी रामू के कानों पे पड़े,  “आना तो चाहिए, ऐसा भूचाल,तभी हिलेगी जर्जरी  बुनियाद गले सड़े समाज की,नए समाज का तभी  निर्माण होगा ” , साहिब ये कहते  हुए  अख़बार पढने लगे और रामू सिर हिला काम में लग गया ।
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(27). इमरान खान
बुनियाद का पत्थर

    'दादाजी ऐसा क्यों होता है की जिनपर हम सबसे ज़्यादा यक़ीन करते हैं वो ही हमारे जज़्बात से खेलता है.' रुंधे हुए गले से अशरफ ने कहा.
    दादाजी ने पूछा , 'क्या हुआ अशरफ बेटा इतने मायूस क्यों हो?'
    'मेरा दोस्ती से यक़ीन ख़त्म हो गया है.'
    'बेटा हुआ क्या है, कुछ बताओगे?'
    'अमजद और मैंने मिलकर उम्मीदे इंसानियत नाम की तंज़ीम बनायीं थी, आपको तो पता है न.'
    'हाँ बनायीं तो थी और तुम अच्छा काम भी कर रहे हो. अरे हाँ कल तो तुम्हारा एक प्रोग्राम भी था सिटी सेंटर में. अब इतने परेशान क्यों हो.'
    'दादाजी हम सबने मिलकर खूब मेहनत को थी, दिन रात कर दिया था इस प्रोग्राम के लिए. मगर आज के अखबार की खबर में कहीं मेरा नाम ही नहीं है. उस अमजद के बच्चे ने खुद को संयोजक लिखा है, कितने काम मैं करता हूँ. पिछले एक साल से मैंने करियर की तरफ भी ध्यान नहीं दिया और आज ....' कहते हुए अशरफ की आँखें नाम हो गयीं.
    'हम्म....' दादाजी ने एक लम्बी साँस ली और बोले:
    'अशरफ बेटा एक बात बताओ. तुम इस संस्था के संस्थापक सदस्य हो न?'
    'जी दादा जी. इसलिए तो और गुस्सा आता है मुझे.'
    समझाते हुए दादाजी ने आगे कहा:
    'अशरफ बेटा संस्थापक सदस्य किसी संस्था की बुनियाद में लगे पत्थर की तरह होता है. तुम भी नींव के पत्थर बनकर रहो. तुमसे इमारत की मज़बूती रहेगी. तुम दिखाई देने की ख्वाहिश मत पालो.'
    .....और अशरफ के तड़पते दिल को क़रार मिल ही गया.
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(28). श्री वीरेंद्र वीर मेहता जी 
    " गुनाह "
    "बेटा, कल नमाज-ए-फजर (सूर्य उदय होने से पहले की नमाज) में खुदा से अपनी हर खता के लिये माफी मांग लेना।" उसके बाबा ने 'आखिरी मुलाकात' में दुःखी मन से उसे समझाते हुये कहा।
    "बाबाजान। जो मैंने किया जानते बूझते किया और मेरे किये की सजा मिलने जा ही रही है फिर कैसी खता और कैसी माफी?" उसने सवालियो नजरो से बाबा की ओर देखा।
    "बेटा, शायद हमारी ही सीख में कमी रह गयी या तुम्हारी संगत ने ही तुम्हे आज गुनाहो के इस आखिरी मुकाम पर ला खड़ा किया।" बाबा ने अपनी गीली आँखे पोंछते हुये कहा।
    "हाँ बाबा, शायद ये मेरी संगत ही थी जो मेरे गुनाह के दरख़त को कदम दर कदम मजबूत करती गयी मगर बाबाजान...!" वो गहरी नजरो से बाबा की तरफ देखते हुये कहता गया। ".....इस गुनाह की बुनियाद तो उसी दिन पड़ गयी थी जिस दिन पहली बार मेरी गुलेल से जख्मी परिंदे की तड़प पर मेरी खुशी में शामिल हो आपने मेरी पीठ थपथपाई थी।
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(29). श्री जितेन्द्र पस्टारिया जी
असुरक्षित बुनियाद....(लघुकथा)

    “सुनो!! यह समझदारी नहीं है, मैं यहाँ नौकरी में व्यस्त और तुम वहां होस्टल में. फिर अभी तुम्हारी पूरे एक बर्ष की पढ़ाई भी बाकी है. वैसे भी हमारी शादी को अभी एक माह ही तो हुआ है, हम बच्चा बाद में भी....”

