परम स्नेही स्वजन
हालिया समाप्त मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| इस बार का तरही मिसरा मशहूर शायर जनाब सागर होशियारपुरी की ग़ज़ल से लिया गया था| मश्के सुखन के दौरान मुशायरे में कुल इकतीस ग़ज़लें पेश की गई जिन पर खूब चर्चा हुई जिससे हम जैसे तालिबे इल्म को बहत ज्यादा फायदा हुआ, इसके लिए सभी उस्तादों का बहुत बहुत शुक्रिया| साथ साथ उन सभी लोगों का भी शुक्रिया जो बीच बीच में अपनी मौजूदगी से शुअरा की हौसलाअफजाई करते रहे| दस्तूर को निभाते हुए मिसरों में रंग भरे जा रहे हैं| लाल रंग के मिसरे बह्र से खारिज हैं, हरे रंग के मिसरे में कोई न कोई ऐब है|
गर नफे में हर बही होने लगी
क्यों रसद मेरी नफी होने लगी ?
जब सियासत मज़हबी होने लगी
दोस्तों में दुश्मनी होने लगी
यूँ जली है भाईचारे की चिता
अम्न की देवी सती होने लगी
हादसे ही हादसे ही हादसे
ज़िंदगी अखबार सी होने लगी
उड़के परवाने शमा के घर गए
ख़ुदकुशी पे ख़ुदकुशी होने लगी
हर खुशी ने कह दिया जब अलविदा
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी
जब से यारों ने मुझे हीरा कहा
हर नज़र ही पारखी होने लगी
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जी हुज़ूरी जब सधी होने लगी
भीत पुख़्ता रेत की होने लगी
ग़मज़दा हूँ, जान कर वो खुश हुए !
हर नये ग़म से खुशी होने लगी !!
हादसे हतप्रभ बहुत हैं, देख कर--
ज़िन्दग़ी फिर से खड़ी होने लगी !!
आज मेरे साथ फिर कौतुक हुआ
आज फिर उम्मीद सी होने लगी
लॉन में आयी, रुकी, पल भर, लगा-
धूप कितनी बातुनी होने लगी
खिड़कियों में बैठती हैं आजकल
इन हवाओं में नमी होने लगी
देखते ही सब भँवर गहरे हुए
एक धारा यों नदी होने लगी
रौशनी जुग्नू के भी तो पास है !
चाँद को कुछ खलबली होने लगी ॥
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जाने क्यों ये बेबसी होने लगी
साथ रह के भी कमी होने लगी
प्यार का वो गीत छेड़ा आपने
दुन्दुभी अब बाँसुरी होने लगी
मौत सी, मै जी रहा था ,कल जिसे
ज़िन्दगी वो, ज़िन्दगी होने लगी
मुझ पे यारों का करम कुछ यूं हुआ
हँसती आँखों में नमी होने लगी
ज़िन्दगी में सिर्फ ग़म ही देख कर
हर नये ग़म से खुशी होने लगी
इंतिज़ारी का मज़ा तो है मगर
लम्हा लम्हा अब सदी होने लगी
नेकी है, ये सोच कर, जो थे किये
वो असर से अब बदी होने लगी
हाँ, कुहासा छट रहा है देख तू
फिर फिज़ा मे धूप सी होने लगी
कुछ न कुछ तो फ़र्क आया चाँद में
आज छत पे रोशनी होने लगी
बात जो तनहाइयों में थी ग़लत
सामने आँखों के भी होने लगी
था ख़यालों में तेरे डूबा हुआ
बेखुदी में शायरी होने लगी
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मुझको हर पल बेकली होने लगी,
तुम बिन आँखों में नमी होने लगी।
वक़्त कटता ही नहीं बिछड़े हैं तो,
अब घड़ी जैसे सदी होने लगी।
हर खुशी बनने लगी ग़म का सबब,
"हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी।"
सब मेरे बनकर बिछड़ जाते हैं क्यों,
बात ये भी अब खड़ी होने लगी।
सारे अहसासात सोने से मेरे,
नींद रूठी जलपरी होने लगी।
