For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 53 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम स्नेही स्वजन,

मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| इस बार मुशायरे के संकलन करने में कार्यकारिणी सदस्य आदरणीय शिज्जू शकूर जी का सहयोग मिला इस हेतु उन्हें विशेष आभार| मिसरों में दो रंग भरे गए हैं लाल अर्थात बहर से ख़ारिज मिसरे और नीले अर्थात ऐब वाले मिसरे|

________________________________________________________________________________

श्री मिथिलेश वामनकर

आपकी ज़िद वही पुरानी थी
हर गलत बात तर्जुमानी थी

कौन बेआबरू किसे करता 
दुश्मनी यार खानदानी थी

वो भला इन्किलाब क्या लाए
जो कलम ख़ाम नातवानी थी

शहर की यूं हयात क्या कहिये
जो तबस्सुम न शादमानी थी

एक दरिया नहीं समझ पाया
ज़िन्दगी धूप और पानी थी

बचपना भी ज़रा बुढ़ापा भी
इन हदों में कही जवानी थी

हम तसव्वुर करे तिरी खुशबू

लोग कहते कि रातरानी थी

और रोते तमाम शब गुजरी
कुछ अज़ब तौर की कहानी थी

________________________________________________________________________________

श्री दिनेश कुमार

रस्मे महफ़िल मुझे निभानी थी
ख़ूबसूरत गिरह लगानी थी

ज़ेहन में थी ज़बाँ पे ला न सका
' कुछ अजब तौर की कहानी थी'

इश्क़े फ़ानी रवाँ हुआ मुझ पर
खाके ठोकर ही अक़्ल आनी थी

ज़र्द पत्तों से पूछ कर देखो
रात कितनी हवा सुहानी थी

नाव साहिल पे आके डूबी क्यूँ
मौज दर मौज इक कहानी थी

हाले दिल तुम से क्या बयाँ करते
दरमियाँ अपने बदगुमानी थी

उम्र से पहले वो हुआ बूढ़ा
उसकी बेटी हुई सयानी थी

चश्मे तर रहना ही मुकद्दर था
दिल के दरिया में बाढ़ आनी थी

रोज़ पीना व शायरी करना
अब यही मेरी ज़िन्दग़ानी थी

रौशनाई बनाई अश्क़ों से
मेरी गजलों में अब रवानी थी

साथ उनके गुजरती शाम 'दिनेश'
दिल की हसरत बहुत पुरानी थी

_______________________________________________________________________________

श्री भुवन निस्तेज

शम्अ यूँ तो नहीं बुझानी थी
कुछ हवा को भी शर्म आनी थी

वो सियासत बड़ी सयानी थी

पर इरादों में ही गिरानी थी

धूल दीवार से हटानी थी
तेरी तस्वीर जो लगानी थी

फिर ग़ज़ल ‘मीर’ पर हुई सज़दा
फिर वही ‘आह’ लौट आनी थी

आसमां ओढनी, ज़मीं बिस्तर
अपनी हर चीज खानदानी थी

था नहीं सर पे जीत का सेहरा
हौसलों ने न हार मानी थी

मैंने तारों से नूर छीना है
कुछ तो तारीक से निभानी थी

सख्त तेवर थे आँधियों के औ’
मेरी पुरज़ोर बादबानी थी

कुछ ये किरदार ही थे बे-चेहरा
“कुछ अजब तौर की कहानी थी”

ये हवाओं में आरियाँ देखो
मैंने उड़ने की आज ठानी थी

उसके जाने के बाद कहता हूँ
शाम रंगीन थी सुहानी थी

_________________________________________________________________________________

शिज्जु शकूर

फिर वही ग़म वो सरगिरानी थी
फिर वही तन्हा ज़िंदगानी थी

फिर वही दिन वही मुहब्बत और
तेरी धुँधली सी इक निशानी थी

छू गया था तेरा खयाल मुझे
सुबह चेहरे पे शादमानी थी

एक एहसास था मुकद्दस वो
“कुछ अजब तौर की कहानी थी”