    “ मैं सब समझती हूँ, आज दोपहर को ही मेरी फोन पर मम्मी से बात हुई है. उन्होंने यही कहा कि बेटी जैसे तैसे एक बच्चा पैदा कर ही लेना. जीवन में बच्चे का ही आसरा होता है. सुनो! मेरी मम्मी ने हम बच्चों के ही सहारे जीवन गुजारा है वरना हमारे पापा तो अक्सर बाहर ही नौकरी में रहे...”
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(30). सुश्री शशि बांसल जी
बुनियाद ( लघुकथा )

" मेडम , बेटी का औसत वार्षिक परीक्षा परिणाम देखकर मैं बहुत हैरान हूँ । उसकी मेहनत को देखते हुए प्रथम श्रेणी से कम की बिलकुल उम्मीद न थी मुझे ।"
    " मिo बनर्जी , आपकी बेटी पढ़ाई में औसत है , उसे उत्तम परीक्षा परिणाम के लिए योग्य ' ट्यूटर ' की सख़्त आवश्यकता है , इसकी लिखित सूचना सत्र के प्रारम्भ में ही दे दी गई थी ।"
    " जी । मैंने भी लिखे अनुसार फ़ौरन बेटी के लिए योग्य ' ट्यूटर ' की व्यवस्था कर दी थी । "
    " मिo बनर्जी , ' ट्यूटर ' की योग्यता क्या हो ? अगर ये संकेत भी समझ लेते तो ....। "
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(31). सुश्री मीना पाण्डेय जी
बुनियाद

