For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 42 में सम्मिलित सभी गज़लों का संकलन

परम आत्मीय स्वजन 

मुशायरा समाप्त हो चुका है, संकलन हाज़िर है, साल बदलने वाला है, नए साल में हर चीज नई होगी, हम पिछली सभी गलतियों को बिसराकर नई ऊर्जा के साथ अपनी अपनी साधना में लग जाएँ| पिछले वर्ष में जो कुछ अच्छा हुआ उसे ही याद रखें, हमने अपनी गलतियों से जो सीखा उसे ही याद रखें न की अपनी गलतियों को बार बार दुहरायें| इन्हीं शुभकामनाओं के साथ इस बार संकलित ग़ज़लों में कोई रंग नहीं भरा जा रहा है, लाल रंग तो वैसे भी लगभग नहीं ही है, एक दो जगह हो सकता है हरा रंग होता, पर इसे नव वर्ष का तोहफा ही समझकर भूल जाया जाय, परन्तु कुछ बातों को आपसे साझा करना अपना कर्तव्य समझता हूँ|

१. यह मंच हम सबका है, जितना मेरा है उससे कहीं ज्यादा आपका है, मंच के संचालन के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना हर सदस्य का कर्तव्य है| यह तो आवश्यक नहीं है कि प्रबंधन के सदस्य हमेशा डंडा लेकर खड़े रहें तो ही नियमों का पालन किया जाए| इस बार भी एक सदस्य ने दो गज़लें प्रस्तुत कर दीं  जो किन्हीं कारणवश ध्यान में नहीं आईं, जबकि नियमों में साफ़ साफ़ लिखा हुआ है की एक सदस्य द्वारा केवल एक ही ग़ज़ल स्वीकार्य है| आपकी ग़ज़ल अगर उम्दा होगी तो केवल एक ग़ज़ल भी छाप छोड़ने में कामयाब रहेगी| इस हेतु विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, साथ ही साथ सभी सदस्यों से भी अनुरोध है की यदि कोई नियमों को तोड़ता है तो तुरंत प्रबंधन सदस्यों के संज्ञान में बात ले आयें| आप सबसे सहयोग की अपेक्षा है|

 

२. इस मुशायरे में कई सदस्यों की पोस्ट अस्तरीय होने के कारण हटा दी गई, कुछ लोगों ने तो इसे सकारात्मक रूप से लिया परन्तु कुछ लोगों को लगा की यह मठाधीशी है| यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है की ओ बी ओ कभी मठाधीशी का पक्षधर नहीं रहा है परन्तु हमें अपने स्तर की भी चिंता है, क्योंकि हमारे अलावा भी बहुत सारे लोग मुशायरे सहित ओ बी ओ की अनेक गतिविधियों पर नज़र रखते हैं| दरअसल अब मुशायरे का मेयार बहुत ऊपर उठ चुका है, अगर अब अच्छी ग़ज़लों का आग्रह होने लगा है तो सदस्यों को इस बात को सकारात्मकता से लेने की आवश्यकता है| ओ बी ओ ही एक ऐसा मंच है जहाँ पर ग़ज़ल को लेकर सबसे ज्यादा चर्चाएँ हैं, कक्षाएं है और ढेर सारे विशेषज्ञ, यदि आप इनका लाभ नहीं उठा पाए तो फिर क्या फायदा? 

बात को समाप्त करते हुए मुशायरे में शिरकत करने वाले तमाम शायरों का आभार| पूरे मुशायरे के दौरान अपनी सकारात्मक टिप्पणियों के माध्यम से दाद देने के लिए तथा मार्गदर्शन करने के लिए प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकर जी का आभार, मुशायरे में बिना ग़ज़ल पोस्ट किये हुए प्रत्येक शायर की हौसला अफजाई करने के लिए आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह सज्जन जी तथा आदरणीय ब्रिजेश नीरज जी का भी विशेष आभार| 

