परम आत्मीय स्वजन
सादर प्रणाम,
हालिया समाप्त तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर है| मिसरों में वही दो रंग हैं, लाल=बेबह्र, हरा=ऐब वाले मिसरे|
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तिलक राज कपूर
सवाल पूछ रहे हो जो इस ज़माने से
सदा बने हैं मेरे काम मुस्कराने से
दिलों पे राज किया चन्द घर बसाने से
असर हुआ तो, मगर देर तक नहीं ठहरा
हवायें तेज बहुत हैं जरा संभल के चलो
जिसे यकीं था वही पार हो सका लेकिन
उठा न सूर्य मगर रौशनी दिखी सबको
क्षितिज की धार चमकने लगी तो वो बोला
नदी के घाट पे ठहरी हैं कश्तियॉं सुन कर
नया है वक्त नयी है विकास की भाषा
नदी कभी थी मगर सूखकर बनी नाला **************************** गिरिराज भंडारी
दिल आज चुप मेरा बैठा रहा मनाने से
लहर खुशी की अँधेरों में दिख रही अब तो
तू आ, कभी तो उतर ,छत पे चाँदनी मेरी
सुना है , ख़ौफ़ में खुर्शीदो माह दोनों है
ये बहना आँसुओं का यूँ तो कम नही होगा
ज़हर भरा है फ़िज़ाओं मे सांस लेना है
मेरी वफ़ा की निशानी वहाँ पे रक्खी थी
सही पता तो सभी का ख़ुदा के घर का है **************************** शिज्जू शकूर
मेरे नसीब मुसल्सल तेरे सताने से
कुछ एक पल के लिये बदहवास हो गये सब
घड़ी-घड़ी जो पुकारे न जाने क्यूँ मुझको
सुना है आ ही गया ज़ेरे-संग वो इक रोज़
ये इश्क़ और वफ़ा गाह रंजो-शाद कभी
किसी से कर न सका दर्द मैं बयां अपना **************************** वंदना
उफ़क पे हो न सही फ़ाख्ता उड़ाने से
चलो समेट चलें बांधकर उन्हें दामन
रही उदास नदी थम के कोर आँखों की
निकल न जाए कहीं ये पतंग इक मौका
बुझे अलाव हैं सपने मगर अहद अपना
शफ़क मिली है वसीयत जलेंगे बन जुगनू
अभी तो आये पलट कर तमाम खुश मौसम ***************************** नीलेश नूर
नई किताब के सफ्हे लगे पुराने से,
हमें न थाम सकेगा कोई सहारा अब,
लगे हैं लोग मुझे देख बुदबुदाने कुछ,
सभी ने बांध रखी हैं दिलों में गिरहें चंद,
फ़लक़ झटक के गिरा डालता सितारे चाँद,
लगी न अक़्ल ठिकाने अभी तलक़ उसकी,
सफ़र में बैठ गया, पाएगा कहाँ मंज़िल,
चिराग़ जान गए थे हवा की हर फ़ितरत,
वो आदमी भी नहीं, तुम ख़ुदा बताते हो,
बने हुए हैं ख़लीफ़ा जहान के जुगनू,
अयाँ हुई ये हक़ीक़त, मरा वो बिस्तर पर, ***************************** शकील जमशेदपुरी
सुकून दिल को न मिलता किसी बहाने से
नहा रहा है पसीने से फूल बागों में
फिर एक बार इरादा किया है मिटने का
जवान बेटी की शादी की फिक्र है शायद
शहर में जुल्म हुआ किस तरह से दीपों पर
लिखोगी रोज मुझे खत ये तय हुआ था पर
‘शकील’ और न रुसवा हो अब जमाने में ***************************** इमरान खान
हमें सज़ायें मिली हैं ये दिल लगाने से,
हमारी सोच पे माज़ी का एक पहरा है,
हमारे घर में अंधेरों के रक्स होते हैं,
हज़ार बार उन्हें इम्तेहाँ दिये लेकिन,
हम उनके नाम ये सारी हयात करते हैं,
वो जिनके वास्ते हम इस जहाँ के हैं दुश्मन,
मैं शायरी का दीवाना हूँ इसलिए क्योंकि, ***************************** दिगंबर नासवा
नहीं वो काम करेगा कभी उठाने से
तमाम शहर पे हैवान हो गए काबिज़
लिखे थे पर में तुझे भेज ना सका जानम
कभी न प्यार के बंधन को आज़माना तुम
तू आ रही है हवा झूम झूम कर महकी ***************************** संजय मिश्रा "हबीब"
मना सका न जमाना किसी बहाने से।
गया नहीं फिर अंधेरा हुआ नुमायाँ जो,
तवील रात सितारों पे स्यात भारी है,
ये नाबकार सियासत कहा झिझकती है,