लफ़्ज़ के लफ़्ज़ बह गये जिसमें
मेरे जज़्बात की रवानी थी

आपकी हस्ती का निशाँ न मिला
सरबलंदी महज ज़बानी थी

जल गये इस मुग़ालते में वो
आँच उन पर कोई न आनी थी

थे इरादे नसीब के कुछ और
जी ने लेकिन कुछ और ठानी थी

मुख़्तसर पल हयात के थे “शकूर”
हाँ वो भी एक चीज़ फ़ानी थी

___________________________________________________________________________

श्री गिरिराज भंडारी

जब मिली ताब आसमानी थी
क्यूँ भला कोई लनतरानी थी

जाविदाँ मौत जब हुई , तय था
ज़िन्दगी को तो मात खानी थी


ज़ेह्न में बात जब पुरानी थी 

शर्म से शक़्ल पानी पानी थी

अजनबी उस नये से मंज़र में
बस तेरी याद ही पुरानी थी

तुझ से हर दिन रहा गुलाबों सा
तुझ से सब रात, रातरानी थी

सारा आलम हुआ है पत्थर सा
तुम से हर शै में इक रवानी थी

रोशनी तब तलक रही मेह्माँ 
जब तलक तेरी मेजबानी थी

तेरी यादों के संग जो गुज़री
शाम बस इक वही सुहानी थी

मुस्तक़िल ग़म हमारे हिस्से थे 
हर खुशी सिर्फ आनी जानी थी

हर अमल दफ़्न था ज़मीं में पर
सिर्फ़ हसरत ही आसमानी थी

सुन के जड़वत हुये थे श्रोता ,सच
“ कुछ अजब तौर की कहानी थी ’’

__________________________________________________________________________________

श्री दिलबाग विर्क

जब चढ़ी आग-सी जवानी थी
चाल में आ गई रवानी थी ।

मैं जुबां पर यकीं न कर पाया
बात दिल की उसे बतानी थी ।

प्यार बरसे, दुआ यही माँगी
नफ़रतों की अनल बुझानी थी ।

इश्क़ ही हल मिला मुझे इसका
ज़िन्दगी दाँव पर लगानी थी ।

ग़म-ख़ुशी सब मिले मुहब्बत में
कुछ अजब तौर की कहानी थी ।

आँख के सामने सदा वो था
जब किया इश्क़, याद आनी थी ।

सीख लेते अगर इसे जीना
ज़िन्दगी तो बड़ी सुहानी थी ।

मारना सीखते अहम् अपना
' विर्क ' दीवार जो गिरानी थी ।

__________________________________________________________________________________

श्री निलेश शेवगाँवकर

कुछ तो तूफ़ान ने भी ठानी थी,
उस पे कश्ती भी बादबानी थी.

हर कहानी में इक कहानी थी 
हय! जवानी भी क्या जवानी थी.

मीर की शायरी सयानी थी,
‘कुछ अजब तौर की कहानी थी”

रात ख़्वाबो में कौन आया था,
सुब’ह साँसों में रातरानी थी. 

पढ़ते पढ़ते गुज़र गया शाइर,
हाथ में डायरी पुरानी थी. 

दिल में मेरे ठहर गया सहरा,
पहले दरियाओं सी रवानी थी.

रो पड़ा हँसते हँसते महफ़िल में, 
चोट दिल पर कोई पुरानी थी.