उम्र सारी काटनी है तेरे बिन,
सोचकर ये झुरझुरी होने लगी।
नूर माहो आसमाँ का खो गया,
अब अँधेरी हर गली होने लगी।
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नादिर ख़ान
जिंदगी में सरकशी होने लगी
हर कसम अब आखिरी होने लगी
झूठे वादों का सहारा ही मिला
जिंदगी से बेबसी होने लगी
हो रही हैं साजिशों पे साजिशें
दुश्मनों में दोस्ती होने लगी
सामने आने लगी कमजोरियाँ
सब्र में जब से कमी होने लगी
डूब जाऊँगा मै तेरे दर्द में
आँख तेरी अब नदी होने लगी
हो गई अब आशिक़ी गम से मुझे
हर नए गम से खुशी होने लगी
छट गए बादल खुला अब आसमां
चाँद से भी रोशनी होने लगी
तेरी यादों का सहारा था हमें
अब तो इनमें भी कमी होने लगी
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घर हमारे जब ख़ुशी होने लगी
दोसतों में खलबली होने लगी
इश्क़ की राहों पे हम भी चल दिए
लो हमें भी बेखुदी होने लगी
बिन तुम्हारे दिन गुज़ारे हमने यूँ
लम्हें-लम्हें में सदी होने लगी
जब से वो गम बांटने आने लगे
हर नये गम से ख़ुशी होने लगी
ख़ुश्क मौसम था हमारे घर मगर
आंसुओं की इक नदी होने लगी
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आपसे जब दोस्ती होने लगी
खूबसूरत जिन्दगी होने लगी
आप मेरे साथ जब चलने लगे,
रास्तों में चाँदनी होने लगी
मुस्कुराहट मौसमों में घुल गई,
सूखी फ़सलें भी हरी होने लगी
अब गिरेंगी टूटकर चट्टानें भी,
मेरे अन्दर खलबली होने लगी
मुद्दआ असली था जो, वो गुम हुआ,
अब सियासत मज़हबी होने लगी
काम का क़द हमने छोटा कर दिया,
आजकल बातें बडी होने लगी
धीरे- धीरे ही महब्बत जमती है,
बर्फ़ पिघला तो नदी होने लगी
ग़म सिखाते हैं मुझे जीना 'सुजान',
हर नये ग़म से खुशी होने लगी
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कुछ भली सी कुछ बुरी होने लगी
इक कहानी रोज़ ही होने लगी
हिज्र का तेरे बहाना मिल गया
शाम से ही मयकशी होने लगी
फिक्र ने कल की न जीने ही दिया
बात सच तेरी कही होने लगी
रात दिन की उलझनें बेताबियाँ
ज़ीस्त से यूँ आजिज़ी होने लगी
काश मिल जाये कहीं मुझको सुकूँ
अब तमन्ना बस यही होने लगी
दुश्मनी का खेल खेलें हुक्मराँ
पर नुमायाँ दोस्ती होने लगी
फिर लुटी शायद किसी की आबरू
आज शबगश्ती तभी होने लगी
यूँ मुझे ग़म ने लगाया है गले
“हर नये ग़म से खुशी होने लगी”
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चोट जब संजीवनी होने लगी
जिंदगी बहती नदी होने लगी
त्याग कर फिर धारती नवपत्र है
फाग सुरभित मंजरी होने लगी
पल थमा कब ठौर किसके लो चला
रिक्त मेरी अंजली होने लगी
साजिश-ए-बाज़ार है अब चेतिए
तितलियों में बतकही होने लगी
मैं मसीहा तो नहीं हूँ जो कहूँ
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी
डूबता सूरज भी पूछे अब किसे
शिष्टता क्यूँ मौसमी होने लगी
मन बिंधा घायल हुआ तो क्या हुआ
बाँस थी मैं बाँसुरी होने लगी
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ज्यों ही मौसम में नमी होने लगी।
खुशनुमा यह ज़िंदगी होने लगी।
उपवनों में देखकर ऋतुराज को,
सुर्ख रँग की हर कली होने लगी।