************************************************************************************************************

Albela Khatri

अश्क़ आँखों से निकला, रवाना हुआ
दर्दे-दिल का मुकम्मल तराना हुआ

ज़ुल्फ़ उसने जो खोली, घटा छा गई
मुस्कुराई तो मौसम सुहाना हुआ

हुस्न दुख्तर पे जब से है आने लगा
हाय दुश्मन ये सारा ज़माना हुआ

तब से दुनिया हमारी बड़ी हो गई
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

चल पड़ा हूँ ठिकाना नया खोजने
ख़त्म अपना यहाँ आबोदाना हुआ

ज़ख्म हमदर्दियों से न भर पाएंगे
फैंक दो अब ये मरहम पुराना हुआ

झाड़ डाला है झाड़ू ने ऐसा उन्हें
आबरू उनको मुश्किल बचाना हुआ

रूह प्यासी थी 'अलबेला' प्यासी रही
जिस्म का सारा पीना पिलाना हुआ

___________________________________________________________________________

SHARIF AHMED QADRI "HASRAT"

जब मेरी ज़ीस्त में उनका आना हुआ
वादी ए दिल का मौसम सुहाना हुआ

जब से वो बस गए आके दिल में मेरे
दिल मेरा इक हसीं आशियाना हुआ

कब से दिल को बचा कर रखा था मगर
उनकी नज़रों का पल में निशाना हुआ

बदले बदले से वो मुझको आये नज़र
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

इस क़दर गिर गया वो नज़र से मेरी
अब तो मुश्किल ये रिश्ता निभाना हुआ

वो भी क्या दिन थे जब साथ थे वो मेरे
अब तो हसरत ये क़िस्सा पुराना हुआ

__________________________________________________________________________

Tilak Raj Kapoor

आपका रुख से पर्दा हटाना हुआ
नाज़नीं, जो हुआ, कातिलाना हुआ।

हालते दिल संभलने लगी है मेरी
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ।

फूल रख कर किताबों में देना उसे
छोडि़ये, अब उसे भी ज़माना हुआ।

चॉंदनी जब दरख़्तों पे बिछने लगी
चॉंद का भी दरीचे में आना हुआ।

ओस की बूँद ठहरी अधर पर तेरे
प्यास की बात तो इक बहाना हुआ

सोचते ही रहे दूर शिकवा करें
वो न आये, न मेरा ही जाना हुआ।

कौन ठहरा यहॉं पर सदा के लिये
किस मुसाफि़र का कब ये ठिकाना हुआ।

_____________________________________________________________________________

Rana Pratap Singh

तेरा अंदाज़ क्यों फलसफाना हुआ
तू भी क्या शायरी का दीवाना हुआ

उसका लहजा बदलने लगा जाने क्यों
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

छटपटाता रहा आँख में रात भर
ख़्वाब देखे कोई अब ज़माना हुआ

हम तरसते रहे उम्र भर जिस लिए
मेरे जाने पे वो मुस्कुराना हुआ

आशियाने की हम फ़िक्र करते नहीं
हमने चाहा जहां आबो दाना हुआ

तीरगी से भला हम गिला क्यों करें
तीर जितने भी फेंके, निशाना हुआ

_______________________________________________________

आशीष नैथानी 'सलिल'

शहर जाना तो बस इक बहाना हुआ
वाकई गाँव मेरा पुराना हुआ |

बज रही साँकलें, गा रही कोयलें
ऐसे सपनों को भी अब ज़माना हुआ|

मैंने लूटी है दौलत तेरे हुस्न से
जब कभी भी तेरा मुस्कुराना हुआ |

ये जगह आपके वास्ते थी अछूत
आखिर आज इस तरफ़ कैसे आना हुआ |

ये तकाज़ा है इस दर्द का जानकर
मेरा अंदाज़ भी शायराना हुआ |

हो गया कुछ इज़ाफ़ा मेरी अक्ल में
"जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ |"

भूख ने रातभर आँख लगने न दी
एक मासूम जल्दी सयाना हुआ |

अपने बच्चे को कहता है बेकार कौन
आखिर अपना खज़ाना, खज़ाना हुआ |

वक्त के साथ हम भी बदल जाएँगे
हम परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ |

_______________________________________________________________________________

Saurabh Pandey

जब अँधेरा सदा ही निशाना हुआ
रौशनी का कहाँ फिर ज़माना हुआ ?

