आदरणीय साथिओ,
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आदाब। बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी।
नजर और नजरिया, बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी ।
रचना पर समय देकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
चीख का उत्सव
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प्रतापी राजा देश के रिवाज के अनुसार जनता द्वारा फिर राजा चुन लिया गया।राज-पद के आकांक्षी अन्य लोग खिन्न हुए।कानून के स्थापित राज में हत्याएँ होने लगीं। मारा गया शख्स कभी राज-पक्ष का होता, तो कभी कोई विरोधी या बेहशतगर्द। आज राजतिलक के पहले का जलसा हो रहा है।खूब कोलाहल,शोर-शराबा है।बालाएँ नृत्य कर रही हैं।सिंहासनारूढ़ होने के पूर्व मनोनीत राजा समर्थक जनता को संदेश दे रहा है।लोगों की बाँछें खिली हुई हैं।उधर बिल्लू की गोली लगने से जीवन-लीला समाप्त हो चुकी है।उसकी घरवाली को राजा की दूती सँवरी ढ़ाढस बँधा रही है...."जाने दो मालकिन, बिल्लूजी स्वर्ग सिधारे हैं।राजमुकुट सही सिर पर सुशोभित कराने में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।राजा ने खास उनके सत्कार्यों की याद दिलाने के लिए मुझे यहां भेजा है।"
-बहुरिया, यह ढ़ोल-मृदंग अभी बंद करा दो।बहुत सालती हैं इनकी आवाजें", बिल्लू की पत्नी बोली।
-नहीं मालकिन,ऐसा मत कहिये।यह तो जनता का अपमान होगा,बिल्लूजी का भी।
-कैसे?
-यह बिल्लूजी की जीत है, मालकिन।इसे नहीं रोका जा सकता। आप खुद को संभालिये।
-मैं तो अपने अरमानों को थाम चुकी हूँ,सँवरी। तुम सब अपने उछाह को थाम सको,तो थाम लो।जाओ। यह खुशी हमेशा थोड़े ही मिलती है। किसी के अरमानों की चीख का उत्सव ऐसा ही होता है,सँवारो! हाहाहा......हाहाहा!
"मौलिक व अप्रकाशित"
आदाब। इस समसामयिक संकेतात्मक करारी व्यंग्यात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। अंतिम भाग की स्पष्टता थोड़ी और बढ़ाई जा सकती है मेरे विचार से।
आभार आदरणीय। वैसे किस ढ़ंग की स्पष्टता वांछित होगी,यह जाहिर करते तो जरूर कोशिश करता।
समसामयिक विषय पर रचना अच्छी हुयी है मनन कुमार सिंह जी, बधाई स्वीकार करें
बहुत बहुत आभार आदरणीय।
उद्दंड और हिंसक हो रही राजनीति पर सटीक व्यंग्य हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमारसिंह जी
लघुकथा के भाव-प्रदेश की सराहना के लिए आपका आभार आदरणीया प्रतिभा जी।
वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर बढ़िया ताना बाना बुना है आपने. इस खेल में अंततः जनता ही खेत रहती है, राजा चाहे जो भी बने. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आ मनन कुमार सिंह जी
शहीद के नाम पर खुद का जश्न ऐसा ही होता है आदरणीय विनय जी।
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