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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-१२ में सम्मिलित सभी ग़ज़लें

//श्री इमरान खान जी//
(१).

आओ बरसों से जली आग बुझाई जाए,
आओ नफरत की वो दीवार गिराई जाए.

ये लहू देके ,शहीदों ने चमन सींचा था,
आओ उस खून की अब लाज बचाई जाए.

हद-ए-ज़वाल की सरहद से हम आगे ही सही,
आओ, के घर लौटके तारीख बनाई जाए.

न हो सग़ीर अमल न फसाद-ए-रद्द-ए-अमल,
आओ, इल्ज़ामात की तहरीर मिटाई जाए.

हर शो'बे पे ये माना के हमें हार मिली,
जीत की, झूटी ही सही, आस जगाई जाए,

इन्तेखाबात की ताक़त तो अभी हाथ में है,
आओ सच्चाई पे ही छाप लगाई जाए,

लाल परचम न लहू लाल बहाने के लिये,
आओ भूलों को यही बात बताई जाए,

के आज, गुलज़ार में फिर प्यार की बयार चले,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए,

बढ़ गई है म'ईशत में उजालों की कमी,
'इमरान',हर दर पे शमाँ,आज चलाई जाए,

(२)

पुरसुकूँ, मुझको तो कोई सांस दिलाई जाये,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये।

उन्हें सुनने का सलीका, न समझने का हुनर,
छोड़ो, क्या उनको कोई बात बताई जाये।


जुर्म आयद ही नहीं मुफ्‍़त सज़ायें कब तक,
के ज़मानत, मज़लूम की मंज़ूर कराई जाये।


ये गिरया, मेरी आँखों से बार-बार ​गिरें,
है क़ीमते अश्‍क़ बहुत, ये धार बचाई जाये।

एक उफ नहीं मेरी कभी दु​निया ने सुनी,
सदाये ​दिल, क्‍यों सरे बाज़ार सुनाई जाये।

तेरी याद के सहरा में भटकता है ये ​दिल,
‘इमरान’, दरे यार से इक धार चुराई जाये।

(३)

अब हवा, प्यार मुहब्बत ही बहाई जाए,
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए.
बहना की कही, कापी नहीं आई कल से,
रोज़ हलवाई से, बेगम की मिठाई जाए,
रोटी, अम्मी की पकाई ही अटकती थी कभी,
अब तो बीवी की पकी चैन से खाई जाए,
पीते थे कभी दूध को पानी की जगह,
अब तो अहले सहर, चाय पकाई जाए,
दो दिन नहीं बोले, बहन जो बाज़ार गई,
सैर बीवी को हर इतवार कराई जाए,
ये मुस्तक़बिल है हमारा, तेरे बच्चे भाभी,
क्यों, इन फूलों पे कोई रोक लगाई जाये।
दो माह से टूटा है, पिदर का चश्मा,
बात, हिम्मत नहीं, बेटे को बताई जाए,
मेरा घर टूट के, हो जाये ना रेज़ा-रेज़ा,
लिल्लाह 'इमरान' की शादी न कराई जाए.

(४)
मेरी ठुकराई, न उनकी ही ​गिराई जाए,
आओ ​मिलजुल के कोई बात बनाई जाए।

सुनो! मेरे मुल्क को मजरूह बनाने वालों,
अब ​दिलो दम पे न तलवार चलाई जाए।

हमें कहता है चमन, आज तड़पकर, सुन लो,
​मिरे फूलों! न मेरी रूह रूलाई जाए।

अपना घर ये संवारें चलो ​मिलकर दोनों,
आओ बस प्यार से दहलीज़ सजाई जाए।

आज करते हैं चलो झूठ की फसलों को दफन,
आओ सच्‍चाई की बस पौध लगाई जाए।

आज तूफान से लड़ने की ललक जाग उठी,
बादे मुख़ा​लिफ, चलो हमवार बहाई जाए।

चलो अस्‍मते दुख्‍़तर को बचाने के ​लिए,
सही फ़रज़न्‍द को तालीम ​दिलाई जाए।

वो कहते हैं के दामन है मेरा पाक बहुत,
सूरत शीशे में ज़रा उनको ​दिखाई जाए।

‌‌‌गुमाँ दौलत पे हो रहा है उन्हें आज बहुत,
कहानी-ए-​फिरऔन चलो उनको सुनाई जाए।

इल्म-ए-​‘खुली ​किताब’ मुफ्त है पानी की तरह,
चलो ‘इमरान’ चलो के प्यास बुझाई जाए।.

(५)

मनजाये ख़ुदा, और न हाथों से ख़ुदाई जाए,
आओ मिलजुलके कोई बात बनाई जाए,


मुजस्सिम हूँ गुनाहों का, अब ख़ुदा ख़ैर करे,
कैसे आमाल की सूरत ये दिखाई जाए.


जाहिल ही रहा, कोई नहीं तबलीग़ सुनी,
न कोई बात, 'नकीरो मुनकिर' मुझसे बताई जाए।


ताब सरापा तो रहा, दिल की स्याही न गई।
दगाबाज़ी की ये कालिख़, रो रो के छुटाई जाए.


