आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय कनक जी।बेहतरीन लघुकथा।
बेहतरीन लिए बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीया कनक दी.
लघुकथा - निर्णय
घर में नयी बहू के आगमन की गहमा-गहमी के बीच शान्ति जी मेंहमानों कि खातिर करने में व्यस्त थीं । तभी पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेलियों ने उसे अपने पास बैठा लिया ।
"अरे शान्ति, बहू तो बड़ी सुंदर लायी है । सुना है बहुत पढ़ी लिखी है ।"
एक और पड़ोसन बोल पड़ी "और खूब बड़ी नौकरी भी करे है ।"
एक और आवाज गूंजी "तब तो बहू का कोई सुख नहीं हुआ । शान्ति को तो घर के पचड़े में ही पड़ी रह गयी ।" और इसके साथ ही सभी खिलखिला के हंस पड़ीं । जाहिरा तौर पर शांति जी ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन मन ही मन कुछ कुढ़ से गईं ।
उच्च शिक्षा युक्त और ऑफिस में उच्च पद पर कार्यरत प्रीति ससुराल में आने के पहले दिन ही इस तरह के वार्तालाप से पहले ही परेशान थी ऊपर से दूसरे दिन ही सास ने उसे जॉब छोडने और घर का काम काज सम्हालने का फरमान सुना दिया । और सबसे अचंभे वाली बात तो ये हुयी कि पति राजन ने भी माँ की ही हाँ में हाँ मिलाया । पति से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी प्रीति को । उसके तो सारे अरमान मिट्टी में मिलने जैसे हो गए और ससुराल जेल कि चारदीवारी हो गयी ।
सभी मेहमानों के जाने के दो दिन बाद ही अगले दिन सोमवार को सुबह-सुबह प्रीति को घर से बाहर जाने को तैयार हुआ देख उसकी सास का माथा ठनका । बोली, "अब ये तैयार होके कहाँ चल दी बिना कुछ बताए?" तभी राजन कि बहन नीना सामने आगे आ गयी - "माँ, भाभी दफ्तर जा रही हैं और मैंने ही उनसे अनुरोध किया है कि वो नौकरी न छोड़ें ।"
"तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? इसे नौकरी करने की क्या जरूरत है? घर का काम कौन करेगा? मैं क्या हमेशा इस घर नौकरानी बनी रहूँगी?
"नहीं माँ ! आप ऐसा मत कहें । आप इस घर की मालकिन हैं और आज के बाद से आप को घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा । और मुझे भी नौकरी छोड़ने को कोई जरूरत नहीं पड़ेगी । घर के सभी काम करने के लिए मैंने नौकरनी रख दिया है । आप बस उससे काम करवाएँगी।"
इतना कह के प्रीति ने कृतज्ञ नजरों से नीना को देखा और दोनों अपने प्लान के कामयाब होने पर मुस्कुरा पड़ीं ।
... मौलिक एवं अप्रकाशित
ऐसी समझदारी बहुत जरुरी है नहीं तो अरमान धूल में मिलने में समय नहीं लगता. बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय विनय कुमार जी, रचना को समय देकर मेरा मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार।
मुह तरमा नीलम साहिबा, प्रदत्त विषय पर सीख देती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहेब, रचना को समय देकर मेरा मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय नीलम जी बहुत बहुत बधाई सही विषय पर सुंदर लघुकथा सादर
आदरणीय आसिफ ज़ैदी जी, रचना को समय देकर मेरा मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय नीलम जी ।प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है ।बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया कनक हरलालका जी, रचना को समय देकर मेरा मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार।
आदाब। महिला ही महिला की दुश्मन होती है; तो एक सच यह भी है कि एक महिला दूसरी महिला के लिये संबल/प्रेरणा/सहारा भी होती है। इस विसंगति को विषयांतर्गत उभारती बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा। नकारात्मक फैसलों पर सकारात्मक निर्णय की जीत!
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