For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही मुशायरा / इवेंट्स से जुड़े प्रश्नोत्तर

कुछ मित्रों ने मुझे संपर्क किया तरही मुशायरे के बारे में जानने के लिए| तो मैने सोचा कुछ और मित्र भी होंगे जो इस बारे में जानना चाहते हों| खुद मुझे भी कुछ बातें पता नहीं हैं| इसलिए सोचा क्यूँ न एक चर्चा शुरू कर दी जाए| हम सब एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखते रहेंगे| अपनी जानकारी सभी के साथ साझा कर रहा हूँ| इस में जो त्रुटि हो, अन्य मित्र साधिकार सुधार दें| चर्चा सकारात्मक रूप से चलती रहनी चाहिए|

मुशायरा - हम जानते ही हैं|

तरही मुशायरा -

एक ऐसा मुशायरा जहाँ पहले से ही कोई एक पंक्ति बता दी जाए और सभी शाइर अपनी अपनी ग़ज़ल्स उसी पंक्ति को ले कर लिखें| इस पंक्ति को ही तरही का मिसरा कहते हैं|

ग़ज़ल - हम जानते ही हैं|

शे'र - दो मिसरों / पंक्तियों का जोड़|

मिसरा - शे'र की कोई एक पंक्ति|

मिसरा ए ऊला - शे'र की पहली लाइन|

मिसरा ए सानी - शे'र की दूसरी लाइन|

मतला - ग़ज़ल का पहला शे'र| यहाँ दोनो पंक्ति में रद्दिफ / काफ़िए का पालन होता है|

मकता -

ग़ज़ल का वो शे'र जिसमें शायर अपना उपनाम या तखल्लुस लिखता है| ग़ालिब साहब का ये शे'र देखिए:-
बन के शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता|
वरना, 'ग़ालिब' की शहर में आबरू क्या है||
यहाँ शायर का नाम आने से ये शे'र मकते का शे'र हुआ| कुछ लोग ग़ज़ल के अंतिम शे'र को भी मकता मानते हैं| ये सही या ग़लत है, बाकी मित्र बताने की कृपा करें|


रद्दीफ / काफिया
हवा करती है सरगोशी, बदन ये काँप जाता है|

ये पिछले मुशायरे का तरही मिसरा था| इस में 'है' चूँकि हर पंक्ति के अंत में आ रहा है, इस लिए रद्दिफ हुआ| और 'जाता' काफिया हुआ| आप पिछले मुशायरे की पोस्ट्स को रेफर करें, तो बाकी की सारी बातें आप लोग अपने आप समझ जाएँगे| सलिल जी ने तो 'जाता है' को रद्दिफ माना और 'काँप' को काफिया बनाया| मैने एक जगह 'आ' को काफिया माना है|

फिर भी यदि किसी को कोई शंका हो, तो कृपया आगे बढ़ कर पूछने में संकोच न करें| यहाँ हम सब एक दूसरे से सीख रहे हैं| अगर मेरी लिखी किसी बात में त्रुटि हो, तो अन्य मित्र कृपया साधिकार उसे सुधारने की कृपा करें|

बहर / तकतीह / वज्ञ -

इस बारे में मुझे ज़्यादा जानकारी नहीं है| सिर्फ़ इतना जानता हूँ 'बहर' यानि 'छंद'| तकतीह या वज्ञ यानि विधान| मात्राओं के साथ-साथ गेयता और यति का ख़याल रखना ग़ज़ल को खूबसूरत बनाता है| इस के लिए रियाज़ / प्रेक्टिस ही सबसे सुगम / सुलभ और सर्वोत्तम मार्ग है| यानि मुशायरे और इवेंट्स में विद्यार्थी बन कर भी भाग लेते रहना| इन की शुरुआत का उद्देश्य ही है लोगों में सीखने / सिखाने की प्रवृत्ति को मुखर करना|

वर्तमान तरही मुशायरे का मिसरा:-

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|

वज्ञ:- फऊलन फऊलन फऊलन फऊलन

मात्रा :- १२११  १२११  १२११  १२११
संकेत:-    - = - -     - = - -     - = - -     - = - -

मैने जैसे सीखा वो आप से साझा करता हूँ| कुछ मंतर हैं इस तरह की बहर के, उन का २०-२० बार जाप करने से भक्तों को अवश्य वांछित फल की प्राप्ति होती है|
 :)