बादलों से पा सुधारस, फिर फिदा,
सागरों पर हर नदी होने लगी।
चाँद-तारे तो चले मुख मोड़कर,
जुगनुओं से रोशनी होने लगी।
रास्ते पक्के शहर के देखकर,
गाँव की आहत गली होने लगी।
जब गमों ने प्यार से देखा मुझे
हर नए गम से खुशी होने लगी।
लोभ का लखकर समंदर “कल्पना”
इस जहाँ से बेरुखी होने लगी।
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रात दिन आवारिगी होने लगी
तुम मिले तो शायरी होने लगी
पांव माँ के मैं दबाता हूँ यहाँ
मंदिरों में हाज़िरी होने लगी
मौत तुझसे क्या छुपाऊं ! माफ़ कर
जिंदगी से आशिक़ी होने लगी
बादशाही दिलजलों की देखिए
हर नये गम से खुशी होने लगी
दोस्तों के कहकहे अब हैं कहाँ
बस! अवध औ बाबरी होने लगी
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बात झूठी भी खरी होने लगी।
वो कहावत अब सही होने लगी।।
रास्ते ये प्यार के, मंज़िल हसीं,
उनसे मुझको दिल्लगी होने लगी।
ख्वाहिशें उस चाँद की बढ़ने लगीं,
तू-तू मैं-मैं रोज़ ही होने लगी।
रात सारी गुफ़तगू में थी मगर,
सुब्ह चुप-चुप थी, दुखी होने लगी।
जगमगाये, झिलमिलाये ख़ाब जो,
चाहतें उनकी बड़ी होने लगी।
ज़ख्म खुद ही भर गये, देखा उसे,
हर नये ग़म से ख़ुशी होने लगी।
है चरागों के बगल में रौशनी,
दूर सारी बेबसी होने लगी।
वो खुदा थे, रहनुमां भी, चल दिये,
उनके जाने से कमी होने लगी।
इश्क़ को तुम रोग "रत्ती" मान लो,
एक पल में आशिक़ी होने लगी।
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हर इमारत मज़हबी होने लगी
दिल फ़रेबी हर गली होने लगी
सर-ब-सर गिरता गया इंसान क्यों
परवरिश में क्या कमी होने लगी
सुन दरख्तों की दबी हुई सिसकियाँ
इन किवाड़ों में नमी होने लगी
मुड़ गई राहें वफ़ा की खुद ब खुद
प्यार में जब दिल्लगी होने लगी
तेल में करके मिलावट सोचते
रौशनी में क्यों कमी होने लगी
अब नहीं डरते शिकस्ते-ख़ाब से
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी
यास में देखी ठिठुरती तितलियाँ
नम परों में बेबसी होने लगी
क्यों नवाए-वक़्त ये खामोश है
लुप्त सहरा में नदी होने लगी
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गैर से जब दोस्ती होने लगी ׀
दूर हम से दुश्मनी होने लगी ׀
सोच का दीया जला जब हम चले,
कुछ अँधेरे में रौशनी होने लगी ׀
प्यार हम ने जो कभी उन से दिया,
क्यूँ उसी में अब कमी होने लगी ׀
हाल उस दिल का बतायें तो क्या,
बात होते , बेबसी होने लगी ׀
दिल हमारा अब ठिकाने कब रहा ,
हर नए गम से खुशी होने लगी ׀
देर थोड़ी के लिये, वो था मिला,
क्यूँ उसी से दिल्लगी होने लगी ׀
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जब किसी से आशिकी होने लगी
तब से मेरी शाइरी होने लगी ll
हो गया था नूर से रोशन जहाँ
क्यूँ ज़मीं पे तीरगी होने लगी ll
पास मेरे अश्क की सौगात है
हर नये ग़म से खुशी होने लगी ll
टूट कर सपनें बिखर जाते जहाँ
क्यूँ वहीं पर बंदगी होने लगी ll
अब खतों के थम गये हैं सिलसिले
फ़ोन में अब जीरगी होने लगी ll
कैसे होगा तेरा हर इन्साफ अब
देश से बाजिंदगी होने लगी ll