हर चुभन खुश-मुलायम भली सी लगी
दिल का जबसे गुलाबों पे आना हुआ

जो इशारे पे बिछता रहा आपके
आज दिल वो फलाना-चिलाना हुआ

ज़िन्दग़ी के मसाइल लिए साज़ पर
तुम तरन्नुम हुए मैं तराना हुआ

नर्म-नाज़ुक-रँगीला बदन आज फिर
तितलियों के लिये ज़ालिमाना हुआ

हम भी क्या चीज़ हैं वो समझने लगे-
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

आ गया दिल तो खुल के कहा कीजिये
ये भी क्या हर कहा सूफ़ियाना हुआ ?

_________________________________________________________________________

शिज्जु शकूर

दर्द ही जीने का इक बहाना हुआ
बेवजह यूँ नही मुस्कुराना हुआ

अजनबी कोई चेह्रा नही लगता अब
“जब से गैरों के घर आना जाना हुआ”

आसमां छत मेरी औ’ ज़मीं सेज है
ये जहाँ सारा मेरा ठिकाना हुआ

ख़्वाहिशों की सजी मण्डियाँ देखिये
अब तो ख़्वाबों का भी कारखाना हुआ

एक झटके में तूने हिला दी जड़ें
इसलिये तू सभी का निशाना हुआ

बज़्म मूसीकियत से हुई है जवां
जिसके दम से ये मौसम सुहाना हुआ

वक्त रुकता नही है किसी के लिये
लीजिये साल ये भी रवाना हुआ

__________________________________________________________________________

नादिर ख़ान

ज़िंदगी से मेरी, उनका जाना हुआ
अपनी मजबूरियों का बहाना हुआ

राह जब से हमारी जुदा हो गई
बीच अपनों के रहकर बेगाना हुआ

बढ़ गयी हैं मेरी अब परेशानियाँ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

है कठिन दौर अब ऐ खुदा सब्र दे
नेकियों का चलन अब पुराना हुआ


जाने अल्लाह को क्या है मंज़ूर अब
फिर तुम्हारी गली मेरा जाना हुआ

याद में क्यों पुरानी भटकता है दिल
उनसे बिछड़े हुये तो जमाना हुआ

आपका घर मेरे, आना जाना हुआ
रौनकें बढ़ गईं दिल दीवाना हुआ

लौट कर आ गई है मेरी हर ख़ुशी
जिस घड़ी आपका लौट आना हुआ

मिल गई है मुझे इक नई राह अब
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

आदमी अपनी हद पार करता है जब
उसका गर्दिश में ही फिर ठिकाना हुआ

ढूँढना नेकियाँ जिनकी फ़ितरत में है
उनका हँसना हँसाना खजाना हुआ

दुश्मनों से मुझे कुछ शिकायत नहीं
अब तो मै दोस्तों का निशाना हुआ

 

_____________________________________________________________________________

शकील जमशेदपुरी

खुल के जब भी मेरा मुस्कुराना हुआ

तब से दुशमन ये सारा जमाना हुआ

जब तेरी याद का दिल में आना हुआ
​गीत-गजलों का अच्छा बहाना हुआ

सुरमई आंख उसपर ये कजरे की धार
तेरा श्रृंगार ये कातिलाना हुआ

हर कली है दुखी फूल भी है उदास
आ गई तुम तो मौसम सुहाना हुआ

गेसुओं में रहे हम न पर्दानसीं
तब दुपट्टा तेरा शामियाना हुआ

याद में तेरी कमरा है मेरा उदास
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