'इमरान' क़ायम है अभी तो, दौलते हयात,
पेशानी, तौबा के मुसल्ले पे झुकाई जाए।


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//श्री मोईन शम्सी जी//

आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए 
आपसी प्रेम की इक रस्म चलाई जाए । 

नफ़रतों का ये शजर अब है बहुत फैल चुका 
अब तो उल्फ़त की कोई बेल लगाई जाए । 

दोनों जानिब से ही इस आग ने घी पाया है 
दोनों जानिब से ही ये आग बुझाई जाए । 

तलख़ियां भूल के माज़ी की, गले लग जाएं 
दूरी बरसों से बनी है जो, मिटाई जाए । 

जाहिलिय्यत के अंधेरों को मिटाने के लिये 
हर तरफ़ इल्म की इक शम्मा जलाई जाए । 

जो मदरसे में हैं तलबा, वो पढ़ें संसकिरित 
और उर्दू ’शिशु-मंदिर’ में पढ़ाई जाए । 

छोड़ के मंदिर-ओ-मस्जिद के ये झगड़े ’शमसी’ 
एक हो रहने की सौगंध उठाई जाए ।
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//सुश्री प्रभा खन्ना जी//

हर तरफ आग है, ये आग बुझाई जाए...
आओ मिल-जुल के कोई बात बनाई जाए...

अमन के फूल खिलाना भी कोई खेल नही,
आँधी नफ़रत की पहले मिटाई जाए...

सुना है ज़िंदगी इक बार मिला करती है,
क़ीमती शै है, बेवज़ह ना गँवाई जाए...

चढ़ते सूरज की इबादत तो सभी करते हैं,
टूटे-हारों से चलो प्रीत निभाई जाए...

जिनकी सिक्कों की खनक से ही नींद खुलती हो,
ऐसे लोगों से क्या उम्मीद लगाई जाए !

अहदे हाज़िर मे गमख्वार कौन है 'रावी',
लड़ी अश्कों की ना हर बार सजाई जाए...
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//श्री अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव" जी

(1) 
रस्म इंसानियत की यूं भी निभाई जाए ,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए |

रोशनी चंद मुट्ठियों में न रह जाए कैद ,
लौ तरक्की की हर-एक सिम्त जलाई जाए |

हर तरफ झूठ के बरगद की काली छाया है ,
अब हथेली पे सच की पौध उगाई जाए |

बस लड़ाना ही भाइयों को जिनका मकसद है ,
बांटने वाली वह लकीर मिटाई जाए |

एक अन्ना से ये सूरत न बदलने वाली ,
हर गली में वही हुंकार सुनाई जाए |

साठ बरसों में सौ कुबेर बनाये इसने ,
इस सियासत को नयी राह दिखाई जाए |"

रफ्ता रफ्ता ये कुंद हो गयी है और बेकार ,
इस व्यवस्था पर नयी धार चढ़ाई जाए |

हो सही फैसला हर ख़ास-ओ-आम के हक में ,

और किसी बात पे रिश्वत भी न खाई जाए |

(२)

ग़ज़ल :-चढ़ते सूरज से बढ़के आँख मिलाई जाए
 
अब न सीने में कोई आग दबाई जाए ,
चढ़ते सूरज से बढ़के आँख मिलाई जाए |
 
क्रांतियाँ यत्न से होती हैं न की यंत्रों से ,
सिर्फ साहस की सच की तोप लगाई जाए |
 
जो की हंगामे के मकसद से हो रहे ज़ाया ,
चे - गवेरा की कथा उनको सुनाई जाए |
 
ये कलम वक़्त बदल सकती है गर तुम चाहो ,
शर्त इतनी है कि हिम्मत  से उठाई  जाए |
  
कोई बन्दूक बने बम बने कोई बारूद ,
आओ मिलजुल के  कोई बात बनाई जाए |
 
मद में अंधी हुई सत्ता तुम्ही बोलो कौटिल्य
चन्द्रगुप्तों को कैसी राह दिखाई जाए |
 
देश गोरों की तरह चर रहे काले घड़रोज ,
अब तो हर  खेत में बन्दूक उगाई जाए |

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//श्री रवि कुमार "गुरु" जी//

(१)
आग लगी चूल्हे में मूर्खो को दिखाई जाए ,
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,
लुट रखे  स्विस में पैसो को मंगाई जाए ,
आओ इन सब को फासी पर चढ़ाई जाए ,
मांग करेंगे डीजल गैस तेल का दाम घटाए ,
लाकर मनमोहन को घर को दिखाई जाए ,
मैडम बैठी हैं सब से ऊपर आँख में पट्टी बांध ,
खोल के पट्टी आँखों से रूबरू कराई जाए ,
मूर्खो की टोली हैं ये मेरी केंद्र सरकार,
कैसे कहू आप से हमें निजत दिलाई जाए ,

(२)

आग लगी हैं रात से उसको बुझाई जाए ,
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,
सुबह की चाय कडवा हो चूका हैं यारो ,
बजट को सवार कर मिठास बनाई जाए ,
दो साल में पचीस रुपया पेट्रोल का दाम बढ़ा ,
सेल में हैं मेरी बाइक इसकी बोली लगाई जाए ,
बिक गई बाइक बस में चलने की आदत नहीं ,
आइये कुछ दूर पैदल साथ निभाई जाए ,

