आदरणीय साथिओ,
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बेचारगी (लघुकथा) :
"चल उठ! तुझे इतना भी होश नहीं है कि तेरा पति दफ़्तर से लौट कर आया है!" चटाई पर लेटी हुई पत्नी को लतयाते हुए उसने कहा और आज स्वयं अपने जूते उतारने लगा। बगल के कमरे से युवा बेटा सब देख सुनकर वहीं से चिल्लाया, "डैडी! ऐसा कैसे कर सकते हैं आप पढ़े-लिखे होते हुए! मम्मी कम पढ़ी-लिखी हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप ऐसा सलूक करें! घर-गृहस्थी संभालने से थक जाती हैं बेचारी!"
"तू अपनी पढ़ाई कर! मेरी पत्नी है! कुछ भी करूं उसके साथ! तुम लोग घर के कामों में हाथ बंटवा दिया करो न!"
"डैडी! हमारे भी अपने काम होते हैं। आप नौकर-नौकरानी क्यों नहीं रखवा देते मम्मी की मदद के लिए!" आज फिर बेटे ने पुरानी सलाह दे डाली। तब तक उसके भाई-बहन भी उस कक्ष में आ पहुंचे। ख़ुद को किसी तरह सँभालती माँ रसोई में खाना गरम कर परोसने की तैयारी करने लगी।
"नौकर-नौकरानियों पर भरोसा करूं या औलादों पर? ख़र्चों पर या कमाई पर? पढ़ा-लिखा दिया, तब भी मेरी छाती पर बैठे हुए हैं!" आज फिर वही भड़ास निकाली गई।
"बार-बार आप अपने फ़र्ज़ को अहसानों की तरह जतायेंगे, तो डैडी हम सब भी अपने हक़ की बात कहेंगे!" इस बार युवा बेटी बोली, "आपने अपने छोटे भाई-बहन को तो आगे पढ़वाया, मम्मी को आगे नहीं पढ़ने दिया शादी के बाद! ... भरोसे की बात करते हैं...!"
"इस तरह नहीं बोलते बेटा! तुम्हारे डैडी हैं और मेरे पति! एक ही इंसान है कमाने वाला! हमें उनका ख़्याल रखना चाहिए, ... उनका हक़ है!" यह कहते हुए पत्नी ने टेबल पर भोजन परोसा। पति स्मार्ट फ़ोन पर नज़रें गड़ाए भोजन करने लगे। बच्चों ने भी दूसरे कमरे में अपने मोर्चे सँभाल लिए।
(मौलिक व अप्रकाशित)
मानवीय अधिकारों की शून्यता का प्रश्न उठाती हुयी इस लघु-कथा के लिए बधाई, आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी , सादर
आदाब। इस रचना पर समय देकर संदेश संदर्भित टिप्पणी करने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब डॉ. विजय शंकर साहिब।
मोहतरम उस्मानी साहब अपने विषय को दर्शाती छोटी लेकिन अच्छी लघुकथा मुबारकबाद जनाब।
आदाब। मेरी इस रचना पर समय देकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहिब।
आज के समय के हिसाब से बढ़िया रचना विषय पर, कर्तव्य के बदले हक़ की बात ज्यादा होती है. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आ शेख शहजाद उस्मानी साहब
आदाब। रचना पटल पर उपस्थिति और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद जनाब विनय कुमार साहिब।
पत्नी की विवशता और पति की हट धर्मिता को दर्शाती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी .
आदाब। रचना पर.समय देकर संबंधित टिप्पणी और मुझे प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहब।
स्त्री प्रताड़ना स्त्री प्रताड़ना को रेखांकित करती तथा किस प्रकार वह अपने अधिकारों से वंचित है उनके ऊपर टिप्पणी करती एक सार्थक लगता था बहुत-बहुत बधाई इस रचना के लिए आदरणीय श्री उस्मानी साहब
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।परिवार में व्याप्त पुरुष दबंगयी का गहन विश्लेष्ण, बेहद बारीकी से दिखाती बेहतरीन लघुकथा।इसके बावजूद स्त्री द्वारा पति के प्रति निष्ठा और कर्तव्य की सुंदर बानगी।
आदाब। रचना के मर्म पर.बढ़िया टिप्पणी और.मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अजय गुप्ता साहिब।
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