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"बुनियादी कमाई"
जवानी में बिछड़े दो दोस्त बुढ़ापे में एक खेल के मैदान में मिले| गले मिलते हुए सीढ़ियों पर फिसल गये|
वहीँ बैठे-बैठे एक ने पूछा, "तूने कितना धन कमाया है?"
"ज्यादा नहीं बस गुजारा हो जाता है|"
"इसका मतलब जिंदगी ईमानदारी में गुजार दी| कमाने के लिये कहीं न कहीं बेईमानी की बुनियाद रखनी भी ज़रूरी होती है" पहला हँसते हुए बोला|
दोनों खड़े हुए लेकिन गिरने के कारण लंगड़ाये, यह देख पहले के सचिव ने उसे एक सोने की छड़ी थमा दी और दूसरे का बेटा उसको अपने कंधे का सहारा दे कर ले चला|
(मौलिक व अप्रकाशित)
बहुत धन्यवाद आ० ज्योत्स्ना जी, आपके शब्द भी हमेशा मेरा मनोबल बढाते हैं|
रचना पसंद करने हेतु और लघुकथा का विश्लेषण कर सुंदर टिप्पणी हेतु बहुत आभार आदरणीय कांता जी|
रचना पसंद करने हेतु हृदय से आभार आदरणीय मदनलाल जी सर|
एक तरफ सोने की छड़ी और दूसरी तरफ बेटा बहुत बढ़िया तुलना बधाई स्वीकारें इस रचना के लिए आ० चंद्रेश जी
रचना पसंद करने एवं मनोबल उच्च करने हेतु हृदय से आभारी हूँ आदरणीय प्रतिभा पांडे जी !
जबर्दस्त !!! आपकी रचना अलग ही रंग बिखेरती है | बधाई आ. चन्द्रेश भाई जी
रचना पसंद करने के लिये बहुत धन्यवाद भाई सुधीर जी|
सोने की छड़ी और बेटे के काँधे के बिम्ब लेकर बहुत गहन भाव दिए हैं लघु कथा में आर्थिक अभाव में भी मजबूत बुनियाद खडी होती है
वाह्ह वाह बहुत सशक्त लघु कथा दिल से बधाई लीजिये चंद्रेश कुमार जी |
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