प्यार की दो बात करने में भला
क्यूँ सभी को बेवसी होने लगी ll
अब फ़लक की होड़ में यूँ देखिये
हर किसी में यारगी होने लगी ll
आज अपना नाम है हर राग में
तब सभी से यावरी होने लगी ll
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प्यार की भी चौकसी होने लगी
शाम हुइ ना वापसी होने लगी
अश्क आँखो से हमारे जब गिरे
हर तरफ क्यों खुदकुशी होने लगी
दुश्मनी उनसे हमारी घट गई
फौज की भी वापसी होने लगी
चढ़ गई जब से जवानी यार तो
इस बदन में गुदगुदी होने लगी
फूल को देखा तड़पते तब प्यार मे
बाग में जब चौकसी होने लगी
दे सको तो दो नये गम अब हमें
हर नये गम से खुशी होने लगी
मर गयी प्यासे मगर उठ ना सकी
इस कदर वो आलसी होने लगी
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गैर से भी दोस्ती होने लगी
हादसों में जब कमी होने लगी
मन से जब अपना पराया मिट गया
जिंदगी फिर से सुखी होने लगी
सच नहीं जो बात क्यों गाता फिरूं
हर नए गम से खुशी होने लगी
कह तो देता राज दिल का मैं मगर
सुगबुगाहट पास ही होने लगी
छोड़ कर बापू हवेली क्या गए
भाइयों में दुश्मनी होने लगी
दिल लगाया धूप से जो रात ने
जुगनुओं में खलबली होने लगी
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चाहता था जो वही होने लगी
याद उस की फिर हरी होने लगी।
खुश नहीं रह पाउंगा उसके बिना
ये मुझे किस की कमी होने लगी।
कर के वादा वह न आया अब तलक
राह तकते एक सदी होने लगी।
जख़्म भर जाते मेरे दिल के सभी
क्यों तुझे फिर दिल्लगी होने लगी।
हर पुराने ग़म ज़ुदा होने लगे
हर नए ग़म से खुशी होने लगी।
आंख भर आती रही हर बात पर
यह उफ़नती सी नदी होने लगी।
दो क़दम भी चल न पाया साथ में
अब ये कैसी दुश्मनी होने लगी।
बात करने की यहां फुरसत किसे
सोच आंखों में नमी होने लगी।
बिन बुलाए वो न आयें बात क्या
मुझ से भी गल्ती कहीं होने लगी।
रोज़ आते हैं ख़यालों में नज़र
फिर दिलों में सुरसुरी होने लगी।
आजमाता वह रहा कितना मुझे
फिर मेरी नीयत बुरी होने लगी।
सुप्त सी धारा निकल आई कहीं
जगमगाती रोशनी होने लगी।
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प्यार में यूं त्रासदी होने लगी
चोट भी अब औषधी होने लगी
दूर होकर आपसे इतना हुआ
'हर नए गम से खुशी होने लगी'
खुद से भी मैं अजनबी होता गया
वो किसी की जब सगी होने लगी
कान सागर ने भरा कुछ इस कदर
दूर साहिल से नदी होने लगी
हो न हो ये शायरी का है असर
दिल की धरती फिर हरी होने लगी
एक पल को सोच क्या उनको लिया
हर गजल अब संदली होने लगी
याद का जंगल हुआ है दिल मेरा
चैन की अब तस्करी होने लगी
कुछ न कुछ तो बन गया है तू 'शकील'
सब की तुझसे दुश्मनी होने लगी
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बात छोटी से बड़ी होने लगी,
भींत इक तनकर खडी होने लगी |
गम मिले छोटे बड़े सारे यहाँ,
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी |
प्यार करना तो सदा से जुर्म था,
बेरुखी भी जुर्म सी होने लगी
साथ अक्सर ही रहे दोनों मगर,
दुश्मनी फिर क्यों हरी होने लगी |
जो नहीं था हम उसे माँगा किये,