(३)
उन्नीस सौ सत्हातर की तरह लगाम लगाई जाए , 
 आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,
बाबा को डरा दिए अन्ना को डराते हैं ,
क्यों ना हर एक को बाबा -अन्ना बनाई जाए ,
सरकार ने सोचा लोकपाल पे हल्ला मचा हैं ,
क्यों ना दाम बढाकर लोगो को भटकाइ जाए ,
आदमी तो अक्सर पुरानी बाते भूल जाता हैं ,
सोची सरकार ये सगुफा क्यों ना अपनाई जाए ,
सता में हो और मारते हो महगाई की मार,
आने दो चुनाव दोस्तों फिर रास्ता दिखाई जाए ,
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//श्रीमति शारदा मोंगा "अरोमा"

(१).
"आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये"
आओ देश में स्नेह-प्रेम की पेंग बढाई जाये.
 
रहे न कोई  निर्धन दुखी,  न ही कोई भूखा सोये,  
आओ मेहनत कर खेतों  की पैदावार बढाई जाये.
 
बादल बरसे, खेती सरसे, कृषक को सही का दाम मिले,
आओ निरक्षरता हटा ग्रामों में शिक्षा बढाई जाये.
 
होली, दीवाली, त्यौहारों की मस्ती खुशहाली, 
'अरोमा'  सब के जीवन में खुशियाँ लायीं जायें.

(२)
कुव्यवस्था, अराजक भ्रष्टता मिटाई जाये.
"आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये"

अशिक्षा, अज्ञान, रोग, झूठी परम्पराएँ हटा,
 ज्योतिर्मय ज्ञानदीपिका जलाई जाये.

गरीबी अमीरी  भेद हटे? हो सम भाव, 
संसार में सुख-शांति की बात जमाई जाये.

बातों में उलझना छोड़, असल की सोच,
जनतंत्र, के सदोपयोग की बात बनाई जाय.

'अरोमा' बुज़ुर्ग-उपेक्षा न करो-की राह बनाई जाय.
 "आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये"

(३)
सखियों सहेलियों की याद से बनता है बचपन,
आओ मिलजुल कर कोई बात बनाई जाये.
 
लंगड़ी टांग का खेल, गुड्डे गुडिया का ब्याह,
आज सखि को बचपन  की याद दिलाई जाये. 
 
पेंग के झूले, प्यार से डोले, खेलना, खाना,   
झगड़ना-रूठना सोचना सहेली कैसे  मनाई जाये.
 
वह घर घर का खेल, सखियों का मेल,
मिट्टी के घरोंदे, बनाना-तोडना, याद  आई  जाये. 
 
बचपन का सपना, वह लगता था अपना,
आओ "अरोमा" फिर याद ताज़ा कराई जाये.
(४)
तोड़ नफरत की दीवारें प्यार की पेंग बढाई जाए.
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए.

तुम्हें बस अपनी फिकर, पीकर धुत्त रहते हो,
घर में भी चूल्हा जले- की कसम खाई जाये,

दारू का चस्का छोड़ कुछ बाल बालबच्चों की सोचो
उन्हें कपड़े, जूते, किताब, कापी भी दिलाई जाए

बीवी का साथ निभाने की कसम खाई थी,
पीने की लत छोड़ अब कसम भी निभाई जाए.

पी लिया तो क्या मिला, मिला न कुछ 'अरोमा',
जिगर को मिल गया पीलिया,सुधरो कि बीमारी जाए
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//श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी //

आओ मुर्दों को जरा राह दिखाई जाए

आज कंधों पे कोई लाश उठाई जाए

 

चाँद के दिल में जरा आग लगाई जाए

आओ सूरज से कोई रात बचाई जाए

 

आज फिर नाज़ हो आया है ख़ुदी पे मुझको

आज मयखाने में फिर रात बिताई जाए

 

खोजते खोजते मिल जाए सुहाना बचपन

आज बहनों की कोई चीज छुपाई जाए

 

आज के दिन सभी हारे जो लड़े हैं मुझसे

आज खुद से भी जरा आँख मिलाई जाए

 

ढूँढने के लिए भगवान तो निकलें बाहर

आओ मंदिर से कोई चीज चुराई जाए

 

सात रंगों से ही बनती है रौशनी ‘सज्जन’

आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए

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//डॉ संजय दानी जी//

आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाये,
हिज्र से ,वस्ल की फ़रियाद लगाई जाये।

दिल के दीवारों पे खीले लगे हैं लालच के,
उनपे इमदाद की तस्वीरें सजायी जाये।

जब किनारों पे सितम ढा रही है हुस्न, तो फिर
छोड़ मझधार, वहीं कश्ती डुबाई जाये।

शौक़ में मुब्तिला हो ,शहर का गर रंगो-शबाब,
गांव में, शहर की बुनियाद बनाई जाये।

क्या मिला, जिन्दगी भर मंत्र हवस के पढ के,
सब्र की जादूगरी फिर से दिखाई जाये।

पैसों के मोह में क्यूं पैर पसारे बैठें,
त्याग के आंधियों से रेस लड़ाई  जाये।

चांद फुटपाथ पे मजबूर सा बैठा है फिर,
बेवफ़ा चांदनी को फ़िल्म दिखाई जाये।

कुछ भी कर सकता हूं तेरे लिये ऐ जानेमन
चाहे ईमान बहे , चाहे ख़ुदाई जाये।

ले चुके दानी चराग़ों की ज़मानत जब हम,
तो हवाओं की अदालत को ढहाई जाये।
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//आचार्य संजीव "सलिल" जी//
(१)
मौका मिलते ही मँहगाई बढ़ाई जाए.
बैठ सत्ता में 'सलिल' मौज मनाई जाए..

आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए.
रिश्वतों की है रकम, मिलके पचाई जाए..

देश के धन को विदेशों में छिपाना है कला.
ये कलाकारी भी अब सीखी-सिखाई जाए..

फाका करती है अगर जनता करे फ़िक्र नहीं.
नेता घोटाला करे, खाई मलाई जाए..

आई. ए. एस. के अफसर हैं बुराई की जड़.
लोग जागें तो कबर इनकी खुदाई जाए..

शाद रहना है अगर शादियाँ करो-तोड़ो.
लूट ससुराल को, बीबी भी जलाई जाए..

कोशिशें कितनी करें?, काम न कोई होता.
काम होगा अगर कीमत भी चुकाई जाए..

चोर-आतंकियों का, कीजिये सत्कार 'सलिल'.
लाठियाँ पुलिस की, संतों पे चलाई जाए..

मीरा, राधा या भगतसिंह हो पड़ोसी के यहाँ.
अपने घर में 'सलिल', लछमी ही बसाई जाए..

(२)
हुआ अरसा है, अब आग जलायी जाए.
पेट की आग तनिक अब तो बुझायी जाए..

हुआ शासन ही दुशासन तो कोई कैसे बचे?
वफादारी न अब कुर्सी से निभायी जाए..

चादरें मैली ही ना हुईं, तार-तार हुईं.
चादरें ज्यों की त्यों, जैसे हो तहाई जाए..

दिल की दिल तक जो पहुँच पाये वही बात करो.
ढाई आखर की रवायत भी पढ़ाई जाए..

दूर जाओ न, रहो साथ 'सलिल' के यारों.
आओ मिलजुल के कोई बात बनायी जाए..

(३)
कबसे रूठी हुई किस्मत है मनायी जाए.
आस-फूलों से 'सलिल' सांस सजायी जाए..

 

तल्ख़ तस्वीर हकीकत की दिखायी जाए.
आओ मिल-जुल के कोई बात बनायी जाए..

सिया को भेज सियासत ने दिया जब जंगल.
तभी उजड़ी थी अवध बस्ती बसायी जाए..

गिरें जनमत को जिबह करती हुई सरकारें.
बेहिचक जनता की आवाज़ उठायी जाए..

पाँव पनघट को न भूलें, न चरण चौपालें.
खुशनुमा रिश्तों की फिर फसल उगायी जाए..  

दान कन्या का किया, क्यों तुम्हें वरदान मिले?
रस्म वर-दान की क्यों, अब न चलायी जाए??

ज़िंदगी जीना है जिनको, वही साथी चुन लें.
माँग दे मांग न बेटी की भरायी जाए..

नहीं पकवान की ख्वाहिश, न दावतों की ही.
दाल-रोटी ही 'सलिल' चैन से खायी जाए..

ईश अम्बर का न बागी हो, प्रभाकर चेते.
झोपड़ी पर न 'सलिल' बिजली गिरायी जाए..

(४)
नर्मदा नेह की, जी भर के नहायी जाए.
दीप-बाती की तरह, आस जलायी जाए..
*
भाषा-भूषा ने बिना वज़ह, लड़ाया हमको.
आरती भारती की, एक हो गायी जाए..
*
दूरियाँ दूर करें, दिल से मिलें दिल अपने.
बढ़ें नज़दीकियाँ, हर दूरी भुलायी जाए..
*
मंत्र मस्जिद में, शिवालय में अजानें गूँजें.
ये रवायत नयी, हर सिम्त चलायी जाए..
*
खून के रंग में, कोई फर्क कहाँ होता है?
प्रेम के रंग में, हरेक रूह रँगायी जाए..
*
हो न अलगू से अलग, अब कभी जुम्मन भाई.
कहला इसकी हो या उसकी, न हरायी जाए..
*
मेरी बगिया में खिले, तेरी कली घर माफिक.
बहू-बेटी न कही, अब से परायी जाए..
*
राजपथ पर रही, दम तोड़ सियासत अपनी.
धूल जनपथ की 'सलिल' इसको फंकायी जाए..
*
मेल का खेल न खेला है 'सलिल' युग बीते.
आओ हिल-मिल के कोई बात बनायी जाए.
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//श्री राकेश गुप्ता जी//

(१)
मर्ग ही जहां पर, फर्द फर्द है,
उस वहशत में चिरागां तो जलाई जाए.... 


जहर आलूदा साँसों को जो जीवन दे दे,
फिर चमन में वही बयार चलाई जाए.........


जहर नफरत का दिलो में जो बसा है यारों,
मिलो, की मिल के करी उसकी सफाई जाए........