    दोपहर का सारा काम निपटा ,थोड़ा आराम करने वह कमरे में आ गयी I जाने क्यों कुछ दिनों से उसे इस पुश्तैनी घर की दीवारें अधिक पुरानी व् ढहती सी प्रतीत होने लगी थीं I बच्चे स्कुल से आ कमरे में ही खेल रहे थे ,बिस्तर पर लेट वह अपनी आँखे मूँद सोने का उपक्रम करने लगी किन्तु मन में कुछ कुछ चलना बंद नही हुआ I कुछ सालों में कितना बोझ आ गया था उस पर ,सास पूर्णरूपेण बिस्तर की ही होकर रह गयी थीं उनके साथ साथ सामाजिक आर्थिक जिम्मेदारियाँ भी ,तिस पर इस महंगाई में बच्चों की बेहतर शिक्षा ,परवरिश !! बैल की तरह खटते हैं दोनों पति -पत्नी ,फिर भी अपनी कमाई से एक खुद का घर भी नही ....लगता हैपूरा जीवन यूँ ही निकल जाएगा ,सोचा उसने I घुटन सी होने लगी उसे I तभी उसके कानो में आवाज़ आई -
    " भैया, चलो बिजनेस -बिजनेस खेलते है I "
    " ठीक है छोटू ,मैं बिजनेस मीटिंग में जा रहा हूँ ,तुम माँ- पापा का ख्याल रखना I "
    " ठीक है भैया ,वैसे ही न ,जैसे माँ पापा दादी का रखते है I "
    " हां ,वैसे ही !"
    " भैया ,फिर मैं मीटिंग में जाऊँगा ,और आप ख़याल रखना I "
    यह सुनकर उसकी आँखे खुल गयी ,मन का सारा गुबार धुंआ हो उड़ने सा लगा I अचानक ही पुरानी दीवारोँ में संस्कारो की चमक के पार ,उसे अपने भविष्य की मजबूत नींव नजर आने लगी थी
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(32). योगराज प्रभाकर
(लघुकथा : नींव के पत्थर)
.
बरसों से यह सिलसिला बदस्तूर जारी था। सुबह होते ही उनकी छोटी सी बैठक नवोदित शायरों से खचाखच भर जाती। वे एक एक शायर की रचना बहुत ध्यान से पढ़ते। उस पर अपनी राय देते तथा रचना को त्रुटिहीन एवं प्रभावशाली बनाने हेतु सलाह भी देते। वे सब प्रश्नो का उत्तर बहुत ही धैर्य और संयम से देकर उनकी जिज्ञासा को शांत करते। शायरी की तकनीक और बारीकियों का एक एक बिंदु पूरे विस्तार एवं उदाहरण सहित से सभी को समझते। उनकी इसी लगन और अथक मेहनत का ही परिणाम था कि बहुत से नौजवान स्थापित शायरों के बराबर की शायरी करने लग गए थे। किन्तु यही निस्वार्थ सेवा, साहित्यिक क्षेत्र के कुछ मठाधीशों की आँखों की किरकिरी भी बन गई थी।
"आप क्यों इतना वक़्त बर्बाद करते हैं इन छोकरों पर ?" एक मठाधीश पूछे बिना रहा नहीं गया। 
"शायरी का मुझ पर जो क़र्ज़ है, बस उसी का थोड़ा बहुत सूद अदा करने का प्रयास कर रहा हूँ।"
"राजा हरिश्चंद्र मत बनिए। जितना समय आपको इन अनाड़ियों पर मत्था मारते हुए हो गया, उतने में तो आप कई किताबें लिख डालते।"
"आप किताबें की बात कर रहे है, अरे भाई मैं तो दर्जनो दीवान लिख रहा हूँ।"
"दीवान और दर्जनों ? मगर कहाँ हैं वो ?"
उन्होंने आस पास बैठे युवा शायरों की तरफ इशारा  करते हुए कहा:
"ज़रा ध्यान से देखें, सब आपके सामने ही तो बैठे हैं।"
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(33). श्री विनय कुमार सिंह जी
    नींव--

    कैमरों के फ़्लैश लगातार चमक रहे थे , पता नहीं कितने लोग ऑटोग्राफ लेने के लिए धक्का मुक्की कर रहे थे | आख़िर उस जिले से वो पहला व्यक्ति था जिसका चयन टेस्ट टीम में हुआ था | भीड़ में से जगह बनाकर वो स्टेज पर पहुँचा और अपनी निर्धारित कुर्सी पर बैठ गया | मंचासीन अतिथिगण बारी बारी से उसके बारे में और उसको वहां तक पहुंचाने में अपने योगदान के बारे में बोल रहे थे और रह रह कर तालियाँ बज रही थीं |
    आखिर में वह बोलने के लिए माइक के पास खड़ा हुआ | मंच पर बैठे और सभा में उपस्थित सबकी निगाह उसकी ओर गड़ी हुई थी | उसने अपने माता पिता से लेकर अपने कोच और सेलेक्टर्स सबका आभार प्रकट किया और फिर उसने एकदम पीछे बैठे बुज़ुर्ग की ओर इशारा किया और उनको मंच पर लाने का आग्रह किया |
    " यही हैं मेरे चयन की नींव डालने वाले शख्स जो उस मैदान के ग्राउंड्समैन हैं | पता नहीं कितनी बार मैंने खेल छोड़ने का सोच लिया था लेकिन मेरे साथ हर समय मौजूद और मेरी हर निराशा को आशा में बदलने वाले यही हैं ", ये कहते हुए उसने अपने गले में पड़ा हार उनके गले में पहना दिया और उनके पाँव छू लिए | सभागार में तालियों की आवाज़ देर तक गूंजती रही और उस बुज़ुर्ग के आँखों से बहने वाले आंसू उसका कन्धा भिगोते रहे |
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(34). श्री गणेश बागी जी
लघुकथा : बुनियाद