मिल गया भी तो कमी होने लगी |
क़त्ल करना ही उसे मंजूर था,
सांस जिसकी गैर की होने लगी |
देख ‘रक्ताले’ यहाँ क्या पा गया,
प्यार पाया बन्दगी होने लगी |
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बात जब दिल की कही होने लगी
क्यूँ जहां से बेरुखी होने लगी ।1।
ग़म मिले इतने कि अपने हो गये
‘’हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी’’।2।
खुद-ब-खुद ही ग़म विदा होते गये
जब खुशी से दोस्ती होने लगी।3।
हुस्ऩ, आशिक, मैकशी, साकी कहॉं
जिंदगी की शायरी होने लगी ।4।
बन्द ऑंखों में धुँधलका ही रहा
खुल गयीं तो रौशनी होने लगी ।5।
ठानकर जब आईना हम हो गये
बात हर हमसे खरी होने लगी ।6।
पुत गये चेहरे किसी दीवार से
जब से रुस्वा सादगी होने लगी ।7।
मस्अले सुलझें, हुआ इतिहास अब
हर तरफ रस्साकशी होने लगी ।8।
थे जो मर्यादा के मंदिर, अब वहॉं
जालसाज़ी, मसखरी होने लगी ।9।
वक्त ने अहसास सारे धो दिये
याद खुद से अजनबी होने लगी ।10।
लफ़्ज़ और अंदाज़ क्या बदले जरा
बात कड़वी चाशनी होने लगी ।11।
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वा हकीकत जीस्त की होने लगी
अनलहक की आगही होने लगी
दूर सारी तीरगी होने लगी
रूह में इक रोशनी होने लगी
हर नफ़स में बंदगी होने लगी
सूफियाना ज़िंदगी होने लगी
बेवजह बेचैन दिल रहने लगा
लाडली बिटिया बड़ी होने लगी
पी रही सिन्दूर हँसती मांग का
बेरहम ये मयकशी होने लगी
मंद हैं अब धड़कनों की सूइयां
बंद जीवन की घड़ी होने लगी
तोड़ के तटबंध सारे आ गई
अब समंदर की नदी होने लगी
आदमी तादाद में बढ़ने लगे
आदमीयत की कमी होने लगी
आ गये आजिज ख़ुशी से इस कदर
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी
आब इक चढती नदी का देखकर
अब्र को भी तिश्नगी होने लगी
हाँ तुझे भूले नहीं पूरी तरह
याद पर अब धुंधली होने लगी
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इस कदर अब बंदगी होने लगी
हर घड़ी उनकी ऋणी होने लगी /1/
फागुनी एहसास भर हर साँस में
सर्द रुत भी गुनगुनी होने लगी /2/
अजनबी नें स्वप्न कुछ ऐसे छुए
आरज़ू हर मखमली होने लगी /3/
अक्स उनका यूँ निगाहों में बसा
रूह खुद से अजनबी होने लगी /4/
जब उठी आवाज़ हक की माँग में
नीयत उनकी अनमनी होने लगी /5/
इक खता की यूँ मिली उनसे सज़ा
बात केवल अक्षरी होने लगी /6/
जब से गम साँझा किये हैं दोस्त नें
हर नए गम से खुशी होने लगी /7/
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आशिक़ी से आशिक़ी होने लगी |
ज़िन्दगी यूं ज़िन्दगी होने लगी |
ज़िक्र आया जब कभी फ़रहाद का ,
हर तरफ़ इक रोशनी होने लगी |
बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,
बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी |
छावनी में रात रानी की महक ,
लश्करों की वापसी होने लगी |
दर्द की इस इन्तेहां में हाथ दे ,
मौत तुझसे दोस्ती होने लगी |
शाइरी जबसे हुई महबूब तू ,
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी |
अब हुए बच्चे बड़े उड़ जाएंगे ,
सोचकर माँ भी दुखी होने लगी |
सब गवाही से मुकर जाने लगे ,
