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सही कहा तिल का ताड़ बनते समय नहीं लगता । सुन्दर
बधाई ।
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी!
छोटी बातों पर ही बड़े बड़े दंगे हो जाते हैं| इस रचना हेतु बधाई आपको आ० जवाहर जी| हालाँकि अभी भी करारी चोट है लेकिन यदि दंगे भडकाने में किसी नेता का भी हाथ हो जाता तो और भी करारी हो जाती|
आदरणीय चंद्रेश कुमार जी, आपने सही कहा - नेता ऐसी घटनाओं से फायदा उठाते हैं या तूल देते हैं ... शुरुआत ऐसे ही हुई थी लेकिन नेताओं और प्रशासन ने ही स्थिति को संभाला इसलिए मैंने इसमें नेता को शामिल नहीं किया ...हमारे कच्चे कान भी इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं...सादर!
बहुत बढ़िया कहानी , सच में ऐसा ही होता है , बच्चों की मामूली लड़ाई से भी कई बार दंगे भड़क जाते हैंI बधाई आपको आ० जवाहरलाल जी
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार ! सच्ची घटना पर आधारित है लघुकथा ..
आदरणीया कांता रॉय जी, रचना को सराहने के लिए हार्दिक आभार!
पीने के बाद लोगों में ऐसे झगडे होते अक्सर सुने देखे गये हैं और जब दंगे भड़कते हैं तो सर्व धर्म समभाव की नींव तो हिल ही जाती है सारे आदर्श खोखले हो जाते हैं एक घटना को लेकर प्रदत्त विषय को सार्थक किया है बहुत- बहुत बधाई आ० जवाहर लाल सिंह जी |
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपने मूल को पकड़ा है ...दरअसल शराब अधिकांश बुराइयों की जड़ है. दूसरे धर्म और जाति के मामले में हमारे कान कच्चे हैं. इन मामलों हम बहुत ही जल्द उत्तेजित हो जाते हैं ... आपने रचना को सराहा ...आपका हार्दिक आभार!
कारण जाने बिना छोटी छोटी बातें कैसा विकराल रूप धारण कर लेती हैं व एकता रूपी बुनियाद पल भर में ढ़ह जाती है, इसका जीता जागता उदाहरण है यह लघुकथा। बधाई आ. जवाहर लालजी।
आदरणीया डॉ. नीरज sharma जी, आपका हार्दिक आभार ... मेरा तात्पर्य यही है कि किसी भी घटना की जड़ में पहुंचे बिना हमें अपने आपको अफवाहों से सावधान रहने की जरूरत हैं, साथ ही शराब बहुत सारे बुराइयों की जड़ में होती है.. इसे प्रतिबंधित किया ही जाना चाहिए. सादर !
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