स्तरीय साहित्य सर्जन के लिए नवांकुरों को प्रोत्साहित करना ओबीओ के मुख्य लक्ष्यों में से एक है. मुझे यह कहते हुए बेहद प्रसन्नता हो रही है कि ओबीओ ही शायद एकमात्र मंच है जहाँ किसी को भी शकल देखकर दाद नहीं दी जाती. ओबीओ ही एक मात्र ऐसा मंच है जहाँ एक एक पंक्ति, और एक एक शेअर पर समीक्षात्मक चर्चा की जाती है. आज इस बात को सभी ने माना है कि ओबीओ सीखने-सिखाने का एक अनूठा मंच है जहाँ सभी सदस्य एक दूसरे के अनुभवों से बहुत कुछ सीख रहे हैं. साहित्य की सभी विधायों को यहाँ समान आदर की दृष्टि से देखा जाता है. इसी उद्देश्य से ओबीओ पर प्रति माह तीन तीन त्रि-दिवसीय ऑनलाइन आयोजन भी करवाए जाते हैं. जिनका ब्यौरा इस प्रकार है:
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१. ओबीओ लाइव महा-उत्सव : इस आयोजन में रचनाकारों को एक विषय दिया जाता है, जहाँ सभी रचनाकार अपनी अपनी रचना के माध्यम से अपने विचारों कि अभिव्यक्ति करते हैं.
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२. ओबीओ लाइव चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता : यह एक इनामी प्रतियोगिता है. इसमें एक चित्र देकर उसे अपने अपने ढंग से परिभाषित करने को कहा जाता है. इस आयोजन में केवल छंद - आधारित रचनाएँ ही सम्मिलित की जाती हैं. प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान पाने वालो को पुरूस्कार स्वरूप क्रमश: १००१ , ५०१, २५१ रुपये की नकद राशि एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है.
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३. ओबीओ लाइव तरही मुशायरा: इस मुशायरे में शायरों को किसी नामवर शायर की ग़ज़ल का एक मिसरा देकर उस पर ग़ज़ल कहने के लिए आमंत्रित किया जाता है.
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इसके इलावा प्रति माह "महीने की सर्वश्रेष्ट रचना" एक "महीने के सब से सक्रिय सदस्य" को भी क्रमश: ५५१ व ११०० रूपये नकद एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाता है.
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जहाँ ग़ज़ल गुरु आदरणीय तिलक राज कपूर जी की सरपरस्ती में "ग़ज़ल" के तकनीकी पहलू सिखया जाते हैं वहीँ आदरणीय अम्बरीष श्रीवास्तव जी काव्य-प्रेमियों को सनातनी छंदों की बारीकियाँ सिखाते हैं. तीनो आयोजन भी किसी वर्कशाप से कम नहीं होते, जहाँ प्रत्येक रचना की खूबियों और कमी-बेशियों पर खुल कर संवाद होता है. यही विशेषता ओबीओ का कद बुलंद करती है.
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सनातनी छंद हमारी शान और धरोहर हैं. ओबीओ पर भारतीय छंदों को लोकप्रिय बनाने हेतु विशेष प्रयास किए जा रहे हैं. उसी का परिणाम है कि आज बहुत से युवा कवि छंदों की तरफ आकर्षित हो उच्च स्तरीय काव्य का सृजन कर रहे हैं. छंदों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही "चित्र से काव्य तक" इनामी प्रतियोगिता को छंद आधारित कर दिया गया है.
