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मुहतरम जनाब योगराज साहिब, शब्द "खलयान"और "खलिहान" दोनों सही हैं।
आद0 तस्दीक अहमद खान साहब सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आधारित बढिया ग़ज़ल। इस प्रस्तुति पर ढेरों बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
बहुत बढ़िया मतले के साथ बढ़िया गजग़। हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
मुहतरम जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
परवरिश तो बीज की होती है खेतों में मगर
ज़िंदगानी इसको मिलती है नई खलयान में | अल्प समय मे उम्दा गजल कही जनाब तसदीक साहब बहुत मुबारकबाद ...
हार्दिक बधाई आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan जी। बेहतरीन गज़ल।
जनाब तेजवीर साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला
अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब नादिर खान साहिब , ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया और हौसला
अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आ. तस्दीक़ साहब,
भाव की दृष्टी से अत्यंत कमज़ोर ग़ज़ल हुई है इस बार ..
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यूँ किसानों के न लब पर है हंसी खलयान में |
फ़स्ल कट कर खेत से अब आ गई खलयान में |.... किसान तो फ़सल काटने पर खुश होता है क्यूँ कि उसे दाम मिलने होते हैं ..इस शेर के होने न होने से कोई फर्क पड़ता नज़र नहीं आता है.
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परवरिश तो बीज की होती है खेतों में मगर
ज़िंदगानी इसको मिलती है नई खलयान में |... यानी बीज खलिहान में ही अंकुरित हो जाते हैं? नयी ज़िन्दगी मिलने का सीधा अर्थ तो यही है... उल्टे.लोग अनाज पीसकर खा जाते हैं तो बीज को खलिहान में ज़िन्दगी कैसे मिलती है स्पष्ट करें..
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ये मचा देंगे तबाही इन से रहना बा ख़बर
आ भी जाते हैं मवेशी जंगली खलयान में |... मवेशी जंगली हैं या खलिहान जंगली है ..और मवेशी आमतौर पर पालतू पशुओं को कहा जाता है ..कोई पालतू मवेशी नहीं कहता.. मवेशी कहने भर से पालतू होना तय पाया जाता है अत: जंगली मवेशी एक absurd प्रयोग है ..
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भाई चारा देखना तस्दीक़ है तुमको अगर
खेत तो सूने हैं सब, जाओ किसी खलयान में |.. आप भाईचारा कहना चाहते हैं या ..भाई ...चारा .अगर मतलब भाईचारा है तो इन दो मिसरों से ये कैसे माना जाय कि खलिहान में कोई वैमनस्य नहीं है और भाईचारा है... और मतलब भाई को चारा दिखाने से है तो वो तो अब भी खेत में पडा है ..खलिहान में केवल अनाज लाया जाता है.(आमतौर पर).
शायद आपको ग़ज़ल पर पुनरावलोकन करना चाहिए..
सादर
जनाब नीलेश नूर साहिब , शायद आप गांव वालों की ज़िंदगी से बे ख़बर हैं ,आप अगर गौर से शेर पढ़ते
तो आप ऐसी प्रतिक्रिया नहीं करते | इस के हर शेर के मंज़र को मैंने आँखों से देखा है |
1 ---मतले को दोबारा पढ़ें , किसानों के लब पर हंसी यूँ ही नहीं है , उसकी वजह है फ़स्ल का खलयान में आ जाना |
2 ---बीज खेत में बोया जाता है और उसकी बालियों से दाना खलयान में निकाला जाता है ,इस तरह वह गल्ला इंसानों
के लिए ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है , यहाँ वह दूसरों के लिए ज़िंदगी बन गया |
3 ----आपने हालात खलयान के शायद देखे नहीं , आज भी बहुत से गांव में अनाज मशीन से नहीं जानवरों को जोत कर
निकाला जाता है | लोग जानवरों को खुला छोड़ देते हैं , रात के वक़्त यह खलयानों में घुस कर तबाही मचाते हैं , जिसकी वजह
से रात में रखवाली करनी पड़ती है | मवेशी सिर्फ पालतू नहीं जंगली को भी कहते हैं |
4 ---पहले तो आप भाई चारे का मतलब समझ लें , क्यों की खलयान में सिर्फ हिन्दू किसान नहीं होता है वहां पर गांव का
मुस्लिम , सिख ,ईसाई किसान भी अपनी फ़स्ल काट कर लाता है , यह लोग आपस में किस तरह प्यार से एक दूसरे की मदद
करते हैं इस का आपको शायद अंदाजा नहीं है , यह तो वही समझ सकता है जिसने खलयान का मंज़र देखा है |
मुझे अपनी ग़ज़ल की पुनरावलोकन करने की ज़रूरत नहीं है , मैं ने शेर में वही लिखा है जो देखा है |
आपके मश्वरे का शुक्रिया |
आ. तस्दीक़ साहब..
आपने मतले पर जो टिप्पणी में लिखा है आपका मिसरा वह भाव प्रकट ही नहीं कर रहा है
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यूँ किसानों के न लब पर है हंसी खलयान में |....यूँ के बाद जबतक ही नहीं आयेगा तबतक आपका उद्देश्यित भाव अपूर्ण है और हँसी गायब होने का भाव ही प्रकट होगा...
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इस तरह वह गल्ला इंसानों
के लिए ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है , यहाँ वह दूसरों के लिए ज़िंदगी बन गया | ,,आपके मिसरे में इसे यानी बीज को ज़िन्दगी मिलने की बात है न की दूसरों को अत: आपका यह कमेंट भी आपकी रचना के संगत नहीं है.
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लोग जानवरों को खुला छोड़ देते हैं , रात के वक़्त यह खलयानों में घुस कर तबाही मचाते हैं..यानी वो पालतू होते हैं..जंगली नहीं अत: आप स्वयं अपने मिसरे को टिप्पणी में contradict कर रहे हैं...और मवेशी 110% पालतू जानवरों जैसे गाय, बैल, बकरी, भैंस, गधे आदि के झुण्ड के लिए प्रयुक्त होता है... अत: जंगली मवेशी या मवेशी जंगली पूर्णत: absurd है.
आप जिन पशुओं का ज़िक्र करना चाहते हैं उन्हें आवारा पशु कहते हैं न कि जंगली..
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भाई चारे...नहीं भाई चारा पर चर्चा होनी चाहिए... आपका सांप्रदायिक सौहार्द्र का भाव भाई चारा से नहीं भाईचारा से प्रदर्शित होगा ...
जन्नत देखने के लिए मरने की ज़रूरत नहीं है .... जिन्होंने मरकर जन्नत देखी है वो उसका वर्णन नहीं कर सकते वैसे ही आपने क्या देखा वह महत्वपूर्ण नहीं है ...ग़ज़ल में महत्वपूर्ण है कि आपने किस तरह उसका वर्णन किया और किन शब्दों और संयोजनों का इस्तेमाल किया...
शायद एक वरिष्ठ ग़ज़लकार के रूप में आप स्वयं के कलाम को तन्कीदी नज़रिये से देखेंगे और समृद्ध होंगे...
शायद आयोजन के बाद आप वक़्त निकाल सकें ..
अन्यथा जैसी आपकी इच्छा ...
सादर
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