मीलों गहरी हुई जो नफरत से,
है वक्त वो दरार अब मिटाई जाए .........


जहालत ओ जलालत ने किया सब शमशाँ ,
अमन ओ ज्ञान की गंगा तो भाई जाए .....


काश आये जो हर माह ईद और दीवाली,
जा दोस्तों के घर खीर तो खाई जाये .........

 
जो दे चार सू खुशियाँ, वो सौगात तो लाइ जाए.
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,.........

(२)

जरूरी चीजों की पहुंची जो कीमत आसमान पर,
कहो फिर क्योंकर, पेट की आग बुझाई जाए........
                          
जब अफजल ओ कसाब के बाल ना टेड़े हो सके,
क्यों लख्वी ओ दाउद की फिर फौज बुलाई जाए.....
                               
अन्ना ओ बाबा कहीं बैठे जो अनशन पर,
भ्रष्टाचार बचाने, की उनकी पिटाई जाए ..........
                             
वो कहते है की हमने बढाये हैं रूपये महज पचास,
उन्हें जाके गरीब की, रसोई तो दिखाई जाए.........

छोड़ दुनिया जो चले, ज़र ये, बचा ना बचा,
येस जन्नत में करने, कफन में ज़ेब सिलाई जाए .......


जब सत्ता के गलियारे में, बस कंस और रावण हैं,
फिर लाज लुटाने सभा में, क्यों द्रोपदी बुलाई जाए..........

मलाई और रबड़ी, अपनी है चाहत बेशक,
पेट की आग मिटाने, प्याज रोटी
ही खाई जाए..........

तू भी ज़िंदा रहे, मेरा वजूद भी मर ना सके,
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,.........

(३)
प्यार सेहरा में रहे या की गुलिस्ताँ में रहे,
प्यार की तान ही सुननी है सुनाई जाए........

चार सू दिखती हैं लाशें यहाँ चलती फिरती,
जो पुर सुकून लगे शैय वो ही दिखाई जाए.........

वाद रुखसत के मेरी मैयत पर,
बड़ी महंगी है कोई चादर ना चड़ाई जाए.......

राह से भटके है जो भाई अपने,
राह पुर अमन की उनको है बताई जाए........

साथ जीने की कसम खाना बड़ा मुश्किल है,
साथ मरने की कसम खा लो जो खाई जाए..........

सरहदों के पार भी रहते तो इन्सां ही हैं,
हुक्मरानों को सिखाओ जो ये बात सिखाई जाए...........

पैसा जन्नत में किसी काम नही आयेगा,
हरेक सौदे पे कमिशन क्यों फिर खाई जाये ...........

विश्व गुरु जबकि रहा दुनियां में मेरा हिन्दोस्तां,
प्यार ओ तहजीब की अलख फिर से जगाई जाए........

संस्कारों पे अपने जो चलेंगे हम सब,
खून की नदी ना फिर धरती पे बहाई जाये.......


हाल बेहाल हुआ नाशाद वतन "दीवाना",
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए.........

 

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//श्री सौरभ पाण्डेय जी//

आओ मिलजुल के  कोई बात बनाई जाए
मसल रहे आजीवन, वो बात निभाई जाए..
 
बंद हुआ व्यापार,  तो हो शिक्षा का उद्धार
है छोटी बात मगर कैसे मनवाई जाए..?
 
चौखट-खिड़की घर-आँगन हैं जीवन के आधार  
शर्त मग़र है मध्य बनी  दीवार गिराई जाए.
 
नहीं परश्तिश कभी रही थी बात दिखावे की
चाल अचानक क्यों बदली, क्या बतलाई जाए!?
 
घर-आँगन को रखती पावन बेटी है संस्कार
हर आँगन इस तुलसी की  पौध बचाई जाए.
 
तपती धरती, रातें भीगी दिन अलसे भिनसार
औंधे-लेटे   पीपल-तर    ताश  जमाई   जाए.. 
 
खुले उजाले जेबी  काटे मँहगाई है चोर  
किन्तु, चल रही गाड़ी है, क्या रुकवाई जाए?!!
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//श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी//

(१)

होती है मुश्किल जब बिगड़ी बात बनाई जाए   

लोगों को मुश्किल से दुनिया में समझाई जाए l

 

कर देते हैं जीना दूभर हैवानों के गुट मिलकर    

इंसानों की भी इक दुनिया अलग बसाई जाए l

 

बाँट लिया सबने खुद को अपने-अपने मजहब में

लहू का रंग एक है तो एक ही जाति बनाई जाए  l

 

है गुलाम देश की जनता अब अपनों के हाथों में    

तोड़ो उन हाथों को या फिर हथकड़ी लगाई जाए l   

 

बदलो माली गुलशन के ना जानें करना रखवाली  

लहू-लुहान हो रहे गुल कली-कली मुरझाई जाए l  

 

सिसक रही भूख वहशतें करतीं रक्स गरीबी की  

कैसे खत्म हो मंहगाई कोई तरकीब सुझाई जाए l

 

ओछी राजनीति की काली करतूतें कर दें छूमंतर    

किसी जंतर-मंतर से कोई ऐसी बिधा बनाई जाए l

 

बुझती है जिंदगी जिनकी दुनिया से धोखे खाकर   

उनकी आस के दीपक में बाती नई जलाई जाए l

 

