आदरणीय साथिओ,
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बेहतरीन रचना द्वारा कटाक्ष ,साथ ही अंतर्मन की पीङा सबक सिखा रही थी या जैसे को तैसे का आशीर्वाद है या श्राप।हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया कनक दी।
हार्दिक आभार आ. बबीता जी ।उत्साहित करने वाली टिप्पणी लिखते रहने की प्रेरणा देती है ।
अच्छी लघुकथा रची है आ० कनक हरलालका जी. लेकिन इसमें समाधान विषय कैसे संतुष्ट हुआ? जरा रौशनी डालें. बहर्हार आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें.
आदरणीय योगराज सर । कथा पसंद करने के लिए हार्दिक आभार । कथा में मैंने एक विवश माँ की मजबूरी दिखलाने का प्रयत्न किया है कि दरअसल उसके पास वर्तमान में अपनी अवस्था से निकलने का कोई समाधान नहीं है तो वह भविष्य में ही अपने बेटे को अपनी परिस्थितियों से अवगत करवाने का समाधान प्रस्तुत कर स्वयं को समझा लेना ही अपनी वर्तमान परिस्थिति का समाधान खोज कर संतुष्ट हो लेती है ।
प्रदत्त विषय पर बहुत भावपूर्ण लघुकथा लिखने का प्रयास हुआ है, मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आ कनक हरलालका जी
हार्दिक आभार लघुकथा को पसंद करने के लिए विनोद जी ।
जनाब कनक हरलालका जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
हार्दिक आभार आदरणीय।
गुजरते समय के साथ परिवार की संरचना भी बदलने लग गयी है। अब परिवार में बुजुर्गों के लिए जगह की कमी पड़ने लगी है तो उनके लिए वृद्धाश्रम ढूंढ लिया जाता है। परिवार में बुजुर्गों के महत्व और उनकी जरुरत को दर्शाती अच्छी कहानी। बधाई स्वीकार करें आदरणीया कनक हरलालका जी।
कथा को मान्यता देने के लिए हार्दिक आभार नीलम उपध्याय जी ।
मुह तरमा कनक साहिबा , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आदरणीय कनक जी, रिश्तों के तानों-बानों को शाब्दिक करती इस लघुकथा में वृद्ध माता पिता की आधुनिक जीवन शैली में दुर्गति और उससे उपजे संघर्ष को बड़ी ही शालीनता से अभिव्यक्त किया है. साथ ही यह कथा परिवार में बुजुर्गों के महत्त्व और आवश्यकता को भी स्थापित करती है. इस सार्थक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें. यह भी अवश्य है कि प्रदत्त विषय का भाव और भी स्पष्ट रूप से शाब्दिक होता तो कथ्य की सम्प्रेषणीयता और भी बढ़ जाती. सादर
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