आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
पिछले 74 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-75 (डायमण्ड जुबली अंक)
विषय - "किसान"
आयोजन की अवधि- 13 जनवरी 2017, दिन शुक्रवार से 14 जनवरी 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 जनवरी 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, यह ऐतिहासिक सत्य है कि उत्तर-वैदिक काल में लौह तकनीक पर आधारित नवीन कृषि प्रणाली के कारण कृषि उत्पादन में अधिशेष प्राप्त होने लगा। यह अधिशेष उत्पादन ही बड़ी बस्तियों के प्रादुर्भाव का प्रमुख कारण बना। यही बस्तियां धीरे धीरे बड़े नगरों का रूप लेने लगी। कृषि अधिशेष और जिसके फलस्वरूप अनेक शिल्पों तथा उद्योग धंधों की प्रगति ने संपदा की वृद्धि की। इसी संपदा की रक्षा की चिंता ने ही रक्षक इकाइयों और राज्य की संकल्पना को जन्म दिया। अब राज्य, राजस्व संग्रहण और राज्य वासियों की सुरक्षा का दायित्व निभाने लगा। इस प्रकार राजस्व संग्रह आधारित शासन व्यवस्था आरम्भ हुई जो राजतंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र और कबायली-तंत्र जैसे कई रूपों में यह परंपरा आज तक चली आ रही है. बस इसी मूल को आपकी प्रस्तुति में पाकर मुग्ध हो गया. अपने कहे पर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ। हार्दिक धन्यवाद आपका. सादर
काश यही स्थिति भारत में भी होती....
हा हा हा ..... सही कहा आपने.
वाह वाह ! क्या ही सार्थक चर्चा हुई है ! अभी-अभी मैं इसी तथ्य की ओर इशारा कर रहा था, कि आदरणीय विजय शंकर जी ने अपनी रचना के माध्यम से राजनयिक संस्कृति का मानों पूरा हवाला ही दे दिया है..
बहुत खूब
आभार
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