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आपने कथा पर आकर मेरा मान बढ़ाया ,आपका हार्दिक धन्यवाद आ० ओमप्रकाश जी
बेहतरीन !!! " सारे भूत हवा में रेंगते हुए धीरे धीरे उसके आस पास जमा हो गए I उन सब के चेहरे पर भी डर साफ़ नज़र आ रहा था I"
ये पंक्ति जबर्दस्त प्रभाव छोडती है | बधाई ..
आ० सुधीर जी आपके उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभार प्रेषित करती हूँ
सारे भूत हवा में रेंगते हुए धीरे धीरे उसके आस पास जमा हो गए I उन सब के चेहरे पर भी डर साफ़ नज़र आ रहा था I
.....सोच की समॢद्धि की परिसीमा है ये कथा आपकी आदरणीया प्रतिभा जी । प्रतीकों में कही गई ये कथा आज के देशकाल की अति संवेदनशील और चिंतनीय परिस्थिती है ।अनोखे प्लॉट पर रचि गई अद्वितीय लघुकथा । मंच की और इस लघुकथा गोष्ठी की गरिमा को सार्थकता प्रदान करती हुई एक श्रेष्ठ रचना । दिल से बधाई आपको ।
आ० कांता जी ,आपकी टिप्पणियां सदा से ही मेरा उत्साह वर्धन करती आई हैं ,आपका ह्रदय से आभार
उत्साह वर्धन के लिए आभार आ० नीता जी
ज़बरदस्त और सशक्त लघुकथा आ० प्रतिभा पाण्डेय जी I भूत के माध्यम से बड़े कमाल का संदेश दिया है - वाह I बहुत बहुत बधाई आपको इस अर्थगर्भित लघुकथा हेतु I
आपकी उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए तहे दिल से आभार आ० योगराज जी
भूत को प्रतीक बना बरगलाने वालों पर बहुत अच्छा कटाक्ष हुआ है आदरणीया प्रतिभा जी |
आदरणीय प्रतिभा जी, बहुत गूढ़ संदेश दे रही है आपकी यह लघुकथा । डर की परिभाषा सभी के लिए अलग अलग है। चंद धर्मांध जनूनी तो ऐसे है जिनका भय मरने के बाद भी पीछा छोड़ता । इस प्रभावोपादक कथा के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार आ० रवि प्रभाकर जी
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