________________________________________________________________________________

श्रीमती राजेश कुमारी

ख़ूब ख़ुशहाल जिंदगानी थी

अम्न था चैन था जवानी थी

जानता था सभी लकीरों को
हाथ दौलत न आनी जानी थी

सब लुटाया वतन परस्ती में
खून में जोश था रवानी थी

थरथराते सभी जिसे सुनकर
कुछ अजब तौर की कहानी थी

दस बहाने बना गये उठकर
दास्ताँ तो अभी सुनानी थी

फूल को तोड़ ले गए ज़ालिम
सर पटकती वो बाग़वानी थी

जुल्म ढाया गिरा गए कहकर
ये इमारत बड़ी पुरानी थी

आज कंगाल है भिखारन है
जो कभी इक महल की रानी थी

बँट गया बीच में खड़ा बरगद 
अपने पुरखों की जो निशानी थी

_______________________________________________________________________________

श्री लक्ष्मण धामी

कमसिनी थी न तो जवानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी

जिस्म से रूबरू न थे लेकिन
दरमियाँ बात इक रूहानी थी

कट रही थी जो खुशबयानी में
दर्द लिपटी वो जिंदगानी थी

गैर का दोष क्या तबाही में
रंजिशें खुद से ही पुरानी थी

छोड़ दामन जो चल दिया माँ का
रात वो भी न कम तूफानी थी

हर तरफ दौर मुफलिसी का था
भ्रष्ट शासन की जो निशानी थी

जल न पाये धुआँ धुआँ होकर
आग ऐसे भी क्या लगानी थी

प्यार का फूल किस तरह खिलता
नफरतों की जो बागवानी थी

छान लाते रहीक आँखों से 
आपने जब हमें पिलानी थी

_____________________________________________________________________________

श्री दिगंबर नासवा

ट्रंक लोहे का सुरमे-दानी थी
बस यही माँ की इक निशानी थी

अब जो चुप सी टंगी है खूँटी पर
खास अब्बू की शेरवानी थी

मिल के रहते थे मौज करते थे
घर वो खुशियों की राजधानी थी

अपने सपनों को कर सका पूरा
स्कूल टीचर की मेहरबानी थी

झील में तैरते शिकारे थे
ठण्ड थी चाय जाफरानी थी

सिलवटों ने बताई तो जाना
कुछ अजब तौर की कहानी थी

बूँद बन कर में रेत पर बिखरा
जिंदगी यूं भी आजमानी थी

छोड़ कर जा रहीं थी जब मुझको
मखमली शाल आसमानी थी

उम्र के साथ ही समझ आया
हाय क्या चीज़ भी जवानी थी

जेब में ले के आये हो खंजर 
रिश्तेदारी भी कुछ निभानी थी

उफ़ ये गहरा सा दाग माथे पर
बे-वफ़ा प्यार की निशानी थी

_____________________________________________________________________________-

श्री सचिन देव

मेरी चाहत की जो कहानी थी
वो किसी और की जुबानी थी

आई थी जो समझ निगाहों से
कुछ अजब तौर की कहानी थी

याद की रौशनी हुई मद्धिम
दिल मैं शम्मा नई जलानी थी

राज उसका ही था जमाने में 
खून में जिसके भी रवानी थी

आज बिखरा पड़ा था धरती पर 
जिसकी परवाज आसमानी थी

हर कदम पर मिली नई ठोकर
क्या करें राह खुद बनानी थी

__________________________________________________________________________

श्री मोहन बेगोवाल

कुछ हकीकत थी, कुछ कहानी थी |
बात दिल की हमें बतानी थी |

बात अब तक छुपाई जो तुम से, 
ऐ ! जमाने तुझे सुनानी थी |

जो बताया वही हुआ था कब,
बात कुछ तो हमें छुपानी थी |

रात जब आई नींद आ घेरा
नींद भी रात की दिवानी थी|

अब मिले हो कहा उसी ने ये,
सोचना तब था जब जवानी थी|

जो दिखाया हमें नजारे में,
कुछ अजब तौर की कहानी थी |

____________________________________________________________________________

वंदना जी

ख़्वाब सहलाती इक कहानी थी
रात सिरहाने मेरी नानी थी

रंज ही था न शादमानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी

वो जो दिखती हैं रेत पर लहरें
वो कभी दरिया की रवानी थी

था जुदा फलसफा तेरा शायद
मुख्तलिफ़ मेरी तर्जुमानी थी

ये बची राख ये धुआं पूछे
जीस्त क्या सिर्फ राएगानी थी

कट गया नीम नीड़ भी उजड़े
भींत भाइयों ने जो उठानी थी

लो गुमाँ टूटा आखिरी दम पर
चिड़िया तो सच ही बेमकानी थी

_______________________________________________________________________________

श्री अजीत शर्मा ‘आकाश’