कुछ नया भेज दो तुम नए साल में
एक फोटो तो था वो पुराना हुआ

एक चर्चा है सबकी जुबां पर 'शकील'
वो जो शायर था अब वो दिवाना हुआ`

________________________________________________________________________

vandana

धूप से कल्पना को सजाना हुआ
धुंध की साजिशों से बचाना हुआ

हसरतें हाथ धरती पे मलती रहीं
चाँद का बाम बैठे चिढ़ाना हुआ

साँस पर बंदिशे तारी होने लगीं

जुर्म लड़की का बस मुस्कुराना हुआ

पत्तियों पर उदासी लिखी थी बहुत
धूल कविता से धोकर मिटाना हुआ

अनकही गाँठ चुटकी में ही खुल गयी
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

भीड़ का हिस्सा जो मैं न बन पाऊं तो
जुर्म की फर्द का ही निशाना हुआ

धूप में जलती आँते समेटे चले
कैसे कह पाए मौसम सुहाना हुआ

घर उन्होंने बनाए बड़े प्यार से
आज बेगाना क्यूँ आशियाना हुआ

है समन्दर की बाँहों में कुछ जोर तो
उठती लहरों का फिर लौट आना हुआ

________________________________________________________________________

गिरिराज भंडारी

फिर उसी राह मे आज जाना हुआ
उनकी यादों को फिर से बहाना हुआ ,

चाहतों को इधर फिर उड़ाने मिलीं
जब हया से तेरा मुस्कुराना हुआ

फिर वही ख़्वाब आने लगे हैं मुझे
फिर उसी गीत का गुनगुनाना हुआ

फिर वही ख़त, किताबें,वही गुफ़्तगू
वक़्त ज्यूँ प्यार का फिर तराना हुआ

फिर से शामें वही फिर से रातें वही
फिर इशारों से उनका बुलाना हुआ

फिर से यादें तेरी, फिर रजाई वही

फिर वही दर्दे सर का बहाना हुआ

छुप के मिलते समय कोई खटका भी हो

डर वही, फिर पसीना नहाना हुआ

जब भी देखे मुझे चिलमनों मे छिपे
ऐ ख़ुदा फिर से ये क्या सताना हुआ ?

ये ख़बर आयी है, आज मिलना नही
सब्र फिर से शुरू आजमाना हुआ

दिल मे फिर से हसद की उठी है लहर
“ जब से ग़ैरों के घर आना जाना हुआ ”

____________________________________________________________________________

अजय कुमार सिंह

जब नयी दास्तानों का आना हुआ,

सूखे हर्फों का रुख़ शायराना हुआ-

ये हवा एक सफ़हा उड़ा ले गयी,
एक मशहूर किस्सा पुराना हुआ-

ज़ख्म छोटा सा था वाइजों के लिये
आँसुओं के लिये तो बहाना हुआ

आइने को भी हम अजनबी से लगे,
जब से ग़ैरों के घर आना जाना हुआ-

क़ायदों को बखूबी निभाया, मगर,
तेरे वादे को मुश्किल निभाना हुआ-

ये हवा खुद जले, या बुझा दे उसे
क्यूँ दिये से भला दोस्ताना हुआ -

तापते, सेंकते, ओढ़ लेते भी हैं,
दर्द भी इस कदर आशिक़ाना हुआ-

रस्म के हाथ आवाज़ भी बिक गयी,
ख़ुद से बातें किये भी ज़माना हुआ-

जब रवायत की तालीम तुझसे मिली,
एक मासूम सपना सयाना हुआ-

_________________________________________________________________________

कल्पना रामानी

तुमसे नज़रें मिलीं, मन मिलाना हुआ।
और मौसम अचानक सुहाना हुआ।

साथ जीने के, मरने के वादे हुए,
एक छोटा सुखद आशियाना हुआ।

वक्त चलता रहा, दिन गुजरते रहे,
प्यार का वो नशा कुछ पुराना हुआ।

रंग बदले तुम्हारे, हुई दंग मैं,
दूर रहने का हर दिन बहाना हुआ।

अपने घर से ही नज़रें चुराने लगे,
जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ।