मुझे डुबो ही गया जिसको नाखुदा माना,
‘हबीब’ नग्में मसर्रत के गो सुनाता पर, **************************** केवल प्रसाद
ये वादियां ये नजारें सभी सुहाने से।
ये चांद रात जलें, दास्तां जमाने से।
उठो चलो कि बहारें तुम्हें बुलाती हैं।
मान दिया है जिसे शाम ही डंसे मुझको।
रूलाए खून के आंसू, बता रहे मूंगा।
मुझे ये डर है कि बेमौत मर न जाएं हम। ***************************** सचिन देव
मां खुश बहुत थी कभी उसके घर से जाने से
वो लाल जोड़े में घर से विदा न ले पाई
दरिंदों की भी ज़रा रूह तो डरी होगी
हुई है शर्म से इंसानियत भी तो पानी
भला किया था क्या उसने जो ज़िन्दगी खोयी
सुकून कुछ तो मिले उसकी रूह को शायद
लगे है आज भी चन्दा की चांदनी मद्धिम ***************************** अतेन्द्र कुमार सिंह रवि
बताना यार मुझे क्या मिला रुलाने से
मेरी वफ़ा का जनाज़ा चला इधर से जो
नहीं सजी है कभी रागिनी वफाओं की
वो सामने था मगर आज ये लगा कैसा
वो पास थे या किसी ख्वाब के बने मंजर
हमें पता था मुहब्बत नहीं किया तुमने
तेरी तलाश मेरी आशिकी रहे बाकी ***************************** प्रकाश पाखी
मिला न कुछ जब रिश्तों को आजमाने से
बेनूर हो छुपती कहकशाँ ज़माने से
कहाँ कहाँ न उजाला किया जला खुद को
है खोजते अब जो कायनात में उसको
जुदा जुदा है तो प्यादा वजीर जब खेलते
विलीन हो गया अब हंस नाद में पाखी **************************** अरुण कुमार निगम
किया गरीब मुझे फिर किसी बहाने से
न सुर सजे न सधे बोल कैसे गाऊँ मैं
रुला-रुला के गई हाय चाह हँसने की
ये रात भीगी हुई मस्त थी फिजाँ सारी
चिराग जल न सके, रौशनी हुई तन्हा ****************************** विशाल चर्चित
बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से
बहुत दिनों से अंधेरों में था सफर दिल का
नया सा इश्क नयी सी है यूं तेरी रौनक
चलो कि पा लें नई मंजिलें मुहब्बत की
कसम खुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित **********************************************
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संदीप कुमार पटेल जी
तके हैं राह बिछा चश्म हम दिवाने से
करे हो जिक्र किसी गैर का मेरे आगे
यूँ पहली बार तुझे देख के लगा मुझको
तू रब है और समन्दर की जैसे दिल तेरा
पता अभी का नहीं और बात कल की करो
बसा लिया है तुम्हे चश्म में कुछ ऐसे कि
गुरूर छाने लगे जुगनुओं के दिल में भी
नहीं हो तुम जो मेरे पास गर्दिशें यूँ बढ़ें ************************************ राणा प्रताप सिंह
हमारी जेब में हैं ख़्वाब कुछ पुराने से *********************************** सुरिंदर रत्ती जी
ये आग है उल्फ़त की बढ़े बुझाने से ।
बहल जाये दिल गीतों के गुनगुनाने से ।
ग़ज़ब तेरा जलवा के बचा नहीं कोई ।
छुपा लिया है चेहरा ग़ैर जान के फिर से ।
सुलग रही कब से सांसें दिल्लगी करके ।
हैं पास चाँद कई फ़र्क़ क्या पड़ेगा अब ।
समझ के भी न समझ बनते हैं सभी "रत्ती"। *************************** संदीप सिंह सिद्धू "बशर"
ज़मीर-ओ-अज़्म सलामत हैँ, सर उठाने से,
ख़िज़ाँ हो ज़िन्दगी, या ज़लज़ला, या तूफाँ हो,
वतन ग़ुलाम था तो सरफरोश क़ौमेँ थीँ,
चले न इल्म पे जब ज़ोर, उम्र-ओ-दौलत का,
अदा-ओ-नाज़ बढ़े, उन के, अपना सब्र बढ़ा,
शब-ए-हयात ने, हर ख़्वाब को, सहर बख़्शी,
“बशर” ख़ुदा की ग़ज़ल का वो शेर है, जिस मेँ, ******************************* रमेश कुमार चौहान
रूठा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से