चाँदनी रात भी सुहानी थी
इक दिवाना था इक दिवानी थी ।

क्यों नहीं ओढ़ता-बिछाता मैं
दर्द ही तो तेरी निशानी थी ।

लुट गया राहे-इश्क़ में हँसकर
रस्म थी, रस्म तो निभानी थी ।

उनके ख़्वाबों में जब तलक हम थे
ज़िन्दगानी ही ज़िन्दगानी थी ।

हमने ही सब्र कर लिया थोड़ा
बात बिगड़ी हुई बनानी थी

सब समझ के भी कुछ न समझे हम
“कुछ अजब तौर की कहानी थी ” ।

____________________________________________________________________________

श्री गुमनाम पिथौरागढ़ी 

हुस्न था इश्क़ था कहानी थी 
खूब बेबाक वो जवानी थी

बाब दर बाब खूं के धब्बों में 
ऐ सियासत तेरी कहानी थी

कौन समझा सबब उदासी का 
यूँ दुनिया बड़ी सयानी थी

मार ठोकर जहां को खुश थे वो 
कैसी गुस्ताख़ वो जवानी थी

उम्र तो थी तवील पर मैंने 
खुदकुशी करने की ही ठानी थी

आज के बच्चों की कहानी में 
कोई राजा था ना ही रानी थी

उम्र जी तो लगा हमें गुमनाम 
बेवफा जीस्त दुनिया फानी थी

_____________________________________________________________________________

श्री अरुण कुमार निगम

साफ़ कुदरत से छेड़खानी थी
जिसकी कीमत तुम्हें चुकानी थी

दोष देते नदी - हवाओं को
बात इनकी किसी ने मानी थी ?

मेघ संदेस ले के आते थे
वो सदी किस कदर सुहानी थी

लीलते जा रहे हो गाँवों को
ज़िंदगी की जहाँ रवानी थी

व्यर्थ ही ढूँढता रहा पारस
मन में बस आग ही जलानी थी

आज अपनी जिसे बताते हो
वो शहीदों की राजधानी थी

स्वर्ण-पंछी, वो दूध की नदियाँ
कुछ अजब तौर की कहानी थी

_______________________________________________________________________________

श्रीमती छाया शुक्ला

दुश्मनी ये नहीं पुरानी थी 
धाक अपनी तुझे जमानी थी |

कर न पाए कभी सवाल सरल 
आज जो कहते हो कहानी थी |

याद तुम आये हर घड़ी मुझको 

भूलने की तुम ने तो ठानी थी |

लौट आये अगर सहज दिल से 
बात हो जाय जो बतानी थी |

अब न जीना कभी ख्यालों में 
जिन्दगी व्यर्थ कब बितानी थी |

अपन कहते चले गये सब कुछ
कुछ अजब तौर की कहानी थी

________________________________________________________________________

श्री लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

खून की सच यही कहानी थी
सच कहे तो यही जुबानी थी |

हर सुबह भक्त की जुबा देखो
यह अजब भोर की कहानी थी

दोष देना नहीं फिजाओं को
बात प्रभु की किसी ने मानी थी ?

