आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आ० समर कबीर साहिब. "बादल" शब्द वाकई छूट गया है, बहरहाल यह रचना जल्दबाजी में क़तई नहीं लिखी गई है, आश्वस्त रहें.
आदाब। वाह। उम्दा नवीनतम लेखन से लाभान्वित हुआ। "उदासी के घने काले बादल" से घिरे पात्र को उसकी प्रसन्नचित अवस्था में बाधित करने की कोशिश करती उस 'उदासी' को क़िताबों का करारा जवाब! पुस्तकें ही सखा, पुस्तकें ही गुरू! सच जो कहा गया है, उसे बाख़ूबी उभारती संदेशवाहक उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर साहिब।
आजकल के माहौल में स्वयं अपनी संतान के गुरु और सखा के प्रयास करते हुए माता-पिता संतान की उदासी दूर करने के हर संभव भौतिक सुविधा उपाय भी करते हैं; किंतु रंग-बिरंगी स्तरीय पुस्तकें अचूक रामबाण सखा साबित होती हैं आज भी।
भाई उस्मानी जी, रचना पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया.
सच है, पुर्तकों से बढ़ कर अच्छा दोस्त हो ही नहीं सकता। बेहतरीन लघुकथा की प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय योगराज जी ।
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आ० नीलम उपाध्याय जी.
मुहतरम जनाब योगराज साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हार्दिक आभार आ० तस्दीक अहमद खान साहिब.
आदरणीय योगराज सर, कसे हुए कथानक के साथ पुस्तकों के महत्त्व को स्थापित करती इस शानदार और सार्थक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर नमन.
भाई मिथिलेश वामनकर जी, आपकी प्रशंसा पाकर उत्साहवर्धन हुआ, आत्मिक आभार स्वीकार करें.
वाह, वाह, क्या खूबसूरत रचना लिखी है आपने आ योगराज सर, बेहद कमाल. किताबों से अच्छा कोई दोस्त कहाँ होता है, एकदम सही बात. विषय को सार्थक करती इस बेहतरीन लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
रचना पसंद करने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया भाई विनय कुमार सिंह जी.
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