तुम तो ऐसे न थे, बेवफा किसलिए,
मेरे दिल से अलग भी ठिकाना हुआ।

खिलखिलाते वे दिन, हँस-हँसाते वे दिन,
तुम तो भूले, न मुझसे भुलाना हुआ।

लौट आओ तुम्हें, ‘कल्पना’ है कसम,
मान लूँगी कि जो भी हुआ, ना हुआ।

_________________________________________________________________________

अरुन शर्मा 'अनन्त'

अनसुनी बात करके रवाना हुआ,
जान पड़ता है बेटा सयाना हुआ,

टूट के दिल पे मेरे गिरीं बिजलियाँ,
फूल की भांति उसका लजाना हुआ,

दरमियाँ दूरियां बढ़ गईं दोस्तों,
जबसे गैरों के घर आना जाना हुआ,

बेबसी ये घुटन हसरतों का निधन,
राख खुशियों का भी कारखाना हुआ

बेसबब बेवजह बेहया याद का,
बेघड़ी बेधड़क खूब आना हुआ,

हर बुरा है भला अब गलत है सही,
मूक अंधा कि बहरा जमाना हुआ

___________________________________________________________________________________

Sarita Bhatia

जब से साँसों का फिर से न आना हुआ
ख़त्म जीवन का तब से तराना हुआ /

इस कदर चाहता मेरा दिल है तुझे
हार कर तेरा ही अब खजाना हुआ /

भूल कर बेवफ़ा हो गया अजनबी
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ /

है दुखो का अभी जो किया सामना
यूँ लगे मुस्कराये जमाना हुआ /

तोड़ना अब न विश्वास तुम फिर कभी
दिल हमारा है सबका निशाना हुआ /

बेटियाँ हो विदा मायके से गईं
पति का घर भी न लेकिन ठिकाना हुआ /

जोड़ता यूँ है किसके लिए आदमी
खाली ही हाथ जग से रवाना हुआ /

________________________________________________________________________________

IMRAN KHAN

दोस्तों से तो बिछड़े ज़माना हुआ,
अब तो दिल दुश्मनों का निशाना हुआ।

इक नई ही सियासत का आना हुआ,
जिसका क़ायल ये सारा ज़माना हुआ।

कल तलक 'आप' के जो मुख़ालिफ रहे,
उनके ही 'हाथ' से ताना बाना हुआ।

जूँ ही आम आदमी की हुकूमत बनी,

राजधानी का मौसम सुहाना हुआ।

एक अरसा हुआ अपने घर को गये,
जब से ग़ैरों के घर आना जाना हुआ।

'हाथ' खीचेंगे ये जल्दी ही 'आप' से,
इनका सच है ज़माने का जाना हुआ।

नौजवानों की उम्मीद है 'आप' में,
'आप' का मुल्क सारा दिवाना हुआ।

_____________________________________________________________________________

Dr Ashutosh Mishra

यारों फिर आज मौसम सुहाना हुआ
रिन्दों आओ पिये इक ज़माना हुआ

ये न सोचो की है आज गम या खुशी
मौत औ पीने का बस बहाना हुआ

जिस घड़ी उनकी आँखों से आँखें मिलीं
उस घड़ी आशु उनका दिवाना हुआ

यार से दूरियां बढ़ती ही जा रहीं
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