सुर्ख लब छू रहे अभी से ही
यह सही प्यार की निशानी थी |

ईश ने ही यही लिखा मानों
कुछ अजब तौर की कहानी थी |

कुछ नही ख़ास मै कमा पाया,
दिल में हसरत बहुत पुरानी थी |

___________________________________________________________________________________

श्री दयाराम मेठानी

रात वह तो बहुत सुहानी थी,
देश हित की सुनी कहानी थी।

जान अपनी लुटा गया कोई, 
प्यार की बस यही निशानी थी।

प्यार चाहा मिली जुदाई क्यों,
कुछ अजब तौर की कहानी थी।

जो मिला बेवफा मिला हमको,
ये हमारी असावधानी थी।

पी गई वो जहर बिना समझे, 
प्यार में कुछ अजब दिवानी थी।

______________________________________________________________________________

श्री कृष्ण सिंग पेला

आग था वो, अवाम पानी थी,
और हुकूमत उसे चलानी थी ।

तेग़ तहखाने में पुरानी थी
ख़ानदानी वही निशानी थी

ख़ौफ़ यूँ छा गया था बस्ती में
जिस्म से रूह तक बेगानी थी

बाग़ में तितलियों के नारे थे
बात अपनी उन्हें मनानी थी

उसके दीदार से जगी उम्मीद, 
उसमें थोडी बहुत जवानी थी ।

चाँद ने मुड के भी नहीं देखा, 
मुंतज़िर कब से रातरानी थी ।

ख़त्म होने की थी न गुंजाइश,
"कुछ अजब तौर की कहानी थी ।"

_______________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई त्रुटि हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 3090

Reply to This

Replies to This Discussion

याद की रौशनी हुई मद्धिम

फिर से शम्मा नई जलानी थी..........यह शेर अब भी बे बहर है| बे बहर होने की वजह शमअ २१ को गलत वजन में बांधना है|

दूसरा शेर प्रतिस्थापित कर दिया है|

संकलन को देख कर बहुत ख़ुशी हुई बधाई आ० राणा प्रताप जी को ग़ज़लकारों की त्रुटियों की और ध्यान दिलाने के लिए बहुत- बहुत आभार|

मेरे लाल मिसरे को कृपया इस तरह संशोधित  कर दीजिये ....

अम्न था चैन था जवानी थी

 

वांछित संशोधन कर दिया है|

सादर धन्यवाद .

आदरणीय राणा साहब, इस संकलन के माध्यम से मार्गदर्शन हेतु हार्दिक धन्यवाद । सीमित अध्ययन व बोलचाल के अशुद्ध उच्चारण के कारण त्रुटियाँ रह गयीं । सुधार करने का प्रयत्न कर रहा हूँँ । यहाँ प्रत्येक दोषपूर्ण शेर के लिए विकल्प प्रस्तुत कर रहा हूँ । यदि इस से दोष निवारण हो सके तो कृपया संशोधन करने की कृपा करें । 
१. दूसरे शेर के लिए :
तेग़ तहखाने में पुरानी थी 
ख़ानदानी वही निशानी थी 
२. तीसरे शेर के लिए : 
ख़ौफ़ यूँ छा गया था बस्ती में
जिस्म से रूह तक बेगानी थी 
३. चौथे शेर के लिए : 
बाग़ में तितलियों के नारे थे
बात अपनी उन्हें मनानी थी 
सादर । 

जी सभी विकल्प उचित हैं| वांछित संशोधन कर दिया है|

संशोधन हेतु सादर धन्यवाद ।

संशोधन हेतु सादर धन्यवाद ।

आदरणीय राणा प्रताप भाई , गलती समझ मे आ गई । अगर उचित हो तो निम्न परिवर्तन करने की कृपा करें , और हुस्ने मतला के क्रम से हटाकर एक शे अर की जगह प्रतिस्थापित करने की क्रिपा करें ।

जाविदाँ मौत जब हुई , तय था    
ज़िन्दगी को तो मात खानी थी

                                    अब भी अगर कोई ग़लती हो तो सूचित करियेगा , फिर प्रयास करूंगा । सादर ।

वांछित संशोधन कर दिया है|

आदरणीय मंच संचालक राणा प्रताप जी  महोदय मेरी ग़ज़ल के उक्त दो अशआर परिवर्तित करने की कृपा कर मुझे अनुग्रहित करे. उसके स्थान पर निम्नानुसार अशआर पेस्ट करने की कृपा करे .

वो भला इन्किलाब क्या लाए 
जो कलम ख़ाम नातवानी थी

शहर की यूं  हयात क्या कहिये
जो तबस्सुम न शादमानी थी

जी वांछित संशोधन कर दिया है|

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service