मंत्र १ :- चलाचल / चलाचल / चलाचल / चलाचल
मंत्र २ :- उठा दे / गिरा दे / "जो" चाहे / सज़ा दे
मंत्र ३ :- सितमगर / कहाँ है / न अब तू / सता दिल
वर्तमान तरही का मिसरा:- खुदा की / "है" ये दस / त कारी / मुहब्बत
यहाँ 'जो' और 'है' में हर्फ को गिराया गया है| हर्फ गिराने का मतलब है २ मात्रा वाले शब्द को १ मात्रा वाले शब्द की तरह बोलना| हर्फ यानि अक्षर|

तो आप ने देखा मात्राओं को हम अपनी सुविधा अनुसार फिट कर सकते हैं| उच्चारण पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए, मात्रा गिनने के बनिस्बत| भाई मैं तो ऐसे ही सीखा हूँ| हाँ, उपलब्ध रियायतों के अति उपयोग से बचना श्रेयस्कर रहता है|

फिर भी विद्यार्थी काल में, सभी मित्रों से प्रार्थना है कि "चढ़ जा प्यारे छत पे, भली करेंगे राम"

Views: 6449

Reply to This

Replies to This Discussion

तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है 
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है

 

क्या इस मतले में ईता दोष नहीं हुआ?

मुझे तो लग रहा है इसमें ईता दोष है.

राजीव जी आप बिलकुल सही कह रहे है| यहाँ पर इता का दोष बनता है| ये एक बड़े शायर का शेर मैंने केवल काफिया समझाने के उद्देश्य से लिखा था|

लगा

जला

कफियाबंदी में  इता दोष कहाँ से घुस गया भाईयों ?

दोनों गुरु भाईयों से कान पकड़ कर माफी मांगता हूँ 

 

यहाँ पर छोटी इता का दोष है 

लगा

जला

में "लग" "जल" दोनों के अर्थ निकल रहे हैं और दोनों अतुकांत हैं और दोनों का वही अर्थ मिल रहा है जिस पर काफियाबंदी की गई है 

 

मैंने जल्दी में जल के "जलना" वाले अर्थ पर ध्यान नहीं दिया और "पानी के अर्थ को पकड के छोटी इता से भी मुक्त मान लिया "

 

होता है कभी कभी :)

beshkk?

श्री शेष जी एवं नवीन जी , कुछ बातें स्पष्ट करनी आवश्यक हैं और हमें नियमों को कड़ाई से लागु करना चाहिए , पिछले इवेंट में वास्तव में कुछ पुराने संपादकमंडल के सदस्यों की कमी खटकी | कई लोगों ने छिट -पुट टाइप की और कई कई रचनाएं पोस्ट की जो गंभीरता और स्तरीयता को प्रभावित करती हैं | ओ.बी.ओ. को एक्टिव और अपनी विधा के माहिर सदस्यों की ज़रूरत है | हमें भीड़ से ज्यादा जानकार बौद्धिक जन चाहिए | मैंने कई साथियों को इन्विटेशन दिया कुछ सदस्य भी बने पर अधिकतर एक्टिव नहीं हैं | साहित्य को यह संकट हर स्तर पर झेलना पड रहा है | हमें हाशिए पर खड़े सार्थक शब्दों को मंच देना है |..निः संदेह तरही अधिक लोकप्रिय है पर वो साथी भी यदि यहाँ थोडा समय प्रतिदिन दें तो कुछ अच्छा स्वरुप उभरेगा |

मेरी शुभकामनाएं !

Aderniya dosto,

 main apne rechna post kerne ke baad dubara computer per aaj betha hun our aapka abhar kerta hun ki aapne mare rechna ko serahah.