वो खड़े छत पे थे आये हम जिस घडी

खूब इस बात का फिर फ़साना हुआ

इस तरफ उनके ओंठों पे आयी हँसी
उस तरफ मेरे दिल पे निशाना हुआ

जब से नजरें मिलीं हैं हसीं गुल से इक
इक हसीं दिल ही मेरा ठिकाना हुआ

तिश्नगी उनके ओंठों पे आयी नजर
कुछ समझते कि पलकें झुकाना हुआ

आग सी दिल में थी लग गयी दोस्तों
खैर छोडो इसे तो जमाना हुआ

_____________________________________________________________________________

Gajendra shrotriya

रोज फितनो मे सर को खपाना हुआ
जिंदगी इस तरह बस बिताना हुआ

जब फसाना वफ़ा का सुनाना हुआ
आह की आँच से दिल जलाना हुआ

दर्द आवाज़ मे आ गया यकबयक
गीत जब भी कोई गुनगुनाना हुआ

रोक पाया न दिल आपकी याद, जब
चाँद का झील मे झिलमिलाना हुआ

मैकशो ढूँढ लो और कोई जगह
मैकदा शेख का अब ठिकाना हुआ

और कुछ था मेरे आँसुओ का सबब
आपकी याद का तो बहाना हुआ

तंज़ मिलने लगे हैं मुझे अब कई
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

एक पल भी गुज़रता न था जिनके बिन
याद उनको किए इक जमाना हुआ

सोख लो बादलों आब जी भर के तुम
कब समंदर का खाली ख़ज़ाना हुआ

लौट आ ए परिंदे ज़मीं की तरफ
आसमाँ मे कहाँ आशियाना हुआ

रूह को चाहिए आशियाना नया
जिस्म का ये मका अब पुराना हुआ

____________________________________________________________________

arun kumar nigam

अपना रेशम यहाँ , बारदाना हुआ
मुरमुरा उनके हाथों मखाना हुआ

एक वक्तव्य दे के हटा ली नजर
ये शुतुरमुर्ग - सा सर छुपाना हुआ

दुश्मनों के समर्थक इधर आ गए
ये मनाना नहीं, बरगलाना हुआ

वो सिंहासन पे बैठा बड़े नाज से
इस शहर का जो गुंडा था माना हुआ

दोस्तों - दुश्मनों को लगे जानने
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

__________________________________________________________________________

वीनस केसरी

आपका ख़्वाब में रोज़ आना हुआ
दिल मुनक्का हुआ, दिल मखाना हुआ

एक शजर पत्थरों का दिवाना हुआ
बस ये छोटा सा किस्सा फ़साना हुआ

हम ग़ज़ल को निगाहों से पीने लगे

तब कहीं जा के दिल शायराना हुआ

रोज़गारे मुहब्बत में क्या फायदा

दिल के बदले ही दिल का बयाना हुआ

मुझको अपनों की कीमत पता चल गयी
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

_________________________________________________________________________

Abhinav Arun

जबसे महबूब तेरा दिवाना हुआ ,
दर ब दर हूँ कहाँ इक ठिकाना हुआ |

एक पाकीज़गी की लहर सी उठी ,
जोगियों का गली मेरी आना हुआ |

फूल खिलने की उपवन ने भेजी खबर ,
तितलियों के लिए इक बहाना हुआ |

इश्क़ में डूबकर पीर वो हो गए ,
उनका हर शेर यूँ सूफ़ियाना हुआ |

आते थे ख़त कभी खूं से लिक्खे हुए ,
तौर वो आशिक़ी का पुराना हुआ |

रोज़ हंस हंस के मिलता हूँ सबसे मगर ,
ख़ुद से मुझको मिले एक ज़माना हुआ |

अब ज़ियादा मुहब्बत से मिलते हैं वो ,
जबसे गैरों के घर आना जाना हुआ |

खंडरों मंदिरों में कुदालें चलीं ,
उनके सपनों में जबसे ख़ज़ाना हुआ |

मैंने ही सारे हाथों को पत्थर दिए ,
मैं ही सारे जहां का निशाना हुआ |

______________________________________________________________________________

MAHIMA SHREE

जब कभी तेरा यादों में आना हुआ
बैठे बैठे यूँही मुस्कुराना हुआ

कितनी महबूब थी रात वो ख्वाब की
जिसको बीते हुए एक जमाना हुआ

ऐसे मंजर दिखाए तेरे प्यार ने
आशनाई से दिल अब बेगाना हुआ

फासलें बढ़ गए , बढ़ गयी उलझने
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

