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आदरणीया शशि बंसल जी, बेटी का बहुत कठोर रूप प्रस्तुत किया है। अपने पूरे परिवार की मृत्यु के बाद उनको अस्पताल के शवदाह गृह को सौंपने के लिए कहना। ऐसा लगता है वो खुद भी अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है कि कहीं उनके सारे क्रियाक्रम का बोझ उसके ऊपर ना आ जाए। बेटी ने बनावटी दुख जताकर खुद भी इस समस्या से पल्ला झाड लिया।
बहुत ही सुन्दर लघुकथा हुई है जिसका अंत एक ज़ोरदार झटका देता है I इस सधी हुई लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है आ० शशि बंसल जी
हार्दिक बधाई आदरणीय शशि जी!अच्छी लघुकथा लिखी गयी है!आज के ज़माने के कागजी रिश्तों पर बेहद खूबसूरती से आपने कलम चलाई है!बहुत मार्मिक प्रस्तुति!पुनः बधाई!
इतने स्नेहपुर्वक मेरे प्रतिक्रिया का उत्तर दिया आपने आदरणीय शशि जी ,मेरा मन सखी- भाव में स्निग्ध हुआ । आभार आपको हृदयतल ।
बहुत ही मार्मिक चित्रण है लघुकथा में आदरणीय शशि बंसल जी| बुरा वक्त तो सभी पर आता है, उस समय कोई सम्बल मिल जाये तो वक्त कट जाता है, लेकिन आज के स्वार्थी युग में बुरे वक्त में सहारा बनना कोई नहीं चाहता, वरन अच्छे वक्त में साथ सभी चाहते हैं| इस रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
लघु कथा के अंत ने सन्न कर दिया ,वक्ती रिश्तों को सच में परिभाषित कर दिया आपने इस लघु कथा में ...अंत में बेटी ने भी अपने फ़र्ज से पल्ला झाड लिया. सुख के सब साथी दुःख में न कोई दिल को दहला दिया इस लघु कथा ने |बहुत बहुत बधाई आपको प्रिय शशि बंसल जी .
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