ऐ आदमियत खफा हो चला जमाने से
नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी
जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो . ************************** अशफ़ाक़ अली (गुलशन खैराबादी)
जो पास आता नही है कभी बुलाने से
मिलेगा क्या उन्हें रूदाद-ए-ग़म सुनाने से
ये बात अपने बुज़ुर्गों से सुनते आये हैं
न जाने कितने चराग़ों ने ख़ुदकुशी की है
जो बात सच है भला तुम कहाँ वो मानोगे
अँधेरी हो गयी अब कयनात-ए-दिल कितनी
न जाने कितनो कि क़िस्मत संवर गयी 'गुलशन' ***************************** राजेश कुमारी
तमाम उम्र गुजरती गई सिराने से
लकीर उम्र कि बचती रही दिखाने से
न छोड़ कल पे सभी काम आज पूरे कर
ख़ुदा परस्त न जाने कहाँ हुआ औझल
यकीं नहीं था जिन्हें उस ख़ुदा की रहमत पर
फ़लक का नूर अचानक हुआ कहाँ गायब
उसे यकीं न हुआ "राज" जिस मुहब्बत पर ***************************** अभिनव अरुण
डरा नहीं जो कभी गिरने, चोट खाने से ,
ये किसने धूल भरी आंधियों की साजिश की ,
तुम्हें भी ख्व़ाब परेशां नहीं करेंगे पर
पुरु की हार सिकंदर की जीत पर भारी
न जाने क्यों ये सितारे ख़ुशी से पागल हैं ,
जो साफगोई की उम्मीद तुमसे रखता था ,
गुलों की हसरतें होने को हैं जवान मगर,
जो श्याम रंग से सकुचा छुपी है झुरमुट में, ****************************** सरिता भाटिया
रही है मार ये सरकार इक ज़माने से
करें हैं लक्ष्मी का स्वागत सजाके घर अपना
बधाई मिल रही लक्ष्मी है पैदा आज हुई
रुकी है आज तलक बेटी मायके में ही
दिखे थी बेटा जिन्हें बेटी अपनी लक्ष्मी सी
कई है जिंदगियां मिटने को चले आओ
मिटा गरीब का है आशियाँ सदा के लिए
हुआ है आज अँधेरा बुझी बसी बस्ती
बसा दो सरिता उन्हें तो बहुत दुआएं मिलें ******************************** आशीष नैथानी 'सलिल'
मैं चाहता हूँ कि हँसकर मिलूँ ज़माने से
सहूँ तो कैसे मैं ताउम्र गल्तियों कि सज़ा
ख़ुशी का एक परिंदा मेरे करीब नहीं
गरीब सोच में है कैसे खर्च निकलेगा
ऐ दिल सँभल के चला कर कँटीली राहों में
अलग है बात कि आवाज़ में नहीं जादू **************************** अजीत शर्मा आकाश
तुम्हारी आस है इस दिल को इक ज़माने से
हरेक फूल में ख़ुशबू है, हर किरन में चमक
न जाने कौन सी दुनिया में गुम-स्रे बैठे हैं
करेंगे हम पे निगाहे-करम कभी न कभी
चिरागे-दिल जो जलाओ तो झिलमिलाए जहां
दिलों में और भड़कती ही जाती है हर दिन
ठहर गया सा लगा ये जहान पल भर को *************************** सूर्या बाली "सूरज"
मिली है प्यार की दौलत तेरे ख़ज़ाने से।
के आ भी जाओ सिमट जाओ मेरी बाहों में,
न इसको ख़ुद की ख़बर है न है ज़माने की,
वतन मे अम्न का माहौल मेरे कब होगा,
सुना है देख के तुमको खिले हैं दिल में गुलाब,
बुजुर्ग माँ के कलेजे पे क्या क्या गुजरा है,
ये इश्क़ राह है, मंज़िल न ढूढ़िए इसमें,
दिखावे करता है “सूरज” से दोस्ती के मगर, **************************** वींनस केसरी
बड़े हुए थे जो छोटा हमें बताने से
पता चला कि मेरे दोस्त ही परेशां हैं
अरे ! तो क्या मुझे ही फिर सफाई देनी है
तुम्हारे बज़्म की रौनक न खत्म हो जाए
गलत को तुमने गलत कह दिया है क्या 'वीनस' *********************************************** श्री मोहन बेगोवाल
पता नहीं वो मिले कब यूँ ही बहाने से । ********************************************** राम अवध विशवकर्मा
चले हैं रोग भगाने अनारदाने से। |
किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती रह गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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राणा भाई अपने इस मिसरे पर नज़रे सानी फरमा लें -
तुम्हारे दस्ते हिनाई की वो ताज़ी खुशबू
वीनस भाई दरअसल इस मिसरे में संशोधन हुआ था जो यहाँ छूट गया
"तुम्हारे दस्ते हिनाई का मखमली एहसास"
आदरणीय राणा सर इतनी जल्दी परिणाम देख बड़ी ख़ुशी मिली ....और गलतियाँ नहीं मिली तो दीवाली का आनन्द आ गया
कुछ बेहतरीन गज़लें पढने से छूट गयीं थी आदरणीया राजेश जी सरिता जी आदरणीय आशीष जी और डॉ. सूर्या बाली जी और अजीत जी की.... आप सभी को मेरी ओर से हार्दिक बधाई
दीपावली पर मंच के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं
क्या कहने आदरणीय राणा साहेब दिवाली के रॉकेट की रफ़्तार।.नेट की सुस्त रफ़्तार के कारन कल शाम देर में अपनी ग़ज़ल पोस्ट कर पाया | आज सुबह देखने को इस मंच पर आया की कैसी रही तो सबसे पहले आपके इस संकलन पर नज़र पड़ी है | मुशायरे के कुशल सफल सक्रिय सञ्चालन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ! एक से एक नायाब रोशन चमकदार ग़ज़लें हुई हैं शायर साथियों को दिली मुबारकबाद | हर तरही मुशायरे से कई कई सीख मिलती है ग़ज़ल के नए आयाम खुलते हैं , सीखने का अप्रतिम अनुपम अवसर मिलता है | ओ बी ओ के प्रति आदर से नत हूँ ! नमन वंदन संपादक और प्रबंधक महोदय और सभी अग्रजों का ! मेरी ग़ज़ल को सराहने के लिए आ. योगराज श्री जी ,श्री बागी जी , अग्रज श्री जी , श्री वीनस जी , शकील जी , राजेश जी , संजय जी अतेन्द्र जी ,अखिलेश जी ,दिगंबर जी , डॉ सूर्या साहिब ,आशीष जी संदीप जी सभी के प्रति विशेष आभार आपका प्रत्युत्तर देर रात बाहर रहने के कारन तरही में नहीं दे सका , खेद है ! सभी को प्रकाशपर्व पर हार्दिक शुभकामनायें !!जीवन में ग़ज़ल के दीप नित- नित जलें, हज़ार हज़ार शेरो वाले दीप रोशन हों , यही कामना है !!
वाह राणा साहब वाह लाजवाब 12 बजे मुशायरा खत्म और 17 मिनट में संकलन भी तैयार बहुत बहुत बधाई आपको.
मुशायरे के पहले दिन ग़ज़लों की अपेक्षाकृत कम संख्या देखते हुये मायूसी हुई थी लेकिन दूसरे दिन एक से बढ़कर एक गज़ल के शामिल होने से सारी मायूसी दूर हो गयी अपनी व्यस्तता के चलते और नेट की समस्या के चलते मैं प्रतिक्रिया नही दे पाया
ये तो 'आज-तक' से भी तेज रफ़्तार हो गयी।
आदरणीय राणा साहब क्या यहाँ मात्रा गिराना जायज़ है???
पहले मिसरे में तो बिलकुल जायज़ है और कोई अटकाव भी नहीं हो रहा है
दूसरे मिसरे में क्या को १ वज्न में बांधा गया है जिससे अटकाव महसूस हो रहा है, पर क्या को १ में बांधना जायज़ माना गया है
आदरणीय रणा प्रताप सर , आपकी रफ्तार से अचम्भित हूँ , 16-17 मिनट मे आपने चिन्हित संकलन परोस दिया !!!! आपको बहुत बहुत बधाई , कुशल मंच संचालन के लिये और इस त्वरित संकलन के लिये भी !!!!!
आदरणीय राणा प्रताप सर , नीचे के मिसरे मे मुझे शंका हो रही है , मात्रा गड़बड़ है , कृपा कर स्थिति साफ करें !!!
1212 1122 1222 22
किसी के आ/ज भी निकलें/ हैं ख़त, सिरहा/ ने से ------ आदरणीय क्या ये तक्तीअ सही नही है ?
यहाँ पर सिरहाने को सिराने की तरह १२२ में बांधा गया है|
आश्चर्य... आनंद... कल की छूटी हुई गजलें पढ़ने आया था मगर यहाँ तो संकलन ही तैयार है... इतना तेज...!!! वाह!!!
आदरणीय राणा प्रताप जी सादर बधाई/आभार स्वीकारें...
||जय ओ बी ओ||
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