ये तो होना ही था दूर जाना ही था
गोया जज्बात का आजमाना हुआ

________________________________________________________________________________

SANDEEP KUMAR PATEL

मुस्कुरा के जो नज़रें चुराना हुआ
उनका अंदाज ये कातिलाना हुआ

वक़्त को जब कभी आजमाना हुआ
हम भले रुक गए वो रवाना हुआ

उनकी बातों से खुशबू उडी संदली
हुश्ने महफ़िल अजी सूफियाना हुआ

याद उनकी है आई मुझे जिस घडी
आशुओं से जिगर का नहाना हुआ

आसमां सी फलक शब् सी चादर हसीं
ये जिधर मिल गए आशियाना हुआ

चश्म तर हो गए हर्फ़ नम हो गए
जब कभी उनका किस्सा सुनाना हुआ

कीमतें बढ़ गयीं उसकी इतिहास में
खंडहर कोई जितना पुराना हुआ

आइनों ने छुपाया हकीकत को जब
मेरा राहों से पत्थर उठाना हुआ

ख्वाब हैं ढीट आँखों से जाते नहीं
मंजिलों को तो गुजरे ज़माना हुआ

हमको अपने परखने का आया हुनर
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

फिर से चोरों को बैठा दिया तख़्त पर
कौन कहता है वोटर सयाना हुआ

_____________________________________________________________________________

AVINASH S BAGDE

आँसुओं से जो रिश्ता पुराना हुआ
हंसी लब पे आके जमाना हुआ

.
हम भी तहज़ीब के अब करीबी हुए
जब से गैरो के घर आना जाना हुआ
.
साथ मज़हब के अंधे जहाँ दो मिले
अपना घर उनका पहला निशाना हुआ
.
राम लीला के मैदाँ से गद्दी मिली !
उनकी चौखट का मै भी दीवाना हुआ
.
दारुबंदी हुई सख्त जब गाँव में
उनको आसान तब से भुलाना हुआ

___________________________________________________________________________________

अजीत शर्मा 'आकाश'

प्यार का अब तो दुश्मन ज़माना हुआ
ये बहाना भी कोई बहाना हुआ

छेड़ना , रूठ जाना , मनाना हुआ
इस तरह से शुरू इक फ़साना हुआ

जब से ख़्वाबों-ख़यालों पे तुम छा गये
मन सजीला ,तो दिल शायराना हुआ

चारागर क्या करे ये बताये कोई
दिल जो तीरे - नज़र का निशाना हुआ

आप को देख कर , आपको सोच कर
एक मैं ही नहीं जो दीवाना हुआ

ये हवा , ये फ़िज़ा गुनगुनाने लगी
आप आये , कि मौसम सुहाना हुआ

मुस्कुराये थे क्यों आप को देख कर
छोड़िये, अब ये क़िस्सा पुराना हुआ

बदले -बदले से सरकार आने लगे
“ जब से ग़ैरों के घर आना-जाना हुआ ”

________________________________________________________________________________

ram shiromani pathak

इस कदर दोसतों मैं दिवाना हुआ
कतरा कतरा यूँ खुद को जलाना हुआ !!

नींद आती नहीं रात नाराज़ है !
मुझको सोये हुए इक ज़माना हुआ!!

बाँटने से बढे ये सदा जान लो
प्यार का कब ये खाली खज़ाना हुआ !!

रोक खुद को न पाया वहाँ जाने से !
गीत जब भी वहाँ सूफियाना हुआ!!

दर्द देकर वो हँसते रहे है मुझे !
प्यार करने का ये क्या बहाना हुआ!!

प्यार उनके लिए तो महज़ खेल है!
मैं तो सामान सा अब पुराना हुआ!!

