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आ0 समर साहिब आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आद0 बासुदेवअग्रवाल जी सादर अभिवादन। बढिया सरसी रचे आपने। इस प्रस्तुति पर कोटिश बधाई निवेदित है। सादर
आ0 सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आपका हृदय तल से आभार।
आ0 सतविंद्र कुमारजी बहुत आभार।
सुंदर छंद कहे आदरणीय वसुदेव जी बधाई स्वीकारें ...आपकी रचना से प्रेरित होकर हमने भी बमुश्किल एक कोशिश कर डाली ..
जान लड़ा कर भी क्यूँ अपनी भूखा रहे किसान
कब तक खाली पड़े रहेंगे खेत और खलिहान
सादर ....
आ0 नादिर खान जी आपका तहे दिल से शुक्रिया।
बहुत अच्छी द्विपदी रची है आपने।
आ0 छोटे लाल जी बहुत आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय वासुदेव अग्रवाल नमन जी। बेहतरीन रचना।
आ0 छोटे लाल सिंह जी आपका बहुत आभार।
खेत और खलिहान (दोहा छन्द)
खेत और खलिहान में, रमते सदा किसान
सच पूछें तो हैं यही, दुनिया के भगवान ।1।
खेतों से कट कर फसल, आती है खलिहान
इसी फसल से जी रहे, धरती के इन्सान ।2।
खेत आज बंजर पड़े, सूने हैं खलिहान
कृषक पलायन कर रहे, चिंतित हैं भगवान ।3।
खेत बेच भेजा जिसे, बनने को विद्वान
राह आज तक ताकते, हैं उस की खलिहान ।4।
बिल्डर ने क्रय कर लिए, खेत और खलिहान
वहाँ शान से हैं खड़े, बंगले आलीशान ।5।
(स्वरचित और अप्रकाशित)
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