"भईया ! अब बाबूजी और माँ तो रहे नहीं और आप भी मुंबई में ही सेटेल हो गए हैं, तो क्यों न गाँव वाला घर और जमीन बेच दी जाए ? मैंने छोटे से भी बात कर ली है वो भी तैयार है."
"न मुन्ना न ! वो मकान और जमीन तो बाबूजी की अंतिम निशानी है, हमें उसे संभाल कर रखना चाहिए."
"नहीं भईया ! हम दोनों को पैसे की जरुरत है, उस प्रोपर्टी की कीमत डेढ़ करोड़ मिल रही है हम तीनों को पचास-पचास लाख मिल जायेंगे."
"तो ठीक है तुम दोनों मुझसे पचास-पचास लाख ले लों और अपना हक छोड़ दो."
दो साल पहले की ये बातें मोहन के आँखों के सामने किसी चलचित्र की भांति तैर ही रही थी कि पीछे से पंडित जी की आवाज़ ने उनकी तन्द्रा भंग कर दी.
"आइये मोहन बाबू ! भूमि पूजन कीजिये, “कृष्ण मेमोरियल हॉस्पिटल” की बुनियाद रखी जा रही है."
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(35). श्री विनोद खनगवाल जी
बुनियाद (लघुकथा)

"यार, लाखों रूपये हमने एक दिन में खाने पर लगा दिए। जरा सोचो, इन बच्चों की शिक्षा पर इतना पैसा लग जाए तो ये भी अपना भविष्य सुधार कर एक जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं।"- भंडारे का बचा खाना गरीब बस्ती में देने आए हुए राजेश का दिल बच्चों के हालात देखकर पीड़ा से भर आया।
"राजेश भाई, आईडिया तो बहुत बढिया है।"
"तो फिर कब से शुरू करें इन बच्चों के लिए काम....?"
"कल ही वकील से मिलकर पहले एक संस्था बनवा लेते हैं।"
"संस्था क्यों! हमें बच्चों की बुनियाद पक्की करनी है या अपनी?"
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(36). श्री महर्षि त्रिपाठी जी
    विषय -बुनियाद

"लगता है ,रमेश आज फिर दारू पीकर बहु से मार पीट कर रहा है "-बहु की चीख सुनकर बूढ़े पिता ने अपनी पत्नी से कहा |
"पता नही कहाँ से सीखी ऐसी एब "
"सीखना क्या है ,इसकी तो उसी दिन बुनियाद पड़  गयी थी ,जब आप ने मुझे पे हाथ उठाया था " -बूढी माँ  ने गहरी साँस लेकर कहा |
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(37). डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
बुनियाद

         मुरादाबाद के टूर से लौटे पति के होल्डाल को खोलते ही श्रृद्धा चिहुंक उठी i उसे चादर में लिपटे चूड़ियों के टुकड़े दिखाई दिए i एक पल को वह सन्नाटे में आ गयी i कुछ सोचकर वह  पति के पास गयी और सहज भाव से बोली –‘इस बार किस होटल में रुके थे ?’
‘होटल में नहीं, इस बार मैं अपने कक्षा-मित्र के घर पर ठहरा था, क्यों ?’
‘अच्छा वह जिसकी अभी शादी नहीं हुयी ?’
‘अरे नहीं, इड़ा भाभी के यहाँ रुका था I तुम तो जानती हो I’
श्रृद्धा को लगा उसके प्रेम की बुनियाद धसक रही है i विश्वास टूट रहा है I
‘अरे सुनो यार------, बड़ा गजब हो गया i मैं तुम्हारे लिए मुरादाबादी चूडिया लाया था मगर शायद वह होल्डाल में बंध गईं, कही टूट न गयी हों ?’
श्रृद्धा मानो आकाश से नीचे गिरी i फिर, एक विश्वास भरी मुस्कान उसके होठों पर तैर गयी I
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( 38). श्री सचिन देव जी
( बुनियाद )