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मैं यहाँ एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हमारी किसी मंच, समूह या व्यक्ति से किसी प्रकार की कोई भी प्रतिस्पर्धा नहीं है. दरअसल इतने कम अरसे में ओबीओ ने इतने ऊंचे मानक निर्धारित कर दिए हैं कि आज हमारा मुकाबला खुद अपने आप से है. जिस प्रकार यहाँ पूरी ईमानदारी से सीखने-सिखाने का सिलसिला कायम हुआ है, उसके परिणाम-स्वरूप यदि आने वाले समय में यहाँ से कोई दुष्यंत या अदम निकले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. लेकिन इसके बावजूद भी हमें किसी प्रकार की खुश-फ़हमी में नहीं रहना है, क्योंकि अभी ये मात्र शुरुआत है अंत नहीं. मंजिल अभी बहुत बहुत दूर है. हमें नज़र मछली की आंख पर रखनी है और पाँव ज़मीन पर. ओबीओ एक परिवार है, इसका यह स्वरूप हमेशा कायम रखना है, मतभेद आएँ तो आयें - लेकिन कोई स्थिति ऐसी उत्पन्न नहीं होने देना जहाँ मनभेद हो जाए.
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इस अवसर पर मैं ओबीओ बाणी भाई गणेश बागी जी को भी विशेष साधुवाद देना चाहूँगा जिन्होंने यह अनुपम मंच हम सब को प्रदान किया. ओबीओ कार्यकारिणी एवं प्रबंधन समिति के सभी सदस्यों को भी इस अवसर पर हार्दिक साधुवाद देता हूँ जिनकी अथक मेहनत की बदौलत ओबीओ आज नई ऊँचाइयाँ छूने कि दिशा में अग्रसर है. अंत में मैं ओबीओ से जुड़े हरेक साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी को इसके तीसरे वर्ष में प्रवेश करने के शुभ अवसर पर बधाई देता हूँ.मैं आशा करता हूँ कि आप सब साथियों के सानिध्य में यह काफिला अपनी मंजिलों को फतह करता हुआ निरंतर आगे बढ़ता जाएगा. जय भारती - जय ओबीओ. सादर
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योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)
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adarniya mahodaya ji, sadar pranam.
mere prashikshan hetu koi guru ka sanidhya (mentor) mil sakta hai. koyla hira banna chahta hai. par ye jaan lijiye main zero hoon,
obo pragti kare. kitni bhi badhayen aayen. dhaal banunga. badhai, shubh kamna.
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुशवाहा जी.
ओ बी ओ की दूसरी वर्षगाठ पर आप सभी को बधाई . मेरी फूलों की बगिया भी यूँ ही खिलती रहे ओ बी ओ के संग .
शुक्रिया गणेश लोहानी जी.
दिल के भाव समेट कर, साझा की है बात
उद्बोधन संयत सुगढ़, नत सादर हूँ तात ..
सादर धन्यवाद आदरणीय सौरभ भाई जी.
अमृत वाणी है यहाँ, मित्र-भाव गुरु-स्नेह.
जग में दूजा है नहीं, ओ बी ओ सम गेह.. :-)
सादर
आपने बिलकुल सही फरमाया आदरणीय अम्बरीश भाई जी - "ओबीओ दा जवाब नहीं"
इस विचोरोत्तेजक आलेख के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें!
अब तक के परसों के लिए सक्रिय संचालकों को विशेष रूप से बधाई!
इतिहास साक्षी है के मठाधीशों का प्रवेश संस्था के मूल उद्देश्य खा जाता है! इस विषय में अछूता रहना ही ओ बी सी की गरिमा को कायम रखने में सहायक रहा है और रहेगा ऐसी आशा है! जिस वातावरण में सांस लेने में घुटन हो वहां कोई नहीं रहना चाहेगा! इस बात को ओ बी सी ने समझा और पालन किया! सदस्यों ने भी मर्यादाओं का ध्यान रखा, यह अनुकर्णीय है!
ओ बी सी में स्नेह का बस ये ही आधार
मर्यादित होकर सभी करते व्यक्त विचार!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तिलक राज कपूर साहिब.
आमीन ! आदरणीय श्री संपादक महोदय हम सब आपके साथ है इस सृजन पथ की राह अवश्य ही स्वर्णिम उपलब्धियों से भरी है !!
बहुत बहुत शुक्रिया भाई अरुण अभिनव जी.
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