आदरणीय साथिओ,
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प्रदत्त विषय बढ़िया कथा हार्दिक बधाई आदरणीया अनीता शर्मा जी
एक खबर जैसी प्रतीत हो रही है रचना, और मेहनत की जरुरत है इसपर. बहरहाल बधाई इस प्रयास के लिए आ अनीता शर्मा जी
अलार्म
जो कोई भी इसे पढ़ रहा हो,
मैं एक वैज्ञानिक हूँ और मैंने टाइम मशीन का आविष्कार किया है। दुनिया को समझने की चाहत में मैंने भूत व भविष्य, दोनों समयों की यात्राएँ कीं। अतीत में जा कर दुनिया के सारे बड़े युद्ध देखे, भीषण नरसंहार देखा, बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ देखीं, नामचीन लोगों से मिला और प्रमुख हत्याओं का गवाह बना। जब इसकी तुलना मैं अपने वर्तमान से करता हूँ तो पाता हूँ कि हज़ारों सालों के इतिहास में भी हम कहीं नहीं पहुँचे। कंक्रीट के जंगलों के सिवा हमने कोई तरक्की नहीं की, अगर इसे तरक्की कहते हैं तो। शोषण की जो मूल प्रवृत्ति अतीत में दिखायी देती है, वो आज भी मौजूद है। ताकतवर कमज़ोर को हर जगह खा रहा है, छोटे से ले कर बड़े स्तर तक। धर्म की जकड़ जैसी पहले थी, वैसी ही आज भी है। हमारी संवेदनाएँ कहीं नहीं पहुँची, वो जहाँ थीं, वहीं की वहीं हैं। ग़रीब भूख से मर रहे हैं और मानवता का बड़ा तबका आज भी ग़ुलाम है। पर शायद वर्तमान को पूरी तरह से समझना अभी बाकी था, इसलिए मैं भविष्य में गया।
भविष्य में वक़्त का पहिया घूम कर वहीं पहुँचा जहाँ से हमने शुरुआत की थी। हमारे समय में पर्यावरणीय संकट तो था ही, उभरते हुए राष्ट्रवाद ने इसे और भी जटिल बना दिया। इसमें घी डाला राजसत्ता और उद्योगपतियों के गठजोड़ ने। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ मुखौटा भर थीं। उन्होंने दीमक की तरह ग़रीब देशों को खोखला कर डाला। सिर्फ़ अपने विषय में सोचने वाली मनुष्य की प्रकृति अन्ततः हमें विश्वयुद्ध तक ले आयी जिसने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। हम फिर से आदि मानव बन गए।
इस प्रकार मैंने पाया कि हमारी वर्तमान पीढ़ी वक़्त के एक नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है। यदि हमने अभी भी कुछ नहीं किया तो आने वाले वक़्त में कुछ भी शेष नहीं बचेगा। पर मेरी टाइम मशीन की एक सीमा थी। अतीत और भविष्य में आना-जाना तो मेरे लिए सम्भव था लेकिन कुछ बदलना नहीं। तब? तब मैंने क्रान्ति करने की सोची। इसके लिए मैंने लोगों को जागरुक करना शुरू किया पर जल्द ही सरकार मेरे पीछे पड़ गयी। उसने मीडिया के द्वारा मुझे देशद्रोही घोषित करवा दिया। अब मैं इधर-उधर छुपता फिर रहा हूँ। सरकार मुझे ख़त्म कर देना चाहती है। टाइम मशीन किसी गलत हाथों में न पड़े इसलिए मैंने उसे नष्ट कर दिया है।
मुझे नहीं पता कि जिस वक़्त आप इसे पढ़ रहे होंगे उस वक़्त मैं कहाँ होऊँगा या कहीं होऊँगा भी कि नहीं। अगर दुनिया अभी भी नष्ट नहीं हुई है तो कृपया इसे बचा लें।
आपका शुभचिन्तक!
(मौलिक व अप्रकाशित)
टाइम मशीन के बहाने भूत और वर्तमान की शानदार पड़ताल करती रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी.
लघुकथा पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आदरणीय ओमप्रकाश जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
बेहतरीन रचना ,भूत भविष्य का संज्ञान कराती ,बधाई महेंद्र सरजी।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बबिता जी. हार्दिक आभार. सादर.
सत्ताधारियों द्वारा अपने विरोधियों को साफ़ करने की चाल हर युग, देशकाल में होती रही है। इसी मर्म के साथ आपकी ख़ास शैली में कही गई ये कथा प्रभावी बनी है। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र जी
हृदय से आभारी हूँ आदरणीया प्रतिभा जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
सिर्फ खुद का फायदा देखने के चक्कर में इंसान ने अपना ही सबसे ज्यादा नुकसान किया है, टाइम मशीन को प्रतीक बनाकर बढ़िया लिखा है आपने. बहुत बहुत बधाई आ महेंद्र कुमार जी इस गंभीर रचना के लिए
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार जी. हार्दिक आभार. सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी , विषय को सार्थक करती हुई प्रस्तुति के लिए बधाई। टाइम मशीन , आविष्कार एवं शीर्षक अलार्म सभी सचेत करते हैं आज कल की स्थिति के लिए और सभी कुछ अनिश्चित होने का बोथ , कुल मिला कर एक गभीर लघु बोथ कथा , हार्दिक बधाई , सादर।
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