हर कुर्बत से उठा भरोसा गाँठ पड़ीं जहाँ बरसों से

उम्मीदों के संग ''शन्नो'' गाँठ-गाँठ सुलझाई जाए l

(२)

किसी मकतल पे ना लाश बिछाई जाए  

आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए l

 

सबकी गज़लों को पढ़के हम मजा लेते हैं

आज अपनी भी कलम कुछ चलाई जाए l

 

मुश्किल से बनते हैं घर तिनका-तिनका

तो किसी बस्ती में ना आग लगाई जाए l

 

नजर ना लगाओ किसी हस्ती वाले को  

अपनी भी किस्मत जरा आजमाई जाए l

 

न सही कोई महल और ठाठ-बांठ उसके

खंडहर में ही अपनी दुनिया बसाई जाए l

 

वेवफाई को भी हम बुतपरस्ती कहते हैं

दिल में किसी की मूरत ना बसाई जाए l

 

अंग्रेजी की अदा पे फिदा हुये लोग सभी  

अब अपनी जुबां हर जुबां पे सजाई जाए l

 

टीवी सीरियल पे है घर-घर की कहानी       

आज अपने घर की कहानी सुनाई जाए l

 

बच्चे पढ़ते हैं कॉमिक और कार्टून बहुत

महाभारत व गीता भी तो समझाई जाए l

 

जो लव स्टोरी सुन-सुन के पागल होते हैं   

किसी चुड़ैल की कहानी उन्हें सुनाई जाए l

 

सबकी चुपचाप सुनी सारे गम अपने किये  

अब जो भी सुनाये उसे आँख दिखाई जाए l

 

बोरियत होती है घर में काम करते-करते  

अब चल ''शन्नो'' कहीं गपशप लड़ाई जाए l 

 

(३)

इंसान तो गलतियों का एक पुतला होता है   

आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए l

 

गर्मी के मौसम में ना बिजली ना पानी 

चलो दरिया के पानी में डुबकी लगाई जाए l 

 

आज चाँदनी रूठ कर छिप गई है कहीं पर   

चलो चाँद से कहकर वो फिर से बुलाई जाए l 

 

शादी में हो रहा है लड़कियों का मोल-भाव   

दहेज की रस्म ''शन्नो''जड़ से हटाई जाए l

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//श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी//

 

आज नफरत की ये दीवार गिराई जाए. 

आओ मिल-जुल के कोई बात बनाई जाये. 

 

देखो दुनिया में ये तकदीर अहम है यारों,

छोड़ इसको यहीं तदवीर बनाई जाए.

 

वो भी अपना न लें अन्याय के आगे अनशन,

सारे बच्चों को यही बात सिखाई जाये.

 

सोंच जो नाज़ से पाले हैं सभी नें बच्चे,

आस उनसे न किसी रोज लगाई जाये.

 

यार झगड़ो न कभी जाति पंथ मज़हब पर,

तुम्हारे दिल में जली आग बुझाई जाये.  

 

मुल्क में मेल अमन चैन प्यार कायम कर,

आज दुनिया को नयी राह दिखाई जाये.

 

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//श्री गणेश जी बाग़ी //

विपक्ष :-
जुल्मी सरकार तो  कुछ करके गिराई जाए,

आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए,

पडोसी मुल्क :-
है अमन चैन बहुत भारत की धरती पर,
जात औ मजहब की आग लगाईं   जाए.

वकील :-
फैसला हो सकता जल्द अदालत मे अब,
केस मे फांस नियम कानून की फसाई जाए,

मास्टर :-
बहुत ही जहीन बच्चे है इस टोले के सब,
अंक कम देकर कोचिंग भी कराई जाए,

पुलिस :-
है दुरुस्त इस गाड़ी के  भी सारे कागज़
है नई वाहन मिठाई ही खाई जाए,

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//श्री आलोक सीतापुरी जी//

आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाये,

बज्म उजड़ी हुई है फिर से सजाई जाये.

 

दौरे हाज़िर की कहानी के खुदा खैर करे,

दास्ताँ अपने बुजुर्गों की सुनाई जाये.

 

मुफ्त तालीम का हक मिल रहा बच्चों को मगर,

मुफलिसी कहती है मजदूरी सिखाई जाये.

 

पीठ पीछे की बुराई तो चुगल करते हैं,

बात जो हो वो मेरे मुंह पे बतायी जाये.

 

आपका हँसता हुआ चेहरा बहुत खूब मगर,

जो पशे-पर्दा है सूरत वो दिखाई जाये.

 

हिर्श की आग जमाने से मिटे ना मुमकिन, 

चाहे वो सात समंदर से बुझाई जाये.

 

भाई, भाई से जुदा कर दिया इसने आलोक,

आओ नफरत की ये दीवार गिराई जाये..