aapka apna

Arvind chaturvedi

नविन जी मुझे नहीं लगता की डिस्कसन बंद करने की जरूरत है , वैसे यह डिस्कसन आपने शुरू किया है तो बंद करने का सर्वाधिकार आपके पास भी सुरक्षित है | आप जैसा उचित समझे |
मैं जानता हूँ की मेरी जानकारी पूरी नहीं हो सकती मगर जितना जानता हूँ उसके आधार पर कह रहा हूँ
तरही मुशायरा एक तरह से सकारात्मक मानसिकता की प्रतियोगिता है जो पुराने समय से आयोजित की जाती रही है
जिसमें उस्ताद शायर का एक मिस्रा दिया जाता था और सुखनवर उस मिसरे पर अपने शेर कहते थे और ग़ज़ल मुशायरे में पढ़ते थे 
चूँकि उस्ताद शायर की ग़ज़ल में रदीफ़ और काफिया निर्धारित हो चुका होता था इस लिए ये जरूरी नहीं समझा जाता था की काफिया और रदीफ़ बताया जाए, सुखनवर उसी रदीफ़ और काफिये पर अपने शेर कहते थे
जो यह यकीन रखता था की वह इस मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल कह सकता है वही ग़ज़ल कहता था तरही मुशायरे में बिना इस्लाह करवाए ग़ज़ल पढ़नी होती थी 
मगर अब थोडा सा बदलाव हुआ है और लोग हवा से मिसरे भी निकाल लेते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है मगर एक दिक्कत ये आती है की अगर काफिया और रदीफ़ न बताया गया हो तो सभी अपने हिसाब से काफिया और रदीफ़ को चुनने को स्वतन्त्र हो जाते हैं जो इस मुशायरे के केंद्र भाव (प्रतियोगिता) को ख़त्म कर देता है
अगर कोई 
देश के कण कण से और जन जन से मुझको प्यार है 
में रदीफ़ केवल "है" चुनता है और कोई "से मुझको प्यार है " चुनता है तो दोनों की ग़ज़ल के स्तर में जमीन आसमान का फर्क आ जाता है 
मैं जानता हूँ की इस बार तो यह संभव नहीं है मगर अगर हो सके तो अगली बार मिसरा देते समय "काफिया", "काफिया हर्फे रवि" और "रदीफ़" को भी पहले से बता दिया जाय जिससे सभी एक स्तर पर आकर शेर कह सकें और पढने वालों को भी एक दूसरे का आकलन करने में आसानी हो   
कहीं कोई बात गलत लगी हो तो ज्ञान वर्धन करें 

Venus भाई , नमस्कार ,

आप की बातों से मैं सहमत हूँ , किन्तु थोड़ा सा मैं प्रकाश डालना उचित समझता हूँ , ओपन बुक्स ऑनलाइन का मुख्य उद्देश्य युवा और नई पीढ़ी को साहित्य के प्रति रूचि जगाना है, जैसा कि आप भी महसूस किये होंगे कि ग़ज़ल जैसी खुबसूरत विधा को चंद फनकारों ने चू चू का मुरब्बा बना रखा है और वो चाहते है कि कुछ भी जानकारी देने के एवज मे अदब के नाम पर तलवे चटवाया जाय , और तो और सीधे मुह बात करने को तैयार नहीं है , OBO लाइव तरही मुशायरा प्रारंभ करने के पीछे भी लोगो को ग़ज़ल से जोड़ना मकसद रहा है कोई प्रतियोगिता नहीं , इसी बहाने हम सभी एक दुसरे से सीखते सिखाते है , आप पिछले मुशायरों के अंक को देखेंगे तो पायेंगे कि कुछ अंक (१,३,४.५) मे रदीफ़/काफिया बताया गया था और कुछ अंक (२,६,७) मे स्वतंत्र किया गया है ताकि सदस्यों को व्यापकता मिले और अपने तरह से मतला कह रदीफ़ और काफिया का निर्धारण करना भी सीखे, आप यह भी कह सकते है कि हम लोग प्रयोग के दौर से भी गुजर रहे है | अपनी जानकारी के अनुसार कुछ लिखने का प्रयास किया है शेष तो इस मुशायरे के संचालक राणा जी, अपने नविन भैया और प्रधान संपादक सर ज्यादा बढ़िया तरीका से कह सकते है | आप जैसे फनकार से हमे काफी उम्मीद है कि आपका भरपूर सहयोग हमे मिलेगा |  

गनेश जी नमस्ते,
मैं ग़ज़ल के स्कूल का एक अदना छात्र हूँ 
बारीकियों को सीख समझ रहा हूँ 
आप इस मंच के जरिये जो संजीदा कार्य कर रहे हैं मैं आपका मुतासिर हूँ 
अभी अभी राणा जी से फोन पर बात हुई, उन्होंने भी यही कहा 
मैं उनसे और आपसे सहमत हूँ की सीखने - सिखाने की प्रक्रिया में तरलता होनी चाहिए
- वीनस 
बहुत बहुत धन्यवाद, Venus भाई, मैं भी आपसे प्रभावित हूँ |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
Mar 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
Mar 6
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Mar 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Mar 2
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service