‘’मम्मी स्कूल को देर हो रही है जल्दी से मुझे तैयार कर दो”
‘’लेकिन बेटे, आज तुम स्कूल नही जा रहे हो’’
“क्यूँ मम्मी?”
“बेटे आज तुम्हारे मामा-मामी शादी के बाद पहली बार हमारे घर आ रहे हैं, और हम सब उनके साथ घूमने जायेंगे”
“लेकिन मम्मी, कल जब मैडम पूछेंगी राहुल स्कूल क्यूँ नही आये थे, तो मैं क्या कहूँगा?”
“अरे बेटा, मैडम को बोल देना कि अचानक मेरी तबियत ख़राब हो गई थी”
“लेकिन मम्मी, ये तो झूठ है, और हमारी बुक में तो लिखा है झूठ बोलना बुरी बात होती है”
“हाँ बेटा, तो मैं कौन सा तुझे झूठ बोलना सिखा रही हूँ, सिर्फ तुझे डांट से बचाने के लिये बहाना बनाने के लिये ही तो कह रही हूँ, और आज के जमाने मैं थोडा स्मार्ट होना भी जरुरी है!”
“ओ.के. मम्मी, फिर मैं तैय्यार हो जाता हूँ, स्कूल के लिए नही, घूमने जाने के लिए”
“हाहाहा देट्स लाईक अ गुड बॉय, अरे हाँ राहुल कल तुम्हारा रिपोर्ट-कार्ड मिलने वाला था न?  क्या हुआ कितने परसेंट मार्क्स लाया मेरा बेटा?”
“मम्मी, पूरे 89% मार्क्स मिले हैं मुझे”
“वाओ.......शाबाश बेटे, चल अब जल्दी से मैं भी सारा काम निबटा लेती हूँ”
“ओ.के.मम्मी, अब स्कूल तो जाना नही है तो आप प्लीस मेरा बैग संभाल कर रख दीजिये”!  बैग मम्मी को थमाते हुए राहुल बाथरूम की ओर भागा, मगर बैग की चैन खुली होने के कारण ,उसमे से सारी किताबें निकल कर बिखर गईं!  किताबें समेटते हुए मम्मी की नजर हिंदी की किताब मै फंसे रिपोर्ट-कार्ड पर पड़ी, सिर्फ 40% मार्क्स...! देखकर चहरे के हाव- भाव तेजी से बदलने लगे! इधर पंखे की हवा से किताब के पन्ने भी तेजी से पलटने लगे !
‘परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला है’, ‘सदा सच बोलो’ जैसे सुवाक्य उनकी आँखों से गुजरते हुये अब उन्हें मुँह चिढाते प्रतीत हो रहे थे !
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( संशोधित )

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आदरणीय योगराजजी ....लघु कथा गोष्ठी के सफल आयोजन के लिए एवं त्वरित संकलन के लिए हार्दिक बधाई व हार्दिक आभार।

श्री गणेशजी "बागी" ने मुझे कमेंट में कुछ टंकण त्रुटिया सुधारने के लिए कहा था सो एडिट करके निचे मुजब कथा है:-

बुनियाद

सारा घर चिंतित था। नेहा कल कॉलेज से आई ही नही। माँ का रो रो कर बुरा हाल था। जहाँ-जहाँ तलाश की एक ही जवाब ..."नहीं देखा उसे"।

"और पढ़ाओ उसे..कलेक्टर बनाओ .. अब बिरादरी में क्या जवाब दोगे..अरे बिरादरी की छोडो..पड़ोसियों को और रिश्तेदारों को भी मुँह दिखाने के काबिल नही रहे हम।"

"नेहा की माँ धीरज रखो।सब ठीक होगा। सब जगह तलाश जारी है।"
फोन की घंटी बजते ही शुक्लाजी ने लपक कर फोन उठाया।

"पापा"

"तुम कहाँ हो नेहा?"