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//श्री वीरेन्द्र जैन जी//

चाँद की कश्ती में शब् कोई बिताई जाए
नींद बादल की चटाई पे बिछाई जाए |
 
कब तक मन्नत मांगोगे बगिया में फूल खिलने की 
आओ अब प्यारी "फुलवा" कोई खिलाई जाए |
 
सिख इसाइ हिन्दू मुस्लिम जात मिटा दो जग से 
आओ मानवता की कौम नई बनाई जाए |
 
फूलों पर गिरती शबनम से पैर ना जाए फिसल 
चाँद को पीठ पे लेकर सैर कराई जाए |
 
शब्द महंगे हैं बड़े इन ज़हनी बाजारों में 
आज ख़ामोशी की कोई धुन सुनाई जाए |
 
मसले हल होते नहीं जंग फसादों से कभी 
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए |
 
कौन तेरे जज़्बात सुने यहाँ बाजारों में
बिकता है इश्क ,जिस्मों की बोली लगाई जाए |
 
तेरी ख़ातिर लड़ेंगे दुनिया से जो कहते थे 
आज उनको फिर से कसमें याद दिलाई जाए |
 
तालीम से जो चले जीवन भूखा ना मरे कोई
अबके बच्चों को थोड़ी जिंदगी पढ़ाई जाए |

(२)
यारों के संग शाम कोई बिताई जाए
भूली बिसरी बातें फिर दोहराई जाए |
 
आज भी पिघलती है वो छत अंधेरों में
क्यूँ न मिलके प्यार की लौ जलाई जाए |
 
कब तक रावण को दोगे वरदान यूँही
भेज पवनसुत अब लंका हिलाई जाए |
 
उस राह से कोई लौट नहीं सकता यारों
चाहे फिर कितनी आवाज़ लगाईं जाए |
 
आसमां कहता है झुककर दूर कहीं धरा से
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए |

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//श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी//

भूल आपस की कोई हो तो भुलाई जाए
तीरगी दिल को जला कर भी मिटाई जाए

प्यार में चोट जिगर पॅ क्यों न खाई जाए
इक शम्आ फिर से मुहब्बत की जलाई जाए

बातों-बातों में बनी बात बिगड़ने क्यों दें
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए

हम पराये नहीं , तुम भी तो कोई ग़ैर नहीं
बात दिल की न कोई दिल से छुपाई जाए

जो हसीं वक़्त कभी साथ गुज़ारा हमने
इक घड़ी फिर से कैलेंडर से चुराई जाए

दाम हर रोज़ बढ़ा कर जो लहू पीती है
ऐसी सरकार को औक़ात बताई जाए

दूध पी’कर भी ज़हर सांप का कम कब होता
दुख उठा कर भी भले की न भलाई जाए

आदमीयत तो गंवा बैठे हैं आदमज़ादे
या ख़ुदाया ! न ख़ुदा की भी ख़ुदाई जाए

रोने लग जाए न पत्थर भी , मुझे फिर कहना
मेरी ‘राजेन्द्र’ ग़ज़ल उसको सुनाई जाए
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//श्री आलोक सीतापुरी जी//

सारी दुनिया को ये तरकीब सिखाई जाये,
आग नफरत की मोहब्बत से बुझाई जाये.

सभी को हक़ है ज़माने में मियां जीने का,
किसी गर्दन पे छुरी अब ना चलाये जाये.

आज मुन्सिफ का तराजू भी झुकाए पैसा.
कैसे इन्साफ की जंजीर हिलाई जाये.

जाम ओ मीना से बढ़के है गुटके का चलन.
वक्त से पहले ही अब मौत बुलाई जाये.

शाहजादे की बगावत का आ गया नामा,
माबदौलत को ये तहरीर सुनायी जाये.

मुफ्त तालीम लड़कियों को दे रही सरकार,
क्यूं न भारत की हर एक बेटी पढाई जाये.

प्यासा 'आलोक' तेरे हुस्न के मैखाने में,
मय मोहब्बत की निगाहों से पिलाई जाये.
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//श्री हिलाल अहमद हिलाल जी//

दिल में रहने की फिर उम्मीद लगायी जाए !
पहले दिल दिल में कोई राह बनायीं जाए !!

जिसमे सच्चाई की लज्ज़त हो वफ़ा की खुशबु !
मुंह से बस ऐसी क़सम वक़्त पे खायी जाए !!

दूरियों से तो कोई बात न बन पायेगी !
आओ मिल जुल के कोई बात बनायीं जाए !!

राह वो जो के भलाई की तरफ जाती हो !
सारी दुनिया को वो ही राह दिखाई  जाए !!

आज की बीवियां ये सोचती रहती है सदा
माँ के हाथो में न शौहर की कमाई जाए !!

शर्म से चेहरा छुपा लेगा घटा में सूरज !
चेहरा ऐ हुस्न से चिलमन तो हटाई जाए !!

मत सुनाओ मेरी रूदादे मुहब्बत सबको  !
जिससे रुसवाई हो वो बात छुपाई जाए !!