"राम" भी देख लो अब सयाना हुआ
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ!!

________________________________________________________________________________

गीतिका 'वेदिका'

मेरा दिल भी किसी का दीवाना हुआ
साथ मौसम भी कुछ आशिक़ाना हुआ

चाँद पूनम का था, मुस्कराहट जवां
उनको देखे हुये तो जमाना हुआ

काश मेरी निगाहों से देखे कोई
हुस्न उनका गज़ब कातिलाना हुआ

जा के उनसे नज़र जो हमारी मिली
हाय उनका वो नज़रें झुकाना हुआ

चाँद रूठा तो रातें भी काली हुयी
इश्क दर्दों सितम का खजाना हुआ

धार खंजर की पैनी सी दिल मे धँसी
दिल ये उनकी नज़र का निशाना हुआ

गैर अपने बने, मिट गयी दुश्मनी
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

Views: 4103

Reply to This

Replies to This Discussion

sundar

एक बार फिर सफल आयोजन के लिये प्रबंधन समिति को बहुत- बहुत बधाई, स्वास्थ संबंधी परेशानी और कुछ नेट की समस्या के चलते आयोजन में अपनी सक्रियता कायम रख नही पाया इसका मुझे अफसोस है। मेरी रचना को मान देने के लिये सुधिजनों का मैं शुक्रिया अदा करता हूँ साथ ही मैं आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर सर से हाथ जोड़कर माफी माँगता हूँ कि मैं उनकी बात का जवाब नही दे सका। //बज़्म मूसीकियत से हुई है जवां//  मैंने “मूसीकियत” शब्द के बारे में जनाब फिराक़ गोरखपुरी जी की किताब मे एक बार पढ़ा था जिसका अर्थ “गीतात्मकता” बताया गया है यहाँ उसी अर्थ में मैंने इस शब्द का प्रयोग किया है। हालाँकि ये अप्रचलित शब्द है, अगर नियमानुसार प्रयोग गलत हुआ है तो आगे से ऐसे प्रयोग से गुरेज करूँगा।

मंच संचालक और प्रबंधन समिति ने कुछ मानक तय किये हैं जिसका मैं सम्मान करता हूँ और इस बार सारी ग़ज़लों को पूरी तरह से काले रंग में देख के अच्छा लगा और ये बहुत ही अच्छा संकेत है। इस बार कुछ कड़े निर्णय लिये गये जिसका मैं स्वागत करता हूँ, ग़ज़ल को लेकर कई सार्थक चर्चायें हुई हैं, अब के मुशायरे में इसकी झलक दिखाई दे रही है।

सही शब्‍द है मौसीकियत संगीतात्‍मक 

इस आयोजन के पश्चात त्वरित संकलन के लिये आदरणीय मंच संचालक को कोटिश बधाई । यह सामूहिक प्रयास का मंच हमें बहुत कुछ सीखाती है । प्रबंधन द्वारा अस्तरीय रचना हटाया जाना वास्तव में मंच के मर्यादा के अनुरूप है । मेरी भी रचना हटाई गई है । इसमें मुझे किसी प्रकार का क्षोभ नही है । एक लालसा थी -यह इंगित कर दिया जाता रचना गजल मानक के अनुरूप नही है अथवा प्रस्तुत भाव/शब्द ओछी है तो अपने को सुधार करने में मदद मिलता । ऐसे मेरे द्वारा प्रस्तुत रचना मेरे जीवन के दूसरी तीसरी रचना थी सो मुझे अभी एक लंबा सफर तय करना है, इस यात्रा में मंच के सभी अग्रजों से सहयोग की आपेक्षा है । सादर

सभी ग़ज़ल एक साथ देखकर पुष्टि हो गयी कि सभी पर टिप्‍पणी दे सका इस बार। 

सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें । 

वाह वाह-

हम ग़ज़ल को निगाहों से पीने लगे

तब कहीं जा के दिल शायराना हुआ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service