"पापा मैंने कोर्ट मैरिज कर ली है..लड़का इंजीनियर है पर हिन्दू नहीं है। मैं जहाँ भी हूँ कुशल हूँ। मम्मी का ख्याल रखना। हम दोनों जल्द ही आयेंगे, आप सब का आशीर्वाद लेने"।

पापा कुछ बोलें उसके पहले फोन की लाइन कट चुकी थी..परिवार की बुनियाद हिल चुकी थी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

यथा निवेदित तथा परिस्थपित

आ भाई साहब, प्रणाम. आयोजन और उस के बाद के श्रमसाध्य के लिए आप की जीतनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है. इस हेतु आप का हार्दिक अभिनन्दन व वंदन भी कम है. बधाई आप को व सभी लघुकथाकारों को जिन्होंने इस में भाग लिया. इसे  सफल बनाया. सुझाव दिए. लघुकथा को निखर दिया. अपने विचार रखे. सभी को बधाई.

मेरी रचना पर भी बहुत मंथन हुआ. उस में कुछ संशोधन किया गया. इस से लघुकथा में निखार आ गया. इस लिए आ भाई साहब से निवेदन है की मेरी लघुकथा की जगह संधोधित लघुकथा प्रतिस्थापित करने की कृपा करे.

लघुकथा – बुनियादी संस्कार

“पासपोर्ट की जाँच करवाने गया है. थोड़ी देर में अमेरिका रवाना हो जाएंगे. मगर यूं तक नहीं कहा है कि मैंने अपने हिस्से का मकान बेच दिया है.” पत्नी ने देवर पर चिढ़ते हुए कहा.

“अरे तू जाने दे. उस के हिस्से का मकान ही तो बचा था. हमारे हिस्से का मकान तो हम पहले ही बेच चुके है.”

“वह मकान पिताजी के केंसर के इलाज के लिए बेचा था. वे उस के भी पिताजी है.”

“तो क्या हुआ ?”

“लोग सही कहते है, विदेशों में जा कर लोग अपने मातापिता और अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं .”

“हो सकता है. तेरी बात सही हो. या उस की कोई मजबूरी रही हो. देख. वो आ रहा है. चुप हो जा.” 

उस ने आते ही दोनों के चरण स्पर्श किए और कागज का टुकड़ा पकड़ाते हुए कहा-.

 “ मैं जा रहा हूँ. आप मुझे याद करते रहिएगा और मैं आप को. और हाँ. आप यहाँ आनंद से रहिएगा और मैं वहां .ये दलाल का नाम पता और नम्बर है , उसका फोन आयेगा तो दस्तखत के लिए चल दीजियेगा . फिर वो मकान की रजिस्ट्री खुद पहुँचा  देगा. ”  

उसे जाते हुए देखकर पत्नी ने पति से कहा  - "मकान दिखाते समय इसने दलाल से कहा था कि मकान की रजिस्ट्री कर के मकान मालिक को दे देना .

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(मौलिक और अप्रकाशित 

यथा निवेदित तथा परिस्थपित

संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए  धन्यवाद .बहुत  खूब रहा इसबार  का  आयोजन .बधाई .

आदरणीय योगराजभाईजी,

सर्वप्रथम आग्रह : मेरी प्रस्तुति की आखिरी पंक्ति में से आखिरी शब्द  ’पर’ शब्द को निकाल दिया जाय.