इश्क का दरिया हमे पार जो करना है हिलाल
कश्तिये इश्क सलीके से चलायी जाए !!
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//विवेक मिश्र "ताहिर" जी //

आओ मिल-जुल के कोई बात बनाई जाए-
बातों-बातों में बचपन की सैर कराई जाए-

परियों के इक देश में, हो रहा है स्वयंवर
दूल्हे बैठे चुप-चुप से, दुल्हन मुस्काई जाए

शब की है शादी आज, नाच रहे हैं सितारे
मेघ बजाएँ ढोल, झींगुर ले शहनाई जाए

सारे बारातियों के लिए ख़ास इंतजाम है-
आसमाँ के प्लेट में चाँद की मिठाई जाए- 

खामोश बैठी है हवा और गुमसुम सी फिजा
हो रही सखी जुदा, चलो करी विदाई जाए-

'ताहिर' तेरे शहर की रवायतें भी खूब हैं -
झूठ ताने सीना, घूंघट में सच्चाई जाए-
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sir har bar ki tarah is bar bhi ek jagah lakar sone pe suhaga kar diye hain sir ji

आदरणीय, आपने सारी ग़ज़लों को एकत्रित कर नवोदितों को सीखने-समझने-जानने का बेहतरीन अवसर प्रदान किया है. मुझे प्रसन्नता है कि आपने ग़ज़लों के साथ-साथ आयोजन में पोस्ट हुई रचनाओं को भी स्थान दिया है. 

 

कहना न होगा,  आपका यह स्तुत्य प्रयास नवोदितों को एक ऐसा माहौल उपलब्ध करा रहा है जो आने वाले समय में नवोदितों की प्रगति को परखने का पैमाना तो साबित होगा ही,  उनके लिये अपने प्रयास और गुणवत्ता में आये सुधार को महसूसने का अपरिहार्य दस्तावेज़ भी होगा.

 

मेरा हार्दिक धन्यवाद स्वीकर कर अनुगृहित करें.

 

 

इस सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई

नेट से दूर होने के कारण आयोजन में हिस्सा नहीं ले सका, सूचना गणेश जी को प्रेषित कर दी थी, पुनः क्षमायाचना के साथ ......

 

- वीनस

धन्यवाद वीनस जी !

अत्यंत सुंदर प्रयास...सभी गजलों को एक साथ बड़ी ख़ूबसूरती से एकत्र करके एक जगह रखा है आपने. इस तरह से सबकी गज़लों को दोबारा आसानी से पढ़कर आनंद लिया जा सकता है.  

हार्दिक धन्यबाद व भविष्य के लिये शुभकामनायें.....

आपका आभार शन्नो जी !
वन्दे मातरम आदरणीय योगराज जी एवं सभी मित्र गणों,
क्षमा प्रार्थी हूँ, अति व्यस्तता के चलते मैं इस आयोजन की किसी भी गजल पर कोई कम्मेन्ट्स नही कर पाया........ सभी गजलों को एक जगह पड़ना बेहद सुखकर लग रहा है .
उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार !

और अब वह गजल जिसके एक मिसरे पर पूरा मुशयरा आयोजित किया गया

 

आग यखबस्ता हवाओं में लगाईं जाये

कोई हंगामा सही रात जगाई जाये

 

रायगाँ वक्त गया काट के तन्हा तन्हा

आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये

 

रंग बेरंग हुआ डूब गई आवाजें

रेत ही रेत है अब लाश उठाई जाये

 

आइना टूट के बिखरा है निगारे शब् का

किस तरह सुबह से यह बात छिपाई जाये

 

साफ़ आती है यहाँ टूटते लम्हों की सदा

अब न आएगा कोई बज्म उठाई जाये

 

नाव कागज की गई डूब घरौंदे बिखरे

खेल सब खत्म हुआ खाक उडाई जाये

 

 

_________शाहिद माहुली

राना जी, शाहिद माहुली की पूरी ग़ज़ल यहाँ पेश करने के लिये बहुत शुक्रिया. दिल खुश हो गया...बहुत बढ़िया ग़ज़ल है. लेकिन मेरा कन्फ्यूजन दूर करिये...ये हंगामा शब्द तो पुर्लिंग है तो मेरे ख्याल से इसके साथ ''जगाई'' की जगह ''जगाया'' होना चाहिये. अगर मैं किसी तरीके से गलत हूँ तो एक्सप्लेन करिये. आगे से एक गुजारिश है गज़लकारों से कि उर्दू के मुश्किल शब्दों का हिंदी में अनुवाद अगर लिख दिया करें तो हम जैसों के लिये शेर का अर्थ समझने व अपना उर्दू का ज्ञान इम्प्रूव करने में मदद मिलेगी.   

मोहतरमा शन्नो साहिबा,
'कोई हंगामा सही, रात जगाई जाये'
शायर हंगामा करके 'रात' को जगाने की बात कर रहा है, और रात 'स्त्रीलिंग' ही होती है।
इमरान, आपने सही कहा...कन्फ्यूजन दूर करने के लिये आपका बहुत-बहुत शुक्रिया...
एक बात और..वो ये कि मुझे आपकी ग़ज़लें भी बेहद पसंद आईं..उर्दू भाषा बहुत खूबसूरत है लेकिन इसके काफी शब्दों का अर्थ अपने पल्ले नहीं पड़ता. हर दिन की बोलचाल से ही जितना जानती हूँ उसी से ही गुजारा होता है. इसलिये एक गुजारिश है कि ग़ज़ल के नीचे जरा उन मुश्किल शब्दों का मतलब भी लिख दिया करें आप सभी गजलकार लोग तो हम जैसे बदनसीबों पर बड़ी इनायत होगी :)

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"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
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"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
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"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
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