परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 59 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हज़रत अल्लामा इक़बाल साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|
"चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ"
122 122 122 122
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 मई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 23 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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शुक्रिया आ. मिथिलेश जी
आभार
वाह !!!
शुक्रिया
वाह वाह.... एक से बढ़कर एक अशआर ....जितनी बार पढ़ो... मन नहीं भरता.. बहुत बहुत बधाई आपको लाजबाव..गज़ल के लिए आ. निलेश नूर जी..सादर
शुक्रिया आ. महिमा श्री जी ...
आपकी प्रतिक्रिया से भाव विभोर हूँ
आभार
//भँवर में न फँस जाए कश्ती ये मेरी
तुझे ऐ ख़ुदा! नाख़ुदा चाहता हूँ. //
वाह वाह ! कमाल का शेअर हुआ है, बाकी अशआर भी मानीख़ेज़ कहे हैं भाई निलेश नूर जी। दिली मुबारकबाद क़बूल फरमाएँ ।
धन्यवाद आ. योगराज सर
शुक्रिया आ. समर साहब...
महीन बात बताई आपने ..इस पर विचार करता हूँ
सादर
आ. समर साहब ...मतले को अब यूँ कर रहा हूँ
तेरे ज़ेर-ए-पा मैं जगह चाहता हूँ
ख़ुदाया! मैं तेरी रज़ा चाहता हूँ.
बहुत महीन बात आपने समझाई इसके लिए कोटि कोटि आभार
तेरे ज़ेर-ए-पा मैं जगह चाहता हूँ
ख़ुदाया ! मैं तेरी रज़ा चाहता हूँ. .. वल्लाह !
बँधा खूब मतला कहा चाहता हूँ
कि मेयार हो ये.. सदा चाहता हूँ..
शुक्रिया सर ...
यहाँ मेयार को सदा के साथ नहीं मिलाऊंगा ...मेयार पढ़ते ही मन सदा (आवाज़) वाले मोड़ में आ गया :)))
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