भाईजी, विद्युत आपूर्ति तथा नेट में बार-बार आते व्यवधान को कहीं बहुत पीछे छोड़ गया ब्राउजर का ओबीओ साइट का लोड न लेना. यह एक बहुत बड़ी समस्या बन कर सामने आया है. ओबीओ डाउनलोड होने के क्रम में पेज आधा या कुछ प्रतिशत ओपेन होकर रुक जाते हैं या पूरा पेज ही हैंग हो जाता है. मैं इस बार, और शायद पहली बार, साइट न खुलने की दशा में इतना असहाय दिखा हूँ. किसी तरह अपनी ’लगुआ-भगुआ’ प्रस्तुति पर आये आत्मीयजनों को धन्यवाद ज्ञापित कर पाया. वह भी धारावाहिक क्रम में.

इस बार सही रूप से भान हुआ है कि लघुकथा विधा को लेकर आग्रही तथा तत्पर हो जाना एक बात है, और, सिद्धहस्त कथाकारों से स्वीकृत होना नितांत अलहदी बात. ऐसा अलहदापन वैसे मंच पर अभी नया है, लेकिन इससे विधा की बेहतरी यदि अवश्यंभावी है, तो अवश्य बरकरार रहे. 

रचनाओं को अब संकलन में कायदे से पढ़ कर मजा ले रहा हूँ. आयोजन के क्रम में कार्यशाला-पद्धति के हिसाब से जिस तरह से विधाजन्य चर्चा हुई, उससे तात्कालिक रूप से अपना ज्ञानवर्धन नहीं कर पाया, लेकिन अब आनन्द लूँगा. विश्वास है, आगे कोई तकनीकी व्यवधान न आये.
संकलन में शीघ्रता आश्वस्तिकारी है. सादर बधाइयाँ आदरणीय.

सादर

वांछित सुधार कर दिया है आदरणीय।

आदरणीय योगराज सर,

एक साथ सारी रचनाओं को पढ़ कर संतोष मिल रहा है. नेट ने आयोजन के दौरान अपना विद्रूप रुप दिखलाया और हम बस कम्प्युटर पर कनेक्ट ही करते रह गये. अफ़सोस तो रचनाओ पर अपने विचार के साथ सम्मिलित ना होने का है. 

सुगढ़ रचनाएं आयी थीं. 

सादर.

आयोजन खत्म हुआ और संकलन भी आ गई । कथा देखते हुए मानस पटल पर फिर से आयोजन में हुए सारी चर्चाएँ जैसे जेहन में चमक उठी । गजब का उत्साह था इस बार के आयोजन में ! सभी ने खूब बढ चढ कर भाग लेने के लिए अति उत्सुक !
बहुत कुछ सीखने को मिला । हर कथा पर खूब चर्चा हुई । आयोजन बडा ही सार्थक हुआ है ।
आशा है कि इस बार के सीखे हुए समस्त तकनीकों पर संज्ञान लेते हुए हम सार्थकता की ओर एक और कदम बढायेंगें । बधाई सभी दोस्तों को । सर जी , इतना सुंदर अवसर देने के लिये आपको शत - शत नमन ।

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-4 के सफल आयोजन पर सभी को बहुत बहुत बधाई। यह आयोजन कोई सामान्य आयोजन नहीं हैं एक साथ एक ही विषय पर अलग-अलग पहलू की लघुकथाओं को पढना और उन पर होने वाली चर्चाओं से इस विधा को आसानी से सीखा और समझा जा सकता है। आदरणीय योगराज प्रभाकर जी का यह प्रयास बहुत उच्च स्तरीय है। इसके लिए हम लघुकथा प्रेमी बहुत आभारी हैं।
मेरी लघुकथा की लाइन //"राजेश भाई, आईडिया तो तुमने बहुत बढिया दिया है।"//  में से तुमने और दिया हटा दिया जाए।

वांछित सुधार कर दिया है भाई विनोद खनगवाल जी।

नेट की खराबी के चलते पोस्ट पर देर से आना हुआ जिसका बहुत खेद है |लघु कथा गोष्ठी अंक ४ के इस सुन्दर संकलन हेतु आपको बधाई एवं इस आयोजन को सफल बनाने के लिए आ० योगराज जी,आपके साथ सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई | 

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