फ़ैसलों में बेबसी होने लगी |
खाद पानी डालिए इस नस्ल में ,
उर्वरा की भी कमी होने लगी |
मंच पर शाइर की है दरकार क्या ,
मसखरी ही मसखरी होने लगी |
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जब मुहब्बत रौशनी होने लगी
कम दिलों की तारिकी होने लगी //१//
बन गए जब तुम हमारी ज़िन्दगी,
खूबसूरत ज़िन्दगी होने लगी.... //२//
यूँ सराहे ग़म हमारे आपने,
हर नये ग़म से ख़ुशी होने लगी.....//३//
हाय उस आँख की वो मस्तियाँ
जिक्र ही से बेखुदी होने लगी …… //४//
याद आई इक अधूरी जुस्तजू,
खुद ब खुद फिर बंदगी होने लगी … //५//
दोस्ती हमने निभाई इस तरह,
गुम जहाँ से दुश्मनी होने लगी …… //६//
इक ग़ज़ल का रूप उसने धर लिया,
फिर तो जम के शायरी होने लगी ...... //७//
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आपसे जब दोस्ती होने लगी
हाँ गमो में अब कमी होने लगी
रोज की ये दौड़ रोटी के लिए
भूख के घर खलबली होने लगी
आप मेरे हम सफ़र जब से हुए
ज़िन्दगी मेरी भली होने होने लगी
रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
सूख के वो शायरी होने लगी
शहर भर में ज़िक्र है इस बात का
पीर की चादर बड़ी होने लगी
फूल तितली चिड़िया बेटी के बिना
कैसे ये दुनिया भली होने लगी
सर्द दुपहर उम्र की है साथ में
याद ज्यूँ स्वेटर ऊनी होने लगी
सीख देता है नई वो इसलिए
हर नए गम से खुशी होने लगी
ज़ख्म अब कहने लगे 'गुमनाम' जी
आपसे अब दोस्ती होने लगी
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खून सस्ती आब सी होने लगी
बादलों को तिश्नगी होने लगी /
देख मीठापन नदी का देखिये ,
अब समुन्दर भी नदी होने लगी /
आसमां में उगता सूरज देखकर
खूबसूरत चांदनी रोने लगी /
चुभ रहे थे शूल बन कर आँख में ,
अब उसी की जुस्तजू होने लगी/
जिंदगी ने रोज गम इतने दिए
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी /
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गैरों से जब दिल्लगी होने लगी
दोस्तों की तब कमी होने लगी /
दोस्ती अब बेबसी होने लगी
दरमियाँ दूरी खड़ी होने लगी /
दोस्ती से बेबसी जब दूर है
फासलों में तब कमी होने लगी /
जो गिले शिकवे बढे रिश्तों में हैं
लौट आने में सदी होने लगी /
हाथ सर से उठ गया प्रभु तेरा जो
हौंसलों से दोस्ती होने लगी /
बांटना जबसे ग़मों को सीखा है
हर नये गम से ख़ुशी होने लगी /
गम सिखाते हैं ख़ुशी का रास्ता
खुशनुमा अब जिन्दगी होने लगी /
आ गई बारात जब चौराहे पे
माँ भवानी को ख़ुशी होने लगी /
आज है शिवरात्रि दो शुभकामना
क्यों बधाई में कमी होने लगी /
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उम्र से जब षोडसी होने लगी
साँझ हर इक सुनहरी होने लगी |1|
छा गए कुंतल घटाओं की तरह
तनबदन में झुरझुरी होने लगी |2|
सामने आये सजन जो यकबयक
साँस क्यों री ! बावरी होने लगी |3|
है कपोलों पर गुलाबों की झलक
देह नाजुक मरमरी होने लगी |4|
पर नहीं पर पैर छूते हैं तनय
कह रहे सब वह परी होने लगी |5|
वस्त्र दिन-दिन तंग होते जा रहे
रुत -बसन्ती मदभरी होने लगी |6|
भेद सुख-दुख का नहीं मन में रहा
हर नए गम से खुशी होने लगी |7|
सच कहूँ युव-जन बुजुर्गों के लिए
गाँव भर में लाडली होने लगी |8|
भ्रात पनघट भेजने से डर रहा
मातु चिंतित चिड़चिड़ी होने लगी |9|
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रेत में जो गुम नदी होने लगी
मछलियों में खलबली होने लगी
ओस की दो-चार बूँदें सोखकर
नीम गमलों में हरी होने लगी
वक्त का मुझ पर असर ऐसा हुआ
“हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी“
बादलों ने साज़िशें ऐसी रचीं
दोपहर भी रात सी होने लगी
हौसले इन पंछियों के देखकर
अब हवा में सनसनी होने लगी
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अब तो रुख़सत हर ख़ुशी होने लगी.
ग़म से बोझिल ज़िन्दगी होने लगी.
मस्त नज़रों से जो देखा आपने
इक अजब सी बेख़ुदी होने लगी.
रोकना तो चाहता है दिल मगर
जाइए, अब रात भी होने लगी.
खुल रही हैं ज़ह्नो-दिल की खिड़कियाँ
रोशनी ही रौशनी होने लगी.
हर तरफ़ महसूस होती है चुभन
ज़िन्दगी मानो सुई होने लगी.
घुस गये संसद में जब से बे-तमीज़
गन्दगी ही गन्दगी होने लगी.
दर्द की नगरी में जब से बस गये
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी.
आप से 'आकाश' बिछड़े तो लगा
ज़िन्दगी में कुछ कमी होने लगी.
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यदि किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों मो चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
Tags:
आदरणीय राणा प्रताप सर इस संकलन हेतु आपको बहुत बहुत बधाई वास्तव में आपकी मेहनत नमन योग्य है|
साथ ही मंच के सभी वरिष्ठ सदस्य गण जो शुरू से आखिर तक हर रचना हर टिप्पणी पर नज़र रखते हुए सभी को संभाले रहते हैं उनकी मेहनत को भी सादर प्रणाम | भाग्यशाली हैं हम कि इस प्रतिष्ठित मंच से जुड़ने व सीखने का सौभाग्य मिला |
मेरे पिता की तबियत नासाज़ होने के कारण मैं इस बार मुशायरे सक्रिय नही रह पाया इसका मुझे खेद है। इस बार मुशायरे में खूब रंग जमा , बहुत अच्छी अच्छी ग़ज़ल पढ़ने को मिली खासतौर पे आदरणीय योगराज सर ने मुशायरे का शानदार आग़ाज़ किया और जाते जाते भी उनका पुछल्ला गुदगुदा गया। सभी रचनाकारों को उनके प्रयासों के लिये हार्दिक बधाईl मेरी रचना को समय देने के लिये और नवाज़िशों के लिये मैं सभी सुधिजनों का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
खिड़कियों में बैठती हैं आजकल
इन हवाओं में नमी होने लगी
देखते ही सब भँवर गहरे हुए
एक धारा यों नदी होने लगी
बादलों ने साज़िशें ऐसी रचीं
दोपहर भी रात सी होने लगी
हौसले इन पंछियों के देखकर
अब हवा में सनसनी होने लगी
अजनबी नें स्वप्न कुछ ऐसे छुए
आरज़ू हर मखमली होने लगी
अक्स उनका यूँ निगाहों में बसा
रूह खुद से अजनबी होने लगी
बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,
बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी
छावनी में रात रानी की महक ,
लश्करों की वापसी होने लगी
वाह वाह शेर
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